हैदराबाद : नौ महीने की पूरी अवधि तक माता के गर्भ में रहने के बाद जब बच्चा जन्म लेता है तो उसके बाहरी दुनिया में सरवाइव करने के लिए सभी आंतरिक व बाह्य अंग पूरी तरह से विकसित हो चुके होता हैं. लेकिन यदि किसी कारण से बच्चा निर्धारित समय यानी नौ महीने की अवधी पूरी करने से पहले ही इस दुनिया में आ जाए तो ज्यादातर मामलों में उसे स्वास्थ्य से जुड़ी कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. इसलिए ऐसे बच्चों को उनकी अवस्था के आधार पर थोड़ी या लंबी अवधि तक ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है.
कौन सी समस्याएं कर सकती हैं परेशान : किड केयर क्लिनिक नई दिल्ली की निओनेटल केयर विशेषज्ञ डॉ गरिमा राव बताती हैं कि जब कोई बच्चा 36 सप्ताह की अवधि से पहले या आखिरी तिमाही से पहले या उसके दौरान पैदा होता है तो वह प्रीमैच्योर बेबी कहलाता है. Premature baby की देखभाल में बहुत एहतियात बरतने की जरूरत होती है क्योंकि समय से बहुत पहले जन्म लेने से बच्चों में कई बार अल्पकालिक और दीर्घकालिक चिकित्सा समस्याएं देखी जाती है. जो कई बार ज्यादा जटिल भी हो सकती हैं. इसलिए ऐसे बच्चों को आमतौर पर पैदा होने के बाद अस्पताल में विशेष केयर NICU में रखा जाता है.
वह बताती हैं कि ऐसे बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता तथा बाहर के वातावरण के साथ सामंजस्य बैठाने की क्षमता अपेक्षाकृत कम होती है. दरअसल शिशुओं के शरीर की इम्युनिटी गर्भावस्था के आखिरी तीन महीनों में सबसे ज्यादा बढ़ती है.लेकिन अगर बच्चे का जन्म आखिरी तिमाही को पूरा करें बगैर हो जाता है तो ऐसे बच्चों के ज्यादा कमजोर होने या जल्दी बीमारी की चपेट में आने की आशंका ज्यादा रहती है. ऐसे में जब Premature baby अस्पताल से घर आ भी जाता है तो उसके कुछ शुरुआती महीनों आमतौर पर दो साल तथा कुछ विशेष मामलों में उससे ज्यादा समय तक भी बच्चों के स्वास्थ्य की ओर ज्यादा ध्यान देने तथा उनकी ज्यादा देखभाल करने की जरूरत होती है.
डॉ गरिमा बताती हैं कि सामान्य तौर पर जन्म के पहले दो सालों में premature babies के विकास की गति धीमी रह सकती है. वहीं उनका वजन व आकार भी सामान्य बच्चों के मुकाबले कम रह सकता है. लेकिन ज्यादातर मामलों में जरूरी व सही देखभाल व स्वास्थ्य निगरानी से बच्चे के विकास की गति तेज हो सकती है.
इसके अलावा ऐसे बच्चों में श्वसन, विकास और दृष्टि संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं. इसलिए बहुत जरूरी है बच्चे के अस्पताल से घर आने के बाद उसके चिकित्सक द्वारा बताए गए सभी जरूरी टेस्ट करवाए जाएं. जिससे अगर किसी विशेष परिस्थिति या समस्या का सामना बच्चा कर रहा है तो इसके इलाज व इससे जुड़ी सावधानियों का पालन किया जा सके.
कैसे करें देखभाल
वह बताती हैं कि छोटे बच्चे आहार के रूप में पूरी तरह से माता के दूध पर निर्भर रहते हैं. लेकिन कई बार शारीरिक विकास की कमी या अन्य कारणों से बहुत से प्रीमैच्योर बच्चों को स्तनों से या निप्पल से दूध पीने में परेशानी होती है, या कई प्रीमैच्योर बच्चों में मुंह से दूध पीने के दौरान एक साथ चूसने, निगलने और सांस लेने में समन्वय में समस्या होती है. ऐसे में कुछ ज़्यादा संवेदनशील मामलों में चिकित्सक कुछ समय के लिए विशेष नली या आई वी की मदद से उनके शरीर में आहार या पोषण पहुंचाने की व्यवस्था करते हैं. लेकिन अगर संभव हो तो चिकित्सक बाहरी तरीकों से बच्चे को दूध व अन्य जरूरी पोषण देने की सलाह देते हैं. इसके लिए माता पंप या हाथ से दबाकर अपना दूध निकाल कर बच्चे को छोटी बोतल या कटोरी चम्मच की मदद से दूध पिला सकती हैं. वहीं कई बार समय से पहले बच्चे का जन्म होने पर माता को जल्दी दूध नहीं आ पाता है ऐसे में कुछ मामलों में चिकित्सक शिशु को विशेष फॉर्मूला दूध पिलाने की सलाह दे सकते हैं. इसके अलावा और भी बहुत सी बातें हैं जिनका Premature baby की देखभाल में ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं.
