नई दिल्ली: हिंद महासागर के छोटे से द्वीप राष्ट्र मॉरीशस का ब्रिटेन जैसी प्रमुख विश्व शक्ति के साथ सात एटोल के समूह के लिए क्षेत्रीय दावों को लेकर बड़ा विवाद है, जिसमें 60 से अधिक द्वीप शामिल हैं. इन्हें सामूहिक रूप से चागोस द्वीपसमूह कहा जाता है. इस विवाद में भारत मॉरीशस के दावे का समर्थन कर रहा है. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मंगलवार को मॉरीशस की अपनी दो दिवसीय यात्रा के दौरान इस बात को दोहराया.
जयशंकर ने मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद जगन्नाथ के साथ मीडिया को संयुक्त रूप से संबोधित करते हुए कहा, "हमारे गहरे और स्थायी संबंधों को देखते हुए मैं आज आपको फिर से आश्वस्त करना चाहूंगा कि चागोस के मुद्दे पर भारत मॉरीशस को अपना निरंतर समर्थन जारी रखेगा, जो कि विउपनिवेशीकरण और राष्ट्रों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए अपने प्रमुख रुख के अनुरूप है.
We express our deep gratitude to @DrSJaishankar for reaffirming #India consistent support to #Mauritius regarding the #ChagosArchipelago, in alignment with India's principled stance on #decolonisation, #sovereignty, and #TerritorialIntegrity. 🙏🏽🇲🇺🇮🇳 @MEABharat @MEAIndia…
— Maneesh Gobin (@ManeeshGobin) July 16, 2024
वहीं, मॉरीशस के विदेश मंत्री मनीष गोबिन ने भी चागोस द्वीपसमूह पर मॉरीशस के दावे के लिए भारत द्वारा दिए गए समर्थन की सराहना की. गोबिन ने एक्स पर पोस्ट किया, "हम चागोस द्वीपसमूह के संबंध में मॉरीशस को भारत के निरंतर समर्थन की पुष्टि करने के लिए एस जयशंकर के प्रति अपनी गहरी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं, जो कि विउपनिवेशीकरण, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता पर भारत के सैद्धांतिक रुख के अनुरूप है."
बता दें कि 1960 के दशक में ब्रिटेन ने मॉरीशस से इन द्वीपों को अलग कर दिया था, जिसके कारण स्थानीय लोगों, चागोसियनों का विवादास्पद स्थानांतरण हुआ. द्वीप पर डिएगो गार्सिया, एक महत्वपूर्ण अमेरिकी सैन्य अड्डा है, जो विशेष रूप से सुरक्षा और संप्रभुता के संबंध में भू-राजनीतिक चिंताओं को जन्म देता है.
भारत करता है मॉरीशस के दावों का समर्थन
संयुक्त राष्ट्र ने मॉरीशस के इस द्वीपसमूह पर संप्रभुता के दावे का समर्थन करते हुए ब्रिटेन से इस क्षेत्र पर अपना प्रशासन समाप्त करने का आह्वान किया है. वहीं, भारत ने भी आमतौर पर मॉरीशस के दावों का समर्थन किया है. हिंद महासागर में इसकी रणनीतिक स्थिति को देखते हुए. भारत ने क्षेत्र की भू-राजनीतिक स्थिरता में रुचि दिखाई है. यह स्थिति हिंद महासागर क्षेत्र में उपनिवेशवाद की समाप्ति, अंतरराष्ट्रीय कानून और भू-राजनीतिक हितों के व्यापक विषयों को दर्शाती है.
मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में जयशंकर की पहली द्विपक्षीय बैठक
बता दें कि विदेश मंत्री जयशंकर विशेष द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए मॉरीशस के शीर्ष नेतृत्व के साथ बातचीत के लिए मंगलवार को दो दिवसीय यात्रा पर मॉरीशस पहुंचे. हिंद महासागर के दीपीय देश की यह यात्रा, मोदी के नेतृत्व वाली तीसरी सरकार में फिर से विदेश मंत्री नियुक्ति किए जाने के बाद यह जयशंकर की पहली द्विपक्षीय बैठक है.
