ETV Bharat / opinion

तीस्ता वाटर मैनेजमेंट प्रोजेक्ट पर चीन के रवैये की व्याख्या कैसे की जा सकती है? - Teesta water management project

author img

By Aroonim Bhuyan

Published : Jul 5, 2024, 5:14 PM IST

Teesta water management project: TRCMRP को लेकर भारत की ओर से इस परियोजना में रुचि दिखाने और इसके अध्ययन के लिए एक तकनीकी टीम भेजने की घोषणा के बाद चीन ने प्रतिक्रिया दी है.

Sheikh Hasina
शेख हसीना (ANI)

नई दिल्ली: चीन का यह कहना कि वह तीस्ता रिवर कॉम्प्रेहेंसिव मैनेजमेंट और रीस्टोरेशन प्रोजेक्ट (TRCMRP) को लेकर बांग्लादेश के लिए गए किसी भी निर्णय को स्वीकार करने के लिए तैयार है. चीन का यह बयान अगले हफ्ते प्रधानमंत्री शेख हसीना की बीजिंग यात्रा से पहले ढाका के लिए एक स्वागत योग्य है.

चीन का यह बयान भारत की ओर से इस परियोजना में रुचि दिखाने और इसके अध्ययन के लिए एक तकनीकी टीम भेजने की घोषणा के बाद आया है. भारत ने पिछले महीने हसीना की नई दिल्ली यात्रा के दौरान इस निर्णय की घोषणा की थी.

गुरुवार को ढाका में मीडिया को संबोधित करते हुए बांग्लादेश में चीनी राजदूत याओ वेन ने कहा था कि उनका देश TRCMRP पर बांग्लादेश के किसी भी निर्णय के लिए तैयार है, बशर्ते इससे ढाका को अपने पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने में मदद मिले.

ढाका ट्रिब्यून ने याओ के हवाले से कहा, "जब तक यह बांग्लादेश के लिए अनुकूल है, हम इसको लेकर हर चीज के लिए तैयार हैं. अगले चरण में क्या करना है, यह पूरी तरह से बांग्लादेश पर निर्भर करता है."

यह पूछे जाने पर कि क्या चीन इस परियोजना पर भारत के साथ काम करने को तैयार है तो याओ ने कहा, "मैंने कहा कि यह पूरी तरह से बांग्लादेश तय करेगा. हम इसके लिए तैयार हैं. हम चाहते हैं कि बांग्लादेश के पड़ोसी देशों और अन्य देशों के साथ अच्छे संबंध हों. आप जानते हैं, यह आपकी विदेश नीति की सफलता है. इसलिए हम अच्छे संबंध देखना चाहते हैं और हम यह भी चाहते हैं कि हमारे संबंध सकारात्मक भूमिका निभाएं और अन्य देश भी सकारात्मक रूप से इसमें शामिल हों. इससे सभी पक्षों को लाभ होगा."

यहां यह बताना जरूरी है कि बांग्लादेश के अनुरोध पर चीन ने तीस्ता नदी के लगातार जल संकट को दूर करने के लिए फिजिबिलिटी स्टडी की थी. इसके बाद चीनी बिजली निगम ने TRCMRP रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसे बाद में बांग्लादेशी अधिकारियों ने मंज़ूरी दे दी. चीन ने परियोजना को लागू करने के लिए बांग्लादेश को 1 बिलियन डॉलर का कर्जा देने की भी पेशकश की है.

क्या है TRCMRP?
तीस्ता नदी इस क्षेत्र की प्रमुख नदियों में से एक है. यह सिक्किम और पश्चिम बंगाल के रास्ते बांग्लादेश जाती है. अपनी कुल 414 किलोमीटर की लंबाई में से, तीस्ता नदी लगभग 151 किलोमीटर सिक्किम से होकर, लगभग 142 किलोमीटर पश्चिम बंगाल से होकर और अंतिम 121 किलोमीटर बांग्लादेश से होकर बहती है.

