नई दिल्ली: इन दिनों ओटीटी प्लेटफॉर्म पर स्ट्रीम किए जा रहे उस घटना के सिनेमाई रूपांतरण के साथ 25 साल पहले हुए कंधार हाईजैक की यादें ताजा हो गईं. शाम 24 दिसंबर 1999. दिल्ली के लाजपतनगर के कृष्णा मार्केट इलाके में एक बरसाती. मैं एक डॉक्यूमेंट्री की स्क्रिप्ट पर काम कर रहा था, उसी समय, मैं पहले से ही एयरपोर्ट जाने के लिए तैयार हो रहा था. मेरे पिता, डॉ कल्याण चंद्र भुयान, आईसी 814 पर थे.
काठमांडू मेडिकल कॉलेज में सेवारत, वे सर्दियों में दिल्ली आने और फिर काठमांडू में अपने कर्तव्यों को निभा रहे थे. लेकिन वह क्रिसमस की पूर्व संध्या विशेष थी. आखिरकार, वह अगले दिन मेरे सबसे छोटे भाई का जन्मदिन मनाने के लिए दिल्ली आ रहा थे, न कि क्रिसमस. उस दिन दो लोगों के जन्मदिन थे. दोनो मेरे जुड़वां भाई हैं. सबसे छोटा भाई दिल्ली में मेरे साथ रह रहा था, जबकि बड़ा भाई असम में था. मां पहले से ही हमारे साथ दिल्ली में थी. परिवार और दोस्तों के साथ जश्न मनाने की बहुत उम्मीदें थीं.
24 दिसंबर 1999 की शाम को वापस लौटें. उन दिनों भारत में इंटरनेट का चलन बहुत कम था. मैंने इंडियन एयरलाइंस को आईसी 814 की फ्लाइट की स्टेट्स के बारे में पूछा तो मुझे बताया गया कि फ्लाइट में देरी हो रही है. फिर कॉल आई, जोरहाट से मेरे मामा ने मुझसे पूछा कि क्या भिंडेव (बड़ी बहन के पति के लिए असमिया शब्द) दिल्ली में उतरा है. मैंने उन्हें बताया कि फ्लाइट में देरी हो रही है. वह मेरे पिता के अच्छे दोस्त थे.
'मैं तुरंत एयरपोर्ट की ओर भागा'
फिर से उनका फोन आया, "मुझे लगता है कि भिंडू की फ्लाइट को हाईजैक कर लिया गया है." मामा ने मुझसे कहा, "टीवी चेक करो." मैं डेस्क से उठा, जहां मैं काम कर रहा था और टीवी चालू कर दिया. टीवी पर आईसी 814 की कवरेज चल रही थी. मैं तुरंत एयरपोर्ट की ओर भागा.
25 साल हो चुके हैं. उस हफ़्ते भर की पीड़ा के दौरान दिन-प्रतिदिन की घटनाओं को याद करना मुश्किल है, लेकिन हां, एयरपोर्ट से लौटने के बाद, मैंने टीवी चालू कर दिया. इस पूरे समय, हम अपनी मां से तथ्य छिपा रहे थे. वह चौंक जाती और उनका ब्लेड प्रेशर बढ़ जाता, लेकिन फिर, आखिरकार, हमें उसे खबर बतानी पड़ी क्योंकि वह वैसे भी टीवी पर घटनाएं देख सकती थी.
उन दिनों लाजपतनगर असमिया लड़कों से भरा हुआ था. छात्र, युवा पेशेवर. जब उन्हें पता चला कि क्या हो रहा है - वे अगले दिन जन्मदिन मनाने की योजना बना रहे थे - तो वे भागते हुए आए. कुछ ही समय में कृष्णा मार्केट में मेरी छोटी सी बरसाती लोगों से भर गई. न केवल असम और पूर्वोत्तर के हमारे दोस्त, बल्कि पड़ोसी, हमारी बिल्डिंग के दूसरे परिवार और हमारे मकान मालिक भी. हर कोई भावनात्मक समर्थन दे रहा था.
