हैदराबादः कक्षा की दीवारों से परे, शिक्षक का प्रभाव हमारे समाज में भी फैला हुआ है. युवा दिमागों को ढालने और आवश्यक मूल्यों को स्थापित करने के माध्यम से, शिक्षक सामाजिक चुनौतियों से निपटने के लिए सुसज्जित अच्छे नागरिकों को विकसित करने में योगदान देते हैं. भारत में शिक्षक दिवस 5 सितंबर को डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती के अवसर पर मनाया जाता है.
महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मूर्मू जी द्वारा शिक्षक दिवस के अवसर पर शिक्षा व समाज निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले चयनित शिक्षकों को 'राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार 2024' से सम्मानित किया जाएगा।@rashtrapatibhvn @narendramodi @PMOIndia @sanjayjavin @KVS_HQ @cbseindia29… pic.twitter.com/UiF4qXQAZn
— Ministry of Education (@EduMinOfIndia) September 4, 2024
पहला शिक्षक दिवस समारोह
जब डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के राष्ट्रपति बने, तो उनके कुछ छात्रों और मित्रों ने उनसे अनुरोध किया कि वे उन्हें 5 सितंबर को अपना जन्मदिन मनाने की अनुमति दें. उन्होंने उत्तर दिया, "मेरा जन्मदिन मनाने के बजाय, यह मेरे लिए गर्व की बात होगी यदि 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए." डॉ. राधाकृष्णन के सुझाव के बाद भारत में पहला शिक्षक दिवस 5 सितंबर 1962 को मनाया गया था. तब से उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है.
कौन थे डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
- डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के दूसरे राष्ट्रपति थे. वे 13 मई, 1962 से 13 मई, 1967 तक इस पद पर रहे. 5 सितंबर, 1888 को आंध्र प्रदेश के एक छोटे से शहर में जन्मे राधाकृष्णन एक प्रतिष्ठित विद्वान, दार्शनिक और राजनेता थे, जिनके प्रभाव ने भारत के शैक्षिक और राजनीतिक परिदृश्य पर गहरी छाप छोड़ी है.
- राधाकृष्णन ने मद्रास के क्रिश्चियन कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की और मैसूर विश्वविद्यालय और कलकत्ता विश्वविद्यालय सहित कई प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर के रूप में काम किया. उनके दार्शनिक और बौद्धिक प्रयासों ने उन्हें ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पूर्वी धर्म और नैतिकता के स्पैलिंग प्रोफेसर का पद दिलाया.
- तुलनात्मक धर्म और दर्शन पर उनके काम ने पश्चिमी दुनिया को भारतीय दर्शन से परिचित कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. राधाकृष्णन समाज के लिए एक परिवर्तनकारी उपकरण के रूप में शिक्षा के सिद्धांतों में भी दृढ़ विश्वास रखते थे.
- राधाकृष्णन के राजनीतिक जीवन में कई महत्वपूर्ण पद शामिल हैं, जिनमें 1949 से 1952 तक सोवियत संघ में भारतीय राजदूत के रूप में उनका कार्यकाल भी शामिल है. राष्ट्रपति चुने जाने से पहले वे 1952 से 1962 तक भारत के उपराष्ट्रपति रहे.
- अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान, राधाकृष्णन को उनकी बुद्धिमत्ता, विद्वता और भारतीय संस्कृति और दर्शन की गहरी समझ के लिए सम्मानित किया गया. उनके कार्यकाल की विशेषता भारतीय संविधान में निहित लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता थी.
- डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का निधन 17 अप्रैल, 1975 को हुआ था. उनके जन्मदिन, 5 सितंबर को भारत में 'शिक्षक दिवस' के रूप में मनाया जाता है, जो शिक्षा और दर्शन में उनके योगदान को श्रद्धांजलि देता है.
- डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान दार्शनिक, महान शिक्षक, महान विचारक, महान मानवतावादी व्यक्तित्व, अध्यात्मवादी, मिशनरी, सिद्धांतवादी, प्रख्यात लेखक, शिक्षाविद्, भारत गणराज्य के प्रथम उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति थे. उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया.
