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ईटीवी भारत एक्सक्लूसिव: राष्ट्रीय हॉकी टीम की कोच येंदाला सौंदर्या ने हाथ टूटने के बाद भी नहीं छोड़ी हॉकी

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Feb 1, 2024, 4:18 PM IST

भारतीय महिला हॉकी टीम की मुख्य कोच येंदाला सौंदर्या के साथ ईटीवी भारत ने खास बातचीती की है. इस बातचीत के दौरान उन्होंने अपनी लाइव की जर्नी के बारे में खुलकर बताया है.

Yendala Soundarya
येंदाला सौंदर्या

तेलंगाना (निज़ामाबाद): भारत की राष्ट्रीय हॉकी टीम की कोच येंदाला सौंदर्या तेलंगाना के निजामाबाद की रहने वाली हैं. वो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की हॉकी का प्रतिनिधत्व भी कर चुकी हैं. ये बड़ी जिम्मेदारी मिलने के बाद उन्होंने ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत की है और अपने अनुभवों को साझा किया है.

दादाजी ने की शुरुआत में मदद
येंदाला सौंदर्या ने अपने खेल के शुरुआती दिनो के बारे में बात करते हुए कहा कि, 'हॉकी को अब पहचान मिल रही है, लेकिन जब मैंने इस खेल को खेलना शुरु किया था तो लड़कियों के लिए कोई बढ़ावा नहीं दिया जाता था. मेरे पिता उस समय राजमिस्त्री का काम करते थे जबकि मेरी माँ बीड़ी बनाती थी. मैं तीन बच्चों में सबसे बड़ी थी, हमारा गृहनगर निज़ामाबाद में एल्लाम्मागुट्टा है. जब स्कूल में कोचों ने देखा कि मुझे हॉकी खेलना पसंद है, तो उन्होंने मेरे अंदर के एथलीट को पहचाना और मुझे खेलना सिखाया. उस समय हमारे पास खेलना के लिए सामान लेने, अच्छा खाना खाने और जूते को खरीदने में पैसे नहीं हुआ करते थे. इसीलिए मेरे माता-पिता नहीं चाहते थे कि मैं खेलूं. उस समय हॉकी के लिए मेरा उत्साह देखकर मेरे दादाजी इनकार नहीं कर सके... वे समय-समय पर मुझे पैसे देकर मेरी मदद करते थे लेकिन वो पैसे कभी भी काफी नहीं होते थे'.

येंदाला सौंदर्या
येंदाला सौंदर्या

एसएआई में जाकर कम हुई मुश्किल
सौंदर्या ने आगे बता करते हुए कहा कि, 'जब मुझे स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAI) में सीट मिली तब जाकर मेरी मुश्किलें थोड़ी आसान हुईं. इसके बाद मैंने अपने खेल पर ध्यान दिया और साल 2006 में मुझे राज्य टीम का नेतृत्व करने का मौका मिला. मैंने वहां बेहतरीन खेल दिखाया और राष्ट्रीय टीम के लिए मुझे चुन लिया गया. अभी तक हमारे तेलुगु राज्यों से किसी को भी खिलाड़ी को राष्ट्रीय टीम के लिए नहीं चुना गया है. वह मेरी पहली जीत थी. मुझे देखकर मेरे छोटे भाई सागर ने भी राष्ट्रीय स्तर पर हॉकी में शानदार प्रदर्शन किया'.

सौ से ज्यादा खेल मैच
उन्होंने आगे बता करते हुए कहा कि, 'राष्ट्रीय टीम प्रदर्शन करना आसान नहीं है. बहुत सारी चुनौतियां आपके सामने आती हैं. पहले तो मुझे काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा क्योंकि मुझे हिंदी ज्यादा नहीं आती थी. मैं टीम में थी लेकिन मुझे मैदान पर उतरने का मौका नहीं मिला. जब तक टीम के मैन खिलाड़ी घायल नहीं हुए तब तक मुझे खेलने का मौका नहीं मिलेगा. मैं अपनी प्रतिभा के दम पर कुछ ही समय में टीम की एक प्रमुख सदस्य बन गई. इस दौरान बीच में मेरी बांह की हड्डी टूट गई और मैं दो साल तक खेल नहीं पाई. उस वक्त बिना आत्मविश्वास खोए मैंने वापसी की और खुद को साबित किया. इसके बाद मैंने उप-कप्तान और कप्तान के तौर पर जिम्मेदारियां उठाईं और देश के लिए ओलंपिक सहित सौ से अधिक अंतरराष्ट्रीय मैचों का प्रतिनिधित्व किया'.

10 सालों तक खेलने से हूं खुश
सौंदर्या ने आगे बात करते हुए कहा कि, 'मैंने 2006 से 2016 तक 10 सालों तक राष्ट्रीय टीम का प्रतिनिधित्व किया. उसके बाद मैंने कोच बनने की इच्छा के साथ 2022 में आवेदन किया. इसके बाद मुझे राष्ट्रीय टीम के लिए सहायक कोच बनने की अनुमति दी गई. मुझे एक सहायक कोच के रूप में काम करने के बाद ओमान में आयोजित विश्व कप हॉकी टूर्नामेंट में देश की टीम की मुख्य कोच बनने का मौका मिला. मैं तेलुगु राज्यों से पहली बार यह दर्जा और अवसर पाकर खुश हूं.मुझे 2009 में रेलवे टीसी की नौकरी मिली थी. इससे पहले मैं मुंबई में नौकरी करती थी. शादी के बाद मैं सिकंदराबाद आ गयी. मेरे पति रमेश एक आईटी कर्मचारी हैं. हमारे पास एक बच्चा है. मैं खेलों में लड़कियों को प्रोत्साहित करती हूं'.

