नई दिल्ली: देश-दुनिया में हर साल 10 अगस्त को विश्व शेर दिवस मनाया जाता है. इस दिन को मनाने के पीछे का उद्देश्य शेरों को बचाने और उनके बेहतर संरक्षण के लिए दुनिया को जागरूक करना है. इस दिन कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की ओर से जागरुकता कार्यक्रम चलाए जाते हैं.
शेर के बारे में सब कुछ जानिए यहां
एशियाई शेरवैज्ञानिक नामः पेंथेरा लियो पर्सिकाजनसंख्या
ऊंचाई-523 सेमी
लगभग 110 सेमी लंबाई
वजन-190किग्रा
राजधानी दिल्ली की बात करें तो यहां चिड़िया घर में आपको शेर देखने को मिल जाएंगे. दिल्ली जू में रोजाना हजारों पर्यटक आते हैं. जंगल का राजा कहे जाने वाले शेर को देखना पर्यटकों की प्राथमिकता होती है. हर साल 10 अगस्त को विश्व शेर दिवस मनाया जाता है. दिल्ली जू में शेरों की बात करें तो इनकी संख्या चार है. इनके नाम माहेश्वर, महागौरी, सुंदरम और शैल्जा है. माहेश्वर-महागौरी और सुंदरम व शैल्जा की जोड़ी है. सुंदरम 2009 में दिल्ली जू में पैदा हुआ था. जबकि माहेश्वर, महागौरी व शैल्जा को गुजरात के जूनागढ़ स्थित शकरबाग जू से वर्ष 2021 में लाए गए थे. तीनों का जन्म अप्रैल 2020 में हुआ था.
जू के सबसे बुजुर्ग बब्बर शेर को जू कीपरों ने गोद में पाला
वर्ष 2009 में दिल्ली में सुंदरम का जन्म हुआ. अधिकारियों के मुताबिक वह मां का दूध नहीं पी पाया. ऐसे में उसे जू कीपरों ने गोद में लिया और अस्पताल ले गए. जहां पर चिकित्सकों की टीम और जू कीपरों ने उसे पाला. शेर का बच्चा देखने में बहुत ही सुंदर था. ऐसे में उसका नाम सुंदरम रखा गया. साल 2021 में जूनागढ़ से दो मेल और एक फीमेल शेर को लगाया गया. जूनागढ़ से लाई गई शैल्जा को सुंदरम के साथ रखा गया है. वहीं, माहेश्वर और महागौरी को अलग बाड़े में रखा गया है. दोनों की करीब साढ़े चार साल के हो रहे हैं. इन्हीं दोनों से दिल्ली जू में शेरों का वंश आगे बढ़ेगा. दिल्ली जू के डायरेक्टर डा. संजीत कुमार ने बताया कि दोनों के प्रजनन के लिए चिकित्सकों की टीम हार्मोनल निगरानी कर रही है. गुजरात में शेरों की ब्रीडिंग अच्छी है. ऐसे में वहां से भी मदद ली जा रही है. जूनागढ़ जू से शेर और शेरनी लाने के लिए भी बात चल रही है. उम्मीद है कि अगले छह माह में शेर-शेरनी आ जाएंगे, जिससे दिल्ली जू में शेरों की संख्या बढ़ सके.
जंगल में 15 तो जू में 22 साल तक जी लेते हैं शेर
दिल्ली जू में शेरों की देखरेख करने वाले कीपर राजेश कुमार ने बताया कि जंगल में एक शेर औसतन 12 से 15 साल तक जीता है. जबकि जू के अंदर शेर 20 से 22 साल तक जी जाते हैं. क्योंकि जू के अंदर खाने के लिए शेरों को जद्दोजहद नहीं करनी पड़ती है. बीमार हो गए तो तुरंत इलाज मिलता है. यदि मांस नहीं खाने का मन होता है तो उन्हें मांस का सूप बनाकर दे दिया जाता है. उनकी सेहत का सबसे ज्यादा ख्याल रखा जाता है, जिससे की वह स्वस्थ रहें. ऐसे में शेर जू के अंदर ज्यादा जीते हैं.
एक साथ 5-6 बच्चों को जन्म देती है शेरनी
जू के अधिकारियों से मिली जानकारी के मुताबिक शेरनी अधिकतम 5 से 6 शावक (बच्चों) को जन्म देती है. जो पहले जन्म लेते हैं वह दूध पी लेते हैं. आखिरी में पैदा होने वाले शावकों को मां का दूध नहीं मिलता है. ऐसे में 3 से 4 शावक जी पाते हैं. 1 से 2 शावक की मौत हो जाती है. शेरों के कीपर राजेश के मुताबिक जन्म के बाद यदि कोई इंसान शावकों को छू देता है तो शेरनी उस पर ध्यान नहीं देती है. ऐसे में उसकी मौत हो जाती है. जू के अंदर जन्म होने पर घंटों तक निगरानी की जाती है. यदि तीन से चार घंटे तक शावक दूध नहीं पी पाता या नहीं उठ पाता है तभी उसे हाथ लगाया जाता है और अस्पताल में ले जाते हैं. तीन माह में शावक की आंख खुलती है. छह माह तक उसे गोद में भी ले लेते हैं. लेकिन जब नाखून आ जाते हैं तो उसे पिंजरे में रखना पड़ता है. 8 से 10 माह तक के शावक को बोनलेस चिकन या सूप दिया जाता है.
सर्दी में 12 और गर्मी में 10 किलो मांस खा लेते हैं शेर
दिल्ली जू के डायरेक्टर डा. संजीत कुमार के मुताबिक दिल्ली जू में अभी चार शेर हैं. एक शेर को सर्दियों के समय में 12 किलो मांस और गर्मियों में 10 किलो मांस दिया जाता है. भैंसे या बकरे के मांस के साथ मुर्गे का मीट दिया जाता है. यदि शेर किसी कारण से मांस नहीं खा रहा है तो उसको मांस का सूप बनाकर दिया जाता है. खाना दिन में एक बार ही खाते हैं. खाने के बाद अक्सर शेर सोते हैं. यह उनकी प्रवृत्ति है. शेर टाइगर की तरह उछल कूद नहीं करते हैं.
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