हैदराबादः हिंदू पंचांग के अनुसार एक साल में लोक आस्था का महापर्व छठ 2 बार मनाया जाता है. पहला चैत्र महीने में जिसे चैती छठ कहा जाता है. यह छोटे पैमाने पर होता है. यानि कुछ गिने चुने परिवार इसे मनाते हैं. दूसरा कार्तिक महीने में मनाया जाने वाला छठ है. यह व्यापक पैमाने पर मनाया जाता है. भारत ही नहीं देश-विदेश में भी लोग छठ पर्व मनाते हैं. बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश तो 15 दिन पहले से पूरी तरीके से छठ के रंग जाता है. महापर्व पर लोग ट्रेन, बस और फ्लाइट से देश-विदेश से सपरिवार घर वापस लौटते हैं.
कार्तिक में मनाया जाने वाला छठ कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि से 4 दिवसीय लोक आस्था का महापर्व छठ प्रारंभ हो जाता है. सामान्य तौर छठ पर्व बोला जाता है. इसके अलावा इसे महापर्व, बड़का परब, सूर्य षष्ठी, डाला छठ, डाला पूजा और छेत्री पूजा के नाम से जाना जाता है. इस व्रत में महिला/पुरुष नए कपड़े पहनते हैं.
पष्ठी तिथि कब
द्रिक पंचांग के अनुसार 7 नवंबर 2024 को षष्ठी तिथि है. षष्ठी तिथि सुबह 12.41 पर प्रारंभ होकर 8 नवंबर 2024 को 12.35 पर संपन्न हो रहा है. उदया तिथि के अनुसार 7 नवंबर (गुरुवार) को पष्ठी माना जाएगा. इसलिए संध्याकालीन अर्घ्य 7 नवंबर के शाम में पड़ेगा.
छठ पूजा का पहला दिन यानी नहाय खाय 5 नवंबर (मंगलवार) है. दूसरा दिन 6 नवंबर (बुधवार) को खरना है. तीसरा दिन 7 नवंबर, दिन गुरुवार को संध्याकालीन अर्ध्य है. चौथा दिन 8 नवंबर, दिन शुक्रवार को प्रातःकालीन अर्ध्य के साथ लोक आस्था का महापर्व छठ का समापन हो जाएगा. प्रातःकालीन अर्ध्य के बाद छठ व्रती घर आकर छठ पूजन सामग्री का घर में पूजा कर पारण करती हैं. छठ व्रत में ज्यादातर हाथ उठा या सूप उठाने का काम महिलाएं ही करती हैं.
क्या है नहाय-खायः छठ महापर्व का पहला दिन नहाय खाय होता है. इस अवसर पर व्रती दिन में एक ही बार प्रसाद ग्रहण करती हैं. इसमें आम की लकड़ी के आग पर परंपरागत तरीके से खाना पकाया जाता है. इसमें चना का दाल, कद्दू और चावल (भात) पकाया जाता है. भोजन पकाने के लिए मिट्टी, कांसा या पीतल के बर्तन का उपयोग किया जाता है. दाल, भात और कद्दू की सब्जी व्रती और उनका परिवार ग्रहण करते हैं. साथ ही इस प्रसाद को ग्रहण करने के लिए दोस्तों और शुभ चिंतकों को आमंत्रित करते हैं.
क्या है खरनाः लोक आस्था के महापर्व छठ के दूसरे दिन खरना होता है. रात में व्रती मीठा भात/खीर/रसिया और विशेष प्रकार की पूड़ी तैयार करती हैं. रसिया या खीर अरवा चावल और शक्कर (गुड़) से तैयार किया जाता है. वहीं पूड़ी गेहूं के आटे से तैयार किया जाता है. इसके बाद रात में छठी मैया को खरना का प्रसाद का पूजन कर भोग लगाते हैं. देर रात में घर-परिवार में खरना का प्रसाद वितरित किया जाता है. कई जगह सुबह में प्रसाद वितरित किया जाता है.
संध्याकालीन अर्घ्यः छठ पर्व के तीसरे दिन नदी या किसी कृत्रिम जल स्रोत में छठ व्रती पहुंच जाती हैं. वहां मौके पर स्नान कर व्रती सूप (पूजन सामग्री से सजे सूप) के साथ खड़ी होती हैं. अस्त होते सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है. सूर्यास्त के बाद ज्यादा पूजन सामग्री से भरे डाले के साथ घर वापस आ जाते हैं. इसके लिए घाटों के केले के पेड़, फूल-पत्ती, रंगीन झालरों की मदद से सजाया जाता है.
