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बांग्लादेश संकट: मुक्ति संग्राम के दौरान भारत ने जो योगदान दिया था, उन यादों पर साधा जा रहा निशाना, खतरे में स्मारक - Bangladesh Liberation War

Bangladesh Crisis: बांग्लादेश में अंतरिम सरकार बन चुकी है, फिर भी कानून और व्यवस्था को लेकर सवाल बने हुए हैं. बांग्लादेश मुक्ति संग्राम से जुड़े चिन्हों और प्रतीकों को मिटाने की कोशिश की जा रही है. उन स्मारकों पर खतरा मंडरा रहा है, जहां पर इन्हें सुरक्षित रखा गया है. मुक्ति संग्राम के दौरान भारत-बांग्लादेश के सौहार्द की कहानियां और पाकिस्तान के नियंत्रण के खिलाफ विद्रोह को दर्शाया गया है. पेश है इस विषय पर ईटीवी भारत के एडिटर का एक विश्लेषण.

बांग्लादेश मुक्ति युद्ध संग्रहालय से तस्वीरें
बांग्लादेश मुक्ति युद्ध संग्रहालय से तस्वीरें ((ETV Bharat via Liberation War Museum))
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By Bilal Bhat

Published : Aug 19, 2024, 5:43 PM IST

Updated : Aug 20, 2024, 3:51 PM IST

हैदराबाद: बांग्लादेश में अंतरिम सरकार बन चुकी है, लेकिन यह सवाल अभी भी बना हुआ है कि क्या नई सरकार देश के युद्ध स्मारकों का सम्मान करेगी? ये स्मारक शेख हसीना के पिता और बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान के योगदान का प्रमाण हैं. बांग्लादेश के ढाका स्थित मुक्ति संग्राम म्यूजियम में मुक्ति संग्राम की जो तस्वीरें हैं, उनमें शेख मुजीबुर रहमान और भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की एक तस्वीर भी शामिल है.

बांग्लादेश लिबरेशन वॉर म्यूजियम का सामने का हिस्सा.
बांग्लादेश लिबरेशन वॉर म्यूजियम का सामने का हिस्सा. (ETV Bharat via Liberation War Museum)

म्यूजियम की वेबसाइट के होमपेज पर शेख मुजीबुर रहमान का कथन भी लिखा है, "ग्रेट थिंग्स आर अचीव थ्रू ग्रेट सेक्रीफाइसिस". यानी बडे़ बलिदान के माध्यम से बड़ी चीजें हासिल की जाती हैं. यह म्यूजियम उन प्रमुख संस्थानों में से एक है, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मुक्ति संग्राम के दौरान भारत-बांग्लादेश के सौहार्द की कहानियां अगली पीढ़ी को बताई जाएं. छात्र और पर्यटक म्यूजियम में जाकर वह तस्वीरें देखें, जिसमें युद्ध के समय बांग्ला भाषी लोगों के खिलाफ पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों को दिखाया गया है.

शेख मुजीबुर रहमान के 'कोट' को दिखाने वाली संग्रहालय की वेबसाइट का स्क्रीनशॉट
शेख मुजीबुर रहमान के 'कोट' को दिखाने वाली संग्रहालय की वेबसाइट का स्क्रीनशॉट (ETV Bharat via Liberation War Museum)

उस समय पश्चिमी पाकिस्तान के नियंत्रण के खिलाफ विद्रोह को बढ़ावा देने के लिए, इस तस्वीरों में भारत के दोस्ताना चेहरे को भी दिखाया गया है. यह तस्वीरें राज्य पर भाषा विशेष राष्ट्रवाद को उजागर करती हैं, जिसने अपने संविधान में इस्लाम को अपने धर्म के रूप में उल्लेख किया है. यह पश्चिमी पाकिस्तान से बांग्लादेश की आजादी के लिए भारत के भारी समर्थन को भी दिखाती हैं.

इस म्यूजियम के सेल्युलाइड डिस्पले से फ्यूचर जनरेशन को भारत और स्वतंत्रता संग्राम में उसकी भागीदारी के बारे में पर्याप्त जानकारी मिलेगी. मुक्ति संग्राम की तस्वीरें जो पश्चिमी पाकिस्तान की सेना के खिलाफ मुजीबुर और उनके साथियों के लिए भारत के अटूट समर्थन को दर्शाती है, एक सम्मोहक कहानी थी जिसने भारत के बारे में बांग्लादेशी लोगों की धारणा को मजबूत किया.

