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डोनाल्ड ट्रंप या कमला हैरिस: कौन बनेगा अमेरिका का अगला राष्ट्रपति? - Donald Trump

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By Rajkamal Rao

Published : Aug 22, 2024, 5:09 PM IST

Updated : Aug 22, 2024, 6:07 PM IST

Who Will Become Next President Of America? इस साल नवंबर में होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव दुनिया के सबसे बहुप्रतीक्षित राजनीतिक मुकाबलों में से एक हैं. इस बार व्हाइट हाउस की दौड़ रिपब्लिकन उम्मीदवार पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के बीच है.

डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस
डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस (AP)

नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 2024 के आम चुनाव के लिए डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार के रूप में उपराष्ट्रपति कमला हैरिस को पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ कमान सौंप दी है, जिससे दुनिया का ध्यान अमेरिका की ओर गया कि चुनाव किसके जीतने की संभावना है?

निश्चित रूप से इसका जवाब 5 नवंबर के बाद परिणाम घोषित होने के बाद ही मिलेगा. तब तक, दुनिया कई पेशेवर मतदान संगठनों द्वारा किए गए सर्वे को बेसब्री से देखेगी. इन सर्वों में अनुमान लगाने का प्रयास किया जाएगा कि अगर आज चुनाव होते हैं तो कौन सा उम्मीदवार आगे रहता है.

स्टैटिस्टिक्स हमें बताते हैं कि किसी जनसंख्या से एकदम रैंडमली लिया गया सैंपल पूरी जनसंख्या के व्यवहार को सटीक रूप से दर्शा सकता है. यह सिद्धांत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग से लेकर स्वास्थ्य सेवा और विनिर्माण तक हर मानवीय प्रयास में काम आता है.

स्टैटिस्टिक्स साइंस हमें बताती है कि अगर एक छोटा सा सैपंल, मान लीजिए, बोल्टों का 1फीसदी - लगभग 100 बोल्ट - पूरी तरह से रैंडम तरीके से लिया जाए और इनमें से हर एक निरीक्षण में पास हो जाता है, तो सभी 10,000 बोल्ट स्वीकार्य गुणवत्ता के होने की संभावना है. अगर 100 में से दो बोल्ट भी दोषपूर्ण पाए जाते हैं, तो आगे की जांच आवश्यक है. फिर फैक्ट्री को यह तय करना होता है कि पूरे 10,000 बोल्ट को फेंक दिया जाए या उनमें से अच्छे टुकड़े चुने जाएं, दोनों ही तरह से यह बहुत महंगा प्रोसेस होता है.

अमेरिका का चुनाव
अमेरिका का चुनाव (ETV Bharat Graphics)

पॉलिटिकल पॉलिंग
यही सिद्धांत मतदान पर भी लागू होता है, लेकिन सर्वे बेहद अप्रत्याशित हो सकते हैं. यह हमने भारत में हाल ही में संपन्न आम चुनावों में भी देखा. कुछ संगठनों ने भविष्यवाणी की थी कि भाजपा संसद में 320 से ज़्यादा सीटें जीतेगी. जब चुनाव आयोग ने नतीजे घोषित किए, तो भाजपा ने सिर्फ 240 सीटें जीती थीं, जो बहुमत से बहुत कम थीं.

क्या गलत हुआ?
शायद जनता के मूड का आकलन करने के लिए सर्वे के प्रश्न भ्रामक थे या सर्वे ने एक समूह (भाजपा-झुकाव वाले राज्यों में बहुत अधिक मतदाता) को अधिक सैंपल किया, या सर्वे ने दूसरों की तुलना में एक डेटा कलेक्शन मैथड पर जोर दिया. अगर चुनाव-पूर्व सर्वे और चुनाव के दिन के नतीजों के बीच गलतियां बड़ी हैं, तो जनता का मतदान पर से भरोसा उठ सकता है. लोकतंत्र में यह एक विनाशकारी परिणाम होगा.