इस बीच, हमारे एक दोस्त ने तनाव के कारण, रसोई के गैस स्टोव पर एक पैन में 20 अंडे उबालना शुरू कर दिया. जब मैंने उससे पूछा कि वह क्या कर रहा है, तो उसने जवाब दिया. "चिंता मत करो, अरुणिम दा, आप बस टीवी पर घटनाक्रम देखें."
क्रिसमस की पूर्व संध्या
क्रिसमस की पूर्व संध्या. टीवी चालू था. विमान को अमृतसर में उतरते देखा, मेरे आस-पास के लोग उत्साह से चर्चा कर रहे थे. विमान ने उड़ान भरी. अगला पड़ाव लाहौर था. देर रात हो गई. हम सभी की आंखें नम थीं, लेकिन फिर भी, हम टीवी पर उड़ान ट्रैक का फॉलो करते रहे. ओह, हो, विमान कहां जा रहा है? दुबई!
हमारी आंखें भारी हो गई थीं. नींद ने हमें जकड़ लिया था. 25 दिसंबर की सुबह, क्रिसमस का दिन. मेरे भाइयों का जन्मदिन. टीवी चालू किया. विमान कहां है? सभी जगहों में से, कंधार, अफगानिस्तान! तो, मेरे पिता और आईसी 814 में सभी यात्री तालिबान के इलाके में हैं. यह पहला विचार था जो मेरे दिमाग में आया.
हालांकि, मेरी मां,मेरे घर पहुंच गईं. मेरे पिता के सबसे छोटे भाई भी गुवाहाटी से विमान से आए. मुझे वह सम्मानित पत्रकार और तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री भी याद है, जिन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी. मैं वहां पत्रकार के तौर पर नहीं, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति के तौर पर गया था जो यह जानना चाहता था कि आईसी 814 के मामले में ताजा घटनाक्रम के बारे में उनका क्या कहना है. हालांकि, वहां जो हुआ, उससे मैं स्तब्ध रह गया. वहां गुस्साए रिश्तेदार मौजूद थे, जो यात्रियों के साथ क्या होगा, इस बारे में जवाब मांग रहे थे.
आगे, वहां क्या हुआ और उसके बाद क्या हुआ? मीडिया की भूमिका क्या थी?
मैं व्यक्तिगत अनुभव से प्रमाणित कर सकता हूं कि इसने प्रमुख निर्णयकर्ताओं पर भारी असर डाला. यह उन मुख्य कारकों में से एक था, जिसने उन्हें यह निर्णय लेने के लिए प्रेरित किया कि हाईजैकर्स की मांगों को स्वीकार करने और उनकी पाकिस्तानी आतंकवादियों को रिहा करने की मांग के अलावा कोई विकल्प नहीं था. जिस क्षण आतंकवादियों को रिहा किया गया, वही समाचार पत्र ‘आतंकवाद के सामने आत्मसमर्पण के बारे में उपदेश दे रहे थे, वे भारतीय सरकार की कायरता की तुलना इजराइल के उदाहरण से कर रहे थे, वे उसी सरकार को उपदेश दे रहे थे, जो उन्होंने अपने चुनिंदा कवरेज के जरिए, अमेरिका की नीति – 'आतंकवादियों के साथ कोई बातचीत नहीं की याद दिलाते हुए दबाव में रखी थी.'
उस उथल-पुथल भरे सप्ताह के बीच मैं एक शाम बहुत थका हुआ घर लौटा. मेरी मुलाकात मेरे और मेरे भाई के दोस्तों से हुई, जिन्होंने मेरी बरसाती पर डेरा डाला हुआ था. “अरुणिमदा, हमने विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया था.” मैंने पूछा: “कौन सा विरोध? आप किसके खिलाफ विरोध कर रहे थे?” उन्होंने जवाब दिया कि वे बंधकों की रिहाई सुनिश्चित न करने के लिए सरकार के खिलाफ विरोध कर रहे थे. पहले तो मैं हैरान रह गया और फिर मुझे एहसास हुआ कि बंधकों के रिश्तेदार 1989 में पांच जेकेएलएफ आतंकवादियों के बदले जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद की रिहाई के साथ समानताएं जोड़ रहे थे. यह आईसी 814 अपहरण के समय से एक दशक पहले की बात है.