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और शेख मुजीबुर रहमान 2 मार्च, 1972 को ढाका में मित्रता, सहयोग और शांति की संधि पर हस्ताक्षर करते हुए
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और शेख मुजीबुर रहमान 2 मार्च, 1972 को ढाका में मित्रता, सहयोग और शांति की संधि पर हस्ताक्षर करते हुए (ETV Bharat via Bangladesh High Commission)

क्यों बनाया गया म्यूजियम?
म्यूजियम की स्थापना के पीछे का विचार था कि यहां विजिटर्स को वे तस्वीरें दिखाई जा सकें, जो लोगों के मन में मुक्ति संग्राम की यादों को उकेर दें. संस्था की स्थापना का एक कारण यह याद रखना भी था कि संघर्ष के दौरान लोगों ने क्या बलिदान दिए. इसकी स्थापना मुख्य रूप से आने वाली जनरेशन को युद्ध के दौरान क्या हुआ और लोगों ने किस तरह से दमन और अत्याचारों का सामना किया, इसकी जानकारी देने के लिए की गई थी.

अब जबकि हसीना सत्ता से बाहर हो गई हैं, उनके जैसे लोग इस बात पर विचार कर रहे होंगे कि यह सब कैसे हुआ. जो भी वे ही थे जिन्होंने अपनी खुद की कहानी लिखी और साहित्य और तस्वीरों के माध्यम से इसे जनता के सामने उजागर किया. उनका उद्देश्य 'रजाकारों' की अवधारणा को फिर से पेश करने और मजबूत करने का विचार, जिन पर जासूसी और पाकिस्तानी सेना के समर्थन के माध्यम से बांग्ला भाषी लोगों पर अत्याचार करने का आरोप है, बांग्ला राष्ट्रवाद को जीवित रखने के लिए था.

पाकिस्तानी सेना के कमांडर (पूर्वी कमान) लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी, भारतीय सेना के जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के साथ आत्मसमर्पण के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करते हुए , ऊपरी भाग में इस दृश्य का एक स्टैच्यू है
पाकिस्तानी सेना के कमांडर (पूर्वी कमान) लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी, भारतीय सेना के जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के साथ आत्मसमर्पण के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करते हुए , ऊपरी भाग में इस दृश्य का एक स्टैच्यू है (ETV Bharat via Liberation War Museum)

नेशनलिस्ट नेरेटिव में 'रजाकार' शब्द का अत्यधिक उपयोग केवल देश के कुछ विपक्षी सदस्यों को नीचा दिखाने के लिए किया गया, जिसका हसीना सरकार के लिए हाल ही में हुए छात्र विरोध प्रदर्शनों में उल्टा असर हुआ. उन्होंने इस अपमानजनक शब्द का क्रेडिट सड़कों पर विरोध कर रहे छात्रों को दिया, जो मुक्ति संग्राम की भयावहता वाली तस्वीरें देखकर बड़े हुए हैं. वे अपने पूरे जीवन में इस शब्द 'रजाकार' से सावधान रहे थे. इसलिए, वे अपमानजनक शब्द को पचा नहीं पाए.

स्वतंत्रता संग्राम के स्मारक किए जा सकते हैं नष्ट
इस बात की संभावना है कि हसीना के निष्कासन के बाद हाल ही में हुए विरोध प्रदर्शन और नेतृत्व में बदलाव के कारण मुजीबुर के स्वतंत्रता संग्राम और इस दौरान किए गए बलिदानों को याद करने वाले हर स्मारक को नष्ट कर दिया जाए. राष्ट्र के निर्माण में भारत के योगदान के बीच एक महत्वपूर्ण स्थायी कड़ी हसीना की पार्टी (अवामी लीग) थी जो वर्तमान संदर्भ में अस्तित्व के संकट का सामना कर रही है. इसलिए, बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम में भारत की भागीदारी के प्रतीक भी खतरे में हैं.

