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बांग्लादेश से सुरक्षित कैसे बाहर निकलीं शेख हसीना, क्या उनकी जान बख्शने के लिए हुआ था कोई समझौता? - Sheikh Hasina

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By Sanjay Kapoor

Published : Aug 17, 2024, 6:00 AM IST

Bangladesh Unrest: शेख हसीना ने एक कथित बयान में दावा किया था कि बंगाल की खाड़ी में एक द्वीप नहीं देने के कारण उनकी सरकार को गिराने में संयुक्त राज्य अमेरिका की संलिप्तता थी.

बांग्लादेश में हिंसा
बांग्लादेश में हिंसा (AP)

हैदराबाद: बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना को ढाका के एयरफोर्स फील्ड से दिल्ली के पास एक एयरफोर्स स्टेशन पहुंचे एक सप्ताह से अधिक समय हो गया है. हालांकि, करने वाले बात यह है कि किस गति से एक लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नेता को सड़क पर विरोध प्रदर्शनों के माध्यम से उखाड़ फेंका गया. इसके बारे में कई विशेषज्ञों का दावा है कि इसे मैनेज किया जा सकता था.

शेख हसीना ने एक कथित बयान में दावा किया था कि बंगाल की खाड़ी में एक द्वीप नहीं देने के कारण उनकी सरकार को गिराने में संयुक्त राज्य अमेरिका की संलिप्तता थी. उन्होंने कहा कि सरकार को एक भयावह चेतावनी दी गई थी कि ढाका में ऐसा कुछ होने की संभावना है. हालांकि, बाद में उनके अमेरिका स्थित बेटे सजीब वाजेद ने नकार दिया था. भारत सरकार के लिए परेशान करने वाली बात यह है कि हसीना को उस समय सत्ता से हटाया गया जब दुनिया की नजर में वे सरकार के संरक्षण में थीं.

बांग्लादेश में हिंसा
बांग्लादेश में हिंसा (AP)

मीडिया रिपोर्ट्स में आरोप लगाया गया है कि भारत की खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) कथित तौर पर ढाका में अपना सबसे बड़ा ऑपरेशन चला रही थी. इन रिपोर्टों का दावा है कि इसका प्रयास था हसीना का सरकार के लिए लॉन्गिविटी सुनिश्चित किए जाए और 1975 जैसे हालात न बनने दिए जाएं, जब शेख मुजीबुर रहमान, उनकी पत्नी और उनके बेटे को हत्यारों ने मार डाला था.

तख्तापलट की खूनी परंपरा
दिल्ली में जो सवाल पूछा जा रहा है वह यह है कि हसीना ढाका में बिना घायल हुए कैसे बच निकलीं, जबकि देश में हिंसक तख्तापलट की खूनी परंपरा रही है? उत्तर देने के लिए यह आसान सवाल नहीं है, लेकिन बांग्लादेश पर नजर रखने वालों को इस अफवाह में दम नजर आता है कि अमेरिकी सरकार ने अवामी लीग की सरकार को गिरा दिया. क्या कोई ऐसा समझौता हुआ था जिससे अपदस्थ पीएम को बख्श दिया गया. कोई नहीं जानता.

हालांकि, अगर हसीना और उनके सुरक्षा दल के बीच हुई बातचीत की ट्रांसक्रिप्शन पर गौर करें, तो अवामी लीग की नेता वहां से जाने को तैयार नहीं थीं, क्योंकि उनका मानना ​​था कि सेना द्वारा विरोध प्रदर्शनों को नियंत्रित किया जा सकता है. दिलचस्प बात यह है कि सेना प्रमुख ने अपदस्थ प्रधानमंत्री के आदेश का पालन नहीं किया. इसके बजाय, उन्होंने उन्हें ढाका से बाहर जाने के लिए मना लिया. एक दृष्टिकोण यह भी दावा करता है कि ढाका में कम से कम प्रदर्शनकारियों की संख्या उतनी नहीं थी, जितनी सोशल और टीवी मीडिया द्वारा बताई गई.

