हैदराबाद: कार्तिक कृष्ण पक्ष में तिथि त्योहारों की भरमार रहती है जिसमें करवा चौथ और अहोई अष्टमी महिलाओं द्वारा किए जाने वाले विशेष दो पर्व हैं. जिनको मनाते हुए महिलाएं जहां शास्त्रीय एवं लोक रीतिपूर्वक व्रत उपवास करती हैं. वहीं सांस्कृतिक कार्यक्रमों द्वारा इन्हें उत्सव का रूप प्रदान करती हैं. इन दोनों उत्सवों में जहां परिवार के कल्याण की भावना भरी हुई होती है. वहीं सास के चरणों को तीर्थ मानकर उनसे आशीर्वाद लेने की प्राचीन परंपरा आज भी दिखाई देती है.
लखनऊ के ज्योतिषाचार्य डॉ. उमाशंकर मिश्र के मुताबिक कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी अहोई अथवा आठें कहलाती है. यह व्रत बृहस्पतिवार 24 अक्टूबर को मनाया जाएगा. वस्तुतः यह व्रत दीपावली से ठीक एक सप्ताह पूर्व आता है. कहा जाता है इस व्रत को संतान वाली स्त्रियां करती हैं. दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि अहोई अष्टमी का व्रत छोटे बच्चों के कल्याण के लिए किया जाता है, जिसमें अहोई देवी के चित्र के साथ सेई और सेई के बच्चों के चित्र भी बनाकर पूजे जाते हैं.
कैसे करें अहोई व्रत
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि जो स्त्रियां यह व्रत करती हैं उन्हें दिनभर उपवास रखना होता है. सायंकाल भक्ति-भावना के साथ दीवार अहोई की पुतली रंग भरकर बनाती हैं. उसी पुतली के पास सेई व सेई के बच्चे भी बनाती हैं. आजकल बाजार से अहोई के बने रंगीन चित्र कागज भी मिलते हैं. उनको लाकर भी पूजा की जा सकती है. संध्या के समय सूर्यास्त होने के बाद जब तारे निकलने लगते हैं तो अहोई माता की पूजा प्रारंभ होती है. पूजन से पहले जमीन को स्वच्छ करके, पूजा का चौक पूरकर, एक लोटे में जलकर उसे कलश की भांति चौकी के एक कोने पर रखें और भक्ति भाव से पूजा करें. बाल-बच्चों के कल्याण की कामना करें. साथ ही अहोई अष्टमी के व्रत कथा का श्रद्धा भाव से सुनें.
जानें खास बातें
डॉ. उमाशंकर मिश्र ने कहा कि इसमें एक खास बात यह भी है कि पूजा के लिए माताएं चांदी की एक अहोई भी बनाती हैं जिसे बोलचाल की भाषा में स्याऊ भी कहते हैं और उसमें चांदी के दो मोती डालकर विशेष पूजन किया जाता है. जिस प्रकार गले में पहनने के हार में पैंडिल लगा होता है उसी प्रकार चांदी की अहोई डलवानी चाहिए और डोरे में चांदी के दाने पिरोने चाहिए. फिर अहोई की रोली, चावल, दूध व भात से पूजा करें. जल से भरे लोटे पर सातिया बना लें, एक कटोरी में हलवा तथा रुपए का बायना निकालकर रख दें और सात दाने गेहूं के लेकर अहोई माता की कथा सुनने के बाद अहोई की माला गले में पहन लें, जो बायना निकाल कर रखा है उसे सास की चरण छूकर उन्हें दे दें. इसके बाद चंद्रमा को जल चढ़ाकर भोजन कर व्रत खोलें.
इतना ही नहीं इस व्रत पर धारण की गई माला को दिवाली के बाद किसी शुभ अहोई को गले से उतारकर उसका गुड़ से भोग लगा और जल से छीटें देकर मस्तक झुकाकर रख दें. सास को रोली तिलक लगाकर चरण स्पर्श करते हुए व्रत का उद्यापन करें.
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