अमेरिका में चुनाव
अमेरिका में सटीक मतदान अविश्वसनीय रूप से जटिल हैं. मतदान के नमूने जो एक तरफ झुकते हैं, वे दिखा सकते हैं कि कमला हैरिस जीत रही हैं, जो दूसरी तरफ झुकते हैं, वे दिखा सकते हैं कि ट्रंप जीत रहे हैं. रजिस्टर्ड मतदाताओं (आधिकारिक मतदाता सूची में शामिल) और उन लोगों का सवाल भी है जो मतदान करने की संभावना रखते हैं और जिन्हें पोलस्टर अपने सर्वे में शामिल करते हैं. एक बड़े लोकतंत्र के लिए, अमेरिका में मतदाता भागीदारी बहुत कम है. 2016 में सभी पात्र मतदाताओं में से केवल 55 प्रतिशत मतदान करने गए. भारत में भी 2024 में यह संख्या 66 फीसदी थी.

अमेरिका का चुनाव
अमेरिका का चुनाव (ETV Bharat Graphics)

अमेरिकी चुनावों में एक अनोखी बात यह है कि यहां चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग जैसा कोई केंद्रीय प्राधिकरण नहीं है. यहां चुनाव राज्य दर राज्य का मामला है. प्रत्येक राज्य के अपने नियम हैं - समय से पहले मतदान के लिए, चुनाव के दिन मतदान केंद्र कितने समय तक खुला रहता है, डाक से भेजे जाने वाले मतपत्रों के लिए नियम, मतदाता पहचान पत्र के नियम, और वोटों की गिनती, सारणीबद्धता और रिपोर्टिंग कैसे की जाती है.

भारत के विपरीत, जहां बहुमत पार्टी के सांसद प्रधानमंत्री चुनते हैं, अमेरिकी राष्ट्रपति को सीधे मतदाता चुनते हैं और भारत के विपरीत लोकप्रिय वोट - कमला हैरिस या डोनाल्ड ट्रंप द्वारा जीते गए राष्ट्रीय वोटों की कुल संख्या बहुत मायने नहीं रखती, यहां जो मायने रखता है वह है इलेक्टोरल कॉलेज जीतना, जो अमेरिकी चुनावों की एक और अनूठी विशेषता है.

इलेक्टोरल कॉलेज
अमेरिकी संविधान के अनुसार पीपुल्स हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में 438 सदस्य होने चाहिए और यूनाइटेड स्टेट्स सीनेट में 100 सदस्य होने चाहिए. ये 538 वोट मिलकर निर्वाचक मंडल का गठन करते हैं.

438 वोट प्रत्येक राज्य को उसकी जनसंख्या के आधार पर आवंटित किए जाते हैं. अपनी बड़ी आबादी के कारण, कैलिफ़ोर्निया को सदन के लिए 52 निर्वाचक दिए जाते हैं;, टेक्सास को 38 और स्मॉल व्योमिंग को 1, 100 सीनेटर, प्रति राज्य दो, जनसंख्या की परवाह किए बिना सभी 50 राज्यों में वितरित किए जाते हैं. कोलंबिया में सीनेट का प्रतिनिधित्व नहीं है. इसलिए, कैलिफ़ोर्निया में 54 इलेक्टोरल वोट (52 हाउस + 2 सीनेट) हैं, टेक्सास में 40 इलेक्टोरल वोट (38 हाउस + 2 सीनेट) हैं और व्योमिंग में 3 इलेक्टोरल वोट (1 हाउस + 2 सीनेट) हैं.

यह देखते हुए कि 538 इलेक्टर हैं, राष्ट्रपति बनने के लिए किसी उम्मीदवार को इलेक्टोरल कॉलेज का साधारण बहुमत, यानी 270 इलेक्टोरल वोट जीतना चाहिए. अगर दोनों उम्मीदवार 269 इलेक्टोरल कॉलेज वोट जीतते हैं, तो यह बराबरी होगी, और फिर प्रतिनिधि सभा विजेता का चयन करेगी. अमेरिकी इतिहास में इलेक्टोरल कॉलेज में कभी बराबरी नहीं हुई है.

