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चंद्र दर्शन की सटीक डेट 7 जुलाई, मिलेगी कष्टों से मुक्ति, बेवजह बहाया पानी तो चंद्रदेव होंगे नाराज - Chandra Darshan 2024

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jul 3, 2024, 10:35 PM IST

Updated : Jul 4, 2024, 1:59 PM IST

7 जुलाई 2024 दिन रविवार रवि पुष्य नक्षत्र में चंद्र दर्शन का मुहूर्त है. ज्योतिषाचार्य डॉ पंडित आत्माराम शास्त्री से जानिए चंद्र दर्शन कब और किस मुहूर्त में करें. साथ ही पानी की बर्बादी और चंद्र देव का क्या कनेक्शन है.

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CHANDRA DARSHAN 2024: बेवजह पानी बहाने से चंद्रदेव नाराज हो सकते हैं. कुंडली में अगर विपरीत दिशा में राहु और केतु बैठे हैं, तो चंद्र दर्शन से उनका दुष्प्रभाव समाप्त हो सकता है. गुरुकृपा ज्योतिष संस्थान छिन्दवाड़ा के ज्योतिषाचार्य डॉ पंडित आत्माराम शास्त्री ने बताया कि चंद्र दर्शन कब और किस मुहूर्त में करें.

7 जुलाई को करें चंद्र दर्शन समस्याओं से मिलेगी मुक्ति

गुरुकृपा ज्योतिष संस्थान छिन्दवाड़ा के ज्योतिषाचार्य डॉ पंडित आत्माराम शास्त्री ने बताया कि 7 जुलाई 2024 दिन रविवार रवि पुष्य नक्षत्र में चंद्र दर्शन का मुहूर्त है. पौराणिक कथाओं में चंद्रमा के संदर्भ ये है कि चंद्रमा ब्रह्मा के पुत्र महर्षि अत्रि के नेत्र जल से उत्पन्न हुए हैं. इसी कारण चंद्रमा का नाम अतराई भी पड़ा है. चंद्रमा का विवाह प्रजापति दक्ष ने अपनी 27 कन्याओं से किया था. चंद्रमा के 27 पत्नी ही 27 नक्षत्र के रूप में जानी जाती हैं. चंद्रमा के संबंध में एक अन्य पौराणिक कथा है. चंद्रमा अनुसुइया के तीन पुत्रों में से एक है. प्रत्येक माह की द्वितीय तिथि को आषाढ़ शुक्ल पक्ष में यहां योग बन रहा है. चंद्रमा मन का प्रतीक है और सूर्य आत्मा का कारक है.

प्राचीन हिंदू ग्रंथों में बताया गया है कि चंद्रमा पवित्रता ज्ञान का प्रतीक है और चंद्र को पशु जगत और पौधों के पोषणकर्ता के रूप में वर्णित किया गया है. इसके दर्शन से सौभाग्य की प्राप्ति होती है. यह चंद्र मां का कारक होने के कारण मां की संकल्प विकल्प का प्रतीक है. इसी द्वितीय के चांद को भगवान शिव ने भी धारण किया है.

कुंडली में विपरीत दिशा में बैठे राहु और केतु के दुष्प्रभाव से मिलती है मुक्ति

इस दिन चंद्र दर्शन से जन्म कुंडली में विपरीत या अशुभ स्थान पर बैठे हुए राहु केतु ग्रहों का दुष्प्रभाव समाप्त होता है. द्वितीया का चंद्र चूंकि दूज को होता है अर्थात यह एक से डेढ़ घंटे तक भी दर्शन किया जा सकता है. इसलिए चंद्रमा को इस अवधि में अर्थात सूर्य अस्त के कुछ देर बाद ही दिखाई देता है. इन्हें चांदी या कांसे के बर्तन में दूध, जल, सफेद पुष्प सफेद चंदन मिलाकर अर्क देने पर कामनाओं की सिद्धि प्राप्त होती है. इस दिन भगवान शिव का दूध से या जल से अभिषेक करने से से भी मनवांछित फल की प्राप्ति होती है. वैसे तो मुस्लिम धर्म में इन्हीं चंद्रमा के दर्शन के बाद ईद मनाई जाती है. यदि हिंदू धर्म के मानने वाले धर्म प्रेमी यदि द्वितीय के चंद्र का दर्शन पूजन करते अथवा अपने पहने हुए वस्त्रों का एक भी धागा तोड़कर चढ़ाते हैं तब भी कामना की पूर्ति होती है. इसलिए ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को पुष्ट करने के लिए तथा मां की शीतलता की प्राप्ति के लिए चांदी या मोती धारण करने का भी विधान है.

पानी बर्बाद करने से भी चंद्र देव होते हैं रुष्ट

गुरुकृपा ज्योतिष संस्थान छिन्दवाड़ा के ज्योतिषाचार्य डॉ पंडित आत्माराम शास्त्री ने बताया कि चंद्रमा का जन्म समुद्र से हुआ है, इसलिए यह जल का भी प्रतीक है. अतः जो भी व्यक्ति अनावश्यक जल को खर्च करता है या बहाता है, उससे भी चंद्रमा अर्थात मां पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. सूर्य को पिता और चंद्रमा को माता माना गया है. इसलिए प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है की इन दोनों प्रत्यक्ष दिखने वाले सौरमंडलीय देवताओं का जरूर सम्मान करें. प्रत्येक मनुष्य को चाहिए कि वह सूर्य के लिए सूर्योदय से पूर्व जागकर सूर्य देव और संध्या की पूर्व घर पर उपस्थित होकर दोनों संध्या का यथा संभव सम्मान करें.

