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क्या दुश्मन है किचन का नॉनस्टिक बर्तन, पीतल या कांसा किसमें पका खाना पहुंचाता है फायदा - Non Stick Utensils Side Effects - NON STICK UTENSILS SIDE EFFECTS

आपको पुराने जमाने की रसोई यानि किचन की कुछ चीजें तो याद होंगी, यहां खाना पकाने के लिए मिट्टी के बर्तन या पीतल या कांसे के बर्तनों का उपयोग होता था. समय बदलने के साथ इनकी जगह एल्यूमिनियम, स्टील ने ली और अब नॉन स्टिक बर्तन. जानिए इस खास खबर में कि कैसे ये नॉन स्टिक बर्तन आपके शरीर को बीमारियों का घर बनाते हैं.

NON STICK UTENSILS SIDE EFFECTS
नॉन स्टिक बर्तनों के साइड इफेक्ट्स (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jul 25, 2024, 6:13 PM IST

Updated : Jul 25, 2024, 6:38 PM IST

Non Stick Pan Side Effects: घर का किचन जहां कई बीमारियों को कंंट्रोल करने में मददगार होता है तो कई बीमारियों को हम निमंत्रण भी किचन के जरिए दे रहे हैं. हमारे खान-पान के अलावा खाना पकाने के तरीके भी कई बीमारियों का कारण बनते हैं. किचन में उपयोग होने वाले बर्तन भी बीमारी का कारण बन सकते हैं. ये सुनकर आपको भले ही अचरज होगा लेकिन बदलते समय के साथ किचिन में नॉन स्टिक बर्तनों की संख्या बढ़ रही है. इन्ही नॉन स्टिक बर्तनों से टेफ्लान फ्लू नाम की बीमारी का खतरा भी बढ़ रहा है. दरअसल आजकल नॉन स्टिक बर्तनों का उपयोग काफी बढ़ गया है और यही बर्तन बीमारी का कारण भी बन रहे हैं.

नॉन स्टिक बर्तनों में खाना पकाने से होती हैं बीमारियां (ETV Bharat)

नॉन स्टिक बर्तनों में क्या है ऐसा

नॉन स्टिक बर्तनों में पॉलीटेट्रा फ्लुरोएथिलिन की कोडिंग की जाती है, जिसे आम भाषा में टेफ्लॉन के नाम से भी जाना जाता है. नॉन स्टिक बर्तन में खाना बनाते समय आमतौर पर लोग एक बड़ी गलती कर जाते हैं और जल्दबाजी या विशेष स्वाद के लिए नॉन स्टिक बर्तन को ज्यादा गर्म कर देते हैं. एक सीमा तक ये ठीक होता है लेकिन 260 डिग्री से ज्यादा तापमान पर ये बर्तन धुएं के जरिए घातक रसायन छोड़ता है. नॉन स्टिक बर्तन ज्यादा गर्म होने पर धुआं छोड़ने लगते हैं और इस धुएं में परफ्लुरोऑक्टेनोइक एसिड और दूसरे फ्लोरिनेटेड कंपाउंड जैसे जहरीले रसायन होते हैं, जो सांस के जरिए हमारे शरीर के अंदर पहुंच जाते हैं और टेफलॉन फ्लू का कारण बनते हैं.

नॉन स्टिक बर्तनों से खाना बनाते समय काफी तेज आंच रखने की वजह से टेफ्लॉन फ्लू बीमारी का खतरा बढ़ रहा है. इसे पॉलीमर फ्यूम फीवर भी कहा जाता है और नॉन स्टिक बर्तन के ज्यादा गर्म होने के कारण इससे निकलने वाले जहरीले रसायन कई बीमारियों का कारण बनते हैं.

