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आसियान बैठक से पहले जयशंकर के साथ असम सीएम की बैठक क्यों महत्वपूर्ण है? - ASEAN Foreign Ministers Meetings

ASEAN Foreign Ministers Meetings: इस साल के आसियान विदेश मंत्रियों की वार्षिक बैठक में भाग लेने के लिए लाओस जाने से पहले विदेश मंत्री एस जयशंकर ने असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा से मुलाकात की. बैठक के दौरान सरमा ने दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के बीच असम को इंवेस्टमेंट डेस्टिनेशन के रूप में बढ़ावा देने पर चर्चा की.

विदेश मंत्री एस जयशंकर
विदेश मंत्री एस जयशंकर (ANI)
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By Aroonim Bhuyan

Published : Jul 25, 2024, 1:16 PM IST

नई दिल्ली: दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (ASEAN) के तहत इस साल होने वाली विदेश मंत्रियों की बैठक के लिए एस जयशंकर के लाओस के विएंतियाने रवाना होंगे. लाओस की यात्रा से पहले असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की उनके साथ बैठक हुई. इससे भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र द्वारा दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ संबंधों का महत्व पता चलता है.

मुलाकात के बाद जयशंकर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, "आज साउथ ब्लॉक में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा से मिलकर खुशी हुई. इस दौरान एक्ट ईस्ट और बिम्सटेक नीतियों पर चर्चा हुई और असम किस तरह से हमारे पड़ोसी पहले दृष्टिकोण में योगदान दे सकता है, इस पर भी चर्चा हुई."

सरमा ने कहा कि जयशंकर के साथ अपनी बैठक के दौरान दोनों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक्ट ईस्ट नीति को मजबूत करने के लिए असम के लिए एक रचनात्मक भूमिका पर विचार-विमर्श किया. अपने स्वयं के एक्स हैंडल पर लिखते हुए, सरमा ने कहा कि विदेशी निवेशकों को असम की विकास कहानी का हिस्सा बनने के लिए प्रोत्साहित करने और हमारे राज्य को दक्षिण पूर्व एशिया के लिए एक पसंदीदा प्रवेश द्वार के रूप में मजबूती से स्थापित करने की संभावनाएं चर्चा में शामिल थीं.

एक्ट ईस्ट नीति के 10 साल
अपनी यात्रा के दौरान जयशंकर भारत, पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (EAS) और आसियान क्षेत्रीय मंच (ARF) के विदेश मंत्रियों की बैठकों में भाग लेंगे. विदेश मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि यह यात्रा आसियान-केंद्रित क्षेत्रीय वास्तुकला के साथ भारत की गहरी भागीदारी और भारत द्वारा दिए जाने वाले महत्व, आसियान एकता, आसियान केंद्रीयता, इंडो-पैसिफिक (AOIP) पर आसियान दृष्टिकोण और आसियान-भारत व्यापक रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ाने के लिए हमारी मजबूत प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है. इस साल भारत की एक्ट ईस्ट नीति का एक दशक पूरा कर रहा है, जिसकी घोषणा प्रधानमंत्री ने 2014 में 9वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में की थी.

भारत-आसियान संबंधों के संदर्भ में पूर्वोत्तर का क्या महत्व है?
एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत पूर्वोत्तर, जो आसियान क्षेत्र के साथ ऐतिहासिक और पारंपरिक संबंध साझा करता है, को दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ भारत की बढ़ती भागीदारी के लिए स्प्रिंगबोर्ड के रूप में देखा जाता है. भारत सरकार और आसियान दोनों का इरादा नई दिल्ली और 10-राष्ट्र ब्लॉक के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के लिए पूर्वोत्तर में अवसरों का पता लगाना है.

पूर्वोत्तर वह क्षेत्र है जो आसियान देशों के सबसे निकट भौगोलिक निकटता में है. वास्तव में, नई दिल्ली ने 1990 के दशक की शुरुआत में लुक ईस्ट पॉलिसी और 2014 में एक्ट ईस्ट पॉलिसी तैयार की, ताकि इस भौगोलिक निकटता का लाभ उठाया जा सके.

