हैदराबाद: युद्ध में सबसे पहले सत्य की हत्या होती है; इसके बाद महिलाओं और बच्चों का नंबर आता है. यही हर संघर्ष या युद्ध की सचाई है, चाहे वह इजराइल और हमास के बीच हो, रूस और यूक्रेन के बीच, या पश्चिम एशिया के अन्य हिस्सों में फैल रही तबाही हो. एक साल पहले, हमास के लड़ाकों ने इजराइल पर हमला किया और मोसाद को उनके इलाके में हथियारबंद लोगों के साथ पैराशूट से उतरकर चौंका दिया, अंधाधुंध गोलीबारी की, जिससे एक युद्ध छिड़ गया. यह 7 अक्टूबर का दिन था, जब हमास के लड़ाकों ने 1200 लोगों को मार डाला और लगभग 250 इजराइली नागरिकों का अपहरण कर लिया; उनमें से 100 से अधिक अभी भी गाजा में कहीं हमास द्वारा बंधक बनाकर रखे गए हैं. यह कोई नहीं जानता कि बंधकों में से कितने जिंदा हैं.
जवाबी कार्रवाई में, इजराइली सैनिकों ने अब तक करीब 41,000 फिलिस्तीनी नागरिकों को मार डाला है. मरने वालों में 16,000 बच्चे हैं, जबकि 19,000 बच्चे अनाथ हो गए और 1000 से अधिक बच्चों के अंग कट गए. गाजा में 90 प्रतिशत फिलिस्तीनियों को विस्थापित होना पड़ा. पूरी तरह से नाकाबंदी होने के कारण अधिकांश लोगों को खाद्य संकट का सामना करना पड़ रहा है. गाजा में अस्पताल, स्कूल सहित ज्यादातर इमारतें तबाह हो गई हैं.
संघर्ष के एक साल बाद फिलिस्तीन पूरी तरह से उजड़ गया है और इजराइली बंधक अभी भी हमास के कब्जे में हैं. हालांकि इजराइल में जीवन सामान्य लग सकता है, लेकिन संघर्ष के केंद्र गाजा में लोगों का जीवन पूरी तरह तबाह हो गया है. हवाई बमबारी में बच्चे और महिलाएं अधिक असुरक्षित हैं, जिससे उनके लिए कोई सुरक्षित स्थान नहीं बचा है जहां वे शरण ले सकें.
बुनियादी जीवन और अस्तित्व दांव पर है, जबकि गाजा में स्वास्थ्य और स्वच्छता पीछे छूट गई है. मानवता तब तार-तार हो जाती है जब बम एक ऐसे बच्चे को टुकड़े-टुकड़े कर देता है जो अपनी जान बचाने के लिए भाग भी नहीं सकता. जो बच्चे रेंग भी नहीं सकते, वे इस युद्ध की असैन्य नागरिक क्षति हैं. वे किसी के दुश्मन नहीं हो सकते, न ही उनके साथ बिना सम्मान के जीवन व्यतीत किया जा सकता है. वे ऐसे समय में मारे गए हैं जब बाल अधिकारों के बारे में बहुत चर्चा हो रही है और राष्ट्रों द्वारा बाल अधिकारों पर सम्मेलनों को पवित्र माना जाता है. युद्ध अन्य क्षेत्रों में भी फैल रहा है, जिससे उन क्षेत्रों में महिलाओं और बच्चों पर हमले का खतरा बढ़ रहा है.
इजराइल द्वारा हाल ही में लेबनान के खिलाफ शुरू किए गए युद्ध से यहां के अधिकांश हिस्सों में रहने वालों का जीवन अंधकारमय हो गया है, जबकि दक्षिण लेबनान में तबाही जारी है. लेबनान में युद्ध से पश्चिम एशिया के लोगों की चिंताएं दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं, और गाजा का खौफनाक मंजर उनकी बेचैनी को और बढ़ा रहा है. फिलिस्तीन और लेबनान के कुछ हिस्सों में हवाई बमबारी के कारण पूरे क्षेत्र में अनिश्चितता का माहौल है.