टेफ्लॉन फ्लू के लक्षण

नॉन स्टिक बर्तन के ज्यादा गर्म होने के कारण निकलने वाले जहरीले रसायन सांस के जरिए हमारे शरीर में पहुंच जाते हैं. जिससे बुखार के साथ ठंड लगना, सिर दर्द, मतली, खांसी और गले में खराश जैसे लक्षण कुछ ही घंटे में दिखाई देने लगते हैं. हालांकि समय पर टेफ्लॉन फ्लू का पता लग जाने पर आसानी से ठीक किया जाता है लेकिन नजरअंदाज करने पर ये चिंताजनक स्थिति में पहुंच सकता है.

टेफ्लॉन फ्लू से बचाव

जानकार कहते हैं कि टेफ्लॉन फ्लू से आसानी से बचा जा सकता है और इससे बचने के लिए कुछ एहतियात बरतनी होती है. सबसे पहले हमें ये ध्यान रखना होता है कि अगर हमें कुछ भी ज्यादा तेज आंच पर पकाना है तो नॉन स्टिक बर्तन का उपयोग नहीं करना चाहिए. नॉन स्टिक बर्तन पर कुछ भी पकाते समय ज्यादा तेज आंच नहीं रखना चाहिए. यदि ज्यादा देर तक नॉन स्टिक बर्तन में खाना पकाते हैं तो ये ध्यान रखना चाहिए कि किचन में वेंटिलेशन की व्यवस्था हो. अगर नॉन स्टिक बर्तन गर्म होकर घातक रसायन छोड़ने भी लगे तो वह खिड़की के जरिए बाहर निकल जाएं.

खाना पकाने के लिए पीतल या कांसा में कौन है बेस्ट

पीतल और कांसा सदियों से भारतीय रसोई का हिस्सा रहे हैं. खाना बनाने में इनका इस्तेमाल अब भले ही लोग नहीं करते हैं लेकिन पीतल और कांसे के बने बर्तनों में बने खाने का स्वाद ही अलग होता है. पीतल के बर्तन में टीन की परत नहीं होनी चाहिए और कांसे के बर्तन को वैसे ही उपयोग कर सकते हैं. ये दोनों बर्तन खाना पकाने के लिए बहुत अच्छे माने जाते हैं. एक्सपर्ट्स बताते हैं कि पीतल के बर्तन में पके खाने में नेचुरल फ्लेवर मिलता है. इन बर्तनों में समय के साथ ऑक्साइड की एक लेयर विकसित हो जाती है जो एसिडिक चीजों के साथ आसानी से घुल जाती है. कांसे के बर्तन में खट्टी चीजें बनाने से बचना चाहिए. ऐसा कहा जाता है कि कांसे के बर्तन में खाना खाने से दिमाग तेज होता है और खून साफ होता है. एसिडिटी की भी समस्या नहीं होती. कांसे के बर्तनों में खट्टी चीजें भी नहीं खानी चाहिए. बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज के एसोसिएट प्रोफेसर डाॅ सुमित रावत भी मानते हैं कि हमें परंपरागत बर्तनों का उपयोग ज्यादा करना चाहिए.

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'कई बीमारियों का बढ़ता है खतरा'

बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज के एसोसिएट प्रोफेसर डाॅ सुमित रावत बताते हैं कि "टेफ्लॉन एक ऑर्गेनिक मटेरियल है जिससे बर्तनों की कोडिंग बनाई जाती है. ये पाॅलीटेट्रा फ्लूरोएथिलिन कम्पाउंड की श्रेणी में आता है. उसको जरूरत से ज्यादा गरम किया जाता है और जब ये 260 ℃ तापमान से ऊपर पहुंच जाता है तो घातक रसायन छोड़ता है. नॉनस्टिक बर्तनों पर लगातार खाना पकाकर खाना हानिकारक है. चाइनीज फूड बनाने में तेज प्लेम का उपयोग किया जाता है. वहीं महिलाएं भी जल्दबाजी में तेज आंच पर खाना पकाती हैं. ऐसी स्थिति में इससे जो धुंआ निकलता है वो हमारी श्वांस नली में जा सकता है. इससे सर्दी खांसी, हल्का निमोनिया और एलर्जी के लक्षण के साथ लगातार खांसी और बुखार आने लगता है. इसको हम टेफ्लाॅन फ्लू के नाम से जानते हैं इसलिए नाॅन स्टिक बर्तन में खाना धीमी आंच पर पकाना चाहिए. इसको ज्यादा तेज आंच पर नहीं पकाना चाहिए. बेहतर ये होगा कि हम परम्परागत बर्तनों का उपयोग ज्यादा करें."