नौकरी कोटा के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों से उभरे युवा नेतृत्व ने पुरानी कहानियों को खारिज कर दिया है और प्रदर्शनकारियों को संस्थापक की स्टैच्यू को ध्वस्त करते हुए भी देखा गया है. यह शेख हसीना के परिवार से जुड़ी हर चीज से विरोध करने वाले युवाओं की नफरत को दर्शाता है. शेख हसीना स्वतंत्रता संग्राम के लिए भारतीय समर्थन का पर्याय हैं क्योंकि भारत ने इस परिवार से जुड़ी पार्टी में निवेश किया है.

पाकिस्तानी सेना के कमांडर (पूर्वी कमान) लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी, भारतीय सेना के जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के साथ आत्मसमर्पण के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करते हुए.
पाकिस्तानी सेना के कमांडर (पूर्वी कमान) लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी, भारतीय सेना के जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के साथ आत्मसमर्पण के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करते हुए. ((ETV Bharat via Liberation War Museum))

हम वास्तव में इतिहास को फिर से लिखते और बनाते हुए देख रहे हैं, ताकि पिछले इतिहास को पीछे छोड़ दिया जाए. जमीन पर इस बड़े बदलाव को देखकर उन लोगों का दिल बैठ जाएगा, जिन्होंने देश के लिए बलिदान दिया है. वहीं, भारत को एक उद्धारकर्ता के रूप में अपनी स्थिति को फिर से स्थापित करने में बहुत चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि कुछ लोग भारतीय टेलीविजन चैनलों द्वारा प्रदर्शनकारियों पर सांप्रदायिक दंगे भड़काने का आरोप लगाने के बाद देश को बहिष्कृत मानते हैं.

भारत को बदलनी पड़ सकती है विदेश नीति
भारत की विदेश नीति में बदलाव की जरूरत हो सकती है. खास तौर पर हसीना के अमेरिका और ब्रिटेन में शरण लेने के लिए उनके दरवाजे बंद किए जाने के बाद क्या भारत नई सरकार के बजाय हसीना का समर्थन करके सही फैसला कर रहा है? नई अंतरिम सरकार के साथ भारत को ऐसे रास्ते बनाने होंगे, जिससे दोनों देशों के बीच दशकों से चली आ रही दोस्ताना बातचीत का बिना रुकावट जारी रहे.

इस बात की काफी संभावना है कि ढाका एक अलग रास्ता अपनाए, जो भारत के लिए उपयुक्त न हो, क्योंकि देश में चीन का प्रभाव बढ़ सकता है. नई पीढ़ी विरोध प्रदर्शनों के बाद दीवार पर लिखी बातों को ज़्यादा याद रखेगी और 1971 के युद्ध की कहानियों को पीछे छोड़ देगी. हाल ही में हुए विद्रोह के परिणामस्वरूप नजरिया बदल गया है और नेतृत्व के एक नए चरण ने अपने पूर्वजों की प्रतिष्ठा को पूरी तरह से नष्ट कर दिया है. यह उन परिवारों (कोटा लाभार्थियों) मुक्ति भैनी (बांग्लादेश में लोग उन्हें मुक्ति झोड़ा कहते हैं) के खिलाफ एक तरह का विरोध था, जिन्हें उनके बलिदानों के लिए सम्मानित किया गया था और भारत द्वारा समर्थित राष्ट्रीय नायक के रूप में सेवा की थी.

भारत ने पश्चिमी पाकिस्तान की सेना के खिलाफ लड़ाई में मुक्ति भैनी को सहायता प्रदान की. भारत के दृष्टिकोण को नकारना और मुक्ति संग्राम के प्रतीकों को पूरी तरह से इनकार करना ही उनके खिलाफ प्रतिरोध की परिभाषा है.

दोस्त-दुश्मन, देशभक्त और दुश्मनों के लिए विशेषण मुक्ति भैनी और रजाकार थे. हसीना के 'रजाकार' देश चला रहे हैं और उन्होंने पूरे परिदृश्य को बदल दिया है. यह अवामी लीग के लिए एक झटका था, क्योंकि वे अचानक पकड़े गए और विरोध करने वाले युवाओं के लिए अपमानजनक भाषा का उपयोग करने के अपने दुस्साहस के परिणामों का अनुमान नहीं लगा सके. सरकार और पार्टी दोनों ने इस बात की बड़ी कीमत चुकाई कि वे यह मानकर संतुष्ट हो गए कि देश में हर चीज पर उनका पूरा नियंत्रण है.