इस साल मई में, जब आसियान-भारत वस्तु व्यापार समझौते (AITIGA) की समीक्षा के लिए चौथी संयुक्त समिति की बैठक मलेशिया के पुत्रजया में आयोजित की गई थी, तो फिर से इस बात पर ध्यान केंद्रित किया गया कि भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र इस संबंध में क्या भूमिका निभा सकता है.

बता दें कि AITIGA आसियान और भारत के बीच एक व्यापक व्यापार समझौता है, जिसका उद्देश्य द्विपक्षीय व्यापार और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना है. एग्रीमेंट के लिए बातचीत 2003 में शुरू हुई और 2009 में संपन्न हुई, जिसके बाद यह समझौता 1 जनवरी, 2010 को लागू हुआ. AITIGA का एक मुख्य उद्देश्य आसियान सदस्य देशों और भारत के बीच व्यापार किए जाने वाले सामानों पर टैरिफ को कम करना और अंततः समाप्त करना है.

समझौते के तहत दोनों पक्षों ने निर्दिष्ट अवधि में उत्पादों की एक डिटेल सीरीज पर टैरिफ को धीरे-धीरे कम करने की प्रतिबद्धता जताई है. इन उपायों में सीमा शुल्क प्रक्रियाओं को सरल बनाना, पारदर्शिता बढ़ाना और व्यापार में गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करना शामिल है, जिससे व्यवसायों के लिए क्रॉस बॉर्डर ट्रेड में शामिल होना आसान और अधिक लागत प्रभावी हो जाता है.

भारत-आसियान संबंधों और व्यापार में अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में पूर्वोत्तर के सामने क्या चुनौतियां हैं?
आसियान भारत के प्रमुख व्यापार भागीदारों में से एक है, जिसकी भारत के वैश्विक व्यापार में 11 प्रतिशत की हिस्सेदारी है. हालांकि, तथ्य यह है कि भारत और आसियान के बीच द्विपक्षीय आर्थिक और राजनीतिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए पूर्वोत्तर की क्षमता का अभी तक दोहन नहीं किया गया है.

उदाहरण के लिए,2023-24 में भारत-आसियान द्विपक्षीय व्यापार 122.67 बिलियन डॉलर था, लेकिन पूर्वोत्तर में इसकी भागेदारी केवल पांच प्रतिशत थी. बाकी व्यापार भारत के अन्य हिस्सों के राज्यों से हुआ.

सदी के आरंभ से लेकर 2000 के दशक तक आसियान के अनेक राजनयिक और व्यापारिक प्रतिनिधिमंडलों ने पूर्वोत्तर का दौरा किया. इसके बावजूद क्षेत्र में व्यापार और निवेश के अवसरों का पता लगाने के लिए, शासन, व्यापार में आसानी, संपर्क और सुरक्षा जैसी चुनौतियां उन्हें इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने से रोकती रही हैं.

आसियान ने पाया कि पूर्वोत्तर राज्यों में भ्रष्टाचार, एफिशिएंसी, जवाबदेही और परियोजनाओं के कार्यान्वयन की मनॉनिटरिंग जैसे मुद्दों को संभालने के लिए संस्थागत तंत्र खराब है. असम के मुख्य शहर गुवाहाटी को छोड़कर, क्षेत्र के अन्य राज्यों ने ऐसी व्यवस्थाएं नहीं हैं या ऐसा माहौल नहीं है जो व्यापार को आसान बनाने के लिए अनुकूल हो. यहां, बुनियादी ढांचे का मुद्दा भी ध्यान में आता है. भारत के अन्य हिस्सों की तुलना में इस क्षेत्र में बुनियादी ढांचा बहुत खराब है.

कनेक्टिविटी के मामले में, हालांकि पूर्वोत्तर दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ निकटता में है, म्यांमार में अंतहीन राजनीतिक उथल-पुथल के कारण भूमि संपर्क अभी तक साकार नहीं हो पाया है. मणिपुर में मोरेह और थाईलैंड में माई सोत को जोड़ने वाली 1,360 किलोमीटर लंबी भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग परियोजना म्यांमार की स्थिति के कारण लंबे समय से विलंबित है. तीनों देशों में सड़क खंडों के उन्नयन पर वास्तविक निर्माण कार्य 2012 के आसपास शुरू हुआ. हालांकि, म्यांमार में राजनीतिक अस्थिरता और नागरिक अशांति के कारण, 30 प्रतिशत काम अभी भी पूरा होना बाकी है.