2️⃣ Witness exchange of agreements for space cooperation, development of National Institute for Curriculum Research, renewing ICCR Chair for Sanskrit & Indian Philosophy and digitisation of Indian Immigration Archives.
— Dr. S. Jaishankar (@DrSJaishankar) July 16, 2024
3️⃣ Hand over the Royalty Payment Cheque for sale of… pic.twitter.com/Ov1fdI7dCt
मॉरीशस के प्रधानमंत्री के साथ अपनी बैठक के बाद संयुक्त बयान के दौरान जयशंकर ने कहा, "मॉरीशस उन देशों में से एक है, जहां मैं विदेश मंत्री के रूप में अपने वर्तमान कार्यकाल में सबसे पहले जा रहा हूं. यह हमारे द्विपक्षीय संबंधों की मजबूती और गहराई को रेखांकित करता है. यह मॉरीशस के साथ भारत की विशेष और स्थायी साझेदारी के प्रति अटूट प्रतिबद्धता को रेखांकित करने का भी अवसर है."
उन्होंने कहा, "आज मुझे मॉरीशस के प्रधानमंत्री से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. मैंने पीएम मोदी की ओर से उन्हें व्यक्तिगत शुभकामनाएं और हार्दिक सम्मान दिया. मैंने प्रधानमंत्री को यह भी बताया कि भारत के लोगों ने पिछले महीने मोदी सरकार के तीसरी बार शपथ लेने के अवसर पर उनकी उपस्थिति की बहुत सराहना की."
आर्थिक और व्यापारिक संबंधों पर चर्चा
उन्होंने बताया कि आज की बैठक में दोनों पक्षों ने विकास साझेदारी, रक्षा और समुद्री सहयोग, आर्थिक और व्यापारिक संबंधों और दोनो देशों के लोगों के बीच संपर्क सहित हमारे द्विपक्षीय संबंधों के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की. विदेश मंत्री ने कहा किआप हमारी नेबर फर्स्ट पॉलिसी, हमारे विजन सागर, हमारे अफ्रीका फॉरवर्ड पहल के साथ-साथ वैश्विक दक्षिण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का हिस्सा हैं. इसके अलावा, हम इतिहास और रिश्तेदारी से सबसे करीबी बंधन साझा करते हैं.
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने किया था मॉरीशस का दौरा
जयशंकर ने कहा कि इन गहरे संबंधों की गवाही देते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस वर्ष मॉरीशस के राष्ट्रीय दिवस समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में मॉरीशस का दौरा किया. जैसा कि तब घोषणा की गई थी, भारत ने सातवीं पीढ़ी के भारतीय मूल के दो बेहतरीन मॉरीशसियों को पहला ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया कार्ड सौंपा. मॉरीशस के लिए यह विशेष छूट हमारे विशेष और स्थायी संबंधों को और भी स्पष्ट करती है.
विदेश मंत्री ने कहा, "आज हमारा रिश्ता वास्तव में एक मजबूत और बहुआयामी साझेदारी में बदल गया है. वास्तव में, यह विदेशों में भारत के सफल विकास सहयोग के लिए एक आदर्श के रूप में कार्य करता है. द्वीप देश के प्रधानमंत्री ने उल्लेख किया और मुझे कल उनके साथ शामिल होने का सौभाग्य मिला है. हमें वास्तव में गर्व है कि हमारा सहयोग कई सामुदायिक विकास परियोजनाओं के माध्यम से इस देश में आम नागरिकों के जीवन को बदलता है, जिनमें से कुछ को आपने हमारे सामने वीडियो में देखने का अवसर पाया.
विदेश मंत्री ने बताया कि दोनों पक्षों के बीच अंतरिक्ष सहयोग पर भी चर्चा हुई. भारत के इसरो और मॉरीशस एमआरआईसी के बीच परियोजना योजना दस्तावेज के आदान-प्रदान के साथ एक ठोस परियोजना में तब्दील हो गई है. भारत मॉरीशस के लिए एक सेटेलाइट लॉन्च करने के लिए इसके शीघ्र कार्यान्वयन की आशा करता है.
यह भी पढ़ें- ओली के प्रधानमंत्री रहते हुए भारत-नेपाल संबंध को लेकर क्या उम्मीदें हैं?