Hon’ble President of India Smt. Droupadi Murmu will confer the National Awards to the Teachers on 5th September 2024 at 4:15 PM onwards, in a function to be held at Vigyan Bhawan, New Delhi. Each year, this prestigious award honours exceptional teachers who, through their… pic.twitter.com/zn91DddtWm
— Ministry of Education (@EduMinOfIndia) September 4, 2024
डॉ. राधाकृष्णन के विचार
- डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का दर्शन अद्वैत वेदांत पर आधारित था, इसलिए वे एक तरह के आदर्शवादी दार्शनिक थे। उन्होंने भारतीय दर्शन की तुलना पश्चिमी दार्शनिक विचारधाराओं से की. उन्होंने अज्ञानी पश्चिमी आलोचना के विरुद्ध हिंदू धर्म और भारतीय दर्शन का महिमामंडन किया.
- डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (1956) ने कहा, “शिक्षा को पूर्ण होने के लिए मानवीय होना चाहिए, इसमें न केवल बुद्धि का प्रशिक्षण शामिल होना चाहिए, बल्कि हृदय का परिष्कार और आत्मा का अनुशासन भी शामिल होना चाहिए. कोई भी शिक्षा पूर्ण शिक्षा नहीं मानी जा सकती, क्योंकि इसमें हृदय और आत्मा की उपेक्षा की जाती है.
- डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन अद्वैत वेदांत पर आधारित आदर्शवादी थे, इसलिए शिक्षा का मुख्य उद्देश्य भौतिक दुनिया के साथ समन्वय में आत्मा का उत्थान करना था, ताकि परम सत्य की खोज की जा सके। उन्होंने शिक्षा द्वारा बच्चों के समग्र विकास पर जोर दिया.
- डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने जीवन केंद्रित शिक्षा पर जोर दिया था, इसलिए पाठ्यक्रम इसी पर आधारित होना चाहिए. आलोचनात्मक समझ, रचनात्मकता का पोषण, तार्किक सोच को बढ़ाना, इन सभी की परिकल्पना एनईपी-2020 में भी की गई है.
- उन्होंने कक्षाओं में विषय-वस्तु प्रदान करने में सूचना संचार प्रौद्योगिकी के उपयोग का भी सुझाव दिया. शिक्षा का माध्यम बच्चों की मातृभाषा होनी चाहिए.
- डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षक के प्रति बहुत सजग थे. उन्होंने कहा कि शिक्षक समाज का दर्पण होता है और विद्यार्थी अपने शिक्षक के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित होते हैं.
- डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का मानना था कि अनुशासन व्यक्ति का निजी मामला है, इसे लागू नहीं किया जा सकता. यह आत्मा के अंदर से आना चाहिए, इसलिए वे आत्म अनुशासन में विश्वास करते थे. योग और आध्यात्मिक गतिविधियों से विद्यार्थियों में आत्म अनुशासन का पोषण किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि अच्छे चरित्र से अच्छा अनुशासन बनता है, इसलिए चरित्र निर्माण शिक्षा का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए.
- डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने विभिन्न तरीकों से महिला शिक्षा पर जोर दिया. उनके विचार में महिलाएं समाज का सबसे महत्वपूर्ण तत्व हैं. समाज के विकास के लिए महिलाओं की शिक्षा बहुत आवश्यक है. एक महिला दो परिवारों में शिक्षा का प्रकाश फैला सकती है, पहला अपने मायके में और दूसरा विवाह के बाद अपने पति के परिवार में.
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग की रिपोर्ट में निम्नलिखित शिक्षण पद्धतियां का सुझाव दिया थाः
- ध्यान
- संगोष्ठी
- करके सीखना
- पाठ्यपुस्तक पद्धति
- चर्चा के माध्यम से शिक्षण
शिक्षक दिवस 2024 की थीम
शिक्षक दिवस 2024 की थीम ‘शिक्षकों को सशक्त बनाना: लचीलापन मजबूत करना, स्थिरता का निर्माण करना’ है.
राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार
- राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार 2024 चयनित शिक्षकों को 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के अवसर पर प्रदान किया जाएगा.
- राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू 50 शिक्षकों को राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित करेंगी. पुरस्कार समारोह नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित किया जाएगा.
- राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार का उद्देश्य देश के कुछ बेहतरीन शिक्षकों के अद्वितीय योगदान का जश्न मनाना और उन शिक्षकों को सम्मानित करना है जिन्होंने अपनी प्रतिबद्धता और मेहनत से न केवल स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार किया है बल्कि अपने छात्रों के जीवन को भी समृद्ध बनाया है.
- इस पुरस्कार को प्राप्त करने वाले शिक्षकों को उनकी उत्कृष्टता के सम्मान में ₹50,000 का नकद पुरस्कार, एक रजत पदक और एक प्रशस्ति पत्र दिया जाएगा.