अभी तक भारत और आसियान देशों के बीच व्यापार मुख्य रूप से समुद्री और हवाई मार्गों के माध्यम से हो रहा है, लेकिन पूर्वोत्तर और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच जमीनी संपर्क में आसियान देशों की अधिक रुचि है, क्योंकि तब यह एक परमानेंट फीचर बन जाएगा.

भारत-आसियान संबंधों को बढ़ावा देने के लिए पूर्वोत्तर में कितनी क्षमता है?
पूर्वोत्तर की सबसे बड़ी क्षमता इसके प्राकृतिक संसाधन हैं. उत्पादों के संदर्भ में पूर्वोत्तर से प्राइमरी गुड्स का निर्यात किया जा सकता है, न कि निर्मित वस्तुओं का, क्योंकि इस क्षेत्र में उद्योग बहुत कम हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, आसियान राष्ट्र कृषि आधारित उद्योगों में रुचि रखते हैं, क्योंकि यह क्षेत्र ओर्गेनिक फलों और सब्जियों से समृद्ध है.

एक अन्य क्षेत्र पर्यटन है. पूर्वोत्तर भारत और दक्षिण पूर्व एशिया ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक (बौद्ध) संबंध शेयर करते हैं. आसियान देश आतिथ्य क्षेत्र में निवेश कर सकते हैं. पूर्वोत्तर में मानव संसाधन एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें निवेश करके आसियान राष्ट्र लाभ उठा सकते हैं.

इस क्षेत्र के युवाओं को क्षमता निर्माण और कौशल विकास के लिए प्रशिक्षण दिया जा सकता है. फिर वे प्रवासी मजदूरो के रूप में दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में जा सकते हैं. विशेषज्ञों का मानना ​​है कि आसियान सदस्य देश पूर्वोत्तर में बांस आधारित उत्पादों के विनिर्माण जैसे छोटे और मध्यम उद्यमों (एसएमई) में भी निवेश कर सकते हैं.

अब यह देखना बाकी है कि जयशंकर लाओस में आसियान देशों के अपने समकक्षों के साथ विचार-विमर्श के दौरान इस एजेंडे को कितनी दूर तक आगे बढ़ा पाते हैं.

यह भी पढ़ें- जेडी वेंस को लेकर ट्रंप की निराशजनक पोस्ट, रिपब्लिकन पार्टी के भविष्य का संकेत

नई दिल्ली: दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (ASEAN) के तहत इस साल होने वाली विदेश मंत्रियों की बैठक के लिए एस जयशंकर के लाओस के विएंतियाने रवाना होंगे. लाओस की यात्रा से पहले असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की उनके साथ बैठक हुई. इससे भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र द्वारा दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ संबंधों का महत्व पता चलता है.

मुलाकात के बाद जयशंकर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, "आज साउथ ब्लॉक में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा से मिलकर खुशी हुई. इस दौरान एक्ट ईस्ट और बिम्सटेक नीतियों पर चर्चा हुई और असम किस तरह से हमारे पड़ोसी पहले दृष्टिकोण में योगदान दे सकता है, इस पर भी चर्चा हुई."

सरमा ने कहा कि जयशंकर के साथ अपनी बैठक के दौरान दोनों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक्ट ईस्ट नीति को मजबूत करने के लिए असम के लिए एक रचनात्मक भूमिका पर विचार-विमर्श किया. अपने स्वयं के एक्स हैंडल पर लिखते हुए, सरमा ने कहा कि विदेशी निवेशकों को असम की विकास कहानी का हिस्सा बनने के लिए प्रोत्साहित करने और हमारे राज्य को दक्षिण पूर्व एशिया के लिए एक पसंदीदा प्रवेश द्वार के रूप में मजबूती से स्थापित करने की संभावनाएं चर्चा में शामिल थीं.

