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काला सागर में चीन की बढ़ती पैठ: क्या यह भारत और पश्चिमी देशों के लिए चिंता का कारण है? - China in Black Sea

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By Achal Malhotra

Published : Jun 30, 2024, 10:39 AM IST

China Growing Footprints in Black Sea: काला सागर यूरोप के दक्षिण-पूर्वी छोर पर स्थित है. यह कई मायनों में काफी महत्वपूर्ण है. पिछले कुछ वर्षों के दौरान यहां चीनी पैठ बढ़ा है जो भारत समेत पश्चिमी देशों के लिए चिंता का विषय है. इसी पर आधारित पूर्व राजनयिक अचल मल्होत्रा के विचार पढ़ें...

China Growing Footprints in Black Sea
काला सागर में चीन की बढ़ती पैठ (प्रतिकात्मक फोटो) (IANS)

नई दिल्ली: जॉर्जिया सरकार ने हाल ही में (29 मई, 2024) पुष्टि की कि चीनी सरकार के प्रभुत्व वाले चीनी-सिंगापुर कंसोर्टियम ने जॉर्जिया के काला सागर में रणनीतिक अनाकलिया बंदरगाह के निर्माण और प्रबंधन के लिए निविदा जीत ली है. विजेता कंसोर्टियम में चाइना कम्युनिकेशंस कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड और सिंगापुर स्थित चाइना हार्बर इन्वेस्टमेंट प्राइवेट लिमिटेड शामिल हैं.

बंदरगाह का स्थान नियोजित मध्य गलियारे के लिए महत्वपूर्ण है. ये चीन और यूरोप के बीच एक व्यापार मार्ग है जो रूस को बायपास करता है. इस घोषणा के अनेक भू-राजनीतिक निहितार्थ हैं. सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बंदरगाह परियोजना से चीन को दक्षिण काकेशस में अपनी स्पष्ट उपस्थिति स्थापित करने में मदद मिलेगी.

यह एक ऐसा क्षेत्र है जिस पर अमेरिका, यूरोपीय संघ और रूस के बीच तब से प्रभाव को लेकर विवाद चल रहा है जब से इस क्षेत्र के तीन देश (आर्मेनिया, अजरबैजान और जॉर्जिया) 1992 में यूएसएसआर के पतन के बाद स्वतंत्र राज्यों के रूप में उभरे थे. जॉर्जिया दक्षिण काकेशस में एक अपेक्षाकृत छोटा लेकिन महत्वपूर्ण देश है क्योंकि यह पूर्व और पश्चिम के चौराहे पर स्थित है.

यह दक्षिण काकेशस का एकमात्र देश है जिसकी पहुंच काला सागर तक है. वर्तमान में यह अजरबैजान से तुर्की और आगे यूरोप तक कैस्पियन सागर के तेल और गैस के लिए एक सुविधाजनक रास्ता है. मध्य कॉरिडोर कनेक्टिविटी परियोजना में जॉर्जिया के महत्व को भी स्वीकार किया गया है. ऐतिहासिक रूप से जॉर्जिया इस क्षेत्र का एक ऐसा देश है जो 1992 में अपनी स्वतंत्रता के बाद से नाटो और यूरोपीय संघ के साथ पूर्ण एकीकरण की एक आयामी विदेश नीति का जोरदार ढंग से पालन किया गया.

दशकों से जॉर्जिया के पड़ोसी रूस के साथ रिश्ते तनावपूर्ण रहे हैं. अगस्त 2008 में जॉर्जिया के अलग हुए क्षेत्रों अबकाजिया और दक्षिण ओसेशिया को लेकर दोनों देशों के बीच युद्ध हुआ था. हाल के वर्षों में स्पष्ट संकेत मिले हैं कि जॉर्जिया अलग होने और अपने संबंधों में विविधता लाने की कोशिश कर रहा है. जॉर्जिया जाहिर तौर पर नाटो/यूरोपियन यूनियन की सदस्यता की संभावनाओं से निराश है. इसकी सत्तारूढ़ पार्टी (जॉर्जिया ड्रीम) अब अपने रूस विरोधी रुख को कम करना बुद्धिमानी समझ रही है.

