नई दिल्ली: दक्षिण एशिया के दो प्रमुख देश भारत और बांग्लादेश- जो कभी सहयोगी थे, अब गहरे विवाद में उलझ गए हैं. शुक्रवार को भारत ने हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर खतरों और लक्षित हमलों के बारे में बांग्लादेश सरकार के समक्ष गहरी चिंता जताई और अंतरिम सरकार से सभी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की अपनी जिम्मेदारी निभाने का आग्रह किया.
हाल के महीनों में भारत और बांग्लादेश के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है और दोनों पड़ोसी देश एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं. बांग्लादेश में हिंदू भिक्षु चिन्मय कृष्ण दास की राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तारी के बाद स्थिति और भी खराब हो गई, जिससे दोनों देशों के बीच रिश्ते और भी खराब हो गए.
हालांकि, इन घटनाक्रमों के बीच मुख्य भू-राजनीतिक मुद्दा बांग्लादेश-भारत संबंध पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, जो नई अंतरिम सरकार में प्रभावित हो सकता है. ईटीवी भारत के साथ विशेष साक्षात्कार में, बांग्लादेश में भारत की पूर्व उच्चायुक्त वीना सीकरी ने कहा, "भारत सरकार अल्पसंख्यक अधिकारों का समर्थन करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है. बांग्लादेश का संविधान, जिसे वर्तमान सरकारी अधिकारियों ने बनाए रखने की शपथ ली है, लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, राष्ट्रवाद और सामाजिक न्याय पर आधारित है. ये सिद्धांत महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उन्हें नजरअंदाज किया जा रहा है."
सीकरी के अनुसार, अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस स्थिति को संभालने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "जमात-ए-इस्लामी और अन्य कट्टरपंथी समूह नियंत्रण में हैं और मौजूदा समस्याओं को स्वीकार नहीं कर रहे हैं. यह गंभीर चिंता का विषय है."
पूर्व भारतीय उच्चायुक्त ने कहा, "जहां तक भारत-बांग्लादेश संबंधों का सवाल है, 8 अगस्त को नई सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही हमने संबंधों को मजबूत करने की इच्छा जताई है. हमारी सरकार मौजूदा प्रशासन के साथ जुड़ने और शेख हसीना के नेतृत्व में पिछले 15 वर्षों में स्थापित सफल आर्थिक सहयोग और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए तैयार है. हालांकि, बांग्लादेश को आगे बढ़ने में अपनी रुचि दिखाने की जरूरत है. हम अगले महीने दिसंबर में दोनों देशों के विदेश कार्यालयों के बीच संभावित चर्चाओं की उम्मीद करते हैं, लेकिन हमें देखना होगा कि चीजें कैसे आगे बढ़ती हैं."
उन्होंने कहा कि 5 अगस्त 2024 को प्रधानमंत्री शेख हसीना बांग्लादेश छोड़कर भारत आ गईं. इसके बाद ही बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमले शुरू हो गए थे और हिंदू, बौद्ध और ईसाई समुदाय को निशाना बनाया गया. लूटपाट, हत्या, उत्पीड़न और संपत्ति के विनाश की खबरें आईं.
पीएम मोदी और यूनुस के बीच चर्चा
वीना सीकरी ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस के साथ इस मुद्दे पर चर्चा की, यहां तक कि बधाई पत्र में भी इसका उल्लेख किया. उन्होंने कहा, "प्रोफोसर यूनुस ने हमारे प्रधानमंत्री को फोन किया और हिंसा को रोकने के लिए कार्रवाई करने का वादा किया. हालांकि, हमले जारी रहे. स्थिति अल्पसंख्यकों की आर्थिक आजीविका पर हमलों तक बढ़ गई, जिससे शिक्षकों और प्रोफेसरों को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा. खगराचारी में बौद्धों पर भी हमले हुए, जहां उनके मंदिरों और मूर्तियों को नष्ट कर दिया गया और उन्हें छोड़ने के लिए दबाव डाला गया. कथित तौर पर इन कार्रवाइयों में कुछ सैनिक शामिल थे. स्थिति और खराब हो गई है, और हमने लगातार अपनी चिंताओं को उठाया है. दुर्भाग्य से, प्रोफेसर यूनुस की शुरुआती स्वीकृति के बावजूद, बांग्लादेश की प्रतिक्रिया इनकार में बदल गई है."
पूर्व उच्चायुक्त सीकरी ने कहा, "अंतरिम सरकार से 90 दिनों के भीतर चुनाव कराने की उम्मीद है. हालांकि, मौजूदा संविधान अंतरिम सरकार के विचार का समर्थन नहीं करता है, क्योंकि पिछले उच्च न्यायालय ने फैसला दिया था कि संसदीय लोकतंत्र के लिए निर्वाचित सरकार जरूरी होती है. वे अब कार्यवाहक सरकार प्रणाली को बहाल करने के लिए संविधान में संशोधन करने का प्रयास कर रहे हैं, जिसका उद्देश्य स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना है. एक बार निर्वाचित सरकार बनने के बाद, वह आगे के सुधारों को संभाल सकती है."
उन्होंने बताया कि बांग्लादेश में कई लोग कह रहे हैं कि जमात-ए-इस्लामी, जो वर्तमान में सत्ता में है, चुनाव नहीं चाहती है. वे अंतरिम सरकार का समय बढ़ाना चाहते हैं और समय से पहले चुनाव से बचना चाहते हैं. हालांकि, यह सरकार अभी संवैधानिक रूप से वैध नहीं है क्योंकि बांग्लादेश का वर्तमान संविधान अंतरिम सरकार की अनुमति नहीं देता है. उन्होंने शपथ लेते समय इस संविधान को बनाए रखने की शपथ ली थी. यह बड़ा मुद्दा बनाता है.