एक्ट ईस्ट नीति के 10 साल
अपनी यात्रा के दौरान जयशंकर भारत, पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (EAS) और आसियान क्षेत्रीय मंच (ARF) के विदेश मंत्रियों की बैठकों में भाग लेंगे. विदेश मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि यह यात्रा आसियान-केंद्रित क्षेत्रीय वास्तुकला के साथ भारत की गहरी भागीदारी और भारत द्वारा दिए जाने वाले महत्व, आसियान एकता, आसियान केंद्रीयता, इंडो-पैसिफिक (AOIP) पर आसियान दृष्टिकोण और आसियान-भारत व्यापक रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ाने के लिए हमारी मजबूत प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है. इस साल भारत की एक्ट ईस्ट नीति का एक दशक पूरा कर रहा है, जिसकी घोषणा प्रधानमंत्री ने 2014 में 9वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में की थी.

भारत-आसियान संबंधों के संदर्भ में पूर्वोत्तर का क्या महत्व है?
एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत पूर्वोत्तर, जो आसियान क्षेत्र के साथ ऐतिहासिक और पारंपरिक संबंध साझा करता है, को दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ भारत की बढ़ती भागीदारी के लिए स्प्रिंगबोर्ड के रूप में देखा जाता है. भारत सरकार और आसियान दोनों का इरादा नई दिल्ली और 10-राष्ट्र ब्लॉक के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के लिए पूर्वोत्तर में अवसरों का पता लगाना है.

पूर्वोत्तर वह क्षेत्र है जो आसियान देशों के सबसे निकट भौगोलिक निकटता में है. वास्तव में, नई दिल्ली ने 1990 के दशक की शुरुआत में लुक ईस्ट पॉलिसी और 2014 में एक्ट ईस्ट पॉलिसी तैयार की, ताकि इस भौगोलिक निकटता का लाभ उठाया जा सके.

इस साल मई में, जब आसियान-भारत वस्तु व्यापार समझौते (AITIGA) की समीक्षा के लिए चौथी संयुक्त समिति की बैठक मलेशिया के पुत्रजया में आयोजित की गई थी, तो फिर से इस बात पर ध्यान केंद्रित किया गया कि भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र इस संबंध में क्या भूमिका निभा सकता है.

बता दें कि AITIGA आसियान और भारत के बीच एक व्यापक व्यापार समझौता है, जिसका उद्देश्य द्विपक्षीय व्यापार और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना है. एग्रीमेंट के लिए बातचीत 2003 में शुरू हुई और 2009 में संपन्न हुई, जिसके बाद यह समझौता 1 जनवरी, 2010 को लागू हुआ. AITIGA का एक मुख्य उद्देश्य आसियान सदस्य देशों और भारत के बीच व्यापार किए जाने वाले सामानों पर टैरिफ को कम करना और अंततः समाप्त करना है.

समझौते के तहत दोनों पक्षों ने निर्दिष्ट अवधि में उत्पादों की एक डिटेल सीरीज पर टैरिफ को धीरे-धीरे कम करने की प्रतिबद्धता जताई है. इन उपायों में सीमा शुल्क प्रक्रियाओं को सरल बनाना, पारदर्शिता बढ़ाना और व्यापार में गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करना शामिल है, जिससे व्यवसायों के लिए क्रॉस बॉर्डर ट्रेड में शामिल होना आसान और अधिक लागत प्रभावी हो जाता है.

भारत-आसियान संबंधों और व्यापार में अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में पूर्वोत्तर के सामने क्या चुनौतियां हैं?
आसियान भारत के प्रमुख व्यापार भागीदारों में से एक है, जिसकी भारत के वैश्विक व्यापार में 11 प्रतिशत की हिस्सेदारी है. हालांकि, तथ्य यह है कि भारत और आसियान के बीच द्विपक्षीय आर्थिक और राजनीतिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए पूर्वोत्तर की क्षमता का अभी तक दोहन नहीं किया गया है.

उदाहरण के लिए,2023-24 में भारत-आसियान द्विपक्षीय व्यापार 122.67 बिलियन डॉलर था, लेकिन पूर्वोत्तर में इसकी भागेदारी केवल पांच प्रतिशत थी. बाकी व्यापार भारत के अन्य हिस्सों के राज्यों से हुआ.