यमन के हूती कुछ समय के लिए चुप हो गए हैं, उन्हें डर है कि वे हिजबुल्लाह के बाद इजराइल का अगला टारगेट हो सकते हैं. ईरान हूती और हिजबुल्लाह दोनों का समर्थन करता है. हिजबुल्लाह प्रमुख हसन नसरल्लाह की हत्या के बाद, ईरान ने खतरा मोल लेने का जोखिम उठाया, शायद यह देखने के लिए कि इजराइल किस तरह की प्रतिक्रिया देगा.
हिजबुल्लाह और हमास के खिलाफ इजराइल की प्रतिक्रिया कठोर और क्रूर है. केवल यमन, लेबनान और ईरान जैसे कुछ शिया देश ही इजराइल का खुलकर विरोध करते दिखाई देते हैं. सऊदी अरब और अन्य सुन्नी देशों ने नरम कूटनीति का विकल्प चुना, खुद को निंदा तक सीमित रखा और बातचीत और संवाद का आह्वान किया. मुस्लिम देश सतर्क हैं और इजराइल और हमास के बीच विवादों में मध्यस्थता करके तनाव को कम करने का प्रयास कर रहे हैं. मिस्र और कतर युद्धविराम के लिए काम कर रहे हैं, जबकि अमेरिका इजराइल का लगातार समर्थन कर रहा है और उसे हथियारों से मदद करना जारी रखा है. अमेरिका ने इजराइल को युद्धविराम के लिए मनाने का असफल प्रयास भी किया.
इन सब में भारत की स्थिति बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत के इजराइल के साथ घनिष्ठ संबंध हैं और फिलिस्तीनी नेताओं के साथ भी अच्छे संबंध हैं. भारत नपे-तुले कदम उठाता है क्योंकि उसके पूरे पश्चिम एशिया में हित हैं. महत्वाकांक्षी IMEEC (भारत मध्य पूर्व आर्थिक गलियारा) परियोजना की सफलता सऊदी अरब पर बहुत हद तक निर्भर करती है, जो अभी तक शुरू नहीं हो पाई है. भारत के लिए सऊदी ही नहीं बल्कि ईरान भी महत्वपूर्ण है. ईरान में भारत का चाबहार बंदरगाह रणनीतिक और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण है. ईरान और सऊदी दोनों ही भारत की विकास गाथा के लिए महत्वपूर्ण हैं.
भारत के लिए पूरा पश्चिम एशिया रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि बेहद अहम रक्षा आपूर्ति इजराइल से होती है. वहीं, ईरान भारत को कच्चा तेल निर्याता कराता है. तेल संसाधनों का 80 प्रतिशत हिस्सा पश्चिम एशिया से आता है और व्यवधान भारत के लिए बहुत बड़ी असुविधा पैदा कर सकता है. इजराइल और ईरान के बीच युद्ध भारत के हितों के खिलाफ होगा. भारत ने बातचीत की अपील की है और संघर्ष को समाप्त करने की वकालत की है. चीन और भारत पश्चिम एशिया में संसाधनों और अवसरों के लिए होड़ कर रहे हैं, जहां भारत का दबदबा है.
अगर हमास ने 7 अक्टूबर, 2023 को इजराइल पर हमला नहीं किया होता, तो चीन की मध्यस्थता का नतीजा कुछ और हो सकता था. चीन ने हमास और अल-फतह के साथ-साथ सऊदी अरब और ईरान के बीच समझौता कराने की कोशिश की. इससे पहले कि समझौते सुन्नी और शिया मुसलमानों को एकजुट करते, एक बड़ा संघर्ष छिड़ गया, जिससे सऊदी और ईरानियों के बीच कटुता की भावना अनसुलझी रह गई और इजराइल को बढ़त मिल गई. इजराइल हमास और उसके सहयोगियों के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखेगा, जिससे सऊदी अरब और इजराइल दोनों को फायदा होगा, दोनों को ही यमन के हूती विद्रोहियों से छुटकारा पाने में मुश्किल आ रही है. यह देखना दिलचस्प होगा कि आगे क्या होता है और इजराइल ईरान के मिसाइल हमलों का कैसे जवाब देता है.
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