नई दिल्ली : बांग्लादेश के प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे की मांग को लेकर छात्रों के नेतृत्व में शुरू हुआ यह आंदोलन व्यापक हिंसा में बदल गया है. पुलिस और सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पों में अब तक करीब कई लोग मारे जा चुके हैं. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने ढाका छोड़ दिया है. एएफपी न्यूज एजेंसी के अनुसार शेख हसीना और उनकी बहन गणभवन (प्रधानमंत्री का आधिकारिक निवास) छोड़कर सुरक्षित स्थान पर चली गई हैं. सेना ने भी इसकी पुष्टि कर दी है. पर यहां पर सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर बांग्लादेश में ऐसा क्या हुआ कि पीएम को पद छोड़ने की नौबत आ गई.
छात्रों का अंदोलन
कुछ महीने पहले छात्र विरोध जो शुरू में सिविल सर्विस जॉब्स में कोटा खत्म करने पर केंद्रित था, अब एक व्यापक सरकार विरोधी आंदोलन में बदल गया है. बांग्लादेश की सरकार ने नौकरियों में आरक्षण व्यवस्था की घोषणा की थी. छात्रों ने इस आरक्षण का विरोध किया. छात्रों ने तर्क दिया था कि मौजूदा कोटा प्रधानमंत्री शेख हसीना की सत्तारूढ़ पार्टी, अवामी लीग के वफादारों को अनुचित रूप से लाभ पहुंचाता है. प्रदर्शनकारियों ने हसीना की सरकार के प्रति व्यापक असंतोष व्यक्त किया, जिस पर उन्होंने निरंकुश प्रथाओं और असंतोष को दबाने का आरोप लगाया.
स्थिति तब अधिक गंभीर हो गई जब पूर्व सेना प्रमुख जनरल इकबाल करीम भुइयां ने विरोध प्रदर्शनों से निपटने के सरकार के तरीके की आलोचना की और सेना को वापस बुलाने का आह्वान किया. इसने प्रदर्शनकारियों के प्रति वर्तमान सेना प्रमुख के समर्थक रुख के साथ, अशांति को और बढ़ा दिया है.
लगातार हो रहे विरोध प्रदर्शनों से निराश हसीना ने इस साल 14 जुलाई को टिप्पणी करते हुए कहा था कि उनमें (प्रदर्शनकारियों में) स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति इतनी नाराजगी क्यों है? अगर स्वतंत्रता सेनानियों के पोते-पोतियों को कोटा का लाभ नहीं मिलना चाहिए, तो क्या रजाकारों के पोते-पोतियों को इसका लाभ मिलना चाहिए?
शेख हसीना की टिप्पणी के बढ़े प्रदर्शन
शेख हसीना की इस टिप्पणी ने कोटा विरोधी प्रदर्शनकारियों को उत्तेजित कर दिया. उसी रात, हजारों छात्रों ने ढाका विश्वविद्यालय परिसर और बांग्लादेश की राजधानी में मार्च किया. इस दौरान महिला छात्र बड़ी संख्या में प्रदर्शन में शामिल हुईं. गौरतबल है कि हसीना के पिता शेख मुजीबुर रहमान और उनकी अवामी लीग पार्टी मुक्ति संग्राम में सबसे आगे थी. कई लोगों का मानना है कि कोटा सिस्टम हसीना समर्थकों की मदद करता है और यही कारण है कि वह योग्यता आधारित भर्ती नीति के लिए इसे खत्म करने के लिए अनिच्छुक रही हैं.
क्यों शुरू हुए विरोध प्रदर्शन?
विरोध प्रदर्शनों की एक वजह भर्ती प्रणाली है, जिसे बांग्लादेश ने 1972 में पाकिस्तान से अपनी आजादी के तुरंत बाद अपनाया था. कोटा प्रणाली के तहत, बांग्लादेश के स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए 30 प्रतिशत सरकारी नौकरियां आरक्षित थीं. वहीं, वर्तमान में 56 प्रतिशत सरकारी नौकरियां आरक्षित हैं - जिसमें पिछड़े जिलों के आवेदकों के लिए 10 प्रतिशत, महिलाओं के लिए 10 प्रतिशत, जातीय अल्पसंख्यकों के लिए पांच प्रतिशत और शारीरिक रूप से विकलांग उम्मीदवारों के लिए एक प्रतिशत रिजर्वेशन शामिल है.
विरोध प्रदर्शनों की वर्तमान लहर जून के अंत में हाई कोर्ट के आदेश से शुरू हुई. युद्ध के दिग्गजों के बच्चों का प्रतिनिधित्व करने वाले याचिकाकर्ताओं ने 2021 में नौकरी कोटा खत्म करने के हसीना सरकार के आदेश को चुनौती दी थी. उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में युद्ध के दिग्गजों के वंशजों के लिए नौकरी कोटा बहाल कर दिया, जिससे तुरंत विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए.