यह दोनों देशों में लाखों लोगों की कृषि और आजीविका में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. हालांकि, भारत और बांग्लादेश मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा उठाई गई आपत्तियों के कारण नदी के पानी के बंटवारे को लेकर विवाद में उलझे हुए हैं.

तीस्ता नदी सिंचाई, पीने के पानी और उन क्षेत्रों में जैव विविधता के पोषण के लिए महत्वपूर्ण है, जहां से यह बहती है. हालांकि, नदी को मौसमी जल की कमी, अवसादन और प्रदूषण जैसी महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे इसका संरक्षण और प्रबंधन बांग्लादेशी सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन जाता है.

बांग्लादेश सरकार ने जल संसाधन प्रबंधन, बाढ़ नियंत्रण और प्रबंधन, इको सिस्टम बहाली, प्रदूषण नियंत्रण और सामुदायिक सहभागिता के लिए TRCMRP की शुरुआत की थी. इसके उद्देश्यों में कृषि, टेक्नोलॉजी और घरेलू उपयोग के लिए पानी का एक सतत और न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करना, मानसून के मौसम में बाढ़ को रोकने के उपायों को लागू करना, शुष्क मौसम के दौरान जल प्रवाह का प्रबंधन करना, जैव विविधता का समर्थन करने और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के लिए नदी के पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करना और उद्योगों में स्वच्छ उत्पादन प्रथाओं को बढ़ावा देना शामिल हैं.

भारत को TRCMRP में चीन की भागीदारी से क्यों चिंतित होना चाहिए?
बांग्लादेश में चीन का प्रभाव व्यापक क्षेत्रीय शक्ति गतिशीलता को प्रभावित करता है, जो दक्षिण एशिया में भारत के पारंपरिक प्रभाव क्षेत्र को चुनौती देता है. जैसे-जैसे बांग्लादेश चीन के करीब आएगा, ढाका में भारत का प्रभाव कम हो सकता है. यह बदलाव भारत के नेतृत्व वाली क्षेत्रीय सहयोग पहलों को प्रभावित कर सकता है और दक्षिण एशिया में भारत के रणनीतिक हितों को प्रभावित कर सकता है.

चीन-बांग्लादेश के बीच बढ़ते रिश्ते दक्षिण एशिया के अन्य देशों को चीन के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं, जिससे इस क्षेत्र में भारत का प्रभाव और कम हो सकता है और चीन एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभर सकता है.

माना जा रहा है कि भारत को अपने रणनीतिक सिलीगुड़ी कॉरिडोर के पास TRCMRP जैसी प्रमुख परियोजना में चीन की भागीदारी पर संदेह है, जिसे पूर्वोत्तर भारत को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने वाले चिकन नेक के रूप में भी जाना जाता है. यह कॉरिडोर भारत-चीन सीमा के करीब है. बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने यह भी कहा है कि ढाका प्रस्ताव पर आगे बढ़ने में भू-राजनीतिक मुद्दों को ध्यान में रखेगा.

भारत ने बांग्लादेश को क्या पेशकश की है?
पिछले महीने नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शेख हसीना के बीच प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता के बाद भारत ने TRCMRP का अध्ययन करने के लिए एक तकनीकी टीम भेजने के अपने फैसले की घोषणा की.

चर्चा के बाद हसीना के साथ मीडिया को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा, "भारत और बांग्लादेश को 54 नदियां जोड़ती हैं. हम बाढ़ प्रबंधन, पूर्व चेतावनी और पेयजल परियोजनाओं पर सहयोग कर रहे हैं. हमने 1996 की गंगा जल संधि के नवीनीकरण के लिए तकनीकी स्तर पर बातचीत शुरू करने का फैसला किया है.बांग्लादेश में तीस्ता नदी के संरक्षण और प्रबंधन पर चर्चा करने के लिए एक तकनीकी टीम जल्द ही बांग्लादेश का दौरा करेगी."