- बहुत जरूरी है कि माता पिता बच्चों के स्वास्थ्य व मोटर स्किल्स जैसे प्रतिक्रिया देना, उनका गतिविधि स्तर, रोना-हंसना आदि को लेकर सचेत रहे. इसके लिए बच्चे के विकास का एक चार्ट बनाकर भी रखा जा सकता है जिससे उनकी दैनिक गतिविधियों का आकलन किया जा सके.
- समय से पहले जन्मे बच्चे आमतौर पर ज्यादा सोते हैं. लेकिन ऐसे बच्चों में अचानक शिशु मृत्यु सिंड्रोम/एसआईडीएस ( Sudden Infant Death Syndrome - SIDS ) का खतरा भी ज्यादा रहता है. दरअसल अचानक शिशु मृत्यु सिंड्रोम- SIDS एक वर्ष से कम उम्र के बच्चे की अचानक मृत्यु का कारण बन सकता है. जिनमें से अधिकांश मामले नींद के दौरान होते हैं. ऐसे में उनके सोने से जुड़ी कुछ बातों का ध्यान रखना भी बहुत जरूरी है. जैसे उनके लिए थोड़े सख्त गद्दों का प्रयोग करें लेकिन तकिये का प्रयोग न करें तथा उन्हे पेट के बल नहीं, बल्कि पीठ के बल सुलाएं, आदि.
- ऐसे बच्चों की प्रतिरक्षा प्रणाली पूरी तरह से विकसित नहीं हुई होती है ऐसे में उसे संक्रमण व रोगों से बचाने के लिए सभी जरूरी टीके सही समय पर लगवाएं.
- ज्यादा छोटे प्रीमैच्योर बच्चों को बहुत ज्यादा घर के बाहर सार्वजनिक स्थानों पर ले जाने से बचें.
- उन्हे दूसरों या अनजान लोगों के ज्यादा संपर्क में आने से बचाना चाहिए.
- बच्चे के आसपास साफ सफाई तथा हाइजीन का विशेष ध्यान रखना चाहिए. जैसे बच्चों को हमेशा साफ धुले हुए कपड़े ही पहनाएं, उन्हें हमेशा हाथों को अच्छे से साबुन से धोकर या उन्हे सेनेटाइज करके ही छूएं या गोद में उठायें.
- अगर बच्चे की उम्र छः माह से ज़्यादा है तो उसे कुछ भी भी खिलाने से पहले चिकित्सक से सलाह लें, आदि.
एबीसीडीडीएच को लेकर रहें सचेत
वह बताती हैं कि समय से पहले जन्मे बच्चों की देखभाल व स्वास्थ्य की निगरानी के लिए एबीसीडीडीएच का ध्यान रखना भी बहुत जरूरी होता है. दरअसल एबीसीडीडीएच वह संकेत हैं जो आपको सचेत कर सकते हैं कि किस परिस्थितियों में बच्चे को चिकित्सकीय परामर्श की आवश्यकता है. ये संकेत इस प्रकार हैं.
- A – एपनिया – Apnea -सांस लेने में रुकावट आना.
- B – ब्रीथिंग - Breathing - सांस लेने की गति का कम या ज़्यादा होना.
- C – कोल्ड - Cold - हाथ और पैर का ठंडा होना.
- D - डिक्रीजड फीड - Decreased feed - कम मात्रा में आहार या दूध लेना.
- D – डिक्रीज़्ड एक्टिविटी – Decreased activity - च्चे के रिफ्लेक्स यानी चूसने, निगलने व अन्य गतिविधियों में कमी या समस्या.
- H - हाइपोथर्मिया - Hypothermia - सांस लेने में समस्या और रक्त शर्करा के स्तर में कमी.
डॉ गरिमा राव बताती हैं कि समय से पहले जन्में बच्चों में फेफड़ों, श्वसन, ह्रदय व मस्तिष्क विकास से जुड़े, चयापचय संबंधी, खून की कमी तथा शरीर के तापमान में कमी जैसी कई समस्याएं आमतौर पर देखने में आती है. इसलिए बहुत जरूरी है कि बच्चे को अस्पताल से घर ले जाने से पहले मातापिता चिकित्सक से उसकी अवस्था, देखभाल व जरूरी सावधानियों से जुड़ी सभी जरूरी बातों को जाने तथा ध्यान से समझे. यही नहीं नियमित अंतराल पर चिकित्सक से जांच के अलावा भी ऊपर बताए गए संकेतों में किसी के भी नजर आने पर तत्काल चिकित्सक से संपर्क करना जरूरी है. Premature babies , baby health , child birth .