ETV Bharat / state

चिपको आंदोलन की 51वीं वर्षगांठ पर याद आया जंगल बचाओ मूवमेंट, सरकार वन संरक्षण अधिनियम बनाने पर हुई थी मजबूर - Chipko movement - CHIPKO MOVEMENT

चिपको आंदोलन की 51वीं वर्षगांठ पर सीएम पुष्कर सिंह धामी ने इस अंदोलन की सूत्रधार गौरादेवी को नमन किया. इस मौके पर सीएम धामी ने कहा कि वनों के संरक्षण और संवर्धन के प्रति लोगों की जागरूक करते हुए वे महिला आंदोलनकारियों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं. इस मौके पर आज ईटीवी भारत आपको चिपको आंदोलन के इतिहास के बारे में बताता है.

Etv Bharat
Etv Bharat
author img

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Mar 26, 2024, 12:57 PM IST

देहरादून: जंगलों और पेड़ों को बचाने के लिए आज से करीब 51 साल पहले उत्तराखंड में कुछ महिलाओं ने अनूठा प्रयोग किया था, जिसकी गूंज पूरी दुनिया में सुनायी दी थी. जिसे चिपको आंदोलन का नाम दिया गया था. आज चिपको आंदोलन की 51वीं वर्षगांठ है.

दरअसल, 1973 के आसपास वन विभाग ने चमोली जिले के जोशीमठ ब्लॉक क्षेत्र में रैणी गांव के पास पेंड मुरेंडा इलाके को पेड़ कटान के लिए चुना था, जिसका ठेका ऋषिकेश के ठेकेदार को दिया गया था. बताया जाता है कि 680 हेक्टेयर का जंगल पांच लाख रुपए में नीलाम हुआ था.

जैसे ही ये खबर रैणी समेत आसपास के गांव वालों को लगी तो उन्होंने इस पर अपनी नाराजगी जाहिर की. क्योंकि गांव वालों का मानना था कि इन्हीं जंगलों से उनकी आजीविका चलती है. यहां तक की उनके मवेशी भी जंगलों पर ही निर्भर रहते हैं. रैणी गांव की महिलाओं ने फैसला किया कि वो किसी भी कीमत पर जंगल को नहीं कटने देंगी.

इस आंदोलन का नेतृत्व रैणी गांव की रहने वाली गौरा देवी ने किया. ठेकेदार के लोगों ने महिलाओं और ग्रामीणों को डराने का काफी प्रयास किया, लेकिन महिलाओं ने बंदूकों की परवाह किए बिना पेड़ों को घेर लिया और पूरी रात पेड़ों के चिपकी रहीं. महिलाओं ने साफ कर दिया था कि पेड़ पर कुल्हाड़ी चलाने से पहले उन पर चलानी पड़ेगी.

गौरा देवी के नेतृत्व में महिलाओं का ये अनोखा आंदोलन अगले ही दिन सुर्खियों में आ गया और पूरे इलाके में ये खबर आग की तरफ फैल गई. इसके बाद आसपास के गांवों में भी महिलाएं पेड़ों को बचाने के लिए पेड़ों से चिपक गई थी. महिलाओं के इस आंदोलन ने इतनी सुर्खियों बटोरी कि इसकी गूंज दिल्ली और लखनऊ तक सुनाई दी. वहीं मातृ शक्ति का ये रूप देखकर पेड़ काटने वाले भी डर गए थे और चार दिन बाद उन्हें भी उल्टे पैर लौटना पड़ा था.

इस आंदोलन में महिलाओं, बच्चों और पुरुषों ने पेड़ों से लिपटकर अवैध कटान का पुरजोर विरोध किया था, जिसके चिपको आंदोलन का नाम दिया गया था. रैणी गांव की रहने वाली गौरी देवी वो ही शख्सियत हैं, जिन्हें चिपको आंदोलन की वजह से आज पूरी दुनिया में जाना जाता है. इस आंदोलन में प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा, गोविंद सिंह रावत, चंडीप्रसाद भट्ट समेत कई लोग शामिल थे. चिपको आंदोलन ने राजनीति की जड़ें इस कदर हिला दी थी कि आंदोलन को देखते हुए तत्कालीन केंद्र सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम बनाया था.

