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राज्यपाल आनंदीबेन पटेल बोलीं- विश्वविद्यालय प्राइमरी स्कूल के बच्चों को भी संगीत की शिक्षा दें - Lucknow News

लखनऊ में बुधवार को भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय (Bhatkhande Sanskriti university) का 14वां दीक्षांत समारोह आयोजित किया गया. इसकी अध्यक्षता राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने की.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 21, 2024, 7:27 PM IST

लखनऊ : राजधानी में बुधवार को भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय का 14वां दीक्षांत समारोह आयोजित किया गया. समारोह की अध्यक्षता प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने की. इस दौरान उन्होंने कहा कि कला का जीवन से गहरा संबंध है और भारतीय संगीत की परम्परा के प्रमाण वैदिक काल से ही मिलते हैं. इस विश्वविद्यालय में भारतीय संस्कृति का अध्ययन, अध्यापन और शोध इसे विश्व में विशेष स्थान दिलाएगा. राष्ट्रीय जीवन से प्रेरित शिक्षा ही किसी भी देश के विकास में उचित योगदान दे सकती है.

इस दौरान राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने उपाधि और पदक प्राप्तकर्ताओं के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए सभी को दीक्षांत समारोह की शुभकामनाएं दीं. उन्होंने संगीत संस्थान की स्थापना में योगदान देने वाले पंडित विष्णु नारायण भातखंडे को अपनी श्रद्धांजलि देते हुए संगीत को जीवन का अभिन्न अंग बताया और कहा कि प्रकृति के कण-कण में संगीत है. जब वर्षा होती है, नदियां बहती हैं, हवाएं चलती हैं, पक्षी चहकते हैं. इन सब में संगीत है.

राज्यपाल ने भारत की संस्कृति को अत्यंत समृद्ध और विविधता पूर्ण बताते हुए कहा कि यहां कलाओं की अनेक परंपराएं हैं. किसी भी देश की संस्कृति और परम्परा ये दो ऐसी महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं, जो राष्ट्र को विशेष पहचान देती हैं. उन्होंने कहा कि राष्ट्र को संरक्षित करने के लिए संस्कृति को संरक्षित करना बहुत जरूरी है. भारत की सांस्कृतिक परम्परा को पूरे विश्व के लिए आकर्षण का केंद्र बताते हुए उन्होंने कहा कि हमारे अनेक महान रचनाकारों ने आध्यात्म, साहित्य, रस और सौंदर्य के माध्यम से भारतीय कला और दर्शन को अमृत प्रदान किया है.


159 छात्र-छात्राओं को प्रदान की गई डिग्री : दीक्षांत समारोह में कुल 159 उपाधियां छात्र-छात्राओं को प्रदान की गई. इनमें से स्नातक के 83 परास्नातक के 74 व पीएचडी के दो विद्यार्थियों को उपाधि प्रदान की गई. समारोह में कुल 22 विद्यार्थियों को 29 स्वर्ण, 10 रजत और 08 कांस्य सहित 47 पदक दिए गए. समारोह में 31 छात्रों और 16 छात्राओं को पदक प्रदान किया गया. दीक्षांत समारोह के मुख्य अतिथि व संस्थापक स्पिक मैके, पद्मश्री डॉ. किरण सेठ ने अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि कठिन परिश्रम और नियमित रियाज की मदद से ही विद्यार्थी अपनी मंजिल तक पहुंच सकते हैं. अपने सपनों को पूरा करने के लिए यह जरूरी है कि आप निरंतर प्रयास करते रहें और अपनी क्षमताओं को निखारें.

'पिताजी को नहीं पता था मैं नृत्य सीखता हूं' : दीक्षांत समारोह में सर्वाधिक 10 मेडल जीतने वाले मास्टर ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स (भरतनाट्यम) के छात्र शिवम अवस्थी ने बताया कि वह सीतापुर के रहने वाले हैं. जब उन्होंने नृत्य करना शुरू किया तो दादाजी नाराज हुए. दरअसल, उनके लिए और उस पूरे क्षेत्र के लिए यह कला नहीं सिर्फ नाच था. मैने जब मास्टर ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स में प्रवेश लिया तो घर पर बताया कि मैं गायन सिखाने जा रहा हूं. अकेले संघर्ष किया, बच्चों को कोचिंग पढ़ाकर फीस निकाली. शिवम ने बताया कि इस दौरान नृत्य विभाग के प्रोफेसर ज्ञानेंद्र दत्त बाजपेई का बहुत सहयोग मिला. वह न सिर्फ अच्छे गुरु बल्कि पिता, मित्र, सहित सारे किरदार निभाए. इसके बाद मुझे दीक्षांत में मेडल मिला, तब पिता को पता लगा कि असल में नृत्य सीख रहा था. उन्होंने प्यार से गले लगा लिया और तब से आज तक उन्होंने भरपूर सहयोग किया है.

पहले पीएचडी पूरी करना: विश्वविद्यालय की पदकों की सूची में तीसरे स्थान पर एमपीए गायन विभाग के अनुराग मौर्या इसी क्षेत्र में खुद को स्थापित करना चाहते हैं. अनुराग राजाजीपुरम में रहते हैं. पिता अनिरुद्ध मौर्या सरकारी नौकरी में हैं और माता उमा मौर्या गृहिणी हैं. अनुराग ने कहा कि पहले गायन में पीएचडी पूरी करना करना प्राथमिकता है. इसके बाद आगे के भविष्य पर काम करूंगा.