Non Stick Pan Side Effects: घर का किचन जहां कई बीमारियों को कंंट्रोल करने में मददगार होता है तो कई बीमारियों को हम निमंत्रण भी किचन के जरिए दे रहे हैं. हमारे खान-पान के अलावा खाना पकाने के तरीके भी कई बीमारियों का कारण बनते हैं. किचन में उपयोग होने वाले बर्तन भी बीमारी का कारण बन सकते हैं. ये सुनकर आपको भले ही अचरज होगा लेकिन बदलते समय के साथ किचिन में नॉन स्टिक बर्तनों की संख्या बढ़ रही है. इन्ही नॉन स्टिक बर्तनों से टेफ्लान फ्लू नाम की बीमारी का खतरा भी बढ़ रहा है. दरअसल आजकल नॉन स्टिक बर्तनों का उपयोग काफी बढ़ गया है और यही बर्तन बीमारी का कारण भी बन रहे हैं.

नॉन स्टिक बर्तनों में खाना पकाने से होती हैं बीमारियां (ETV Bharat)

नॉन स्टिक बर्तनों में क्या है ऐसा

नॉन स्टिक बर्तनों में पॉलीटेट्रा फ्लुरोएथिलिन की कोडिंग की जाती है, जिसे आम भाषा में टेफ्लॉन के नाम से भी जाना जाता है. नॉन स्टिक बर्तन में खाना बनाते समय आमतौर पर लोग एक बड़ी गलती कर जाते हैं और जल्दबाजी या विशेष स्वाद के लिए नॉन स्टिक बर्तन को ज्यादा गर्म कर देते हैं. एक सीमा तक ये ठीक होता है लेकिन 260 डिग्री से ज्यादा तापमान पर ये बर्तन धुएं के जरिए घातक रसायन छोड़ता है. नॉन स्टिक बर्तन ज्यादा गर्म होने पर धुआं छोड़ने लगते हैं और इस धुएं में परफ्लुरोऑक्टेनोइक एसिड और दूसरे फ्लोरिनेटेड कंपाउंड जैसे जहरीले रसायन होते हैं, जो सांस के जरिए हमारे शरीर के अंदर पहुंच जाते हैं और टेफलॉन फ्लू का कारण बनते हैं.

नॉन स्टिक बर्तनों से खाना बनाते समय काफी तेज आंच रखने की वजह से टेफ्लॉन फ्लू बीमारी का खतरा बढ़ रहा है. इसे पॉलीमर फ्यूम फीवर भी कहा जाता है और नॉन स्टिक बर्तन के ज्यादा गर्म होने के कारण इससे निकलने वाले जहरीले रसायन कई बीमारियों का कारण बनते हैं.

टेफ्लॉन फ्लू के लक्षण

नॉन स्टिक बर्तन के ज्यादा गर्म होने के कारण निकलने वाले जहरीले रसायन सांस के जरिए हमारे शरीर में पहुंच जाते हैं. जिससे बुखार के साथ ठंड लगना, सिर दर्द, मतली, खांसी और गले में खराश जैसे लक्षण कुछ ही घंटे में दिखाई देने लगते हैं. हालांकि समय पर टेफ्लॉन फ्लू का पता लग जाने पर आसानी से ठीक किया जाता है लेकिन नजरअंदाज करने पर ये चिंताजनक स्थिति में पहुंच सकता है.