अगर कमला हैरिस लाखों लोकप्रिय वोट से कैलिफोर्निया जीत जाती हैं, तो उन्हें कैलिफोर्निया के सभी 54 इलेक्टोरल वोट मिल जाएंगे. यहां महत्वपूर्ण अंतर यह है कि हैरिस को 54 वोट मिलेंगे चाहे वह 1 वोट के अंतर से जीते या 3 मिलियन वोट से. इलेक्टोरल कॉलेज में अतिरिक्त वोटों का कोई मतलब नहीं है. राष्ट्रपति बनने की तरकीब यह है कि प्रत्येक उम्मीदवार 270 तक पहुंचने के लिए पर्याप्त राज्य कैसे जीतेगा.

बेटलग्राउंड स्टेट्स
व्यावहारिक रूप से हैरिस संभवत कैलिफ़ोर्निया में जीत हासिल करेंगी, क्योंकि उनकी नीतियां वहां आकर्षक हैं. ट्रंप टेक्सास और फ़्लोरिडा जीतेंगे. इसलिए, अंतिम परिणाम इस बात पर निर्भर करेगा कि पेंसिल्वेनिया, मिशिगन, विस्कॉन्सिन, जॉर्जिया, एरिजोना, उत्तरी कैरोलिना और नेवादा जैसे बेटलग्राउंड स्टेट्स कौन जीतता है. इन राज्यों में हाल के चुनावों में अत्यधिक प्रतिस्पर्धी देखने को मिली है, जहां विजेता का फैसला अक्सर कुछ हजार वोटों से होता है.

2020 में देश भर में 155 मिलियन से ज़्यादा वोट डाले गए, जिसमें ट्रंप ने 74 मिलियन और बाइडेन ने 81 मिलियन वोट जीते. हालांकि, मुख्य बात यह थी कि बाइडेन ने जॉर्जिया, एरिजोना और विस्कॉन्सिन में ट्रंप पर बहुत कम अंतर से जीत हासिल की, कुल मिलाकर उन्हें 44,000 से भी कम वोट मिले, जो उन राज्यों के इलेक्टोरल कॉलेज वोटों को मिलाकर 270 से ज़्यादा वोट पाने के लिए पर्याप्त थे. कैलिफोर्निया और न्यूयॉर्क जैसे अन्य राज्यों में बाइडेन की अतिरिक्त मत जीत व्यावहारिक रूप से बेकार थी.

मतदान में त्रुटियां
अमेरिकी पोलस्टर मतदान त्रुटियों से अछूते नहीं हैं. 2020 में चुनाव दिवस के करीब विस्कॉन्सिन के लिए रियलक्लियर पॉलिटिक्स पोल का औसत बिडेन +6.7 था. हालांकि, ट्ंर्प केवल 0.77फीसदी, लगभग 20,682 वोटों से हार गए, इसलिए चुनाव पोल की भविष्यवाणी की तुलना में बहुत करीब था. वहीं, 2016 में सभी प्रमुख मतदान संगठनों ने हिलेरी क्लिंटन की जीत की भविष्यवाणी की थी, लेकिन जीत ट्रंप की हुई.

2024 में कौन जीतेगा?
रियलक्लियर पॉलिटिक्स के लेटेस्ट पोल के औसत के अनुसार हैरिस के पास राष्ट्रीय स्तर पर ट्रंप पर 1.5 प्रतिशत मार्जिन की बढ़त है, लेकिन जैसा कि हमने देखा है, राष्ट्रीय लोकप्रिय वोट लीड का बहुत मतलब नहीं है. सात बेटलग्राउंड स्टेट्स में से पांच में ट्रंप थोड़ा आगे चल रहे हैं. अगर ट्रंप सभी पांचों को जीत लेते हैं, तो वे व्हाइट हाउस में वापस आ जाएंगे.

