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जरूरी है सही समय पर प्रयासों का शुरू होना : विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस - World Autism Awareness Day

World Autism Awareness Day : क्ट्रम डिसऑर्डर ऑटिज्म, के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस मनाया जाता है. पढ़ें पूरी खबर...

World Autism Awareness Day
World Autism Awareness Day
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Apr 2, 2024, 12:01 AM IST

Updated : Apr 2, 2024, 11:57 AM IST

हैदराबाद : मानसिक विकारों या समस्याओं को आज भी ना सिर्फ भारत में बल्कि दुनियाभर में एक आम बीमारी के रूप में या सकारात्मक सोच के साथ नहीं देखा जाता है. उस पर ऑटिज्म एक ऐसी समस्या है जिसका क्लीनिकल ट्रीटमेंट नहीं है. ऐसे में इस रोग को लेकर लोगों में एक अलग ही तरह का रवैया देखा जाता है, जो उपेक्षा, हीनता तथा डर सहित कई नकारात्मक भावनाओं से भरा होता है. बहुत जरूरी है कि लोग यह जाने की ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे तथा वयस्क सही ट्रीटमेंट , एजुकेशनल प्रोग्राम और बिहेवियरल थैरेपी की मदद से काफी हद तक आत्मनिर्भर तरीके से जीवन व्यतीत कर सकते हैं. बशर्ते उनका इलाज सही समय पर यानी बचपन में जितना जल्दी हो सके शुरू हो जाए.

दुनियाभर में लोगों को इस अवस्था व उसके प्रबंधन और इलाज को लेकर जागरूक करने, ऑटिस्टिक लोगों के जीवन में किस तरह से सुधार लाया जा सकता है, इससे जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करने तथा इसके लिए जरूरी प्रयासों के लिए संस्थाओं व लोगों को प्रेरित करने, जिससे ऑटिस्टिक लोग भी समाज का अहम हिस्सा बन सकें और आम लोगों की तरह ही अपनी जिंदगी को जी सके जैसे उद्देश्यों को लेकर हर साल 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस मनाया जाता है.

ऑटिज्म से जुड़ी जरूरी बातें

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक न्यूरोलॉजिकल स्थिति है, जिसे विकासात्मक विकलांगता की श्रेणी में रखा जाता है. इसमें पीड़ित का दिमागी विकास अन्य की तुलना में कम होता है.

इस डिसऑर्डर के लिए कुछ ऐसे अनुवांशिक और पर्यावरणीय कारणों को जिम्मेदार माना जाता है जिनमें गर्भ में पल रहे बच्चे के दिमाग का विकास बाधित हो जाता है. जैसे- दिमाग के विकास के लिए जरूरी जीन या सेल्स और दिमाग के बीच सम्पर्क बनाने वाले जीन में कोई गड़बड़ी होना, गर्भावस्था में माता के किसी संक्रमण या हवा में फैले प्रदूषित कणों के सम्पर्क में आना या उनमें प्रेगनेंसी के दौरान खायी गयी किसी दवा का साइड-इफेक्ट होना, प्रीमैच्योर बच्चे का जन्म तथा जन्म के समय बच्चे का वजन कम होना आदि.

ऑटिज्म पीड़ित में व्यवहार संबंधी, संचार या दूसरों से संपर्क संबंधी, संवेदी संवेदनशीलता जैसे प्रकाश, ध्वनि, स्पर्श, गंध या स्वाद को लेकर संवेदनशील होना, दोहराव वाले व्यवहार यानी एक ही बात को कई बार बोलने या एक ही काम को लगातार करने जैसी समस्याओं सहित कई अन्य समस्याएं भी नजर आ सकती हैं.

