न्यूयॉर्क : अमेरिका राष्ट्रपति चुनाव में प्रवासी भारतीयों की भूमिका काफी अहम है. अमेरिका में बसे भारतीयों की संख्या करीब 52 लाख है. ये वहां की आबादी के एक फीसदी से कुछ ही ज्यादा है.
हालांकि वोट देने वाले अमेरिकी भारतीयों की संख्या एक फीसदी से भी कम है. फिर भी डेमोक्रैट और रिपब्लिकन उम्मीदवार देश के दूसरे सबसे बड़े आप्रवासी समुदाय का समर्थन पाने की हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं.
इस संबंध में पीटीआई से बात करते हुए सीनियर भारतीय-अमेरिकी नेता स्वदेश चटर्जी ने कहा कि अगर 44 लाख भारतीय अमेरिकियों में सिर्फ 30 फीसदी को लें, तो कई लोग वोटर नहीं हैं. उन्हें वोट देने का अधिकार नहीं है. वे यहां के नागरिक नहीं हैं. इसलिए हम सिर्फ 12 लाख की बात करते हैं.
उन्होंने कहा कि अगर उनमें से ज्यादातर पोलिंग बूथ जाकर वोट देते हैं, तो बेहद करीबी चुनाव के नतीजों पर फर्क पड़ेगा. हम खास कर जॉर्जिया, नॉर्थ कैरोलिना, मिशिगन, विस्कॉन्सिन और पेंसिल्वेनिया में फर्क डाल सकते हैं.
वहीं अमेरिका के एक-तिहाई प्रवासी भारतीयों का जन्म वहीं हुआ है. वे कई सेक्टर में अहम भूमिका निभाते हैं. अमेरिका के विकास में भारतीय समुदाय का अहम योगदान है. खास कर मेडिकल, आईटी, साइंटिफिक रिसर्च, शिक्षा, पत्रकारिता और कॉर्पोरेट लीडरशिप में उनका योगदान महत्वपूर्ण है.
भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस. वाई. कुरैशी ने कहा कि हाल में भारतीय प्रवासी काफी ताकतवर हुए हैं. नंबर एक, उनकी समृद्धि के कारण जिन्होंने व्यापार और सर्विस सेक्टर में अच्छा योगदान दिया है. वे काफी अमीर हो गए हैं. उन्होंने कहा कि उनके पास धन बल है. वे राजनैतिक दलों को उदारता से दान देते हैं, प्रभावशाली सदस्य बन जाते हैं और चुनावों में हिस्सा लेते हैं.
बता दें कि भारतीय अमेरिकी वहां के कई छोटे-बड़े व्यवसायों के या तो मालिक हैं या उनका संचालन कर रोजगार पैदा कर रहे हैं. एशियाई अमेरिकियों में उनकी आय सबसे ज्यादा है। लिहाजा चुनाव में भारतीय प्रवासियों के वोट महत्वपूर्ण होंगे. नतीजा ये है कि चुनावी मौसम में भारतीय अमेरिकियों का समर्थन और वोट पाना डेमोक्रैट और रिपब्लिकन- दोनों का प्रमुख एजेंडा बन गया है.
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