पहला महत्वपूर्ण संकेत जुलाई 2023 में जॉर्जिया द्वारा चीन के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को रणनीतिक साझेदारी तक बढ़ाने की घोषणा थी. इससे पहले 2017 में जॉर्जिया ने चीन के साथ एक मुक्त व्यापार समझौता किया था. इसके साथ ही जॉर्जिया और रूस के बीच स्थिर नाराजगी के पर्याप्त संकेत मिले हैं. 2022 में यूक्रेन में रूस के सैन्य अभियान के बाद से जॉर्जिया ने अपने पश्चिमी सहयोगियों द्वारा की गई रूस विरोधी बयानबाजी में शामिल होने से परहेज किया है न ही उसने यूक्रेन में मास्को की कार्रवाइयों के लिए उसकी खुले तौर पर आलोचना की है.

हाल ही में जून 2024 में जॉर्जिया में सत्तारूढ़ पार्टी ने प्रतिरोध के बावजूद एक कानून पारित किया, जो विदेशी धन प्राप्त करने वाले गैर सरकारी संगठनों पर कड़े प्रतिबंध लगाता है. इसे जॉर्जिया में पश्चिमी शक्तियों के प्रभाव को प्रतिबंधित करने के लिए रूस द्वारा प्रेरित एक अधिनियम के रूप में माना जाता है.

दक्षिण काकेशस में चीन की बढ़ती उपस्थिति इस बात का संकेत है कि रूस जो यूक्रेन के मुद्दे पर अमेरिका और यूरोप के साथ टकराव में है मध्य एशिया और दक्षिण काकेशस में चीन को कुछ रणनीतिक स्थान देने के लिए तैयार है. ये वे क्षेत्र हैं जिन्हें रूस सोवियत काल के बाद अपने स्वाभाविक प्रभाव वाले क्षेत्र मानता है.

रूस और चीन पारंपरिक पश्चिमी प्रभाव को कम करने के लिए इस भू-रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र में मिलकर काम करने पर सहमत हो गए हैं. यह उल्लेखनीय है कि अरकाली बंदरगाह से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर रूस अब्खाजिया के काला सागर तट पर ओचमचिरे बंदरगाह पर एक नौसैनिक अड्डा विकसित कर रहा है. अब्खाजिया जॉर्जिया से अलग हुआ क्षेत्र है और एक स्वघोषित स्वतंत्र देश है, लेकिन रूस के पूर्ण नियंत्रण में है.

भारत और उसके पश्चिमी साझेदार (अमेरिका और यूरोपीय संघ) चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजनाओं को लेकर वास्तव में चिंतित हैं, क्योंकि इन परियोजनाओं के परिणामस्वरूप छोटे साझेदार देशों को कर्ज के जाल में फंसाया गया है और उनकी संप्रभुता कमजोर हुई है. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि ऐसी आशंकाएं हैं कि चीन अंततः रणनीतिक रूप से स्थित इन बंदरगाहों और हवाई अड्डों का उपयोग सैन्य उद्देश्यों के लिए कर सकता है.

जी-7 की वैश्विक संरचना, निवेश के लिए साझेदारी (PGII) और भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा जैसी पहलों को चीन के बीआरआई का मुकाबला करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है. फिर भी पश्चिमी देश अरकली बंदरगाह परियोजना के चीन के पाले में जाने की भविष्यवाणी करने और उसे रोकने में विफल रहे जबकि तथ्य यह है कि जॉर्जिया में अमेरिका और यूरोपीय संघ का काफी प्रभाव रहा है.

आदर्श रूप से यूरोपीय संघ को मध्य कॉरिडोर से जुड़े अपने हित में इस बंदरगाह को विकसित करने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए थी. उल्लेखनीय है कि 2012 में जब यह परियोजना शुरू की गई थी, तब अमेरिका भी इससे जुड़ा था, लेकिन यह शुरू नहीं हो सकी. इस संदर्भ में भारत की स्थिति क्या है? दक्षिण काकेशस के साथ भारत के संबंधों का पता बहुत पुराने समय से लगाया जा सकता है.