श्रीलंका के बाद बांग्लादेश एशिया का दूसरा ऐसा देश बन गया है, जहां सत्तारूढ़ पार्टी के परिवार को देश छोड़कर भागना पड़ा. यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस से बात करने के बाद बांग्लादेश में स्थिति कैसी होती है, जिन्होंने प्रधानमंत्री को आश्वासन दिया कि देश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की जाएगी.

यह भी पढ़ें- बांग्लादेश से सुरक्षित कैसे बाहर निकलीं शेख हसीना, क्या उनकी जान बख्शने के लिए हुआ था कोई समझौता?

हैदराबाद: बांग्लादेश में अंतरिम सरकार बन चुकी है, लेकिन यह सवाल अभी भी बना हुआ है कि क्या नई सरकार देश के युद्ध स्मारकों का सम्मान करेगी? ये स्मारक शेख हसीना के पिता और बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान के योगदान का प्रमाण हैं. बांग्लादेश के ढाका स्थित मुक्ति संग्राम म्यूजियम में मुक्ति संग्राम की जो तस्वीरें हैं, उनमें शेख मुजीबुर रहमान और भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की एक तस्वीर भी शामिल है.

बांग्लादेश लिबरेशन वॉर म्यूजियम का सामने का हिस्सा.
बांग्लादेश लिबरेशन वॉर म्यूजियम का सामने का हिस्सा. (ETV Bharat via Liberation War Museum)

म्यूजियम की वेबसाइट के होमपेज पर शेख मुजीबुर रहमान का कथन भी लिखा है, "ग्रेट थिंग्स आर अचीव थ्रू ग्रेट सेक्रीफाइसिस". यानी बडे़ बलिदान के माध्यम से बड़ी चीजें हासिल की जाती हैं. यह म्यूजियम उन प्रमुख संस्थानों में से एक है, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मुक्ति संग्राम के दौरान भारत-बांग्लादेश के सौहार्द की कहानियां अगली पीढ़ी को बताई जाएं. छात्र और पर्यटक म्यूजियम में जाकर वह तस्वीरें देखें, जिसमें युद्ध के समय बांग्ला भाषी लोगों के खिलाफ पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों को दिखाया गया है.

शेख मुजीबुर रहमान के 'कोट' को दिखाने वाली संग्रहालय की वेबसाइट का स्क्रीनशॉट
शेख मुजीबुर रहमान के 'कोट' को दिखाने वाली संग्रहालय की वेबसाइट का स्क्रीनशॉट (ETV Bharat via Liberation War Museum)

उस समय पश्चिमी पाकिस्तान के नियंत्रण के खिलाफ विद्रोह को बढ़ावा देने के लिए, इस तस्वीरों में भारत के दोस्ताना चेहरे को भी दिखाया गया है. यह तस्वीरें राज्य पर भाषा विशेष राष्ट्रवाद को उजागर करती हैं, जिसने अपने संविधान में इस्लाम को अपने धर्म के रूप में उल्लेख किया है. यह पश्चिमी पाकिस्तान से बांग्लादेश की आजादी के लिए भारत के भारी समर्थन को भी दिखाती हैं.

इस म्यूजियम के सेल्युलाइड डिस्पले से फ्यूचर जनरेशन को भारत और स्वतंत्रता संग्राम में उसकी भागीदारी के बारे में पर्याप्त जानकारी मिलेगी. मुक्ति संग्राम की तस्वीरें जो पश्चिमी पाकिस्तान की सेना के खिलाफ मुजीबुर और उनके साथियों के लिए भारत के अटूट समर्थन को दर्शाती है, एक सम्मोहक कहानी थी जिसने भारत के बारे में बांग्लादेशी लोगों की धारणा को मजबूत किया.