  1. ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसॉर्डर में पीड़ित के व्यवहार, सोचने-समझने की क्षमता दूसरों से अलग होती है. इनमें दूसरों के शारीरिक भावों जैसे चेहरे व आवाज के भावों को समझने में कठिनाई हो सकती है.
  2. ऑटिस्टिक लोगों में अवस्था के आधार पर अलग-अलग लक्षण तथा प्रभाव नजर आ सकते हैं जैसे कुछ लोगों में इसके लक्षण हल्के, कुछ में गंभीर तथा कुछ में उग्र भी हो सकते हैं.
  3. ऑटिज्म के लक्षण कम उम्र में ही नजर आने लगते हैं. छोटे बच्चों में ऑटिज्म के लक्षण जन्‍म के 12 से 18 सप्ताह के बाद नजर आते हैं.
  4. ऑटिज्म के हर मामले में निदान व प्रबंधन के लिए अलग-अलग तरह की थेरेपी या इलाज की प्लानिंग की जरूरत होती है.
  5. यह एक आजीवन रहने वाली स्थिति होती है. लेकिन इसमें शीघ्र निदान, हस्तक्षेप व सही प्रबंधन से पीड़ित काफी हद तक बेहतर जीवन जी सकते हैं.
  6. ऑटिस्टिक लोगों में कई बार अद्वितीय प्रतिभाएं और दृष्टिकोण देखे जाते हैं. ये किसी कला या अन्य क्षेत्र में बेहतरीन प्रदर्शन भी कर सकते हैं.

विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस का महत्व व उद्देश्य

ऑटिज्म को लेकर आम जन की समझ को बढ़ाने, इस अवस्था में इलाज तथा प्रबंधन को लेकर लोगों को शिक्षित व जागरूक करने, तथा इस दिशा में प्रयासों को बेहतर करने के लिए संस्थाओं व व्यक्तिगत स्तर पर लोगों से अपील करने के लिए एक मंच व मौका देने के उद्देश्य से विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस मनाया जाता है.

ऑटिज्म को लेकर सिर्फ ज्ञान व जागरूकता बढ़ाना ही नहीं बल्कि इसे लेकर लोगों में व्याप्त गलत धारणाओं व गलतफहमियों को दूर करना , ऑटिस्टिक लोगों को लेकर सामाजिक अलगाव की भावना व भेदभाव को दूर करने के लिए प्रयास करना, उनकी जरूरतों की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करना जिससे उन्हे बेहतर स्वास्थ्य देखभाल व अन्य सेवाएं, शिक्षा तथा रोजगार के मौके मिल सके, भी इस आयोजन के मुख्य उद्देश्यों में शामिल है.

गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा इस बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करने, ऑटिस्टिक लोगों को सुविधाजनक जीवन देने तथा उन्हे समाज से जोड़ने के लिए प्रयास करने की भावना के साथ 1 नवंबर 2007 को एक प्रस्ताव पारित किया था जिसे 18 दिसंबर 2007 को स्वीकार कर लिया गया था. जिसके बाद से हर साल 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस मनाया जाता है.

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माता-पिता के लिए सरल नहीं होता है, बच्चे में ऑटिज्म को स्वीकारना

हैदराबाद : मानसिक विकारों या समस्याओं को आज भी ना सिर्फ भारत में बल्कि दुनियाभर में एक आम बीमारी के रूप में या सकारात्मक सोच के साथ नहीं देखा जाता है. उस पर ऑटिज्म एक ऐसी समस्या है जिसका क्लीनिकल ट्रीटमेंट नहीं है. ऐसे में इस रोग को लेकर लोगों में एक अलग ही तरह का रवैया देखा जाता है, जो उपेक्षा, हीनता तथा डर सहित कई नकारात्मक भावनाओं से भरा होता है. बहुत जरूरी है कि लोग यह जाने की ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे तथा वयस्क सही ट्रीटमेंट , एजुकेशनल प्रोग्राम और बिहेवियरल थैरेपी की मदद से काफी हद तक आत्मनिर्भर तरीके से जीवन व्यतीत कर सकते हैं. बशर्ते उनका इलाज सही समय पर यानी बचपन में जितना जल्दी हो सके शुरू हो जाए.

दुनियाभर में लोगों को इस अवस्था व उसके प्रबंधन और इलाज को लेकर जागरूक करने, ऑटिस्टिक लोगों के जीवन में किस तरह से सुधार लाया जा सकता है, इससे जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करने तथा इसके लिए जरूरी प्रयासों के लिए संस्थाओं व लोगों को प्रेरित करने, जिससे ऑटिस्टिक लोग भी समाज का अहम हिस्सा बन सकें और आम लोगों की तरह ही अपनी जिंदगी को जी सके जैसे उद्देश्यों को लेकर हर साल 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस मनाया जाता है.

ऑटिज्म से जुड़ी जरूरी बातें

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक न्यूरोलॉजिकल स्थिति है, जिसे विकासात्मक विकलांगता की श्रेणी में रखा जाता है. इसमें पीड़ित का दिमागी विकास अन्य की तुलना में कम होता है.