बांग्लादेश में हिंसा
बांग्लादेश में हिंसा (AP)

अगर हसीना के बयानों और जिस तरह से उन्होंने ढाका छोड़ा, उस पर गौर करें तो लगता है कि वह किसी भी डील में शामिल नहीं थीं, लेकिन अमेरिका उन नेताओं के साथ डील करने की कोशिश नहीं छोड़ता जो जाने से इनकार करते हैं या फिर अनुकूल चुनावी जनादेश नहीं पाते हैं. उदाहरण के लिए, कुछ ऐसे नेता हैं जो बांग्लादेश छोड़ने से इनकार करते हैं या फिर अनुकूल चुनावी जनादेश नहीं पाते हैं.

ऐसी खबरें हैं कि अमेरिका वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो और उनके सहयोगियों को केवल तभी माफी देने की पेशकश कर रहा है, जब वे अपना राष्ट्रपति पद छोड़ दें और राजधानी कराकास छोड़कर किसी और जगह चले जाएं. मादुरो को देश के गरीब, हाशिए पर पड़े और स्वदेशी लोगों का काफी समर्थन प्राप्त है, लेकिन वे पीछे नहीं हट रहे हैं.

बांग्लादेश में हिंसा
बांग्लादेश में हिंसा (AP)

हसीने के लिए अमेरिका में नफरत
हसीना, जिनके लिए अमेरिका में गहरी नफरत थी. वह भी इसी तरह की ताकतों के हमले की चपेट में रही हैं. पुराने लोग 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम से जुड़ी घटनाओं को याद करेंगे, जब एक अमेरिकी विमानवाहक पोत भारत को पूर्वी पाकिस्तान में घुसने से डराने के लिए बंगाल की खाड़ी में गया था. भारत ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और पाकिस्तानी सेना को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया.

बांग्लादेश का जन्म एक क्रूर, खूनी लड़ाई थी, न केवल भूमि के एक टुकड़े को मुक्त करने के लिए, बल्कि उस समन्वित बंगाली संस्कृति को बचाने के लिए, जहां सदियों से सभी धर्मों का बोलबाला रहा है. पाकिस्तान ने वहाबी इस्लाम के कठोर और संकीर्ण सिद्धांतों के इर्द-गिर्द बंगाली समाज को एकरूप बनाने का प्रयास किया था. बांग्लादेश उसी अनसुलझे संघर्ष से जूझ रहा है.

2013 में ढाका के शाहबाग में एक आंदोलन हुआ था, जिसमें छात्रों ने 1971 के मुक्ति संग्राम के खिलाफ पाकिस्तानियों के साथ सहयोग करने वाले सभी लोगों को फांसी पर चढ़ाने की मांग की थी. आंदोलनकारियों का मानना ​​था कि ये सहयोगी खुलेआम घूम रहे हैं और उन्हें सजा नहीं दी जा रही है. प्रधानमंत्री शेख हसीना द्वारा समर्थित इस आंदोलन का ब्रिटेन और सऊदी अरब की सरकारों ने विरोध किया. हालांकि, हसीना अपनी बात मनवाने में कामयाब रहीं.

बांग्लादेश में हिंसा
बांग्लादेश में हिंसा (AP)

स्वतंत्रता आंदोलन की निशानियों की तोड़-फोड़
अगर हसीना ने छात्र आंदोलनकारियों को रजाकार कहा तो जाहिर है कि यह उस समय की कहानी को आगे ले जाने के लिए था, जब छात्र चाहते थे कि बांग्लादेश के मूल्यों को कमजोर करने के लिए सहयोगियों को फांसी पर लटका दिया जाए. यहां भी हसीना को उखाड़ फेंकने के बाद तोड़फोड़ की गई और 1971 के स्वतंत्रता आंदोलन की यादों को खराब किया गया. वही इमेज जो हमें लगता था कि सद्दाम हुसैन जैसे तानाशाहों के लिए आरक्षित थीं, बांग्लादेश की स्वतंत्रता के नायकों के खिलाफ खेली गईं. जैसे ही भारत ने देश की स्वतंत्रता की नींव रखी, वे प्रदर्शनकारियों के गुस्से का शिकार हो गए.