टेफ्लॉन फ्लू से बचाव

जानकार कहते हैं कि टेफ्लॉन फ्लू से आसानी से बचा जा सकता है और इससे बचने के लिए कुछ एहतियात बरतनी होती है. सबसे पहले हमें ये ध्यान रखना होता है कि अगर हमें कुछ भी ज्यादा तेज आंच पर पकाना है तो नॉन स्टिक बर्तन का उपयोग नहीं करना चाहिए. नॉन स्टिक बर्तन पर कुछ भी पकाते समय ज्यादा तेज आंच नहीं रखना चाहिए. यदि ज्यादा देर तक नॉन स्टिक बर्तन में खाना पकाते हैं तो ये ध्यान रखना चाहिए कि किचन में वेंटिलेशन की व्यवस्था हो. अगर नॉन स्टिक बर्तन गर्म होकर घातक रसायन छोड़ने भी लगे तो वह खिड़की के जरिए बाहर निकल जाएं.

खाना पकाने के लिए पीतल या कांसा में कौन है बेस्ट

पीतल और कांसा सदियों से भारतीय रसोई का हिस्सा रहे हैं. खाना बनाने में इनका इस्तेमाल अब भले ही लोग नहीं करते हैं लेकिन पीतल और कांसे के बने बर्तनों में बने खाने का स्वाद ही अलग होता है. पीतल के बर्तन में टीन की परत नहीं होनी चाहिए और कांसे के बर्तन को वैसे ही उपयोग कर सकते हैं. ये दोनों बर्तन खाना पकाने के लिए बहुत अच्छे माने जाते हैं. एक्सपर्ट्स बताते हैं कि पीतल के बर्तन में पके खाने में नेचुरल फ्लेवर मिलता है. इन बर्तनों में समय के साथ ऑक्साइड की एक लेयर विकसित हो जाती है जो एसिडिक चीजों के साथ आसानी से घुल जाती है. कांसे के बर्तन में खट्टी चीजें बनाने से बचना चाहिए. ऐसा कहा जाता है कि कांसे के बर्तन में खाना खाने से दिमाग तेज होता है और खून साफ होता है. एसिडिटी की भी समस्या नहीं होती. कांसे के बर्तनों में खट्टी चीजें भी नहीं खानी चाहिए. बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज के एसोसिएट प्रोफेसर डाॅ सुमित रावत भी मानते हैं कि हमें परंपरागत बर्तनों का उपयोग ज्यादा करना चाहिए.

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कढ़ाई में बचा कुकिंग ऑयल सेहत पर कितना भारी, इस्तेमाल करने से पहले सौ बार सोच लें

'कई बीमारियों का बढ़ता है खतरा'

बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज के एसोसिएट प्रोफेसर डाॅ सुमित रावत बताते हैं कि "टेफ्लॉन एक ऑर्गेनिक मटेरियल है जिससे बर्तनों की कोडिंग बनाई जाती है. ये पाॅलीटेट्रा फ्लूरोएथिलिन कम्पाउंड की श्रेणी में आता है. उसको जरूरत से ज्यादा गरम किया जाता है और जब ये 260 ℃ तापमान से ऊपर पहुंच जाता है तो घातक रसायन छोड़ता है. नॉनस्टिक बर्तनों पर लगातार खाना पकाकर खाना हानिकारक है. चाइनीज फूड बनाने में तेज प्लेम का उपयोग किया जाता है. वहीं महिलाएं भी जल्दबाजी में तेज आंच पर खाना पकाती हैं. ऐसी स्थिति में इससे जो धुंआ निकलता है वो हमारी श्वांस नली में जा सकता है. इससे सर्दी खांसी, हल्का निमोनिया और एलर्जी के लक्षण के साथ लगातार खांसी और बुखार आने लगता है. इसको हम टेफ्लाॅन फ्लू के नाम से जानते हैं इसलिए नाॅन स्टिक बर्तन में खाना धीमी आंच पर पकाना चाहिए. इसको ज्यादा तेज आंच पर नहीं पकाना चाहिए. बेहतर ये होगा कि हम परम्परागत बर्तनों का उपयोग ज्यादा करें."

Last Updated : Jul 25, 2024, 6:38 PM IST
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