यह भी पढ़ें- मलेशियाई प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम की भारत यात्रा क्यों महत्वपूर्ण है?

नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 2024 के आम चुनाव के लिए डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार के रूप में उपराष्ट्रपति कमला हैरिस को पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ कमान सौंप दी है, जिससे दुनिया का ध्यान अमेरिका की ओर गया कि चुनाव किसके जीतने की संभावना है?

निश्चित रूप से इसका जवाब 5 नवंबर के बाद परिणाम घोषित होने के बाद ही मिलेगा. तब तक, दुनिया कई पेशेवर मतदान संगठनों द्वारा किए गए सर्वे को बेसब्री से देखेगी. इन सर्वों में अनुमान लगाने का प्रयास किया जाएगा कि अगर आज चुनाव होते हैं तो कौन सा उम्मीदवार आगे रहता है.

स्टैटिस्टिक्स हमें बताते हैं कि किसी जनसंख्या से एकदम रैंडमली लिया गया सैंपल पूरी जनसंख्या के व्यवहार को सटीक रूप से दर्शा सकता है. यह सिद्धांत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग से लेकर स्वास्थ्य सेवा और विनिर्माण तक हर मानवीय प्रयास में काम आता है.

स्टैटिस्टिक्स साइंस हमें बताती है कि अगर एक छोटा सा सैपंल, मान लीजिए, बोल्टों का 1फीसदी - लगभग 100 बोल्ट - पूरी तरह से रैंडम तरीके से लिया जाए और इनमें से हर एक निरीक्षण में पास हो जाता है, तो सभी 10,000 बोल्ट स्वीकार्य गुणवत्ता के होने की संभावना है. अगर 100 में से दो बोल्ट भी दोषपूर्ण पाए जाते हैं, तो आगे की जांच आवश्यक है. फिर फैक्ट्री को यह तय करना होता है कि पूरे 10,000 बोल्ट को फेंक दिया जाए या उनमें से अच्छे टुकड़े चुने जाएं, दोनों ही तरह से यह बहुत महंगा प्रोसेस होता है.

अमेरिका का चुनाव
अमेरिका का चुनाव (ETV Bharat Graphics)

पॉलिटिकल पॉलिंग
यही सिद्धांत मतदान पर भी लागू होता है, लेकिन सर्वे बेहद अप्रत्याशित हो सकते हैं. यह हमने भारत में हाल ही में संपन्न आम चुनावों में भी देखा. कुछ संगठनों ने भविष्यवाणी की थी कि भाजपा संसद में 320 से ज़्यादा सीटें जीतेगी. जब चुनाव आयोग ने नतीजे घोषित किए, तो भाजपा ने सिर्फ 240 सीटें जीती थीं, जो बहुमत से बहुत कम थीं.

क्या गलत हुआ?
शायद जनता के मूड का आकलन करने के लिए सर्वे के प्रश्न भ्रामक थे या सर्वे ने एक समूह (भाजपा-झुकाव वाले राज्यों में बहुत अधिक मतदाता) को अधिक सैंपल किया, या सर्वे ने दूसरों की तुलना में एक डेटा कलेक्शन मैथड पर जोर दिया. अगर चुनाव-पूर्व सर्वे और चुनाव के दिन के नतीजों के बीच गलतियां बड़ी हैं, तो जनता का मतदान पर से भरोसा उठ सकता है. लोकतंत्र में यह एक विनाशकारी परिणाम होगा.

