नेटफ्लिक्स की डॉक्यूमेंट्री द रोशन्स बॉलीवुड के रोशन परिवार की सफलता का जश्न मनाती है. जिसमें तीन पीढ़ियों-संगीतकार रोशन लाल नागरथ, उनके बेटे संगीतकार राजेश रोशन और फिल्म निर्देशक राकेश रोशन और राकेश रोशन के बेटे ऋतिक रोशन. इनके अलावा इस सीरीज में शाहरुख खान, संजय लीला भंसाली, करण जौहर, शत्रुघ्न सिन्हा, अनुपम खेर, जावेद अख्तर, फरहान अख्तर, अभिषेक बच्चन, आशा भोंसले, सुमन कल्याणपुर, सोनू निगम, उषा मंगेशकर और कुमार सानू जैसे उद्योग के दिग्गज शामिल हैं.
साल 1967 में अपने संगीतकार पिता की मृत्यु के बाद राकेश ने बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में इंडस्ट्री में शुरुआत की. इसके बाद उन्होंने खूबसूरत, खेल खेल में, खट्टा-मीठा जैसी फिल्मों में एक्टिंग की. वहीं खून भरी मांग, करण-अर्जुन, कहो ना...प्यार है, कोई मिल गया और कृष जैसी हिट फिल्मों के साथ उन्होंने अपने निर्देशन का लोहा मनवाया.
ऐसा कैसे हुआ कि जब आपने यह डॉक्यूमेंट्री द रोशन्स बनाने का फैसला किया तो आपके दिमाग में सिर्फ आपके पिता [संगीतकार रोशन लाल नागरथ] ही थे? क्या आप खुद को, अपने बेटे ऋतिक और भाई राजेश रोशन को सफल नहीं मानते थे?
'शायद यह हमारे डीएनए में है कि हम अपनी अचीवमेंट्स का बखान नहीं करना चाहते, हम ये मानते हैं कि अपने काम को बोलने दो, उसके बारे में बात क्यों करें? लेकिन अब मुझे लगता है कि हमें अपने संघर्षों के बारे में बात करनी चाहिए. दर्शकों को सिर्फ खुशनुमा तस्वीर ही दिखती है, ऐसा नहीं है, हम किसी भी दूसरे परिवार की तरह बहुत ही घरेलू और आम लोग हैं. लेकिन इस डॉक्यूमेंट्री का विचार लगभग सात साल पहले आया जब मुझे एक पुराना ट्रांजिस्टर मिला, जिसमें कई मशहूर संगीतकारों के पुराने गाने थे. उसमें 5,000 से 10,000 गाने थे. लेकिन जब मुझे अपने पिता का कोई भी काम नहीं मिला, तो मैं हैरान रह गया. मुझे बहुत दुख और ठेस पहुंची, इससे मेरी रातों की नींद उड़ गई. मैं सोच रहा था कि ऐसा कैसे संभव हो सकता है, जबकि उन्होंने इंडस्ट्री और दुनिया को इतना प्यारा संगीत दिया है. उनका एक भी गाना नहीं था. मैं उनका नाम वापस लाना चाहता था. फिर एक दिन मैं एक कार्यक्रम में शशि रंजन [डॉक्यू-सीरीज के निर्देशक] से बात कर रहा था और उन्होंने मुझे यह विचार दिया कि क्यों न मैं अपने पिता पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाऊं. ऐसे भी कई लोग हैं जो आज भी उनके गाने सुनते हैं लेकिन वे नहीं जानते कि यह किसका संगीत है.
आपने कहा है कि आपके पिता के कारण इंडस्ट्री के लोगों ने आपको स्वीकार किया है.
'हां, जब वे हमें छोड़कर चले गए, तब मैं और मेरा भाई दोनों बहुत छोटे थे. उस समय, मुझे नहीं पता था कि हमारे आस-पास क्या हो रहा था. हम बच्चे थे और मुझे बस इतना याद है कि हम उन्हें काम करते हुए देखते थे. मेरे पिता के निधन के बाद और मैंने असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में काम करना शुरू किया, तभी मुझे एहसास हुआ कि मेरे पिता का इतना बड़ा नाम है. क्योंकि जब मैं बताता था कि मैं मिस्टर रोशन का बेटा हूं तो मुझे बहुत सम्मान मिलता था. मुझे उन्हीं की वजह से अच्छा काम मिला. इसलिए, तभी से मैंने अपना नाम नागरथ से बदलकर रोशन करने का फैसला किया और इस तरह मैं राकेश रोशन बन गया. उन्होंने हमारे लिए जो सम्मान छोड़ा है, उसके कारण हमारी यह जिम्मेदारी थी कि हम इस विरासत को आगे बढ़ाएं'.
