हैदराबाद : जूनोसिस रोगों के चलते हर साल दुनिया भर में बहुत से लोग गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं सामना करते हैं या कई बार मृत्यु का शिकार भी हो जाते हैं. जूनोसिस रोग कितने गंभीर हो सकते हैं हैं इसका प्रभाव हम कोविड़ 19 के रूप में देख चुके हैं. इसके अलावा हर साल मच्छरों, पक्षियों तथा जानवरों से होने वाले रेबीज, निपाह वायरस, बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू, मलेरिया तथा डेंगू जैसे संक्रमणों के चलते भी हजारों-लाखों लोग स्वास्थ्य से जुड़ी गंभीर समस्याओं को झेलते हैं. जानकारों की माने कई प्रकार के जूनोसिस रोगों में जान जाने का जोखिम काफी ज्यादा होता है. ऐसे में इस प्रकार के रोगों, उनके लक्षणों व इलाज को लेकर लोगों में जागरूकता व जानकारी होना बहुत जरूरी है.
पशु स्वास्थ्य और मानव स्वास्थ्य के बीच के संबंध को समझने, उनके एक दूसरे पर पड़ने वाले प्रभाव को जानने, पशुओं द्वारा मनुष्यों को हो सकने वाले रोगों व संक्रमणों को लेकर आम जन में जागरूकता फैलाने तथा उनसे बचाव के लिए टीकाकरण व अन्य जरूरी चिकित्सा को लेकर जानकारी का प्रसार करने के उद्देश्य से हर साल 6 जुलाई को विश्व जूनोसिस दिवस मनाया जाता है. गौरतलब है कि यह दिवस प्रसिद्ध वैज्ञानिक लुई पाश्चर के सम्मान में मनाया जाता है, जिन्होंने 1885 में रेबीज का पहला टीका विकसित किया था.
क्या है जूनोसिस रोग : नई दिल्ली के चिकित्सक (फिजीशियन, इंटरनल मेडिसिन) डॉ रवींद्र डे बताते हैं कि जूनोसिस रोगों की श्रेणी में वे रोग आते हैं, जो पशुओं से मनुष्यों में फैलते हैं. इन रोगों के फैलने के मुख्य कारणों की बात करें तो पशुओं के साथ सीधे संपर्क, दूषित पानी और भोजन और मच्छरों या टिक्स जैसे कीट के काटने से यह रोग फैलते हैं. वह बताते हैं कि जूनोसिस रोग अनेक प्रकार के होते हैं जो वायरस, बैक्टीरिया, फंगस और परजीवी के कारण फैलते हैं. इनके कुछ प्रकार इस प्रकार हैं.
वायरल जूनोसिस : इसमें रेबीज, एवियन इन्फ्लूएंजा, और कोरोना वायरस शामिल हैं.
बैक्टीरियल जूनोसिस : इसमें साल्मोनेला, लाइम रोग, और एंथ्रेक्स शामिल हैं.
फंगल जूनोसिस : इसमें हिस्टोप्लास्मोसिस और क्रिप्टोकोकस शामिल हैं.
परजीवी जूनोसिस : इसमें मलेरिया, टोक्सोप्लाज्मोसिस, और सिस्टोसोमियासिस शामिल हैं.
डॉ रवींद्र डे बताते हैं कि भारत में जूनोसिस रोगों के प्रचलित प्रकार तथा उनके कारणों की बात करें तो उनमें से कुछ इस प्रकार हैं.
रेबीज (Rabies):
रेबीज एक घातक वायरस है जो संक्रमित पशुओं (विशेष रूप से कुत्तों) के काटने से मनुष्यों में फैलता है.इसके मरीजों के बचने की आशंका बहुत कम होती है. भारत में रेबीज के मामले बहुत आम हैं. इस रोग से बचने के लिए पशुओं के टीकाकरण और जागरूकता अभियान महत्वपूर्ण हैं.