प्रातःकालीन अर्घ्यः छठ महापर्व के अंतिम दिन अहले सुबह (सूर्यदेव के उदय से पहले) व्रती, घर-परिवार के लोग व अन्य लोग घाट पर छठ का डाला लेकर नदी किनारे पहुंच जाते हैं. सूर्यदेव के उदय से पहले व्रती अर्घ्य देने वाले या पूजन में हिस्सा लेने वाले सभी लोग घाट पर स्नान करते/करती हैं. सूर्यदेव के उदय के साथ-साथ व्रती सूप उठाती हैं और मौके पर मौजूद लोग सूर्यदेव को प्रातःकालीन अर्घ्य देते हैं. इसके बाद घर पर आकर घर में पूजन कर पारण की परंपरा है.
छठ का सूपः परंपरागत तरीके से बांस का सूप तैयार किया जाता है. सूप में पूजन सामग्री के रूप में नारिल, नीबू बड़ा वाला (टाभा नीबू), केला, सेव, नारंगी, खीरा, गन्ना, ठेकुआ, चावल का लड्डू, बताशा, पान, सुपारी, मेवा-मिठाई, गले का माला व अन्य सामग्री चढ़ाया जाता है. फल, मिठाई व अन्य पूजन सामग्री स्थानीय तौर पर उपलब्धता और सामर्थ के आधार पर सूप में रखा जाता है. वहीं कुछ लोग बांस के सूप के बदले तांबे या अन्य कीमती धातू का सूप का उपयोग करते हैं.
4 दिनों तक नदी किनारे रहते हैं व्रती
कई लोग लगातार 4 दिनों तक गंगा या अन्य नदियों किनारे या तालाबों के किनारे रहकर सपरिवार छठ मनाते हैं. वहीं कुछ व्रती सिर्फ 2 दिन संध्याकालीन अर्घ्य और प्रातःकालीन अर्घ्य के दिन क्रमशः शाम और सुबह में घाटों पर जाते हैं. ज्यादातर लोग गंगा किनारे व्रत मनाने को प्राथमिकता देते हैं. इसके लिए कई परिवार सुविधानुसार गंगा किनारे रिश्तेदारों, दोस्तों या परिचितों के घर में भी जाकर छठ मनाने की प्राथमिकता देते हैं. राज्य सरकारों की ओर से इसके लिए तालाबों और घाटों की व्यापक पैमाने पर साफ-सफाई करायी जाती है. साथ ही कृत्रिम घाटों का निर्माण कराया जाता है.
लोक आस्था का महापर्व छठ 2024 का कैलेंडर | ||||
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क्रम संख्या | त्योहार का क्रम | त्योहार | तारीख | दिन |
1. | पहला दिन | नहाय खाय | 5 नवंबर | मंगलवार |
2. | दूसरा दिन | लोहंडा/ खरना | 6 नवंबर | बुधवार |
3. | तीसरा दिन | संध्याकालीन अर्घ्य | 7 नवंबर | गुरुवार |
4. | चौथा दिन | प्रातःकालीन अर्घ्य | 8 नवंबर | शुक्रवार |
सुचिता का रखा जाता है विशेष ख्याल
छठ महापर्व में साफ-सफाई का सभी स्तरों पर विशेष ध्यान दिया जाता है. इस दौरान बाजार में सामग्री बेचने, घर में प्रसाद सामग्री तैयार करने, घाटों पर व वहां तक पहुंचने वाले सभी मार्गों पर भी साफ-सफाई पर विशेष ख्याल रखा जाता है. इस काम में व्रती के परिजन, आम लोग, सरकारी एजेंसियां, सामाजिक संगठन, सामाजिक कार्यकर्ता भी सहयोग देते हैं.
कौन करते हैं छठः घर परिवार के सदस्यों की निःरोगी काया, धन-धान्य, नौकरी से चाहत में ज्यादातर लोग छठ व्रत करते हैं. कुछ लोग मन्न मांगने के साथ छठ व्रत करते हैं. कुछ लोग मन्नत पूरा होने के बाद छठ व्रत करते हैं. कई लोग अपने पूर्वजों से चली आ रही परंपरा के तहत ही व्रत रखते हैं. इस दौरान कुछ लोग, जो स्वयं व्रत रखने में सझम नहीं होते हैं. वे अपने पड़ोस या रिश्तेदारों से पर्व कराते हैं. इसके लिए नियमपूर्व मेहनताना भी देते हैं.