फिर, मुझे याद है कि तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी ने बंधकों के कुछ रिश्तेदारों को स्थिति के बारे में जानकारी देने के लिए आमंत्रित किया था. मैं उनमें से एक था. बातचीत के दौरान, उन्होंने एक भयानक खुलासा किया: अपहरणकर्ताओं ने विमान में एक बम लगाया था! मैं बातचीत के बाद हंसते हुए बाहर आया. मुझे लगा कि वह बातों को बढ़ा-चढ़ाकर बता रही है. अब लगभग 25 साल हो गए हैं, मैं उस बातचीत के बारे में हंसता रहा. ओटीटी वेब सीरीज देखने के बाद ही मुझे एहसास हुआ कि उसने जो कहा था वह सच था.
खड़क सिंह मार्ग पर हनुमान मंदिर में प्राथर्ना की
चाहे वह अस्पताल में गंभीर हालत में पड़ा कोई रिश्तेदार हो या विमान में बंधक बना कोई प्रियजन, आप धार्मिक हो जाते हैं. आप भगवान की ओर मुड़ते हैं. मेरे और मेरे परिवार के लिए भी यह अलग नहीं था. मैं, मेरी माँ, मेरा भाई और हमारे दोस्त और रिश्तेदार कनॉट प्लेस में बाबा खड़क सिंह मार्ग पर हनुमान मंदिर गए और प्रार्थना की. हम आरके पुरम में सेंट थॉमस चर्च भी गए और प्रार्थना की और अन्य बंधकों के रिश्तेदारों ने भी ऐसा ही किया.
इस बीच, मेरे एक दोस्त ने मुझे भारत सरकार और हाईजैकर्स के बीच चल रही बातचीत के बारे में सचेत किया. उसने कहा कि उसके एक दोस्त के पिता भारत सरकार की बातचीत करने वाली टीम का हिस्सा हैं. पहले तो मैंने इसे सच मान लिया, लेकिन जल्द ही मुझे एहसास हुआ कि इसमें सच्चाई का एक अंश था. तब तक यह सब एक हफ़्ते के करीब हो चुका था. मिलिनियम की शुरुआत होने वाली थी. नया साल 2000 आ रहा था. हमारी आंखें टीवी पर लगी हुई थीं और फिर खबर आई. एक डील हो गई है और बंधकों को 31 दिसंबर, 1999 को रिहा कर दिया जाएगा. मुझे याद नहीं कि मैंने क्या प्रतिक्रिया दी, लेकिन मुझे याद है कि मैंने हवाई अड्डे पर जाने के लिए जल्दबाजी में तैयारी की.
लोगों से भरा हुआ था टर्मिनल
देर शाम हम एयरपोर्ट पहुंचे. टर्मिनल लोगों से भरा हुआ था बंधकों के रिश्तेदार, मीडिया और जो भी लोग थे. जब कंधार से बंधकों को वापस लाने वाला इंडियन एयरलाइंस का विमान टर्मिनल के पास रुका, तो हमारी नजर विमान की सीढ़ियों पर टिकी हुई थी. विमान में सवार लोग उतरने लगे और फिर मैंने उन्हें देखा. वह पिछली सीढ़ियों से नीचे उतरे. उन्होंने चमड़े और फर की मोटी जैकेट पहन रखी थी.
देर रात हम लाजपतनगर वापस घर आ गए. मैंने ब्रांडी की एक बोतल रखी थी ताकि मेरे पिता इस मुश्किल से उबर सकें और एक आरामदायक रात बिता सकें. बरसाती कमरे के बाहर पागलपन का बोलबाला था. यह नया साल 2000 था!
सुपारी काटते समय, उन्होंने लापरवाही से कहा, “बर्गर को विमान में सोरोटा इस्तेमाल करने से परेशानी थी.” मैं दंग रह गया, मेरे पास शब्द नहीं थे. फिर मैंने उनसे पूछा: “आपने फिर क्या कहा?” उन्होंने कहा, “मैं विमान के अंदर बोर हो रहा था. इसलिए मैंने तामुल पान (सुपारी और पत्ते के लिए असमिया शब्द) खाने के बारे में सोचा. मैंने एक सुपारी निकाली और सोरोटा के साथ इसे काटना शुरू कर दिया. बर्गर ने मुझसे पूछा कि यह (सोरोटा) क्या है और मैंने उसे समझाया.