पूर्व राजनयिक ने कहा, "हमें उम्मीद है कि अगले छह महीनों में चुनाव होंगे. देश की स्थिति को लेकर बांग्लादेशी और भारतीय प्रवासियों सहित विभिन्न नेताओं और समुदायों की चिंता बढ़ रही है. रिपोर्ट बताती हैं कि हिंदुओं, ईसाइयों और बौद्धों पर हमले हो रहे हैं, जो चिंताजनक है. बांग्लादेश को एक समय धर्मनिरपेक्ष संविधान के लिए जाना जाता था, जिसमें विभिन्न धर्मों के लोगों को एक साथ रहने की अनुमति थी. जबकि बहुसंख्यक मुस्लिम हैं, बौद्ध और ईसाइयों के साथ लगभग 8 प्रतिशत हिंदू भी हैं."
सीकीर ने कहा, लोगों को अपने-अपने धर्मों का पालन करने और शांतिपूर्वक एक साथ रहने की अनुमति होनी चाहिए. हालांकि, दुर्गा पूजा मनाए जाने के दावों के बावजूद, हम जानते हैं कि इस साल कुछ पूजा मंडपों में तोड़फोड़ की गई थी."
विदेश मंत्रालय का बयान
शुक्रवार को नई दिल्ली में साप्ताहिक मीडिया ब्रीफिंग में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, "भारत ने बांग्लादेश सरकार के समक्ष हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर खतरों और लक्षित हमलों के मुद्दे को लगातार और दृढ़ता से उठाया है. इस मामले पर हमारी स्थिति स्पष्ट है - अंतरिम सरकार को सभी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए. हम हिंसा और उकसावे की बढ़ती घटनाओं से चिंतित हैं. हम एक बार फिर बांग्लादेश से अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए सभी कदम उठाने का आह्वान करते हैं."
चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी पर विदेश मंत्रालय ने कहा, "जहां तक व्यक्तियों के खिलाफ मामलों का सवाल है, हमने पाया है कि कानूनी प्रक्रियाएं चल रही हैं. हम उम्मीद करते हैं कि ये प्रक्रियाएं मामले को न्यायसंगत, निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से निपटाएंगी, जिससे सभी संबंधितों के कानूनी अधिकारों का पूरा सम्मान सुनिश्चित होगा."
बांग्लादेश में हिंदू पुजारी चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी से नई दिल्ली-ढाका के रिश्ते महत्वपूर्ण बिंदु पर पहुंच गए हैं. इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस (इस्कॉन) के सदस्य चिन्मय कृष्ण दास को चटगांव में एक पुराने राजद्रोह कानून के तहत हिरासत में लिया गया था. उन पर हिंदुओं के खिलाफ हिंसा के विरोध में प्रदर्शन के दौरान बांग्लादेश के राष्ट्रीय ध्वज को भगवा ध्वज से नीचे झुकाने का आरोप लगाया गया था. इस घटना के कारण अराजकता फैल गई, कोर्ट हाउस के बाहर विरोध प्रदर्शन हुए, एक मुस्लिम वकील की नृशंस हत्या हुई और 20 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिससे देश में सांप्रदायिक तनाव और बढ़ गया.
भारत ने सख्त टिप्पणी करते हुए दास की गिरफ्तारी को अन्यायपूर्ण बताया तथा अल्पसंख्यकों की सुरक्षा न करने के लिए बांग्लादेश की आलोचना की.
बांग्लादेश की स्थापना धर्मनिरपेक्ष आदर्शों पर हुई थी...
इसके अलावा, बांग्लादेश के विदेश मामलों के विशेषज्ञ और मानवाधिकार रक्षक तारिक चौधरी ने कहा, "बांग्लादेश की स्थापना सांप्रदायिक पाकिस्तानी कब्जे के खिलाफ हमारे मुक्ति संग्राम के दौरान लाखों लोगों के बलिदान से हुई है. बांग्लादेश की स्थापना पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष आदर्शों पर आधारित थी. बांग्लादेश की वर्तमान अस्थिर स्थिति का लाभ उठाते हुए कुछ धार्मिक चरमपंथी समूह देश को इसकी भावना के खिलाफ ले जाने की कोशिश कर रहे हैं. उनका लक्ष्य हाल ही में हुए अंदोलत की जीत को विफल करना है. यही कारण है कि वे धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत और डर फैला रहे हैं. नतीजतन, स्थिति खराब हो गई है. अगर यही स्थिति जारी रहती है तो बांग्लादेश और भारत के बीच संबंधों में गंभीर अविश्वास पैदा होगा."
उन्होंने आगे कहा कि बांग्लादेश और भारत के बीच अविश्वास और गलतफहमियां बढ़ रही हैं. दुर्भाग्य से, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के पास कई कारणों से इस संकट को हल करने की पर्याप्त क्षमता नहीं है. इसलिए यह बांग्लादेश-भारत द्विपक्षीय और व्यापारिक संबंधों पर बहुत नकारात्मक प्रभाव डालता है.
यह भी पढ़ें- बांग्लादेश के हिंदुओं को बचाने के लिए कदम उठाए भारत : आरएसएस