सिडनी : एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय परीक्षा के नतीजों से ऑस्ट्रेलियाई स्कूली छात्रों के बीच गणित में लैंगिक अंतराल की चिंताजनक स्थिति सामने आई है. ट्रेंड्स इन इंटरनेशनल मैथमेटिक्स एंड साइंस स्टडी (टीआईएमएसएस) 2023 में ऑस्ट्रेलिया के लड़कों ने लड़कियों की तुलना में काफी बेहतर प्रदर्शन किया.
परीक्षा में शामिल हुए 58 देशों के चौथी कक्षा के लड़कों और लड़कियों के प्रदर्शन में ऑस्ट्रेलिया में सबसे अधिक लैंगिक अंतराल रहा. आठवीं कक्षा के छात्राओं के लिए भी स्थिति कुछ बेहतर नहीं है क्योंकि इस मामले में 42 देशों में ऑस्ट्रेलिया 12वें स्थान पर है. यह साक्षरता के विपरीत है, जहां लैंगिक अंतराल या तो बहुत कम है, या लड़कियां लड़कों से बेहतर प्रदर्शन करती हैं.
यह अंतर क्यों है?
अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ता दशकों से गणित में लैंगिक अंतराल के बारे में जानते हैं और यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि ऐसा क्यों है और इसे कैसे ठीक किया जाए. पहले यह सुझाव दिया गया था कि लड़के लड़कियों की तुलना में गणित में बेहतर होते हैं. हालांकि, इस बात को पूरी तरह से खारिज कर दिया गया है, क्योंकि कई अध्ययनों में पाया गया है कि गणित की क्षमता में लड़के और लड़कियों के बीच कोई सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण जैविक अंतर नहीं है. फिर भी आंकड़े लगातार दिखाते हैं कि स्कूल में सबसे उन्नत गणित पाठ्यक्रमों में लड़कियों का प्रतिनिधित्व कम है.
‘लड़कों’ का विषय?
अध्ययनों से पता चलता है कि सामाजिक कारक और व्यक्तिगत प्रेरणा गणित में लैंगिक अंतराल में अहम भूमिका निभा रहे हैं. शोध में पाया गया है कि रूढ़िवादी रुख एक समस्या है, क्योंकि गणित को ‘लड़कों का विषय’ माना जाता है. ये विचार छोटी उम्र से ही विकसित होने लगते हैं, यहां तक कि पांच साल की उम्र से ही. ये रूढ़िवादिता लड़कियों में गणित के प्रति उनकी धारणा पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है, जिसका असर उनके प्रदर्शन पर पड़ता है. लड़कियों में गणित को लेकर घबराहट का भाव विकसित होने की आशंका अधिक होती है, जो उनकी क्षमता के प्रति आत्मविश्वास की कमी के कारण हो सकता है.
इस लैंगिक अंतराल का एक और संभावित कारण यह है कि लड़कियों के लिए खुद को गणित में कुशल समझना लड़कों जितना महत्वपूर्ण नहीं है. यह विषय में रुचि और उसके बाद के प्रदर्शन में अंतर से जुड़ा हुआ है. यह देखते हुए कि अभी और भविष्य में कार्यस्थलों के लिए गणितीय कौशल कितने महत्वपूर्ण हैं, हमें इन दृष्टिकोणों को बदलने की जरूरत है.
हम क्या कर सकते हैं?
दुर्भाग्य से, इसका कोई सरल उत्तर नहीं है. हालांकि, हम इस अंतराल को कम करने में मदद करने के लिए तीन रणनीतियों की सलाह देते हैं.
1) गणित के मामले में लड़कों और लड़कियों के साथ समान व्यवहार करें: लड़कों से लड़कियों की तुलना में अधिक चुनौतीपूर्ण गणित की अपेक्षा करने की एक प्रवृत्ति है. यदि माता-पिता और शिक्षक लड़कियों से कम अपेक्षा करते हैं, तो हम इस रूढ़ि को बढ़ावा दे रहे हैं कि गणित ‘‘लड़कों के लिए अधिक उपयुक्त है.’’
केवल यह विश्वास रखने से कि लड़के गणित में बेहतर होते हैं, गणित में लड़कों के साथ अधिक समय बिताने या उन पर अधिक ध्यान देने की प्रवृत्ति पैदा हो सकती है. यह उन व्यवहारों में भी देखा जा सकता है, जहां हम सोचते हैं कि हम सहायक हो रहे हैं, जैसे कि किसी लड़की को आश्वस्त करना, ‘‘यदि तुम गणित में अच्छी नहीं हो तो कोई बात नहीं!’’
2) लड़कियों से गणित के बारे में बात करें: जब वास्तविक उपलब्धि के साथ तुलना की जाती है तो लड़कियां गणित में कम आत्मविश्वास होने की बात कहती हैं. इसका अभिप्राय है कि लड़कियों को अपनी क्षमता के बारे में गलत धारणाएं हो सकती हैं. इसलिए हमें यह समझने की जरूरत है कि उन्हें कैसा लगता है कि वे आगे बढ़ रही हैं और यह सुनिश्चित करना होगा कि वे अपनी वास्तविक प्रगति को समझें.
3) गणित में लड़कियों को प्रेरित करने के लिए इंजीनियर, अर्थशास्त्री, डेटा वैज्ञानिक, और सॉफ्टवेयर डेवलपर के तौर पर उपलब्धि हासिल करने वाली महिलाओं का आदर्श प्रस्तुत करें.
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