ये खबर भी पढ़ें : सैफ अंडर-19 महिला फुटबॉल चैंपियनशिप के लिए भारत ने 23 सदस्यीय टीम घोषित की

तेलंगाना (निज़ामाबाद): भारत की राष्ट्रीय हॉकी टीम की कोच येंदाला सौंदर्या तेलंगाना के निजामाबाद की रहने वाली हैं. वो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की हॉकी का प्रतिनिधत्व भी कर चुकी हैं. ये बड़ी जिम्मेदारी मिलने के बाद उन्होंने ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत की है और अपने अनुभवों को साझा किया है.

दादाजी ने की शुरुआत में मदद
येंदाला सौंदर्या ने अपने खेल के शुरुआती दिनो के बारे में बात करते हुए कहा कि, 'हॉकी को अब पहचान मिल रही है, लेकिन जब मैंने इस खेल को खेलना शुरु किया था तो लड़कियों के लिए कोई बढ़ावा नहीं दिया जाता था. मेरे पिता उस समय राजमिस्त्री का काम करते थे जबकि मेरी माँ बीड़ी बनाती थी. मैं तीन बच्चों में सबसे बड़ी थी, हमारा गृहनगर निज़ामाबाद में एल्लाम्मागुट्टा है. जब स्कूल में कोचों ने देखा कि मुझे हॉकी खेलना पसंद है, तो उन्होंने मेरे अंदर के एथलीट को पहचाना और मुझे खेलना सिखाया. उस समय हमारे पास खेलना के लिए सामान लेने, अच्छा खाना खाने और जूते को खरीदने में पैसे नहीं हुआ करते थे. इसीलिए मेरे माता-पिता नहीं चाहते थे कि मैं खेलूं. उस समय हॉकी के लिए मेरा उत्साह देखकर मेरे दादाजी इनकार नहीं कर सके... वे समय-समय पर मुझे पैसे देकर मेरी मदद करते थे लेकिन वो पैसे कभी भी काफी नहीं होते थे'.

येंदाला सौंदर्या
येंदाला सौंदर्या

एसएआई में जाकर कम हुई मुश्किल
सौंदर्या ने आगे बता करते हुए कहा कि, 'जब मुझे स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAI) में सीट मिली तब जाकर मेरी मुश्किलें थोड़ी आसान हुईं. इसके बाद मैंने अपने खेल पर ध्यान दिया और साल 2006 में मुझे राज्य टीम का नेतृत्व करने का मौका मिला. मैंने वहां बेहतरीन खेल दिखाया और राष्ट्रीय टीम के लिए मुझे चुन लिया गया. अभी तक हमारे तेलुगु राज्यों से किसी को भी खिलाड़ी को राष्ट्रीय टीम के लिए नहीं चुना गया है. वह मेरी पहली जीत थी. मुझे देखकर मेरे छोटे भाई सागर ने भी राष्ट्रीय स्तर पर हॉकी में शानदार प्रदर्शन किया'.

सौ से ज्यादा खेल मैच
उन्होंने आगे बता करते हुए कहा कि, 'राष्ट्रीय टीम प्रदर्शन करना आसान नहीं है. बहुत सारी चुनौतियां आपके सामने आती हैं. पहले तो मुझे काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा क्योंकि मुझे हिंदी ज्यादा नहीं आती थी. मैं टीम में थी लेकिन मुझे मैदान पर उतरने का मौका नहीं मिला. जब तक टीम के मैन खिलाड़ी घायल नहीं हुए तब तक मुझे खेलने का मौका नहीं मिलेगा. मैं अपनी प्रतिभा के दम पर कुछ ही समय में टीम की एक प्रमुख सदस्य बन गई. इस दौरान बीच में मेरी बांह की हड्डी टूट गई और मैं दो साल तक खेल नहीं पाई. उस वक्त बिना आत्मविश्वास खोए मैंने वापसी की और खुद को साबित किया. इसके बाद मैंने उप-कप्तान और कप्तान के तौर पर जिम्मेदारियां उठाईं और देश के लिए ओलंपिक सहित सौ से अधिक अंतरराष्ट्रीय मैचों का प्रतिनिधित्व किया'.

10 सालों तक खेलने से हूं खुश
सौंदर्या ने आगे बात करते हुए कहा कि, 'मैंने 2006 से 2016 तक 10 सालों तक राष्ट्रीय टीम का प्रतिनिधित्व किया. उसके बाद मैंने कोच बनने की इच्छा के साथ 2022 में आवेदन किया. इसके बाद मुझे राष्ट्रीय टीम के लिए सहायक कोच बनने की अनुमति दी गई. मुझे एक सहायक कोच के रूप में काम करने के बाद ओमान में आयोजित विश्व कप हॉकी टूर्नामेंट में देश की टीम की मुख्य कोच बनने का मौका मिला. मैं तेलुगु राज्यों से पहली बार यह दर्जा और अवसर पाकर खुश हूं.मुझे 2009 में रेलवे टीसी की नौकरी मिली थी. इससे पहले मैं मुंबई में नौकरी करती थी. शादी के बाद मैं सिकंदराबाद आ गयी. मेरे पति रमेश एक आईटी कर्मचारी हैं. हमारे पास एक बच्चा है. मैं खेलों में लड़कियों को प्रोत्साहित करती हूं'.

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