भारत ने यह भी घोषणा की कि वह बांग्लादेश के रंगपुर में एक सहायक उच्चायोग खोलेगा. टीआरसीएमआरपी रंगपुर के क्षेत्र में आता है. यह परियोजना बांग्लादेश के क्षेत्र में है. इसलिए, ममता बनर्जी इस पर कुछ नहीं कह सकतीं. जवाबी प्रस्ताव देकर भारत ने चीन को भी प्रभावी रूप से मात दे दी है.

शेख हसीना ने भारत के प्रस्ताव पर क्या प्रतिक्रिया दी?
नई दिल्ली से ढाका लौटने के बाद हसीना ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि बांग्लादेश भारत और चीन दोनों के प्रस्तावों पर विचार करेगा. उन्होंने कहा, "हमने तीस्ता परियोजना पर काम किया है. चीन ने प्रस्ताव दिया है और भारत ने भी. हम दोनों प्रस्तावों का मूल्यांकन करेंगे और हमारे लोगों के हितों के लिहाज से सबसे ज़्यादा फायदेमंद और स्वीकार्य प्रस्ताव को स्वीकार करेंगे."

हसीना ने कहा कि बांग्लादेश देश की विकासात्मक जरूरतों के आधार पर अपनी दोस्ती बनाए रखता है. उन्होंने कहा, "जब हमें कोई प्रस्ताव मिलता है, तो हम इस बात पर विचार करते हैं कि यह हमारे लिए उपयुक्त है या नहीं, किसी भी ऋण को चुकाने की हमारी क्षमता, परियोजना पूरी होने के बाद हमें मिलने वाला रिटर्न और यह हमारे देश के लोगों को कैसे लाभ पहुंचाएगा." हालांकि, साथ ही उन्होंने बताया कि बांग्लादेश का भारत के साथ तीस्ता नदी जल बंटवारे को लेकर पुराना मुद्दा है.

उन्होंने कहा, "इसलिए, अगर भारत तीस्ता परियोजना करता है तो बांग्लादेश के लिए यह आसान होगा. उस स्थिति में, हमें हमेशा तीस्ता जल बंटवारे के बारे में बात करने की आवश्यकता नहीं होगी."

राजदूत याओ के बयान की व्याख्या कैसे की जा सकती है?
शिलांग स्थित एशियन कॉन्फ्लुएंस थिंक टैंक के फेलो के योमे ने ईटीवी भारत से कहा, "राजदूत ने वही कहा जो उनकी जगह कोई भी राजनयिक कहता." योमे ने कहा कि अगर आप बांग्लादेश में भू-राजनीति को देखें, तो बंदरगाहों सहित विकास परियोजनाओं जैसे मुद्दों पर भारत-चीन प्रतिद्वंद्विता पिछले कुछ सालों में तेज हुई है. अपने शासनकाल के दौरान, प्रधानमंत्री हसीना भारत और चीन के बीच संबंधों को संतुलित करने की कोशिश कर रही हैं. वह दोनों देशों से लाभ प्राप्त करने में सफल रही हैं."

नाम न बताने की शर्त पर ईटीवी भारत से बात करने वाले बांग्लादेश के एक अन्य विशेषज्ञ के अनुसार चीन को एहसास हो गया है कि भारत के तत्काल पड़ोस में टीआरसीएमआरपी जैसी परियोजना को लागू करना मुश्किल होगा.

विशेषज्ञ ने कहा, "वास्तव में, चीन अन्य मुद्दों की तलाश कर रहा है. बीजिंग ढाका को चीन के इंडो-पैसिफिक दायरे में रखना चाहता है." योमे के अनुसार, जब हसीना बीजिंग जाएंगी, तो चीन यह पता लगाने की कोशिश करेगा कि टीआरसीएमआरपी के बदले में उनके पास क्या पेशकश है.

उन्होंने कहा कि हसीना ने दक्षिण एशिया में भारत-चीन प्रतिद्वंद्विता को चतुराई से पार करने में कामयाबी हासिल की है, जो नेपाल, श्रीलंका और मालदीव जैसे क्षेत्र के अन्य छोटे देश नहीं कर पाए हैं. एक तरह से, हसीना ने ऐसे देशों के लिए एक मिसाल कायम की है.