सदी के आरंभ से लेकर 2000 के दशक तक आसियान के अनेक राजनयिक और व्यापारिक प्रतिनिधिमंडलों ने पूर्वोत्तर का दौरा किया. इसके बावजूद क्षेत्र में व्यापार और निवेश के अवसरों का पता लगाने के लिए, शासन, व्यापार में आसानी, संपर्क और सुरक्षा जैसी चुनौतियां उन्हें इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने से रोकती रही हैं.

आसियान ने पाया कि पूर्वोत्तर राज्यों में भ्रष्टाचार, एफिशिएंसी, जवाबदेही और परियोजनाओं के कार्यान्वयन की मनॉनिटरिंग जैसे मुद्दों को संभालने के लिए संस्थागत तंत्र खराब है. असम के मुख्य शहर गुवाहाटी को छोड़कर, क्षेत्र के अन्य राज्यों ने ऐसी व्यवस्थाएं नहीं हैं या ऐसा माहौल नहीं है जो व्यापार को आसान बनाने के लिए अनुकूल हो. यहां, बुनियादी ढांचे का मुद्दा भी ध्यान में आता है. भारत के अन्य हिस्सों की तुलना में इस क्षेत्र में बुनियादी ढांचा बहुत खराब है.

कनेक्टिविटी के मामले में, हालांकि पूर्वोत्तर दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ निकटता में है, म्यांमार में अंतहीन राजनीतिक उथल-पुथल के कारण भूमि संपर्क अभी तक साकार नहीं हो पाया है. मणिपुर में मोरेह और थाईलैंड में माई सोत को जोड़ने वाली 1,360 किलोमीटर लंबी भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग परियोजना म्यांमार की स्थिति के कारण लंबे समय से विलंबित है. तीनों देशों में सड़क खंडों के उन्नयन पर वास्तविक निर्माण कार्य 2012 के आसपास शुरू हुआ. हालांकि, म्यांमार में राजनीतिक अस्थिरता और नागरिक अशांति के कारण, 30 प्रतिशत काम अभी भी पूरा होना बाकी है.

अभी तक भारत और आसियान देशों के बीच व्यापार मुख्य रूप से समुद्री और हवाई मार्गों के माध्यम से हो रहा है, लेकिन पूर्वोत्तर और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच जमीनी संपर्क में आसियान देशों की अधिक रुचि है, क्योंकि तब यह एक परमानेंट फीचर बन जाएगा.

भारत-आसियान संबंधों को बढ़ावा देने के लिए पूर्वोत्तर में कितनी क्षमता है?
पूर्वोत्तर की सबसे बड़ी क्षमता इसके प्राकृतिक संसाधन हैं. उत्पादों के संदर्भ में पूर्वोत्तर से प्राइमरी गुड्स का निर्यात किया जा सकता है, न कि निर्मित वस्तुओं का, क्योंकि इस क्षेत्र में उद्योग बहुत कम हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, आसियान राष्ट्र कृषि आधारित उद्योगों में रुचि रखते हैं, क्योंकि यह क्षेत्र ओर्गेनिक फलों और सब्जियों से समृद्ध है.

एक अन्य क्षेत्र पर्यटन है. पूर्वोत्तर भारत और दक्षिण पूर्व एशिया ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक (बौद्ध) संबंध शेयर करते हैं. आसियान देश आतिथ्य क्षेत्र में निवेश कर सकते हैं. पूर्वोत्तर में मानव संसाधन एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें निवेश करके आसियान राष्ट्र लाभ उठा सकते हैं.

इस क्षेत्र के युवाओं को क्षमता निर्माण और कौशल विकास के लिए प्रशिक्षण दिया जा सकता है. फिर वे प्रवासी मजदूरो के रूप में दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में जा सकते हैं. विशेषज्ञों का मानना ​​है कि आसियान सदस्य देश पूर्वोत्तर में बांस आधारित उत्पादों के विनिर्माण जैसे छोटे और मध्यम उद्यमों (एसएमई) में भी निवेश कर सकते हैं.

अब यह देखना बाकी है कि जयशंकर लाओस में आसियान देशों के अपने समकक्षों के साथ विचार-विमर्श के दौरान इस एजेंडे को कितनी दूर तक आगे बढ़ा पाते हैं.

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