पढ़ें--

  • चिपको आंदोलन वर्षगांठ : गौरा देवी के बुलंद हौसलों को बंदूकें भी नहीं डिगा सकी, पूरी रात पेड़ों से चिपकी रही महिलाएं
  • 50 Years Of Chipko Movement: पहाड़ी महिलाओं ने हिलाई थी इंदिरा सरकार, इस आंदोलन के बाद बना वन संरक्षण अधिनियम

देहरादून: जंगलों और पेड़ों को बचाने के लिए आज से करीब 51 साल पहले उत्तराखंड में कुछ महिलाओं ने अनूठा प्रयोग किया था, जिसकी गूंज पूरी दुनिया में सुनायी दी थी. जिसे चिपको आंदोलन का नाम दिया गया था. आज चिपको आंदोलन की 51वीं वर्षगांठ है.

दरअसल, 1973 के आसपास वन विभाग ने चमोली जिले के जोशीमठ ब्लॉक क्षेत्र में रैणी गांव के पास पेंड मुरेंडा इलाके को पेड़ कटान के लिए चुना था, जिसका ठेका ऋषिकेश के ठेकेदार को दिया गया था. बताया जाता है कि 680 हेक्टेयर का जंगल पांच लाख रुपए में नीलाम हुआ था.

जैसे ही ये खबर रैणी समेत आसपास के गांव वालों को लगी तो उन्होंने इस पर अपनी नाराजगी जाहिर की. क्योंकि गांव वालों का मानना था कि इन्हीं जंगलों से उनकी आजीविका चलती है. यहां तक की उनके मवेशी भी जंगलों पर ही निर्भर रहते हैं. रैणी गांव की महिलाओं ने फैसला किया कि वो किसी भी कीमत पर जंगल को नहीं कटने देंगी.

इस आंदोलन का नेतृत्व रैणी गांव की रहने वाली गौरा देवी ने किया. ठेकेदार के लोगों ने महिलाओं और ग्रामीणों को डराने का काफी प्रयास किया, लेकिन महिलाओं ने बंदूकों की परवाह किए बिना पेड़ों को घेर लिया और पूरी रात पेड़ों के चिपकी रहीं. महिलाओं ने साफ कर दिया था कि पेड़ पर कुल्हाड़ी चलाने से पहले उन पर चलानी पड़ेगी.

गौरा देवी के नेतृत्व में महिलाओं का ये अनोखा आंदोलन अगले ही दिन सुर्खियों में आ गया और पूरे इलाके में ये खबर आग की तरफ फैल गई. इसके बाद आसपास के गांवों में भी महिलाएं पेड़ों को बचाने के लिए पेड़ों से चिपक गई थी. महिलाओं के इस आंदोलन ने इतनी सुर्खियों बटोरी कि इसकी गूंज दिल्ली और लखनऊ तक सुनाई दी. वहीं मातृ शक्ति का ये रूप देखकर पेड़ काटने वाले भी डर गए थे और चार दिन बाद उन्हें भी उल्टे पैर लौटना पड़ा था.

इस आंदोलन में महिलाओं, बच्चों और पुरुषों ने पेड़ों से लिपटकर अवैध कटान का पुरजोर विरोध किया था, जिसके चिपको आंदोलन का नाम दिया गया था. रैणी गांव की रहने वाली गौरी देवी वो ही शख्सियत हैं, जिन्हें चिपको आंदोलन की वजह से आज पूरी दुनिया में जाना जाता है. इस आंदोलन में प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा, गोविंद सिंह रावत, चंडीप्रसाद भट्ट समेत कई लोग शामिल थे. चिपको आंदोलन ने राजनीति की जड़ें इस कदर हिला दी थी कि आंदोलन को देखते हुए तत्कालीन केंद्र सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम बनाया था.

पढ़ें--

  • चिपको आंदोलन वर्षगांठ : गौरा देवी के बुलंद हौसलों को बंदूकें भी नहीं डिगा सकी, पूरी रात पेड़ों से चिपकी रही महिलाएं
  • 50 Years Of Chipko Movement: पहाड़ी महिलाओं ने हिलाई थी इंदिरा सरकार, इस आंदोलन के बाद बना वन संरक्षण अधिनियम
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.