आधुनिक समय में भारत ने इस क्षेत्र में केवल आर्मेनिया के साथ ही घनिष्ठ संबंध बना रखा है. जॉर्जिया और अजरबैजान के साथ राजनीतिक संपर्क का स्तर निम्न बना हुआ है. 1992 के बाद से भारत और इन दोनों देशों के बीच किसी भी उच्च स्तरीय यात्रा की अनुपस्थिति से इसका पता चलता है. अजरबैजान भारत की तुलना में पाकिस्तान को वरीयता देता है.

हालांकि जॉर्जिया का मामला अलग है. इसने लगभग 15 साल पहले भारत से संपर्क करना शुरू किया था. नीति निर्माताओं को ही पता होगा कि किन कारणों से भारत ने जॉर्जिया के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने में देरी की. तो क्या भारत ने आर्मेनिया से परे इस क्षेत्र में अपनी सार्थक उपस्थिति स्थापित करने का मौका गंवा दिया है, जबकि जॉर्जिया में रणनीतिक स्थान संभवतः उपलब्ध था?

यह क्षेत्र भारत के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा भी शामिल है. ये मुंबई को ईरान, मध्य एशिया और दक्षिण काकेशस के माध्यम से रूस के सेंट पीटर्सबर्ग से तथा दक्षिण काकेशस में उपलब्ध नेटवर्क के माध्यम से यूरोप से जोड़ता है. यह उल्लेख करना हर तरह से अनुचित नहीं होगा कि दक्षिण काकेशस में अपने करीबी सहयोगी आर्मेनिया में रूस का प्रभाव कम होने के संकेत दे रहा है.

नागोर्नो-काराबाख को लेकर अजरबैजान के साथ संघर्ष के दौरान रूस की उम्मीदों पर खरा उतरने में विफलता से आर्मेनिया स्पष्ट रूप से निराश है. अर्मेनियाई प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक रूप से रूस के नेतृत्व वाली सुरक्षा और आर्थिक संरचनाओं से बाहर निकलने की आर्मेनिया की मंशा की घोषणा की है. संक्षेप में चीन के साथ जॉर्जिया की रणनीतिक साझेदारी, रूस विरोधी रुख में नरमी, आर्मेनिया का रूस में विश्वास खत्म होना और पश्चिम की ओर झुकाव महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक संकेत हैं. इन पर भारत को सतर्कता से नजर रखनी चाहिए और यदि संभव हो तो कार्रवाई भी करनी चाहिए.

ये भी पढ़ें- भारत-ईरान-आर्मेनिया व्यापार गलियारा क्यों है खास, जिसे जल्द शुरू करने पर चल रही है चर्चा

नई दिल्ली: जॉर्जिया सरकार ने हाल ही में (29 मई, 2024) पुष्टि की कि चीनी सरकार के प्रभुत्व वाले चीनी-सिंगापुर कंसोर्टियम ने जॉर्जिया के काला सागर में रणनीतिक अनाकलिया बंदरगाह के निर्माण और प्रबंधन के लिए निविदा जीत ली है. विजेता कंसोर्टियम में चाइना कम्युनिकेशंस कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड और सिंगापुर स्थित चाइना हार्बर इन्वेस्टमेंट प्राइवेट लिमिटेड शामिल हैं.

बंदरगाह का स्थान नियोजित मध्य गलियारे के लिए महत्वपूर्ण है. ये चीन और यूरोप के बीच एक व्यापार मार्ग है जो रूस को बायपास करता है. इस घोषणा के अनेक भू-राजनीतिक निहितार्थ हैं. सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बंदरगाह परियोजना से चीन को दक्षिण काकेशस में अपनी स्पष्ट उपस्थिति स्थापित करने में मदद मिलेगी.

यह एक ऐसा क्षेत्र है जिस पर अमेरिका, यूरोपीय संघ और रूस के बीच तब से प्रभाव को लेकर विवाद चल रहा है जब से इस क्षेत्र के तीन देश (आर्मेनिया, अजरबैजान और जॉर्जिया) 1992 में यूएसएसआर के पतन के बाद स्वतंत्र राज्यों के रूप में उभरे थे. जॉर्जिया दक्षिण काकेशस में एक अपेक्षाकृत छोटा लेकिन महत्वपूर्ण देश है क्योंकि यह पूर्व और पश्चिम के चौराहे पर स्थित है.