ब्रूसेलोसिस (Brucellosis):
यह बैक्टीरिया से फैलने वाला रोग है जो दूषित दूध, मांस, या पशु उत्पादों के सेवन से होता है. यह रोग पशुओं (विशेष रूप से गायों और भेड़ों) में गर्भपात और प्रजनन समस्याओं का कारण बनता है और मनुष्यों में बुखार, थकान और मांसपेशियों में दर्द का कारण बन सकता है.
लाइम रोग (Lyme Disease):
लाइम रोग टिक (tick) के काटने से फैलता है और यह रोग भारत के कुछ क्षेत्रों में पाया जाता है. इस रोग के लक्षणों में बुखार, थकान, सिरदर्द और त्वचा पर दाने शामिल हैं. लाइम रोग का उपचार एंटीबायोटिक के माध्यम से किया जा सकता है.
सालमोनेलोसिस (Salmonellosis):
साल्मोनेला बैक्टीरिया से होने वाला एक आम खाद्य जनित रोग है. यह दूषित भोजन या पानी के माध्यम से फैलता है. इस रोग के लक्षणों में दस्त, बुखार और पेट में दर्द शामिल हैं. इसे रोकने के लिए स्वच्छता और खाद्य सुरक्षा के उपाय महत्वपूर्ण हैं.
एवियन इन्फ्लूएंजा/बर्ड फ्लू (Bird Flu):
एवियन इन्फ्लूएंजा, जिसे बर्ड फ्लू भी कहा जाता है, पक्षियों से मनुष्यों में फैलने वाला एक वायरल रोग है. यह रोग भारत में कभी-कभी फैलता है और इसका नियंत्रण मुर्गी पालन उद्योग के लिए महत्वपूर्ण है. बर्ड फ्लू के लक्षणों में बुखार, खांसी, गले में खराश और श्वास की कठिनाई शामिल हैं.
स्वाइन फ्लू (H1N1):
स्वाइन फ्लू, जिसे H1N1 फ्लू भी कहा जाता है, सूअरों से मनुष्यों में फैलने वाला एक वायरल रोग है. भारत में स्वाइन फ्लू के कई मामले सामने आए हैं. इसके लक्षण सामान्य फ्लू जैसे होते हैं, जिनमें बुखार, खांसी, गले में खराश और शारीरिक दर्द शामिल हैं.
निपाह वायरस (Nipah Virus):
निपाह वायरस चमगादड़ों से फैलने वाला एक गंभीर रोग है, जिसने भारत के कुछ हिस्सों में महामारी का रूप लिया है. इसके लक्षणों में बुखार, सिरदर्द, सांस की कठिनाई और गंभीर मामलों में मस्तिष्क ज्वर शामिल हैं.
कैसे करें बचाव
डॉ रवींद्र डे बताते हैं कि जूनोसिस की रोकथाम और नियंत्रण के लिए विभिन्न उपाय अपनाए जा सकते हैं. इनमें अपनी तथा जानवरों की स्वच्छता बनाए रखना, पशुओं के स्वास्थ्य की नियमित जांच, और वैक्सीनेशन प्रमुख हैं. इसके अतिरिक्त, लोगों को सुरक्षित खाद्य और पानी की व्यवस्था करनी चाहिए और बायोसिक्योरिटी उपायों का पालन करना चाहिए.
इसके अलावा लोगों में इन रोगों को लेकर जागरूकता और शिक्षा का प्रसार करना भी बहुत जरूरी है क्योंकि कई बार ऐसे रोगों को लेकर लक्षणों का प्रति अज्ञानता लोगों में समस्याओं के बढ़ने का कारण बन जाती है. इसके लिए सामुदायिक स्तर पर गांवों, छोटे शहरों व मेट्रो शहर , सभी क्षेत्रों में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की नियुक्ति, जागरूकता अभियानों का आयोजन, और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों का संचालन किया जा सकता है. World Zoonosis Day , Father Of Bacteriology , Louis Pasteur , Father Of Microbiology , Zoonosis Day ,Microbiology Father .