न केवल बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की मूर्ति को तोड़ा गया, बल्कि 14 दिनों के युद्ध के बाद भारतीय जनरलों के सामने आत्मसमर्पण करने वाले पाकिस्तानी जनरलों के एक चित्र को भी नष्ट कर दिया गया. स्पष्ट रूप से, विरोध प्रदर्शन अधिक लोकतंत्र या हसीना को हटाने की मांग नहीं कर रहे थे, बल्कि वे इतिहास के उस हिस्से पर लक्षित थे, जिसने पाकिस्तान के साथ उनके संबंधों को मिटा दिया. सोशल मीडिया, जिसका इस्तेमाल कहानी गढ़ने और मृत पत्थरों में जान फूंकने के लिए किया जाता है, ने बंगाल के साहित्यिक अतीत के प्रतीक रवींद्र नाथ टैगोर की मूर्तियों और मंदिरों में तोड़फोड़ की तस्वीरें खूब दिखाईं. यह अलग बात है कि टैगोर की मूर्ति करीब 20 साल पहले तोड़ी गई थी.

नौकरियों की कमी के चलते सड़क पर छात्र
हसीना के खिलाफ आंदोलन करने वाले अधिकांश छात्रों के प्रति निष्पक्ष होने के लिए, वे सरकार द्वारा उनसे बातचीत करने या समाज में उनके भविष्य के लिए अधिक लोकतांत्रिक स्थान प्रदान करने से इनकार करने से व्यथित थे. भारत की तरह सरकारी नौकरियों की कमी ने उन्हें सड़कों पर ला दिया है और वे स्पष्ट और ठोस जवाब चाहते हैं. उन्हें इसके बदले में गोलियां मिल सकती हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि उनके आंदोलन को पश्चिमी राजधानियों में स्थित अधिक शक्तिशाली ताकतों द्वारा अपहृत किया जा रहा है. वे हिंदू मंदिरों की रक्षा और हिंदुओं के खिलाफ हिंसा करके आंदोलन को नियंत्रण से बाहर होने से रोकने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन कट्टरपंथी धार्मिक तत्व इस अवसर का उपयोग उन कारणों पर फिर से विचार करने के लिए कर रहे हैं, जिनकी वजह से भारत को दो देशों में विभाजित किया गया था.

जो भी हो, इस क्षेत्र में सांप्रदायिक शांति बनाए रखना एक बड़ी चुनौती बन गई है क्योंकि बांग्लादेश में संविधान-आधारित धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों को खतरा है, लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत में हिंदुत्व की ताकतों ने मुस्लिम अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया है, जिसके परिणामस्वरूप पड़ोसी देशों में भी हमले हो रहे हैं.

यह भी पढ़ें- हसीना शासन का पतन: भारतीय सुरक्षा गतिशीलता के लिए एक अप्रिय झटका

हैदराबाद: बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना को ढाका के एयरफोर्स फील्ड से दिल्ली के पास एक एयरफोर्स स्टेशन पहुंचे एक सप्ताह से अधिक समय हो गया है. हालांकि, करने वाले बात यह है कि किस गति से एक लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नेता को सड़क पर विरोध प्रदर्शनों के माध्यम से उखाड़ फेंका गया. इसके बारे में कई विशेषज्ञों का दावा है कि इसे मैनेज किया जा सकता था.

शेख हसीना ने एक कथित बयान में दावा किया था कि बंगाल की खाड़ी में एक द्वीप नहीं देने के कारण उनकी सरकार को गिराने में संयुक्त राज्य अमेरिका की संलिप्तता थी. उन्होंने कहा कि सरकार को एक भयावह चेतावनी दी गई थी कि ढाका में ऐसा कुछ होने की संभावना है. हालांकि, बाद में उनके अमेरिका स्थित बेटे सजीब वाजेद ने नकार दिया था. भारत सरकार के लिए परेशान करने वाली बात यह है कि हसीना को उस समय सत्ता से हटाया गया जब दुनिया की नजर में वे सरकार के संरक्षण में थीं.

बांग्लादेश में हिंसा
बांग्लादेश में हिंसा (AP)

मीडिया रिपोर्ट्स में आरोप लगाया गया है कि भारत की खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) कथित तौर पर ढाका में अपना सबसे बड़ा ऑपरेशन चला रही थी. इन रिपोर्टों का दावा है कि इसका प्रयास था हसीना का सरकार के लिए लॉन्गिविटी सुनिश्चित किए जाए और 1975 जैसे हालात न बनने दिए जाएं, जब शेख मुजीबुर रहमान, उनकी पत्नी और उनके बेटे को हत्यारों ने मार डाला था.