यह दक्षिण काकेशस का एकमात्र देश है जिसकी पहुंच काला सागर तक है. वर्तमान में यह अजरबैजान से तुर्की और आगे यूरोप तक कैस्पियन सागर के तेल और गैस के लिए एक सुविधाजनक रास्ता है. मध्य कॉरिडोर कनेक्टिविटी परियोजना में जॉर्जिया के महत्व को भी स्वीकार किया गया है. ऐतिहासिक रूप से जॉर्जिया इस क्षेत्र का एक ऐसा देश है जो 1992 में अपनी स्वतंत्रता के बाद से नाटो और यूरोपीय संघ के साथ पूर्ण एकीकरण की एक आयामी विदेश नीति का जोरदार ढंग से पालन किया गया.

दशकों से जॉर्जिया के पड़ोसी रूस के साथ रिश्ते तनावपूर्ण रहे हैं. अगस्त 2008 में जॉर्जिया के अलग हुए क्षेत्रों अबकाजिया और दक्षिण ओसेशिया को लेकर दोनों देशों के बीच युद्ध हुआ था. हाल के वर्षों में स्पष्ट संकेत मिले हैं कि जॉर्जिया अलग होने और अपने संबंधों में विविधता लाने की कोशिश कर रहा है. जॉर्जिया जाहिर तौर पर नाटो/यूरोपियन यूनियन की सदस्यता की संभावनाओं से निराश है. इसकी सत्तारूढ़ पार्टी (जॉर्जिया ड्रीम) अब अपने रूस विरोधी रुख को कम करना बुद्धिमानी समझ रही है.

पहला महत्वपूर्ण संकेत जुलाई 2023 में जॉर्जिया द्वारा चीन के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को रणनीतिक साझेदारी तक बढ़ाने की घोषणा थी. इससे पहले 2017 में जॉर्जिया ने चीन के साथ एक मुक्त व्यापार समझौता किया था. इसके साथ ही जॉर्जिया और रूस के बीच स्थिर नाराजगी के पर्याप्त संकेत मिले हैं. 2022 में यूक्रेन में रूस के सैन्य अभियान के बाद से जॉर्जिया ने अपने पश्चिमी सहयोगियों द्वारा की गई रूस विरोधी बयानबाजी में शामिल होने से परहेज किया है न ही उसने यूक्रेन में मास्को की कार्रवाइयों के लिए उसकी खुले तौर पर आलोचना की है.

हाल ही में जून 2024 में जॉर्जिया में सत्तारूढ़ पार्टी ने प्रतिरोध के बावजूद एक कानून पारित किया, जो विदेशी धन प्राप्त करने वाले गैर सरकारी संगठनों पर कड़े प्रतिबंध लगाता है. इसे जॉर्जिया में पश्चिमी शक्तियों के प्रभाव को प्रतिबंधित करने के लिए रूस द्वारा प्रेरित एक अधिनियम के रूप में माना जाता है.

दक्षिण काकेशस में चीन की बढ़ती उपस्थिति इस बात का संकेत है कि रूस जो यूक्रेन के मुद्दे पर अमेरिका और यूरोप के साथ टकराव में है मध्य एशिया और दक्षिण काकेशस में चीन को कुछ रणनीतिक स्थान देने के लिए तैयार है. ये वे क्षेत्र हैं जिन्हें रूस सोवियत काल के बाद अपने स्वाभाविक प्रभाव वाले क्षेत्र मानता है.

रूस और चीन पारंपरिक पश्चिमी प्रभाव को कम करने के लिए इस भू-रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र में मिलकर काम करने पर सहमत हो गए हैं. यह उल्लेखनीय है कि अरकाली बंदरगाह से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर रूस अब्खाजिया के काला सागर तट पर ओचमचिरे बंदरगाह पर एक नौसैनिक अड्डा विकसित कर रहा है. अब्खाजिया जॉर्जिया से अलग हुआ क्षेत्र है और एक स्वघोषित स्वतंत्र देश है, लेकिन रूस के पूर्ण नियंत्रण में है.

