शिमला: हिमाचल विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान भोरंज के विधायक सुरेश कुमार और मनाली से विधायक भुवनेश्वर गौड़ ने अतारंकित सवाल संख्या 1692 में सरकार से सवाल पूछा था कि प्रदेश में कार्यशील गौशालाओं/गौ- सदनों की जांच, सुधार एवं रख-रखाव के लिए सरकार की क्या योजना है. इसके साथ ही गौ सदनों में मरने वाले पशुओं का आंकड़ा भी मांगा गया था. साथ गौ तस्करी के मामलों को लेकर भी सवाल पूछा गया था.
सरकार की ओर से दिए गए जवाब में बताया गया कि गौवंश कल्याण और बेसहारा गौवंश को आश्रय दिलाने के लिए प्रदेश सरकार ने हिमाचल प्रदेश गौसेवा आयोग का गठन किया है. हिमाचल प्रदेश गौसेवा आयोग के माध्यम से प्रदेश सरकार नए गौसदनों के निर्माण के लिए प्राक्कलन राशि का 50 प्रतिशत या 10.00 लाख रुपये जो भी कम है, का अनुदान देती है. गौसदनों के विस्तार के लिए प्रदेश सरकार 5.00 लाख रुपये तक का अनुदान प्रदान करती है. यह अनुदान "पहले आओ पहले पाओ नीति के तहत प्रदान किया जाता है.
प्रति गौवंश मिलेंगे 1200 रुपये
वर्तमान में राज्य में 245 गौसदन हैं, इनमें से 159 गौसेवा आयोग में पंजीकृत हैं. गोपाल योजना के तहत गौसदनों में पल रहे बेसहारा गौवंश के पालन पोषण के लिए प्रदान की जा रही सहायता राशि को 700 /- रुपये प्रति माह प्रति गौवंश से बढ़ाकर 1200/- रुपये प्रति माह प्रति गौवंश करने का मामला प्रकियाधीन है. सरकार से स्वीकृत SOP के अनुसार यह राशि उन सभी गौसदनों / गौ अभ्यारण्यों को उपलब्ध करवाई जा रही है जिनमें 30 से अधिक संख्या में बेसहारा गौवंश आश्रित हैं. इस योजना पर माह जुलाई 2024 तक 50,14,24,184 /- रुपये की राशि व्यय हो चुकी है.
नियमित तौर पर होती है गौसदनों की जांच
उपरोक्त के अतिरिक्त प्रदेश में क्रियाशील गौसदनों में आश्रित बेसहारा गौवंश की स्वास्थ्य जांच / सुधार के लिए पशु चिकित्सा अधिकारी नियमित तौर पर निरीक्षण करते हैं. वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी सप्ताह में एक बार, सहायक निदेशक 15 दिनों में एक बार, उप निदेशक महीने में एक बार व संयुक्त निदेशक तीन माह में एक बार बेसहारा गौवंश के स्वास्थ्य और गौसदन के प्रबंधन की जांच के लिए साइट विजिट करते हैं. इसके अतिरिक्त आपातकालीन स्थिति में गौसदनों में सम्बन्धित चिकित्सा अधिकारी / पशु औषधियोजक गौसदनों में चिकित्सा सुविधा मुहैया करवाते हैं.
इतने गौवंश की हुई मौत
सरकार ने जानकारी देते हुए बताया कि प्रदेश में कार्यशील गौसदनों में वर्ष 2021-22 से अभी तक मरने वाले पशुओं की संख्या 17,767 है. गौसदनों में मुख्यतः वृद्ध और शारीरिक रूप से कमजोर/अस्वस्थ/घायल पशु/ लम्पी रोग से ग्रसित पशु होने के कारण प्राकृतिक मृत्यु दर अधिक है. सदनों में लाए गए पशु अवांछित वस्तुओं जैसे प्लास्टिक, लोहे की वस्तुएं खाने के आदी होते हैं, सके कारण भी असमय मृत्यु दर्ज की जाती है. मृत गौवंश का वर्षवार/ जिलावार विवरण नीचे दिया गया है.
राज्य स्तरीय टास्क फोर्स गठित करने का प्रस्ताव
वहीं, जवाब में क कहा गया कि बेसहारा गौवंश की समस्या के निदान के लिए एक राज्यस्तरीय टास्क फोर्स के गठन करने का प्रस्ताव सरकार के विचाराधीन हैं. यह राज्यस्तरीय टास्क फोर्स स्थानीय समुदाय से परामर्श के बाद गौवंश को समीप के गौसदनों में रखने के लिए सुझाव देगी और गौसदनों के निर्माण व रख रखाव से सम्बन्धित सुझाव भी देगी.
हिमाचल प्रदेश पंचायती राज अधिनियम, 1994 के अन्तर्गत गौजातीय पशुओं के मालिक ग्राम पंचायत में अपने पशुओं का पंजीकरण करवाने के लिए जिम्मेवार है. हिमाचल प्रदेश पंचायती राज अधिनियम, 1994 की धारा 11 (क) के प्रावधानानुसार ग्राम पंचायत, पंचायत क्षेत्र में भटकते आवारा पशुओं की पहचान होने पर उसके मालिक पर जुर्माने का प्रावधान है. पहली बार के लिए पांच सौ रुपये और दो बार या उससे अधिक बार ऐसा अपराध करने पर 700 रुपये के जुर्माने का प्रावधान है. वहीं, प्रदेश में गत वर्ष से 31.07.2024 तक गौ तस्करी के 07 मामले पंजीकृत हुए हैं.
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