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दिव्यांग व निर्धन सामूहिक विवाह : मन में उमंग-तरंग लिए 51 बेटियां चलीं ससुराल - Udaipur Mass Marriage

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Sep 1, 2024, 9:06 PM IST

उदयपुर के बड़ी स्थित नारायण सेवा संस्थान के आश्रम में 51 दिव्यांग जोड़े रविवार को परिणय सूत्र बंधन में बंधे. परिसर में रविवार को 42वें नि:शुल्क दिव्यांग एवं निर्धन सामूहिक विवाह का आयोजन हुआ.

DISABLED AND POOR PEOPLE MARRIAGE
42वां दिव्यांग व निर्धन सामूहिक विवाह (Etv Bharat Udaipur)

उदयपुर: शहर में रविवार को नारायण सेवा संस्थान की ओर से 51 दिव्यांग जोड़े शादी के बंधन में बंधे. जन्म-जन्मों के लिए दो तन एक प्राण के साथ रिश्तों की डोर बंधे तो मन मयूर सा नाच उठा. नारायण सेवा संस्थान के बड़ी ग्राम स्थित परिसर में रविवार को 42वें नि:शुल्क दिव्यांग एवं निर्धन सामूहिक विवाह का आयोजन हुआ, जिसमें 51 जोड़ें पारिणय सूत्र बंधन में बंधे. अपनी दिव्यांगता और गरीबी के दंश को भुलाकर सभी ने खुशी की नई राहों में अपना कदम रखा.

देश भर से अतिथियों ने दिया आशीर्वाद : देशभर से बड़ी संख्या में आए अतिथियों व धर्म माता-पिताओं ने इन जोड़ों को प्रधानमंत्री के आह्वान 'एक पेड़ मां के नाम' थीम पर तुलसी, अशोक, बिल्व और पीपल के पौधे भेंट करते हुए दाम्पत्य जीवन हरा भरा रहने का आशीर्वाद दिया. नारायण सेवा संस्थान के संस्थापक पद्मश्री कैलाश 'मानव', सहसंस्थापिका कमला देवी अग्रवाल, अध्यक्ष प्रशांत अग्रवाल ने वैदिक मंत्रोचार के बीच गणपति की छवि के समक्ष दीप प्रज्वलित कर विवाह समारोह की पारंपरिक रस्मों की शुरुआत की. इससे पहले परिसर में दूल्हा-दुल्हनों की गाजे-बाजे के साथ बिंदोली निकाली गई.

एक-दूसरे का थामा हाथ : हाडा सभागार के द्वार पर दुल्हों ने नीम की डाली से तोरण रस्म का निर्वाह किया. इसके बाद श्रीनाथजी की झांकी की आरती के साथ ही वर वधुओं का मंच पर प्रवेश हुआ. सजे-धजे डोम में हजारों की मौजूदगी में वरमाला एवं आशीर्वाद समारोह संपन्न हुआ. दूल्हा-दुल्हन ने परस्पर बारी-बारी से वरमाला पहनाकर हमेशा के लिए रिश्तों की डोर को उल्लास से अपने साथ जोड़ लिया. तालियों की गड़गड़ाहट और मंगल गीतों की समधुर गूंज की आल्हादित करती वेला, पुष्प वर्षा और आतिशबाजी ने वातावरण को और अधिक भव्यता प्रदान की. इस दौरान बाहर से आए अतिथियों में फोटो व सेल्फी लेने की होड़ मच गई.

इसे भी पढ़ें : नारायण सेवा संस्थान का 41वां दिव्यांग सामूहिक विवाह समारोह हुआ संपन्न, अपने साजन संग विदा हुई 51 बेटियां

जोड़ों में कोई दूल्हा दिव्यांग था, तो कोई दुल्हन. कोई दोनों ही दिव्यांग. कोई बैशाखी के सहारे था तो कोई व्हीलचेयर पर था. इनमें जन्मजात प्रज्ञाचक्षु जोड़ा भी शामिल था. वरमाला के बाद 51 वेदियों पर नियुक्त आचार्यों ने मुख्य आचार्य के निर्देशन में वैदिक मंत्रों के साथ पवित्र अग्नि के सात फेरों की रस्म अदायगी के साथ पाणिग्रहण संस्कार संपन्न करवाया. विदाई के वक्त सभी की आंखें नम थी. दुल्हनों को डोली में बिठाकर उनके विश्राम स्थल तक पहुंचाया गया, जहां से संस्थान के वाहनों से दूल्हा-दुल्हन ने अपने-अपने गंतव्य के लिए प्रस्थान किया. जोड़ों को गृहस्थी का आवश्यक सामान बर्तन सेट, गैस-चूल्हा, संदूक, टेबल-कुर्सी, बिस्तर, घड़ी, पंखा, परिधान, प्रसाधन सेट,मंगलसूत्र, कर्णफूल, बिछिया, पायल, लोंग, अंगूठी व अन्य सामग्री भी प्रदान की गई.