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और शेख मुजीबुर रहमान 2 मार्च, 1972 को ढाका में मित्रता, सहयोग और शांति की संधि पर हस्ताक्षर करते हुए
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और शेख मुजीबुर रहमान 2 मार्च, 1972 को ढाका में मित्रता, सहयोग और शांति की संधि पर हस्ताक्षर करते हुए (ETV Bharat via Bangladesh High Commission)

क्यों बनाया गया म्यूजियम?
म्यूजियम की स्थापना के पीछे का विचार था कि यहां विजिटर्स को वे तस्वीरें दिखाई जा सकें, जो लोगों के मन में मुक्ति संग्राम की यादों को उकेर दें. संस्था की स्थापना का एक कारण यह याद रखना भी था कि संघर्ष के दौरान लोगों ने क्या बलिदान दिए. इसकी स्थापना मुख्य रूप से आने वाली जनरेशन को युद्ध के दौरान क्या हुआ और लोगों ने किस तरह से दमन और अत्याचारों का सामना किया, इसकी जानकारी देने के लिए की गई थी.

अब जबकि हसीना सत्ता से बाहर हो गई हैं, उनके जैसे लोग इस बात पर विचार कर रहे होंगे कि यह सब कैसे हुआ. जो भी वे ही थे जिन्होंने अपनी खुद की कहानी लिखी और साहित्य और तस्वीरों के माध्यम से इसे जनता के सामने उजागर किया. उनका उद्देश्य 'रजाकारों' की अवधारणा को फिर से पेश करने और मजबूत करने का विचार, जिन पर जासूसी और पाकिस्तानी सेना के समर्थन के माध्यम से बांग्ला भाषी लोगों पर अत्याचार करने का आरोप है, बांग्ला राष्ट्रवाद को जीवित रखने के लिए था.

पाकिस्तानी सेना के कमांडर (पूर्वी कमान) लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी, भारतीय सेना के जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के साथ आत्मसमर्पण के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करते हुए , ऊपरी भाग में इस दृश्य का एक स्टैच्यू है
पाकिस्तानी सेना के कमांडर (पूर्वी कमान) लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी, भारतीय सेना के जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के साथ आत्मसमर्पण के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करते हुए , ऊपरी भाग में इस दृश्य का एक स्टैच्यू है (ETV Bharat via Liberation War Museum)

नेशनलिस्ट नेरेटिव में 'रजाकार' शब्द का अत्यधिक उपयोग केवल देश के कुछ विपक्षी सदस्यों को नीचा दिखाने के लिए किया गया, जिसका हसीना सरकार के लिए हाल ही में हुए छात्र विरोध प्रदर्शनों में उल्टा असर हुआ. उन्होंने इस अपमानजनक शब्द का क्रेडिट सड़कों पर विरोध कर रहे छात्रों को दिया, जो मुक्ति संग्राम की भयावहता वाली तस्वीरें देखकर बड़े हुए हैं. वे अपने पूरे जीवन में इस शब्द 'रजाकार' से सावधान रहे थे. इसलिए, वे अपमानजनक शब्द को पचा नहीं पाए.

स्वतंत्रता संग्राम के स्मारक किए जा सकते हैं नष्ट
इस बात की संभावना है कि हसीना के निष्कासन के बाद हाल ही में हुए विरोध प्रदर्शन और नेतृत्व में बदलाव के कारण मुजीबुर के स्वतंत्रता संग्राम और इस दौरान किए गए बलिदानों को याद करने वाले हर स्मारक को नष्ट कर दिया जाए. राष्ट्र के निर्माण में भारत के योगदान के बीच एक महत्वपूर्ण स्थायी कड़ी हसीना की पार्टी (अवामी लीग) थी जो वर्तमान संदर्भ में अस्तित्व के संकट का सामना कर रही है. इसलिए, बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम में भारत की भागीदारी के प्रतीक भी खतरे में हैं.

नौकरी कोटा के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों से उभरे युवा नेतृत्व ने पुरानी कहानियों को खारिज कर दिया है और प्रदर्शनकारियों को संस्थापक की स्टैच्यू को ध्वस्त करते हुए भी देखा गया है. यह शेख हसीना के परिवार से जुड़ी हर चीज से विरोध करने वाले युवाओं की नफरत को दर्शाता है. शेख हसीना स्वतंत्रता संग्राम के लिए भारतीय समर्थन का पर्याय हैं क्योंकि भारत ने इस परिवार से जुड़ी पार्टी में निवेश किया है.