यह भी पढ़ें- नेपाल के प्रधानमंत्री दहल ने चुना फ्लोर टेस्ट का विकल्प: क्या यह व्यर्थ की कवायद है?

नई दिल्ली: चीन का यह कहना कि वह तीस्ता रिवर कॉम्प्रेहेंसिव मैनेजमेंट और रीस्टोरेशन प्रोजेक्ट (TRCMRP) को लेकर बांग्लादेश के लिए गए किसी भी निर्णय को स्वीकार करने के लिए तैयार है. चीन का यह बयान अगले हफ्ते प्रधानमंत्री शेख हसीना की बीजिंग यात्रा से पहले ढाका के लिए एक स्वागत योग्य है.

चीन का यह बयान भारत की ओर से इस परियोजना में रुचि दिखाने और इसके अध्ययन के लिए एक तकनीकी टीम भेजने की घोषणा के बाद आया है. भारत ने पिछले महीने हसीना की नई दिल्ली यात्रा के दौरान इस निर्णय की घोषणा की थी.

गुरुवार को ढाका में मीडिया को संबोधित करते हुए बांग्लादेश में चीनी राजदूत याओ वेन ने कहा था कि उनका देश TRCMRP पर बांग्लादेश के किसी भी निर्णय के लिए तैयार है, बशर्ते इससे ढाका को अपने पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने में मदद मिले.

ढाका ट्रिब्यून ने याओ के हवाले से कहा, "जब तक यह बांग्लादेश के लिए अनुकूल है, हम इसको लेकर हर चीज के लिए तैयार हैं. अगले चरण में क्या करना है, यह पूरी तरह से बांग्लादेश पर निर्भर करता है."

यह पूछे जाने पर कि क्या चीन इस परियोजना पर भारत के साथ काम करने को तैयार है तो याओ ने कहा, "मैंने कहा कि यह पूरी तरह से बांग्लादेश तय करेगा. हम इसके लिए तैयार हैं. हम चाहते हैं कि बांग्लादेश के पड़ोसी देशों और अन्य देशों के साथ अच्छे संबंध हों. आप जानते हैं, यह आपकी विदेश नीति की सफलता है. इसलिए हम अच्छे संबंध देखना चाहते हैं और हम यह भी चाहते हैं कि हमारे संबंध सकारात्मक भूमिका निभाएं और अन्य देश भी सकारात्मक रूप से इसमें शामिल हों. इससे सभी पक्षों को लाभ होगा."

यहां यह बताना जरूरी है कि बांग्लादेश के अनुरोध पर चीन ने तीस्ता नदी के लगातार जल संकट को दूर करने के लिए फिजिबिलिटी स्टडी की थी. इसके बाद चीनी बिजली निगम ने TRCMRP रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसे बाद में बांग्लादेशी अधिकारियों ने मंज़ूरी दे दी. चीन ने परियोजना को लागू करने के लिए बांग्लादेश को 1 बिलियन डॉलर का कर्जा देने की भी पेशकश की है.

क्या है TRCMRP?
तीस्ता नदी इस क्षेत्र की प्रमुख नदियों में से एक है. यह सिक्किम और पश्चिम बंगाल के रास्ते बांग्लादेश जाती है. अपनी कुल 414 किलोमीटर की लंबाई में से, तीस्ता नदी लगभग 151 किलोमीटर सिक्किम से होकर, लगभग 142 किलोमीटर पश्चिम बंगाल से होकर और अंतिम 121 किलोमीटर बांग्लादेश से होकर बहती है.

यह दोनों देशों में लाखों लोगों की कृषि और आजीविका में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. हालांकि, भारत और बांग्लादेश मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा उठाई गई आपत्तियों के कारण नदी के पानी के बंटवारे को लेकर विवाद में उलझे हुए हैं.