CHANDRA DARSHAN 2024: बेवजह पानी बहाने से चंद्रदेव नाराज हो सकते हैं. कुंडली में अगर विपरीत दिशा में राहु और केतु बैठे हैं, तो चंद्र दर्शन से उनका दुष्प्रभाव समाप्त हो सकता है. गुरुकृपा ज्योतिष संस्थान छिन्दवाड़ा के ज्योतिषाचार्य डॉ पंडित आत्माराम शास्त्री ने बताया कि चंद्र दर्शन कब और किस मुहूर्त में करें.

7 जुलाई को करें चंद्र दर्शन समस्याओं से मिलेगी मुक्ति

गुरुकृपा ज्योतिष संस्थान छिन्दवाड़ा के ज्योतिषाचार्य डॉ पंडित आत्माराम शास्त्री ने बताया कि 7 जुलाई 2024 दिन रविवार रवि पुष्य नक्षत्र में चंद्र दर्शन का मुहूर्त है. पौराणिक कथाओं में चंद्रमा के संदर्भ ये है कि चंद्रमा ब्रह्मा के पुत्र महर्षि अत्रि के नेत्र जल से उत्पन्न हुए हैं. इसी कारण चंद्रमा का नाम अतराई भी पड़ा है. चंद्रमा का विवाह प्रजापति दक्ष ने अपनी 27 कन्याओं से किया था. चंद्रमा के 27 पत्नी ही 27 नक्षत्र के रूप में जानी जाती हैं. चंद्रमा के संबंध में एक अन्य पौराणिक कथा है. चंद्रमा अनुसुइया के तीन पुत्रों में से एक है. प्रत्येक माह की द्वितीय तिथि को आषाढ़ शुक्ल पक्ष में यहां योग बन रहा है. चंद्रमा मन का प्रतीक है और सूर्य आत्मा का कारक है.

प्राचीन हिंदू ग्रंथों में बताया गया है कि चंद्रमा पवित्रता ज्ञान का प्रतीक है और चंद्र को पशु जगत और पौधों के पोषणकर्ता के रूप में वर्णित किया गया है. इसके दर्शन से सौभाग्य की प्राप्ति होती है. यह चंद्र मां का कारक होने के कारण मां की संकल्प विकल्प का प्रतीक है. इसी द्वितीय के चांद को भगवान शिव ने भी धारण किया है.

कुंडली में विपरीत दिशा में बैठे राहु और केतु के दुष्प्रभाव से मिलती है मुक्ति

इस दिन चंद्र दर्शन से जन्म कुंडली में विपरीत या अशुभ स्थान पर बैठे हुए राहु केतु ग्रहों का दुष्प्रभाव समाप्त होता है. द्वितीया का चंद्र चूंकि दूज को होता है अर्थात यह एक से डेढ़ घंटे तक भी दर्शन किया जा सकता है. इसलिए चंद्रमा को इस अवधि में अर्थात सूर्य अस्त के कुछ देर बाद ही दिखाई देता है. इन्हें चांदी या कांसे के बर्तन में दूध, जल, सफेद पुष्प सफेद चंदन मिलाकर अर्क देने पर कामनाओं की सिद्धि प्राप्त होती है. इस दिन भगवान शिव का दूध से या जल से अभिषेक करने से से भी मनवांछित फल की प्राप्ति होती है. वैसे तो मुस्लिम धर्म में इन्हीं चंद्रमा के दर्शन के बाद ईद मनाई जाती है. यदि हिंदू धर्म के मानने वाले धर्म प्रेमी यदि द्वितीय के चंद्र का दर्शन पूजन करते अथवा अपने पहने हुए वस्त्रों का एक भी धागा तोड़कर चढ़ाते हैं तब भी कामना की पूर्ति होती है. इसलिए ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को पुष्ट करने के लिए तथा मां की शीतलता की प्राप्ति के लिए चांदी या मोती धारण करने का भी विधान है.

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पानी बर्बाद करने से भी चंद्र देव होते हैं रुष्ट

गुरुकृपा ज्योतिष संस्थान छिन्दवाड़ा के ज्योतिषाचार्य डॉ पंडित आत्माराम शास्त्री ने बताया कि चंद्रमा का जन्म समुद्र से हुआ है, इसलिए यह जल का भी प्रतीक है. अतः जो भी व्यक्ति अनावश्यक जल को खर्च करता है या बहाता है, उससे भी चंद्रमा अर्थात मां पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. सूर्य को पिता और चंद्रमा को माता माना गया है. इसलिए प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है की इन दोनों प्रत्यक्ष दिखने वाले सौरमंडलीय देवताओं का जरूर सम्मान करें. प्रत्येक मनुष्य को चाहिए कि वह सूर्य के लिए सूर्योदय से पूर्व जागकर सूर्य देव और संध्या की पूर्व घर पर उपस्थित होकर दोनों संध्या का यथा संभव सम्मान करें.

Last Updated : Jul 4, 2024, 1:59 PM IST
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