यह भी पढ़ें : भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय फिर मणिपुरी नृत्य-पखावज, सरोद और सारंगी जैसे बंद कोर्स शुरू करेगा - Bhatkhande University Admission

यह भी पढ़ें : भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय का 13वां दीक्षांत समारोह आज, 45 मेडल दिए जाएंगे

लखनऊ : राजधानी में बुधवार को भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय का 14वां दीक्षांत समारोह आयोजित किया गया. समारोह की अध्यक्षता प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने की. इस दौरान उन्होंने कहा कि कला का जीवन से गहरा संबंध है और भारतीय संगीत की परम्परा के प्रमाण वैदिक काल से ही मिलते हैं. इस विश्वविद्यालय में भारतीय संस्कृति का अध्ययन, अध्यापन और शोध इसे विश्व में विशेष स्थान दिलाएगा. राष्ट्रीय जीवन से प्रेरित शिक्षा ही किसी भी देश के विकास में उचित योगदान दे सकती है.

इस दौरान राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने उपाधि और पदक प्राप्तकर्ताओं के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए सभी को दीक्षांत समारोह की शुभकामनाएं दीं. उन्होंने संगीत संस्थान की स्थापना में योगदान देने वाले पंडित विष्णु नारायण भातखंडे को अपनी श्रद्धांजलि देते हुए संगीत को जीवन का अभिन्न अंग बताया और कहा कि प्रकृति के कण-कण में संगीत है. जब वर्षा होती है, नदियां बहती हैं, हवाएं चलती हैं, पक्षी चहकते हैं. इन सब में संगीत है.

राज्यपाल ने भारत की संस्कृति को अत्यंत समृद्ध और विविधता पूर्ण बताते हुए कहा कि यहां कलाओं की अनेक परंपराएं हैं. किसी भी देश की संस्कृति और परम्परा ये दो ऐसी महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं, जो राष्ट्र को विशेष पहचान देती हैं. उन्होंने कहा कि राष्ट्र को संरक्षित करने के लिए संस्कृति को संरक्षित करना बहुत जरूरी है. भारत की सांस्कृतिक परम्परा को पूरे विश्व के लिए आकर्षण का केंद्र बताते हुए उन्होंने कहा कि हमारे अनेक महान रचनाकारों ने आध्यात्म, साहित्य, रस और सौंदर्य के माध्यम से भारतीय कला और दर्शन को अमृत प्रदान किया है.


159 छात्र-छात्राओं को प्रदान की गई डिग्री : दीक्षांत समारोह में कुल 159 उपाधियां छात्र-छात्राओं को प्रदान की गई. इनमें से स्नातक के 83 परास्नातक के 74 व पीएचडी के दो विद्यार्थियों को उपाधि प्रदान की गई. समारोह में कुल 22 विद्यार्थियों को 29 स्वर्ण, 10 रजत और 08 कांस्य सहित 47 पदक दिए गए. समारोह में 31 छात्रों और 16 छात्राओं को पदक प्रदान किया गया. दीक्षांत समारोह के मुख्य अतिथि व संस्थापक स्पिक मैके, पद्मश्री डॉ. किरण सेठ ने अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि कठिन परिश्रम और नियमित रियाज की मदद से ही विद्यार्थी अपनी मंजिल तक पहुंच सकते हैं. अपने सपनों को पूरा करने के लिए यह जरूरी है कि आप निरंतर प्रयास करते रहें और अपनी क्षमताओं को निखारें.

'पिताजी को नहीं पता था मैं नृत्य सीखता हूं' : दीक्षांत समारोह में सर्वाधिक 10 मेडल जीतने वाले मास्टर ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स (भरतनाट्यम) के छात्र शिवम अवस्थी ने बताया कि वह सीतापुर के रहने वाले हैं. जब उन्होंने नृत्य करना शुरू किया तो दादाजी नाराज हुए. दरअसल, उनके लिए और उस पूरे क्षेत्र के लिए यह कला नहीं सिर्फ नाच था. मैने जब मास्टर ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स में प्रवेश लिया तो घर पर बताया कि मैं गायन सिखाने जा रहा हूं. अकेले संघर्ष किया, बच्चों को कोचिंग पढ़ाकर फीस निकाली. शिवम ने बताया कि इस दौरान नृत्य विभाग के प्रोफेसर ज्ञानेंद्र दत्त बाजपेई का बहुत सहयोग मिला. वह न सिर्फ अच्छे गुरु बल्कि पिता, मित्र, सहित सारे किरदार निभाए. इसके बाद मुझे दीक्षांत में मेडल मिला, तब पिता को पता लगा कि असल में नृत्य सीख रहा था. उन्होंने प्यार से गले लगा लिया और तब से आज तक उन्होंने भरपूर सहयोग किया है.

पहले पीएचडी पूरी करना: विश्वविद्यालय की पदकों की सूची में तीसरे स्थान पर एमपीए गायन विभाग के अनुराग मौर्या इसी क्षेत्र में खुद को स्थापित करना चाहते हैं. अनुराग राजाजीपुरम में रहते हैं. पिता अनिरुद्ध मौर्या सरकारी नौकरी में हैं और माता उमा मौर्या गृहिणी हैं. अनुराग ने कहा कि पहले गायन में पीएचडी पूरी करना करना प्राथमिकता है. इसके बाद आगे के भविष्य पर काम करूंगा.

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