तख्तापलट की खूनी परंपरा
दिल्ली में जो सवाल पूछा जा रहा है वह यह है कि हसीना ढाका में बिना घायल हुए कैसे बच निकलीं, जबकि देश में हिंसक तख्तापलट की खूनी परंपरा रही है? उत्तर देने के लिए यह आसान सवाल नहीं है, लेकिन बांग्लादेश पर नजर रखने वालों को इस अफवाह में दम नजर आता है कि अमेरिकी सरकार ने अवामी लीग की सरकार को गिरा दिया. क्या कोई ऐसा समझौता हुआ था जिससे अपदस्थ पीएम को बख्श दिया गया. कोई नहीं जानता.

हालांकि, अगर हसीना और उनके सुरक्षा दल के बीच हुई बातचीत की ट्रांसक्रिप्शन पर गौर करें, तो अवामी लीग की नेता वहां से जाने को तैयार नहीं थीं, क्योंकि उनका मानना ​​था कि सेना द्वारा विरोध प्रदर्शनों को नियंत्रित किया जा सकता है. दिलचस्प बात यह है कि सेना प्रमुख ने अपदस्थ प्रधानमंत्री के आदेश का पालन नहीं किया. इसके बजाय, उन्होंने उन्हें ढाका से बाहर जाने के लिए मना लिया. एक दृष्टिकोण यह भी दावा करता है कि ढाका में कम से कम प्रदर्शनकारियों की संख्या उतनी नहीं थी, जितनी सोशल और टीवी मीडिया द्वारा बताई गई.

बांग्लादेश में हिंसा
बांग्लादेश में हिंसा (AP)

अगर हसीना के बयानों और जिस तरह से उन्होंने ढाका छोड़ा, उस पर गौर करें तो लगता है कि वह किसी भी डील में शामिल नहीं थीं, लेकिन अमेरिका उन नेताओं के साथ डील करने की कोशिश नहीं छोड़ता जो जाने से इनकार करते हैं या फिर अनुकूल चुनावी जनादेश नहीं पाते हैं. उदाहरण के लिए, कुछ ऐसे नेता हैं जो बांग्लादेश छोड़ने से इनकार करते हैं या फिर अनुकूल चुनावी जनादेश नहीं पाते हैं.

ऐसी खबरें हैं कि अमेरिका वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो और उनके सहयोगियों को केवल तभी माफी देने की पेशकश कर रहा है, जब वे अपना राष्ट्रपति पद छोड़ दें और राजधानी कराकास छोड़कर किसी और जगह चले जाएं. मादुरो को देश के गरीब, हाशिए पर पड़े और स्वदेशी लोगों का काफी समर्थन प्राप्त है, लेकिन वे पीछे नहीं हट रहे हैं.

बांग्लादेश में हिंसा
बांग्लादेश में हिंसा (AP)

हसीने के लिए अमेरिका में नफरत
हसीना, जिनके लिए अमेरिका में गहरी नफरत थी. वह भी इसी तरह की ताकतों के हमले की चपेट में रही हैं. पुराने लोग 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम से जुड़ी घटनाओं को याद करेंगे, जब एक अमेरिकी विमानवाहक पोत भारत को पूर्वी पाकिस्तान में घुसने से डराने के लिए बंगाल की खाड़ी में गया था. भारत ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और पाकिस्तानी सेना को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया.

बांग्लादेश का जन्म एक क्रूर, खूनी लड़ाई थी, न केवल भूमि के एक टुकड़े को मुक्त करने के लिए, बल्कि उस समन्वित बंगाली संस्कृति को बचाने के लिए, जहां सदियों से सभी धर्मों का बोलबाला रहा है. पाकिस्तान ने वहाबी इस्लाम के कठोर और संकीर्ण सिद्धांतों के इर्द-गिर्द बंगाली समाज को एकरूप बनाने का प्रयास किया था. बांग्लादेश उसी अनसुलझे संघर्ष से जूझ रहा है.