अमेरिका में चुनाव
अमेरिका में सटीक मतदान अविश्वसनीय रूप से जटिल हैं. मतदान के नमूने जो एक तरफ झुकते हैं, वे दिखा सकते हैं कि कमला हैरिस जीत रही हैं, जो दूसरी तरफ झुकते हैं, वे दिखा सकते हैं कि ट्रंप जीत रहे हैं. रजिस्टर्ड मतदाताओं (आधिकारिक मतदाता सूची में शामिल) और उन लोगों का सवाल भी है जो मतदान करने की संभावना रखते हैं और जिन्हें पोलस्टर अपने सर्वे में शामिल करते हैं. एक बड़े लोकतंत्र के लिए, अमेरिका में मतदाता भागीदारी बहुत कम है. 2016 में सभी पात्र मतदाताओं में से केवल 55 प्रतिशत मतदान करने गए. भारत में भी 2024 में यह संख्या 66 फीसदी थी.

अमेरिका का चुनाव
अमेरिका का चुनाव (ETV Bharat Graphics)

अमेरिकी चुनावों में एक अनोखी बात यह है कि यहां चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग जैसा कोई केंद्रीय प्राधिकरण नहीं है. यहां चुनाव राज्य दर राज्य का मामला है. प्रत्येक राज्य के अपने नियम हैं - समय से पहले मतदान के लिए, चुनाव के दिन मतदान केंद्र कितने समय तक खुला रहता है, डाक से भेजे जाने वाले मतपत्रों के लिए नियम, मतदाता पहचान पत्र के नियम, और वोटों की गिनती, सारणीबद्धता और रिपोर्टिंग कैसे की जाती है.

भारत के विपरीत, जहां बहुमत पार्टी के सांसद प्रधानमंत्री चुनते हैं, अमेरिकी राष्ट्रपति को सीधे मतदाता चुनते हैं और भारत के विपरीत लोकप्रिय वोट - कमला हैरिस या डोनाल्ड ट्रंप द्वारा जीते गए राष्ट्रीय वोटों की कुल संख्या बहुत मायने नहीं रखती, यहां जो मायने रखता है वह है इलेक्टोरल कॉलेज जीतना, जो अमेरिकी चुनावों की एक और अनूठी विशेषता है.

इलेक्टोरल कॉलेज
अमेरिकी संविधान के अनुसार पीपुल्स हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में 438 सदस्य होने चाहिए और यूनाइटेड स्टेट्स सीनेट में 100 सदस्य होने चाहिए. ये 538 वोट मिलकर निर्वाचक मंडल का गठन करते हैं.

438 वोट प्रत्येक राज्य को उसकी जनसंख्या के आधार पर आवंटित किए जाते हैं. अपनी बड़ी आबादी के कारण, कैलिफ़ोर्निया को सदन के लिए 52 निर्वाचक दिए जाते हैं;, टेक्सास को 38 और स्मॉल व्योमिंग को 1, 100 सीनेटर, प्रति राज्य दो, जनसंख्या की परवाह किए बिना सभी 50 राज्यों में वितरित किए जाते हैं. कोलंबिया में सीनेट का प्रतिनिधित्व नहीं है. इसलिए, कैलिफ़ोर्निया में 54 इलेक्टोरल वोट (52 हाउस + 2 सीनेट) हैं, टेक्सास में 40 इलेक्टोरल वोट (38 हाउस + 2 सीनेट) हैं और व्योमिंग में 3 इलेक्टोरल वोट (1 हाउस + 2 सीनेट) हैं.

यह देखते हुए कि 538 इलेक्टर हैं, राष्ट्रपति बनने के लिए किसी उम्मीदवार को इलेक्टोरल कॉलेज का साधारण बहुमत, यानी 270 इलेक्टोरल वोट जीतना चाहिए. अगर दोनों उम्मीदवार 269 इलेक्टोरल कॉलेज वोट जीतते हैं, तो यह बराबरी होगी, और फिर प्रतिनिधि सभा विजेता का चयन करेगी. अमेरिकी इतिहास में इलेक्टोरल कॉलेज में कभी बराबरी नहीं हुई है.

