हैदराबाद: सनातन धर्म में हर मास में कुछ ना कुछ विशेष कार्य किए जाते हैं. इसका लाभ भी मिलता है. ज्योतिषाचार्य डॉ. उमाशंकर मिश्र ने बताया कि हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार केवल पितृ पक्ष में ही नहीं बल्कि अन्य अवसरों जैसे विवाह के समय भी पितरों का श्राद्ध किया जाता है.
उन्होंने कहा कि धर्म सिंधु के अनुसार श्राद्ध के बहुत प्रकार बताए गए हैं. जैसे एक साल की 12अमावस्या, 4 पूर्णदी तिथियां, 14 मनवादी तिथियां, 12संक्रतियां, 12 वैद्दृति योग, 12व्यतीपत योग, 15पितृपक्ष, 5 अस्टका श्राद्ध तथा 5 पुरवेद्यु श्राद्ध आदि.
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि इसके अलावा हमारे धर्म ग्रंथों में भी श्राद्ध कर्म के अनेक भेद बताए गए हैं, यथा मत्स्य पुराण में तीन प्रकार के श्राद्ध, यमस्मृति में पांच प्रकार तथा भविष्य पुराण में 12 प्रकार के श्राद्ध कर्म का वर्णन है.
- नित्य श्राद्ध रोज किया जाने वाला तर्पण, भोजन से पहले गौ ग्रास निकालना.
- नैमेत्तिक श्राद्ध पितृ पक्ष में किया जाने वाला तर्पण.
- काम्य श्राद्ध अपनी कामना पूर्ति के लिए किया जाने वाला श्राद्ध.
- वृद्धि या नंदिमुख श्राद्ध मुंडन,उपनयन,विवाह आदि के अवसर पर किया जाने वाला श्राद्ध.
- पावर्ण श्राद्ध अमावस्या तिथि या किसी पर्व के दिन किया जाने वाला श्राद्ध.
- सपिंदन श्राद्ध मृत्यु के बाद प्रेत गति से मुक्ति के लिए मृतक के पिंड को पितरों के पिंड में मिलने के लिए किया गया श्राद्ध.
- गोष्ठी श्राद्ध गौशाला में वंश वृद्धि के लिए किया जाने वाला श्राद्ध.
- शुद्ध्यर्थ श्राद्ध प्रायश्चित के रूप में अपनी शुद्धि के लिए ब्राम्हणों को भोजन कराना.
- कर्मांग श्राद्ध गर्भाधान ,सीमंत,पुंसवन संस्कार के समय किया जाने वाला श्राद्ध.
- दैविक श्राद्ध सप्तमी तिथि को हविस्यन् से देवताओं के लिए किया जाने वाला श्राद्ध.
- यात्रार्थ श्राद्ध तीर्थ यात्रा पर जाने से पहले और वहां पर किया जाने वाला श्राद्ध.
- पुष्ट यर्थ श्राद्ध अपने वंश और व्यापार आदि की वृद्धि के लिए किया जाने वाला श्राद्ध.
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