इस डिसऑर्डर के लिए कुछ ऐसे अनुवांशिक और पर्यावरणीय कारणों को जिम्मेदार माना जाता है जिनमें गर्भ में पल रहे बच्चे के दिमाग का विकास बाधित हो जाता है. जैसे- दिमाग के विकास के लिए जरूरी जीन या सेल्स और दिमाग के बीच सम्पर्क बनाने वाले जीन में कोई गड़बड़ी होना, गर्भावस्था में माता के किसी संक्रमण या हवा में फैले प्रदूषित कणों के सम्पर्क में आना या उनमें प्रेगनेंसी के दौरान खायी गयी किसी दवा का साइड-इफेक्ट होना, प्रीमैच्योर बच्चे का जन्म तथा जन्म के समय बच्चे का वजन कम होना आदि.

ऑटिज्म पीड़ित में व्यवहार संबंधी, संचार या दूसरों से संपर्क संबंधी, संवेदी संवेदनशीलता जैसे प्रकाश, ध्वनि, स्पर्श, गंध या स्वाद को लेकर संवेदनशील होना, दोहराव वाले व्यवहार यानी एक ही बात को कई बार बोलने या एक ही काम को लगातार करने जैसी समस्याओं सहित कई अन्य समस्याएं भी नजर आ सकती हैं.

  1. ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसॉर्डर में पीड़ित के व्यवहार, सोचने-समझने की क्षमता दूसरों से अलग होती है. इनमें दूसरों के शारीरिक भावों जैसे चेहरे व आवाज के भावों को समझने में कठिनाई हो सकती है.
  2. ऑटिस्टिक लोगों में अवस्था के आधार पर अलग-अलग लक्षण तथा प्रभाव नजर आ सकते हैं जैसे कुछ लोगों में इसके लक्षण हल्के, कुछ में गंभीर तथा कुछ में उग्र भी हो सकते हैं.
  3. ऑटिज्म के लक्षण कम उम्र में ही नजर आने लगते हैं. छोटे बच्चों में ऑटिज्म के लक्षण जन्‍म के 12 से 18 सप्ताह के बाद नजर आते हैं.
  4. ऑटिज्म के हर मामले में निदान व प्रबंधन के लिए अलग-अलग तरह की थेरेपी या इलाज की प्लानिंग की जरूरत होती है.
  5. यह एक आजीवन रहने वाली स्थिति होती है. लेकिन इसमें शीघ्र निदान, हस्तक्षेप व सही प्रबंधन से पीड़ित काफी हद तक बेहतर जीवन जी सकते हैं.
  6. ऑटिस्टिक लोगों में कई बार अद्वितीय प्रतिभाएं और दृष्टिकोण देखे जाते हैं. ये किसी कला या अन्य क्षेत्र में बेहतरीन प्रदर्शन भी कर सकते हैं.

विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस का महत्व व उद्देश्य

ऑटिज्म को लेकर आम जन की समझ को बढ़ाने, इस अवस्था में इलाज तथा प्रबंधन को लेकर लोगों को शिक्षित व जागरूक करने, तथा इस दिशा में प्रयासों को बेहतर करने के लिए संस्थाओं व व्यक्तिगत स्तर पर लोगों से अपील करने के लिए एक मंच व मौका देने के उद्देश्य से विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस मनाया जाता है.

ऑटिज्म को लेकर सिर्फ ज्ञान व जागरूकता बढ़ाना ही नहीं बल्कि इसे लेकर लोगों में व्याप्त गलत धारणाओं व गलतफहमियों को दूर करना , ऑटिस्टिक लोगों को लेकर सामाजिक अलगाव की भावना व भेदभाव को दूर करने के लिए प्रयास करना, उनकी जरूरतों की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करना जिससे उन्हे बेहतर स्वास्थ्य देखभाल व अन्य सेवाएं, शिक्षा तथा रोजगार के मौके मिल सके, भी इस आयोजन के मुख्य उद्देश्यों में शामिल है.

गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा इस बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करने, ऑटिस्टिक लोगों को सुविधाजनक जीवन देने तथा उन्हे समाज से जोड़ने के लिए प्रयास करने की भावना के साथ 1 नवंबर 2007 को एक प्रस्ताव पारित किया था जिसे 18 दिसंबर 2007 को स्वीकार कर लिया गया था. जिसके बाद से हर साल 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस मनाया जाता है.

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Last Updated : Apr 2, 2024, 11:57 AM IST
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