भारत और उसके पश्चिमी साझेदार (अमेरिका और यूरोपीय संघ) चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजनाओं को लेकर वास्तव में चिंतित हैं, क्योंकि इन परियोजनाओं के परिणामस्वरूप छोटे साझेदार देशों को कर्ज के जाल में फंसाया गया है और उनकी संप्रभुता कमजोर हुई है. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि ऐसी आशंकाएं हैं कि चीन अंततः रणनीतिक रूप से स्थित इन बंदरगाहों और हवाई अड्डों का उपयोग सैन्य उद्देश्यों के लिए कर सकता है.

जी-7 की वैश्विक संरचना, निवेश के लिए साझेदारी (PGII) और भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा जैसी पहलों को चीन के बीआरआई का मुकाबला करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है. फिर भी पश्चिमी देश अरकली बंदरगाह परियोजना के चीन के पाले में जाने की भविष्यवाणी करने और उसे रोकने में विफल रहे जबकि तथ्य यह है कि जॉर्जिया में अमेरिका और यूरोपीय संघ का काफी प्रभाव रहा है.

आदर्श रूप से यूरोपीय संघ को मध्य कॉरिडोर से जुड़े अपने हित में इस बंदरगाह को विकसित करने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए थी. उल्लेखनीय है कि 2012 में जब यह परियोजना शुरू की गई थी, तब अमेरिका भी इससे जुड़ा था, लेकिन यह शुरू नहीं हो सकी. इस संदर्भ में भारत की स्थिति क्या है? दक्षिण काकेशस के साथ भारत के संबंधों का पता बहुत पुराने समय से लगाया जा सकता है.

आधुनिक समय में भारत ने इस क्षेत्र में केवल आर्मेनिया के साथ ही घनिष्ठ संबंध बना रखा है. जॉर्जिया और अजरबैजान के साथ राजनीतिक संपर्क का स्तर निम्न बना हुआ है. 1992 के बाद से भारत और इन दोनों देशों के बीच किसी भी उच्च स्तरीय यात्रा की अनुपस्थिति से इसका पता चलता है. अजरबैजान भारत की तुलना में पाकिस्तान को वरीयता देता है.

हालांकि जॉर्जिया का मामला अलग है. इसने लगभग 15 साल पहले भारत से संपर्क करना शुरू किया था. नीति निर्माताओं को ही पता होगा कि किन कारणों से भारत ने जॉर्जिया के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने में देरी की. तो क्या भारत ने आर्मेनिया से परे इस क्षेत्र में अपनी सार्थक उपस्थिति स्थापित करने का मौका गंवा दिया है, जबकि जॉर्जिया में रणनीतिक स्थान संभवतः उपलब्ध था?

यह क्षेत्र भारत के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा भी शामिल है. ये मुंबई को ईरान, मध्य एशिया और दक्षिण काकेशस के माध्यम से रूस के सेंट पीटर्सबर्ग से तथा दक्षिण काकेशस में उपलब्ध नेटवर्क के माध्यम से यूरोप से जोड़ता है. यह उल्लेख करना हर तरह से अनुचित नहीं होगा कि दक्षिण काकेशस में अपने करीबी सहयोगी आर्मेनिया में रूस का प्रभाव कम होने के संकेत दे रहा है.

नागोर्नो-काराबाख को लेकर अजरबैजान के साथ संघर्ष के दौरान रूस की उम्मीदों पर खरा उतरने में विफलता से आर्मेनिया स्पष्ट रूप से निराश है. अर्मेनियाई प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक रूप से रूस के नेतृत्व वाली सुरक्षा और आर्थिक संरचनाओं से बाहर निकलने की आर्मेनिया की मंशा की घोषणा की है. संक्षेप में चीन के साथ जॉर्जिया की रणनीतिक साझेदारी, रूस विरोधी रुख में नरमी, आर्मेनिया का रूस में विश्वास खत्म होना और पश्चिम की ओर झुकाव महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक संकेत हैं. इन पर भारत को सतर्कता से नजर रखनी चाहिए और यदि संभव हो तो कार्रवाई भी करनी चाहिए.

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