तीस्ता नदी सिंचाई, पीने के पानी और उन क्षेत्रों में जैव विविधता के पोषण के लिए महत्वपूर्ण है, जहां से यह बहती है. हालांकि, नदी को मौसमी जल की कमी, अवसादन और प्रदूषण जैसी महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे इसका संरक्षण और प्रबंधन बांग्लादेशी सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन जाता है.

बांग्लादेश सरकार ने जल संसाधन प्रबंधन, बाढ़ नियंत्रण और प्रबंधन, इको सिस्टम बहाली, प्रदूषण नियंत्रण और सामुदायिक सहभागिता के लिए TRCMRP की शुरुआत की थी. इसके उद्देश्यों में कृषि, टेक्नोलॉजी और घरेलू उपयोग के लिए पानी का एक सतत और न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करना, मानसून के मौसम में बाढ़ को रोकने के उपायों को लागू करना, शुष्क मौसम के दौरान जल प्रवाह का प्रबंधन करना, जैव विविधता का समर्थन करने और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के लिए नदी के पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करना और उद्योगों में स्वच्छ उत्पादन प्रथाओं को बढ़ावा देना शामिल हैं.

भारत को TRCMRP में चीन की भागीदारी से क्यों चिंतित होना चाहिए?
बांग्लादेश में चीन का प्रभाव व्यापक क्षेत्रीय शक्ति गतिशीलता को प्रभावित करता है, जो दक्षिण एशिया में भारत के पारंपरिक प्रभाव क्षेत्र को चुनौती देता है. जैसे-जैसे बांग्लादेश चीन के करीब आएगा, ढाका में भारत का प्रभाव कम हो सकता है. यह बदलाव भारत के नेतृत्व वाली क्षेत्रीय सहयोग पहलों को प्रभावित कर सकता है और दक्षिण एशिया में भारत के रणनीतिक हितों को प्रभावित कर सकता है.

चीन-बांग्लादेश के बीच बढ़ते रिश्ते दक्षिण एशिया के अन्य देशों को चीन के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं, जिससे इस क्षेत्र में भारत का प्रभाव और कम हो सकता है और चीन एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभर सकता है.

माना जा रहा है कि भारत को अपने रणनीतिक सिलीगुड़ी कॉरिडोर के पास TRCMRP जैसी प्रमुख परियोजना में चीन की भागीदारी पर संदेह है, जिसे पूर्वोत्तर भारत को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने वाले चिकन नेक के रूप में भी जाना जाता है. यह कॉरिडोर भारत-चीन सीमा के करीब है. बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने यह भी कहा है कि ढाका प्रस्ताव पर आगे बढ़ने में भू-राजनीतिक मुद्दों को ध्यान में रखेगा.

भारत ने बांग्लादेश को क्या पेशकश की है?
पिछले महीने नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शेख हसीना के बीच प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता के बाद भारत ने TRCMRP का अध्ययन करने के लिए एक तकनीकी टीम भेजने के अपने फैसले की घोषणा की.

चर्चा के बाद हसीना के साथ मीडिया को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा, "भारत और बांग्लादेश को 54 नदियां जोड़ती हैं. हम बाढ़ प्रबंधन, पूर्व चेतावनी और पेयजल परियोजनाओं पर सहयोग कर रहे हैं. हमने 1996 की गंगा जल संधि के नवीनीकरण के लिए तकनीकी स्तर पर बातचीत शुरू करने का फैसला किया है.बांग्लादेश में तीस्ता नदी के संरक्षण और प्रबंधन पर चर्चा करने के लिए एक तकनीकी टीम जल्द ही बांग्लादेश का दौरा करेगी."

भारत ने यह भी घोषणा की कि वह बांग्लादेश के रंगपुर में एक सहायक उच्चायोग खोलेगा. टीआरसीएमआरपी रंगपुर के क्षेत्र में आता है. यह परियोजना बांग्लादेश के क्षेत्र में है. इसलिए, ममता बनर्जी इस पर कुछ नहीं कह सकतीं. जवाबी प्रस्ताव देकर भारत ने चीन को भी प्रभावी रूप से मात दे दी है.