पाकिस्तानी सेना के कमांडर (पूर्वी कमान) लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी, भारतीय सेना के जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के साथ आत्मसमर्पण के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करते हुए.
पाकिस्तानी सेना के कमांडर (पूर्वी कमान) लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी, भारतीय सेना के जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के साथ आत्मसमर्पण के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करते हुए. ((ETV Bharat via Liberation War Museum))

हम वास्तव में इतिहास को फिर से लिखते और बनाते हुए देख रहे हैं, ताकि पिछले इतिहास को पीछे छोड़ दिया जाए. जमीन पर इस बड़े बदलाव को देखकर उन लोगों का दिल बैठ जाएगा, जिन्होंने देश के लिए बलिदान दिया है. वहीं, भारत को एक उद्धारकर्ता के रूप में अपनी स्थिति को फिर से स्थापित करने में बहुत चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि कुछ लोग भारतीय टेलीविजन चैनलों द्वारा प्रदर्शनकारियों पर सांप्रदायिक दंगे भड़काने का आरोप लगाने के बाद देश को बहिष्कृत मानते हैं.

भारत को बदलनी पड़ सकती है विदेश नीति
भारत की विदेश नीति में बदलाव की जरूरत हो सकती है. खास तौर पर हसीना के अमेरिका और ब्रिटेन में शरण लेने के लिए उनके दरवाजे बंद किए जाने के बाद क्या भारत नई सरकार के बजाय हसीना का समर्थन करके सही फैसला कर रहा है? नई अंतरिम सरकार के साथ भारत को ऐसे रास्ते बनाने होंगे, जिससे दोनों देशों के बीच दशकों से चली आ रही दोस्ताना बातचीत का बिना रुकावट जारी रहे.

इस बात की काफी संभावना है कि ढाका एक अलग रास्ता अपनाए, जो भारत के लिए उपयुक्त न हो, क्योंकि देश में चीन का प्रभाव बढ़ सकता है. नई पीढ़ी विरोध प्रदर्शनों के बाद दीवार पर लिखी बातों को ज़्यादा याद रखेगी और 1971 के युद्ध की कहानियों को पीछे छोड़ देगी. हाल ही में हुए विद्रोह के परिणामस्वरूप नजरिया बदल गया है और नेतृत्व के एक नए चरण ने अपने पूर्वजों की प्रतिष्ठा को पूरी तरह से नष्ट कर दिया है. यह उन परिवारों (कोटा लाभार्थियों) मुक्ति भैनी (बांग्लादेश में लोग उन्हें मुक्ति झोड़ा कहते हैं) के खिलाफ एक तरह का विरोध था, जिन्हें उनके बलिदानों के लिए सम्मानित किया गया था और भारत द्वारा समर्थित राष्ट्रीय नायक के रूप में सेवा की थी.

भारत ने पश्चिमी पाकिस्तान की सेना के खिलाफ लड़ाई में मुक्ति भैनी को सहायता प्रदान की. भारत के दृष्टिकोण को नकारना और मुक्ति संग्राम के प्रतीकों को पूरी तरह से इनकार करना ही उनके खिलाफ प्रतिरोध की परिभाषा है.

दोस्त-दुश्मन, देशभक्त और दुश्मनों के लिए विशेषण मुक्ति भैनी और रजाकार थे. हसीना के 'रजाकार' देश चला रहे हैं और उन्होंने पूरे परिदृश्य को बदल दिया है. यह अवामी लीग के लिए एक झटका था, क्योंकि वे अचानक पकड़े गए और विरोध करने वाले युवाओं के लिए अपमानजनक भाषा का उपयोग करने के अपने दुस्साहस के परिणामों का अनुमान नहीं लगा सके. सरकार और पार्टी दोनों ने इस बात की बड़ी कीमत चुकाई कि वे यह मानकर संतुष्ट हो गए कि देश में हर चीज पर उनका पूरा नियंत्रण है.

श्रीलंका के बाद बांग्लादेश एशिया का दूसरा ऐसा देश बन गया है, जहां सत्तारूढ़ पार्टी के परिवार को देश छोड़कर भागना पड़ा. यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस से बात करने के बाद बांग्लादेश में स्थिति कैसी होती है, जिन्होंने प्रधानमंत्री को आश्वासन दिया कि देश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की जाएगी.

यह भी पढ़ें- बांग्लादेश से सुरक्षित कैसे बाहर निकलीं शेख हसीना, क्या उनकी जान बख्शने के लिए हुआ था कोई समझौता?

Last Updated : Aug 20, 2024, 3:51 PM IST
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