नई दिल्ली: आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने आज छठी बार रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया है. इसका मतलब है कि लोन पर लगने वाले ब्याज दरों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. लेकिन क्या आपको पता है रेपो रेट होता है क्या है और इसका असर आपके लोन पर कैसे पड़ता है. अगर नहीं जानते तो ये खबर आपके लिए बहुत जरूरी है. इस खबर के माध्यम से हम आपको बताएंगे कैसे रेपो रेट का असर हमारे लोन पर पड़ता है.
रेपो रेट क्या है?
रेपो दर, जिसे रिपरचेज रेट के रूप में भी जाना जाता है, वह ब्याज दर है जिस पर केंद्रीय बैंक किसी देश में कमर्शियल बैंकों को पैसा उधार देता है. दूसरे शब्दों में, यह वह रेट है जिस पर कमर्शियल बैंक अपनी शॉर्ट टर्म लिक्विडिटी जरूरतों को पूरा करने के लिए केंद्रीय बैंक से पैसे उधार ले सकते हैं.
जब किसी कमर्शियल बैंक को अपनी लिक्विडिटी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पैसे की जरुरत होती है, तो वह सरकारी सिक्योरिटी जैसे कोलेटरल प्रदान करके केंद्रीय बैंक से उधार ले सकता है. रेपो रेट वह ब्याज दर है जिस पर केंद्रीय बैंक कोलेटरल के बदले कमर्शियल बैंक को पैसा उधार देता है. कमर्शियल बैंक को एक भविष्य की तारीख पर उधार ली गई पैसे और ब्याज चुकाना होगा, जिस समय वह कोलेटरल को रिपरचेज करता है.
अब जानते हैं रेपो रेट का असर हमारे लोन पर कैसे पड़ता है?
रेपो रेट का असर लोन की ब्याज दरों पर पड़ सकता है. जब केंद्रीय बैंक रेपो रेट को कम करता है, तो यह कमर्शियल बैंकों के लिए केंद्रीय बैंक से पैसा उधार लेना सस्ता कर देता है, जिससे ब्याज दरों में कमी आ सकती है. इससे लेंडर के लिए लोन को चुकाना अधिक किफायती हो जाता है. इसलिए रेपो रेट में बदलाव से लोन पर असर पड़ सकता है.
यहां जानें रेपो रेट में बदलाव लोन को कैसे प्रभावित कर सकता है,
ब्याज दर- लोन की ब्याज दरें अक्सर केंद्रीय बैंक द्वारा निर्धारित रेपो दर से जुड़ी होती हैं. जब रेपो रेट बढ़ता है, तो बैंक आमतौर पर अपने लोन पर ब्याज दर बढ़ा देते हैं. इसका मतलब यह है कि लेडर को अपने लोन पर अधिक ब्याज देना होगा, जिससे उनका मासिक भुगतान बढ़ जाएगा.ईएमआई- समान मासिक किश्तों (ईएमआई) पर रेपो रेट का असर पड़ेगा. अगर रेपो रेट में बढ़ोतरी होगी तो ईएमआई भी बढ़ेगी. इसी तरह रेपो रेट घटने से ईएमआई में भी कमी आएगी.
टेन्योर- रेपो रेट में बदलाव का असर लोन के टेन्योर पर भी पड़ सकता है. जब ब्याज दर बढ़ती है, तो लोन की टेन्योर भी बढ़ सकता है, क्योंकि लेंडर को लोन चुकाने के लिए हर महीने अधिक भुगतान करना होगा. इसी तरह, जब ब्याज दर घटती है, तो लोन की अवधि घट सकती है, क्योंकि लेंडर को लोन चुकाने के लिए हर महीने कम भुगतान करना होगा.
लोन एलिजिबिलिटी- ब्याज दरों में बदलाव से होम लोन की एलिजिबिलिटी मानदंड पर भी असर पड़ सकता है. जब ब्याज दरें कम होती हैं, तो उधारकर्ता अधिक लोन राशि के लिए एलिजिबल हो सकते हैं क्योंकि मासिक रीपेमेंट राशि कम होती है. वहीं, जब ब्याज दरें अधिक होती हैं, तो उधारकर्ता कम लोन राशि के लिए एलिजिबल हो सकते हैं क्योंकि मासिक रीपेमेंट राशि अधिक होती है.