बर्गर उन पांच हाईजैकर्स में से एक का कोडनेम था, जो आईसी814 को कंधार ले गए थे. अभी भी अपने विचारों को कंट्रोल करने की कोशिश करते हुए, मैंने अपने अंदर बहुत गुस्से के साथ पिताजी से पूछा: “क्या आपका मतलब है कि आपने वास्तव में अपने केबिन के सामान में सोरोटा रखा था?”
उन्होंने जवाब दिया, हां “मैं इसे हमेशा अपने साथ रखता हूं.” तभी मुझे काठमांडू के त्रिभुवन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उस समय की ढीली सुरक्षा का एहसास हुआ. यदि कोई वर्तमान ओटीटी सीरीज को ध्यान से देखता है, तो यह बहुत स्पष्ट है.
रमजान का महीना
अगली सुबह दूसरे सवाल तेजी से दिमाग में आने लगे. सिर्फ मुझसे ही नहीं, बल्कि दूसरों से भी. जाहिर है, खाना सबसे पहले पूछे जाने वाले सवालों में से एक था. जब एयरबस A300 कंधार हवाई अड्डे पर खड़ी थी, तो उसके पास क्या था? उन्होंने कहा, "यह रमजान का महीना है.हालांकि, हमें कुछ मांसाहारी भोजन परोसा गया. मुझे कोई परेशानी नहीं हुई. लेकिन शाकाहारी यात्री भी थे. मुझे लगता है कि उन्हें भी वह खाना परोसा गया जो वे चाहते थे." बाद में उन्होंने कहा: "मुझे बहुत प्यास लग रही थी. कंधार में विमान के अंदर शुरू में पीने का पानी नहीं था."
तो, उन्होंने कैसे मैनेज किया? हाईजैकर्स में से एक आया और मुझे बीयर की एक कैन दी, जो मुझे लगता है कि विमान के अंदर उपलब्ध थी," उन्होंने जवाब दिया. तो, विमान के अंदर की स्थिति क्या थी? "यह दमघोंटू, दम घुटने वाला था," उन्होंने समझाया. "हालांकि यह सर्दियों का मौसम था, लेकिन मैं और अन्य लोग विमान के अंदर पसीने से भीगे हुए थे." और? "पूरा विमान बदबू से भरा हुआ था. शौचालय ओवरफ्लो हो रहा था. मैं शौच के लिए नहीं जा सका था," उन्होंने मुंह बनाते हुए कहा.
जनवरी 2000 में पिताजी हमारे साथ दिल्ली में एक हफ़्ते तक रहे. फिर वे अपनी बाकी छुट्टियां बिताने के लिए असम में हमारे गृहनगर जोरहाट चले गए. वहां से, वे नेपाल लौट आए जहां उन्होंने काठमांडू मेडिकल कॉलेज में अपनी ड्यूटी फिर से शुरू की.
सालों बाद, वह कभी-कभी मुझसे अपने चेहरे पर शरारती मुस्कान के साथ पूछता थे: "मैंने सुना है कि वे आईसी 814 अपहरण के दौरान बंधक बनाए गए लोगों को मुआवजा दे रहे हैं." मेरा जवाब: "यह सवाल ही मत उठाओ. तुम्हारा हमारे साथ होना ही मुआवज़ा है." यही मेरा जवाब था. हमेशा. इस बीच, दिल्ली में विमान से उतरते समय उन्होंने जो चमड़े और फर की जैकेट पहनी थी, वह अभी भी मेरे पास है. 25 साल बाद भी, यह दिल्ली में सर्दियों के दौरान आरामदायक गर्मी का सोर्स है.
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(डिस्कलेमर: यह 1999 में इंडियन एयरलाइंस की उड़ान संख्या आईसी 814 के अपहरण के दौरान बंधक बनाए गए लोगों में से एक के रिश्तेदार का निजी विवरण है. यह उनके निजी विचार हैं. इसका उस घटना से संबंधित वर्तमान ओटीटी वेब सीरीज या इस संबंध में सरकारी निर्णयों या नीतियों से जुड़े विवाद से कोई लेना-देना नहीं है.)