'द रोशन्स' देखने के बाद आपको लोगों और इंडस्ट्री के लोगों से कैसा रिएक्शन मिला ?
'मैंने अपने करियर में 17 फिल्में बनाई हैं, लेकिन इस डॉक्यूमेंट्री के स्ट्रीम होने के बाद मुझे इतने सारे मैसेज मिले जो इन 17 फिल्मों के दौरान भी नहीं मिले. यह सुनकर बहुत खुशी हुई जब लोगों ने कहा, ‘ओह, हमें नहीं पता था कि ये बेहतरीन म्यूजिक आपके पिता ने बनया हैं'. कुछ लोग तो मेरे भाई राजेश के काम के बारे में भी नहीं जानते थे. काफी लोगों ने मेरे द्वारा निर्देशित फिल्में देखी हैं और वे मेरे और ऋतिक के फैन हैं लेकिन मेरे पिता को मिली तारीफ ने मुझे बहुत खुश कर दिया और मुझे बहुत खुशी है कि मैं उनके लिए कुछ कर सका'.
इस डॉक्यूमेंट्री पर ऋतिक के बेटों का क्या कहना है?
'उन्हें भी अपने दादा के बारे में कुछ नहीं पता था और उन्होंने भी रोशन को देखने के बाद बहुत कुछ सीखा. कहीं न कहीं उनके दिमाग में यह बात जरूर होगी कि ‘ओह मेरे दादाजी का जन्म गैराज में हुआ था. उन्होंने कैसे शुरुआत की और कहां पहुंचे..’ उन्हें भी डॉक्यूमेंट्री देखकर प्रेरणा मिली होगी'.
आप अपनी फिल्मों करण अर्जुन और कहो ना… प्यार है की री-रिलीज के बारे में क्या कहेंगे ?
'मुझे खुशी है कि मैंने बहुत दृढ़ विश्वास के साथ कई विषयों पर फिल्में बनाई हैं और लोगों को विश्वास दिलाया और यही एक फिल्म निर्माता के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि है. मैंने दो विषय बनाए - करण अर्जुन पुनर्जन्म पर और कहो ना… प्यार है जिसमें एक नए कलाकार ने डबल रोल किया और मैं इसे भी एक बड़ा अचीवमेंट मानता हूं. इन फिल्मों को फिर से रिलीज करना एक जश्न मनाने जैसा है'.
करण अर्जुन को फिल्माना कितना मुश्किल काम था, क्योंकि शाहरुख खान कहानी से जुड़ नहीं पा रहे थे और शाहरुख और सलमान दोनों को ही फिल्म पर भरोसा नहीं था.
'जब शाहरुख फिल्म करने के लिए आए जो उन्होंने मुझसे कहा कि उन्हें कहानी कुछ खास नहीं लग रही है. लेकिन वह वही करेंगे जो मैं उनसे करवाना चाहूंगा और फिर कुछ सालों बाद, उन्होंने ओम शांति ओम बनाई, जो पुनर्जन्म की ही कहानी थी'.
क्या आप इस डॉक्यूमेंट्री में और कोई भी छूटा है जो इसका हिस्सा नहीं बन सका ?
'मैंने डॉक्यूमेंट्री में उन सभी लोगों को शामिल किया जिन्होंने मेरे और राजेश के साथ काम किया था. मेरे पिता के समय से केवल आशा भोसले, सुमन कल्याणपुर, सुधा मल्होत्रा, आनंदजी थे... इसलिए हम केवल उन चार या पांच लोगों को ही ला पाए जिन्होंने मेरे पिता के साथ काम किया था. लेकिन जिन्होंने मेरे और राजेश के साथ काम किया, हमने उन सभी लोगों को आमंत्रित किया और वे सभी योगदान देने में खुश थे क्योंकि उन्हें भी कहीं न कहीं लगा होगा कि रोशन को पहचान की जरूरत है. मुझे लगता है अगर हमारा काम अच्छा नहीं होता तो इंडस्ट्री के लोग नहीं आते कोई ना कोई बहाना बना देते'.
तीन पीढ़ियों में इतनी प्रतिभा को आगे ले जाना और विरासत को आगे बढ़ाना आसान नहीं है.. इस सफलता का मंत्र क्या है?
'एकमात्र मंत्र यह है कि हम सभी बहुत मेहनती हैं, हम जीवन में कुछ हासिल करना चाहते हैं और इसमें हम कोई कसर नहीं छोड़ते'.