सुप्रीम कोर्ट में होने वाली थी सुनवाई
10 जुलाई को बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को एक महीने के लिए स्थगित कर दिया. शीर्ष अदालत 7 अगस्त को मामले की सुनवाई करेगी. इसलिए, तकनीकी रूप से, युद्ध के दिग्गजों के बच्चों के लिए नौकरी का कोटा वर्तमान में बांग्लादेश में लागू नहीं है, लेकिन प्रदर्शनकारी हसीना सरकार से एक कार्यकारी आदेश की मांग कर रहे हैं जिसमें कहा गया है कि युद्ध के दिग्गजों की तीसरी पीढ़ी को पुरस्कृत करने की नीति को योग्यता-आधारित नियुक्ति प्रणाली द्वारा प्रतिस्थापित किया जाएगा. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बांग्लादेश में प्रति वर्ष लगभग 3,000 सरकारी नौकरियों के लिए लगभग 400,000 स्नातक नौकरी सर्च करते हैं.
बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था कर रही है संघर्ष
कोविड-19 महामारी के बाद बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था जिस संघर्ष से गुजर रही है, उसमें नौकरी पानी जटिल हो गया है. बांग्लादेश इस समय बढ़ती आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है, जो पिछले वर्षों की उसकी मजबूत विकास दर से बिल्कुल अलग है. कोविड-19 महामारी के बाद, रूस-यूक्रेन संघर्ष सहित वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के कारण देश को महत्वपूर्ण झटकों से जूझना पड़ रहा है.
देश की जीडीपी वृद्धि दर में उल्लेखनीय रूप से कमी आई है, जो वित्त वर्ष 2023 में 5.8 प्रतिशत पर आ गई है, जबकि 2022 में यह 7.1 प्रतिशत थी. जब 2018 में विरोध प्रदर्शन हो रहे थे, तब विकास दर 7.9 प्रतिशत थी. 2018 के दौरान बांग्लादेश का विदेशी भंडार लगभग 42 बिलियन डॉलर था. अब यह घटकर लगभग 26.5 बिलियन डॉलर रह गया है. इसके अलावा, मुद्रास्फीति में उछाल आया है, जो 2024 के मध्य तक लगभग 9.7 प्रतिशत के खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है.
बढ़ते कर्ज का बोझ
बांग्लादेश की वित्तीय चुनौतियों में उसके भारी कर्ज का बोझ भी शामिल है, जिसका मुख्य कारण चीन की बेल्ट एंड रोड पहल से वित्तपोषित व्यापक बुनियादी ढांचा परियोजनाएं हैं. हालांकि, इन पहलों का उद्देश्य विकास को बढ़ावा देना था, लेकिन इनसे स्थिरता और दीर्घकालिक वित्तीय दायित्वों को लेकर चिंताएं भी पैदा हुई हैं. बांग्लादेश की आर्थिक परेशानियां महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए विदेशी ऋणों, विशेष रूप से चीन से, पर बढ़ती निर्भरता से जुड़ी हुई हैं.
हसीना की हाल की चीन यात्रा उम्मीद के मुताबिक नहीं रही. बांग्लादेश को ऋण चुकौती में कुछ छूट सहित पर्याप्त वित्तीय सहायता की उम्मीद थी. इसके अलावा, बांग्लादेश को 5 बिलियन डॉलर का ऋण मिलने की उम्मीद थी, जो उसकी अर्थव्यवस्था को फिर से सक्रिय कर सकता था. इसके बजाय, तीन दिनों की बातचीत और वार्ता के दौरान, हसीना चीन से केवल 137 मिलियन डॉलर की वित्तीय सहायता के लिए सहमति प्राप्त कर सकीं.वह अपनी चार दिवसीय बीजिंग यात्रा के समापन से एक दिन पहले 10 जुलाई को स्वदेश लौट आईं.
क्या बांग्लादेश में अशांति के पीछे पाकिस्तान की ISI का हाथ है?
प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी की छात्र विंग, जिसे कथित तौर पर पाकिस्तान की ISI का समर्थन प्राप्त है, हिंसा भड़का रही है और बांग्लादेश में छात्र विरोध को राजनीतिक आंदोलन में बदल रही है. हालांकि हसीना सरकार को कमजोर करने के लिए ISI के प्रयास नए नहीं हैं, लेकिन स्थिति नौकरी कोटा को लेकर छात्र विरोध से बढ़कर एक व्यापक राजनीतिक आंदोलन में बदल गई है, जिसमें विपक्षी पार्टी के सदस्य कथित तौर पर विरोध समूहों में घुसपैठ कर रहे हैं.