शेख हसीना ने भारत के प्रस्ताव पर क्या प्रतिक्रिया दी?
नई दिल्ली से ढाका लौटने के बाद हसीना ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि बांग्लादेश भारत और चीन दोनों के प्रस्तावों पर विचार करेगा. उन्होंने कहा, "हमने तीस्ता परियोजना पर काम किया है. चीन ने प्रस्ताव दिया है और भारत ने भी. हम दोनों प्रस्तावों का मूल्यांकन करेंगे और हमारे लोगों के हितों के लिहाज से सबसे ज़्यादा फायदेमंद और स्वीकार्य प्रस्ताव को स्वीकार करेंगे."

हसीना ने कहा कि बांग्लादेश देश की विकासात्मक जरूरतों के आधार पर अपनी दोस्ती बनाए रखता है. उन्होंने कहा, "जब हमें कोई प्रस्ताव मिलता है, तो हम इस बात पर विचार करते हैं कि यह हमारे लिए उपयुक्त है या नहीं, किसी भी ऋण को चुकाने की हमारी क्षमता, परियोजना पूरी होने के बाद हमें मिलने वाला रिटर्न और यह हमारे देश के लोगों को कैसे लाभ पहुंचाएगा." हालांकि, साथ ही उन्होंने बताया कि बांग्लादेश का भारत के साथ तीस्ता नदी जल बंटवारे को लेकर पुराना मुद्दा है.

उन्होंने कहा, "इसलिए, अगर भारत तीस्ता परियोजना करता है तो बांग्लादेश के लिए यह आसान होगा. उस स्थिति में, हमें हमेशा तीस्ता जल बंटवारे के बारे में बात करने की आवश्यकता नहीं होगी."

राजदूत याओ के बयान की व्याख्या कैसे की जा सकती है?
शिलांग स्थित एशियन कॉन्फ्लुएंस थिंक टैंक के फेलो के योमे ने ईटीवी भारत से कहा, "राजदूत ने वही कहा जो उनकी जगह कोई भी राजनयिक कहता." योमे ने कहा कि अगर आप बांग्लादेश में भू-राजनीति को देखें, तो बंदरगाहों सहित विकास परियोजनाओं जैसे मुद्दों पर भारत-चीन प्रतिद्वंद्विता पिछले कुछ सालों में तेज हुई है. अपने शासनकाल के दौरान, प्रधानमंत्री हसीना भारत और चीन के बीच संबंधों को संतुलित करने की कोशिश कर रही हैं. वह दोनों देशों से लाभ प्राप्त करने में सफल रही हैं."

नाम न बताने की शर्त पर ईटीवी भारत से बात करने वाले बांग्लादेश के एक अन्य विशेषज्ञ के अनुसार चीन को एहसास हो गया है कि भारत के तत्काल पड़ोस में टीआरसीएमआरपी जैसी परियोजना को लागू करना मुश्किल होगा.

विशेषज्ञ ने कहा, "वास्तव में, चीन अन्य मुद्दों की तलाश कर रहा है. बीजिंग ढाका को चीन के इंडो-पैसिफिक दायरे में रखना चाहता है." योमे के अनुसार, जब हसीना बीजिंग जाएंगी, तो चीन यह पता लगाने की कोशिश करेगा कि टीआरसीएमआरपी के बदले में उनके पास क्या पेशकश है.

उन्होंने कहा कि हसीना ने दक्षिण एशिया में भारत-चीन प्रतिद्वंद्विता को चतुराई से पार करने में कामयाबी हासिल की है, जो नेपाल, श्रीलंका और मालदीव जैसे क्षेत्र के अन्य छोटे देश नहीं कर पाए हैं. एक तरह से, हसीना ने ऐसे देशों के लिए एक मिसाल कायम की है.

यह भी पढ़ें- नेपाल के प्रधानमंत्री दहल ने चुना फ्लोर टेस्ट का विकल्प: क्या यह व्यर्थ की कवायद है?

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.