2013 में ढाका के शाहबाग में एक आंदोलन हुआ था, जिसमें छात्रों ने 1971 के मुक्ति संग्राम के खिलाफ पाकिस्तानियों के साथ सहयोग करने वाले सभी लोगों को फांसी पर चढ़ाने की मांग की थी. आंदोलनकारियों का मानना ​​था कि ये सहयोगी खुलेआम घूम रहे हैं और उन्हें सजा नहीं दी जा रही है. प्रधानमंत्री शेख हसीना द्वारा समर्थित इस आंदोलन का ब्रिटेन और सऊदी अरब की सरकारों ने विरोध किया. हालांकि, हसीना अपनी बात मनवाने में कामयाब रहीं.

बांग्लादेश में हिंसा
बांग्लादेश में हिंसा (AP)

स्वतंत्रता आंदोलन की निशानियों की तोड़-फोड़
अगर हसीना ने छात्र आंदोलनकारियों को रजाकार कहा तो जाहिर है कि यह उस समय की कहानी को आगे ले जाने के लिए था, जब छात्र चाहते थे कि बांग्लादेश के मूल्यों को कमजोर करने के लिए सहयोगियों को फांसी पर लटका दिया जाए. यहां भी हसीना को उखाड़ फेंकने के बाद तोड़फोड़ की गई और 1971 के स्वतंत्रता आंदोलन की यादों को खराब किया गया. वही इमेज जो हमें लगता था कि सद्दाम हुसैन जैसे तानाशाहों के लिए आरक्षित थीं, बांग्लादेश की स्वतंत्रता के नायकों के खिलाफ खेली गईं. जैसे ही भारत ने देश की स्वतंत्रता की नींव रखी, वे प्रदर्शनकारियों के गुस्से का शिकार हो गए.

न केवल बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की मूर्ति को तोड़ा गया, बल्कि 14 दिनों के युद्ध के बाद भारतीय जनरलों के सामने आत्मसमर्पण करने वाले पाकिस्तानी जनरलों के एक चित्र को भी नष्ट कर दिया गया. स्पष्ट रूप से, विरोध प्रदर्शन अधिक लोकतंत्र या हसीना को हटाने की मांग नहीं कर रहे थे, बल्कि वे इतिहास के उस हिस्से पर लक्षित थे, जिसने पाकिस्तान के साथ उनके संबंधों को मिटा दिया. सोशल मीडिया, जिसका इस्तेमाल कहानी गढ़ने और मृत पत्थरों में जान फूंकने के लिए किया जाता है, ने बंगाल के साहित्यिक अतीत के प्रतीक रवींद्र नाथ टैगोर की मूर्तियों और मंदिरों में तोड़फोड़ की तस्वीरें खूब दिखाईं. यह अलग बात है कि टैगोर की मूर्ति करीब 20 साल पहले तोड़ी गई थी.

नौकरियों की कमी के चलते सड़क पर छात्र
हसीना के खिलाफ आंदोलन करने वाले अधिकांश छात्रों के प्रति निष्पक्ष होने के लिए, वे सरकार द्वारा उनसे बातचीत करने या समाज में उनके भविष्य के लिए अधिक लोकतांत्रिक स्थान प्रदान करने से इनकार करने से व्यथित थे. भारत की तरह सरकारी नौकरियों की कमी ने उन्हें सड़कों पर ला दिया है और वे स्पष्ट और ठोस जवाब चाहते हैं. उन्हें इसके बदले में गोलियां मिल सकती हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि उनके आंदोलन को पश्चिमी राजधानियों में स्थित अधिक शक्तिशाली ताकतों द्वारा अपहृत किया जा रहा है. वे हिंदू मंदिरों की रक्षा और हिंदुओं के खिलाफ हिंसा करके आंदोलन को नियंत्रण से बाहर होने से रोकने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन कट्टरपंथी धार्मिक तत्व इस अवसर का उपयोग उन कारणों पर फिर से विचार करने के लिए कर रहे हैं, जिनकी वजह से भारत को दो देशों में विभाजित किया गया था.

जो भी हो, इस क्षेत्र में सांप्रदायिक शांति बनाए रखना एक बड़ी चुनौती बन गई है क्योंकि बांग्लादेश में संविधान-आधारित धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों को खतरा है, लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत में हिंदुत्व की ताकतों ने मुस्लिम अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया है, जिसके परिणामस्वरूप पड़ोसी देशों में भी हमले हो रहे हैं.

यह भी पढ़ें- हसीना शासन का पतन: भारतीय सुरक्षा गतिशीलता के लिए एक अप्रिय झटका

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