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RBI ने सब्सिडी खर्च बढ़ाए जाने पर जताई चिंता, दी सलाह - RBI ON FREE ELECTRICITY

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कहा है कि राज्यों को अपने सब्सिडी व्यय को कंट्रोल और उचित बनाने की आवश्यकता है.

RBI
प्रतीकात्मक फोटो (IANS Photo)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : 6 hours ago

नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की रिपोर्ट में राज्यों को चेतावनी दी गई है. RBI की रिपोर्ट के मुताबिक कृषि लोन माफी, मुफ्त बिजली और परिवहन जैसी रियायतें देने से उनके सामाजिक और आर्थिक बुनियादी ढांचे के लिए महत्वपूर्ण संसाधन खत्म हो सकते हैं.

हालांकि, 'राज्य वित्त: बजट 2024-25 का अध्ययन' शीर्षक वाली RBI की रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य सरकारों ने लगातार तीन वर्षों (2021-22 से 2023-24) के लिए अपने सकल राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 3 फीसदी के भीतर रखकर राजकोषीय समेकन की दिशा में सराहनीय प्रगति की है.

राज्यों ने 2022-23 और 2023-24 में राजस्व घाटे को GDP के 0.2 फीसदी तक सीमित रखा है.

रिपोर्ट के अनुसार राजकोषीय घाटे में कमी ने राज्यों को अपने पूंजीगत खर्च को बढ़ाने और खर्च की गुणवत्ता में सुधार करने की गुंजाइश दी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि कई राज्यों ने चालू वित्त वर्ष के लिए अपने बजट में कृषि लोन माफी, कृषि और घरों को मुफ्त बिजली, मुफ्त परिवहन, बेरोजगार युवाओं को भत्ते और महिलाओं को नकद सहायता की घोषणा की है. इस तरह के खर्च से उनके पास उपलब्ध संसाधन खत्म हो सकते हैं और महत्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक बुनियादी ढांचे के निर्माण की उनकी क्षमता में बाधा आ सकती है.

आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार सब्सिडी पर खर्च में तेज वृद्धि ने शुरुआती तनाव का क्षेत्र बनाया है, जो कृषि लोन माफी, मुफ्त/सब्सिडी वाली सेवाओं (जैसे कृषि और घरों को बिजली, परिवहन, गैस सिलेंडर) और किसानों, युवाओं और महिलाओं को कैश ट्रांसफर के कारण है. रिपोर्ट के अनुसार राज्यों को अपने सब्सिडी खर्च को नियंत्रित और युक्तिसंगत बनाने की आवश्यकता है ताकि इस तरह के व्यय से अधिक उत्पादक खर्च में बाधा न आए.

आरबीआई के अध्ययन के अनुसार उच्च लोन-जीडीपी अनुपात, बकाया गारंटी और बढ़ते सब्सिडी बोझ के कारण राज्यों को विकास और पूंजीगत व्यय पर अधिक जोर देकर राजकोषीय समेकन के रास्ते पर बने रहने की जरूरत है. इसके अलावा व्यय की गुणवत्ता में सुधार भी जरूरी है.

हालांकि, राज्यों की कुल बकाया देनदारियां मार्च 2024 के अंत में घटकर 28.5 प्रतिशत रह गई हैं, जबकि मार्च 2021 के अंत में यह जीडीपी का 31 प्रतिशत था. लेकिन यह अभी भी महामारी से पहले के स्तर से ऊपर बना हुआ है.

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हालांकि, 'राज्य वित्त: बजट 2024-25 का अध्ययन' शीर्षक वाली RBI की रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य सरकारों ने लगातार तीन वर्षों (2021-22 से 2023-24) के लिए अपने सकल राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 3 फीसदी के भीतर रखकर राजकोषीय समेकन की दिशा में सराहनीय प्रगति की है.

राज्यों ने 2022-23 और 2023-24 में राजस्व घाटे को GDP के 0.2 फीसदी तक सीमित रखा है.

रिपोर्ट के अनुसार राजकोषीय घाटे में कमी ने राज्यों को अपने पूंजीगत खर्च को बढ़ाने और खर्च की गुणवत्ता में सुधार करने की गुंजाइश दी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि कई राज्यों ने चालू वित्त वर्ष के लिए अपने बजट में कृषि लोन माफी, कृषि और घरों को मुफ्त बिजली, मुफ्त परिवहन, बेरोजगार युवाओं को भत्ते और महिलाओं को नकद सहायता की घोषणा की है. इस तरह के खर्च से उनके पास उपलब्ध संसाधन खत्म हो सकते हैं और महत्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक बुनियादी ढांचे के निर्माण की उनकी क्षमता में बाधा आ सकती है.

आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार सब्सिडी पर खर्च में तेज वृद्धि ने शुरुआती तनाव का क्षेत्र बनाया है, जो कृषि लोन माफी, मुफ्त/सब्सिडी वाली सेवाओं (जैसे कृषि और घरों को बिजली, परिवहन, गैस सिलेंडर) और किसानों, युवाओं और महिलाओं को कैश ट्रांसफर के कारण है. रिपोर्ट के अनुसार राज्यों को अपने सब्सिडी खर्च को नियंत्रित और युक्तिसंगत बनाने की आवश्यकता है ताकि इस तरह के व्यय से अधिक उत्पादक खर्च में बाधा न आए.

आरबीआई के अध्ययन के अनुसार उच्च लोन-जीडीपी अनुपात, बकाया गारंटी और बढ़ते सब्सिडी बोझ के कारण राज्यों को विकास और पूंजीगत व्यय पर अधिक जोर देकर राजकोषीय समेकन के रास्ते पर बने रहने की जरूरत है. इसके अलावा व्यय की गुणवत्ता में सुधार भी जरूरी है.

हालांकि, राज्यों की कुल बकाया देनदारियां मार्च 2024 के अंत में घटकर 28.5 प्रतिशत रह गई हैं, जबकि मार्च 2021 के अंत में यह जीडीपी का 31 प्रतिशत था. लेकिन यह अभी भी महामारी से पहले के स्तर से ऊपर बना हुआ है.

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