ऐसे भी थे जोड़े : समारोह में बिहार से आया एक जोड़ा ऐसा था जिसमें वर सुनील दोनों पांवों से दिव्यांग था, जबकि उसकी जीवनसंगिनी बनी प्रिया सकलांग थी. उसने बताया कि दिव्यांगों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए इस तरह का समर्पण भी जरूरी है. वहीं, डूंगरपुर की शांता दाहिने पैर से जन्मजात दिव्यांग है और प्रतापगढ़ के केसरीमल हाथ से अपाहिज है. इन दोनों की चिकित्सा संस्थान में हुई और यही मिलते हुए दोनों ने जीवन साथी बनने का फैसला किया.

उदयपुर: शहर में रविवार को नारायण सेवा संस्थान की ओर से 51 दिव्यांग जोड़े शादी के बंधन में बंधे. जन्म-जन्मों के लिए दो तन एक प्राण के साथ रिश्तों की डोर बंधे तो मन मयूर सा नाच उठा. नारायण सेवा संस्थान के बड़ी ग्राम स्थित परिसर में रविवार को 42वें नि:शुल्क दिव्यांग एवं निर्धन सामूहिक विवाह का आयोजन हुआ, जिसमें 51 जोड़ें पारिणय सूत्र बंधन में बंधे. अपनी दिव्यांगता और गरीबी के दंश को भुलाकर सभी ने खुशी की नई राहों में अपना कदम रखा.

देश भर से अतिथियों ने दिया आशीर्वाद : देशभर से बड़ी संख्या में आए अतिथियों व धर्म माता-पिताओं ने इन जोड़ों को प्रधानमंत्री के आह्वान 'एक पेड़ मां के नाम' थीम पर तुलसी, अशोक, बिल्व और पीपल के पौधे भेंट करते हुए दाम्पत्य जीवन हरा भरा रहने का आशीर्वाद दिया. नारायण सेवा संस्थान के संस्थापक पद्मश्री कैलाश 'मानव', सहसंस्थापिका कमला देवी अग्रवाल, अध्यक्ष प्रशांत अग्रवाल ने वैदिक मंत्रोचार के बीच गणपति की छवि के समक्ष दीप प्रज्वलित कर विवाह समारोह की पारंपरिक रस्मों की शुरुआत की. इससे पहले परिसर में दूल्हा-दुल्हनों की गाजे-बाजे के साथ बिंदोली निकाली गई.

एक-दूसरे का थामा हाथ : हाडा सभागार के द्वार पर दुल्हों ने नीम की डाली से तोरण रस्म का निर्वाह किया. इसके बाद श्रीनाथजी की झांकी की आरती के साथ ही वर वधुओं का मंच पर प्रवेश हुआ. सजे-धजे डोम में हजारों की मौजूदगी में वरमाला एवं आशीर्वाद समारोह संपन्न हुआ. दूल्हा-दुल्हन ने परस्पर बारी-बारी से वरमाला पहनाकर हमेशा के लिए रिश्तों की डोर को उल्लास से अपने साथ जोड़ लिया. तालियों की गड़गड़ाहट और मंगल गीतों की समधुर गूंज की आल्हादित करती वेला, पुष्प वर्षा और आतिशबाजी ने वातावरण को और अधिक भव्यता प्रदान की. इस दौरान बाहर से आए अतिथियों में फोटो व सेल्फी लेने की होड़ मच गई.

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जोड़ों में कोई दूल्हा दिव्यांग था, तो कोई दुल्हन. कोई दोनों ही दिव्यांग. कोई बैशाखी के सहारे था तो कोई व्हीलचेयर पर था. इनमें जन्मजात प्रज्ञाचक्षु जोड़ा भी शामिल था. वरमाला के बाद 51 वेदियों पर नियुक्त आचार्यों ने मुख्य आचार्य के निर्देशन में वैदिक मंत्रों के साथ पवित्र अग्नि के सात फेरों की रस्म अदायगी के साथ पाणिग्रहण संस्कार संपन्न करवाया. विदाई के वक्त सभी की आंखें नम थी. दुल्हनों को डोली में बिठाकर उनके विश्राम स्थल तक पहुंचाया गया, जहां से संस्थान के वाहनों से दूल्हा-दुल्हन ने अपने-अपने गंतव्य के लिए प्रस्थान किया. जोड़ों को गृहस्थी का आवश्यक सामान बर्तन सेट, गैस-चूल्हा, संदूक, टेबल-कुर्सी, बिस्तर, घड़ी, पंखा, परिधान, प्रसाधन सेट,मंगलसूत्र, कर्णफूल, बिछिया, पायल, लोंग, अंगूठी व अन्य सामग्री भी प्रदान की गई.

ऐसे भी थे जोड़े : समारोह में बिहार से आया एक जोड़ा ऐसा था जिसमें वर सुनील दोनों पांवों से दिव्यांग था, जबकि उसकी जीवनसंगिनी बनी प्रिया सकलांग थी. उसने बताया कि दिव्यांगों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए इस तरह का समर्पण भी जरूरी है. वहीं, डूंगरपुर की शांता दाहिने पैर से जन्मजात दिव्यांग है और प्रतापगढ़ के केसरीमल हाथ से अपाहिज है. इन दोनों की चिकित्सा संस्थान में हुई और यही मिलते हुए दोनों ने जीवन साथी बनने का फैसला किया.

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