अगर कमला हैरिस लाखों लोकप्रिय वोट से कैलिफोर्निया जीत जाती हैं, तो उन्हें कैलिफोर्निया के सभी 54 इलेक्टोरल वोट मिल जाएंगे. यहां महत्वपूर्ण अंतर यह है कि हैरिस को 54 वोट मिलेंगे चाहे वह 1 वोट के अंतर से जीते या 3 मिलियन वोट से. इलेक्टोरल कॉलेज में अतिरिक्त वोटों का कोई मतलब नहीं है. राष्ट्रपति बनने की तरकीब यह है कि प्रत्येक उम्मीदवार 270 तक पहुंचने के लिए पर्याप्त राज्य कैसे जीतेगा.

बेटलग्राउंड स्टेट्स
व्यावहारिक रूप से हैरिस संभवत कैलिफ़ोर्निया में जीत हासिल करेंगी, क्योंकि उनकी नीतियां वहां आकर्षक हैं. ट्रंप टेक्सास और फ़्लोरिडा जीतेंगे. इसलिए, अंतिम परिणाम इस बात पर निर्भर करेगा कि पेंसिल्वेनिया, मिशिगन, विस्कॉन्सिन, जॉर्जिया, एरिजोना, उत्तरी कैरोलिना और नेवादा जैसे बेटलग्राउंड स्टेट्स कौन जीतता है. इन राज्यों में हाल के चुनावों में अत्यधिक प्रतिस्पर्धी देखने को मिली है, जहां विजेता का फैसला अक्सर कुछ हजार वोटों से होता है.

2020 में देश भर में 155 मिलियन से ज़्यादा वोट डाले गए, जिसमें ट्रंप ने 74 मिलियन और बाइडेन ने 81 मिलियन वोट जीते. हालांकि, मुख्य बात यह थी कि बाइडेन ने जॉर्जिया, एरिजोना और विस्कॉन्सिन में ट्रंप पर बहुत कम अंतर से जीत हासिल की, कुल मिलाकर उन्हें 44,000 से भी कम वोट मिले, जो उन राज्यों के इलेक्टोरल कॉलेज वोटों को मिलाकर 270 से ज़्यादा वोट पाने के लिए पर्याप्त थे. कैलिफोर्निया और न्यूयॉर्क जैसे अन्य राज्यों में बाइडेन की अतिरिक्त मत जीत व्यावहारिक रूप से बेकार थी.

मतदान में त्रुटियां
अमेरिकी पोलस्टर मतदान त्रुटियों से अछूते नहीं हैं. 2020 में चुनाव दिवस के करीब विस्कॉन्सिन के लिए रियलक्लियर पॉलिटिक्स पोल का औसत बिडेन +6.7 था. हालांकि, ट्ंर्प केवल 0.77फीसदी, लगभग 20,682 वोटों से हार गए, इसलिए चुनाव पोल की भविष्यवाणी की तुलना में बहुत करीब था. वहीं, 2016 में सभी प्रमुख मतदान संगठनों ने हिलेरी क्लिंटन की जीत की भविष्यवाणी की थी, लेकिन जीत ट्रंप की हुई.

2024 में कौन जीतेगा?
रियलक्लियर पॉलिटिक्स के लेटेस्ट पोल के औसत के अनुसार हैरिस के पास राष्ट्रीय स्तर पर ट्रंप पर 1.5 प्रतिशत मार्जिन की बढ़त है, लेकिन जैसा कि हमने देखा है, राष्ट्रीय लोकप्रिय वोट लीड का बहुत मतलब नहीं है. सात बेटलग्राउंड स्टेट्स में से पांच में ट्रंप थोड़ा आगे चल रहे हैं. अगर ट्रंप सभी पांचों को जीत लेते हैं, तो वे व्हाइट हाउस में वापस आ जाएंगे.

यह भी पढ़ें- मलेशियाई प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम की भारत यात्रा क्यों महत्वपूर्ण है?

Last Updated : Aug 22, 2024, 6:07 PM IST
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