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चेक बाउंस न हो बरतें ये सावधानी...वरना भरना पड़ेगा भारी जुर्माना

ऐसे कई काम है जिसमें चेक की जरूरत पड़ती है. लेकिन आपकी छोटी सी गलती चेक बाउंस होने का कारण बन सकती है.

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : 2 hours ago

Cheque
चेक (प्रतीकात्मक फोटो) (Getty Image)

नई दिल्ली: आज के समय में बेशक ज्यादातर लोग डिजिटल पेमेंट का सहारा लेते हैं. लेकिन फिर भी कई ऐसे काम हैं जिनके लिए आज भी चेक की जरूरत पड़ती है. लेकिन चेक से पेमेंट करते समय उसे बहुत सावधानी से भरना चाहिए क्योंकि आपकी छोटी सी गलती चेक बाउंस होने का कारण बन सकती है. बैंकों की भाषा में चेक बाउंस को डिसऑनर्ड चेक कहते हैं.

चेक बाउंस होना आपको बहुत मामूली बात लग सकती है, लेकिन नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 की धारा 138 के अनुसार चेक बाउंस होना एक दंडनीय अपराध माना जाता है. इसके लिए सजा और जुर्माना या दोनों का प्रावधान है.

किन कारणों से चेक बाउंस हो सकता है
चेक बाउंस होने के कई कारण हो सकते हैं. इनमें खाते में बैलेंस न होना या कम होना, साइन का मेल न खाना, शब्द लिखने में गलती, खाता संख्या में गलती, ओवरराइटिंग, चेक की एक्सपायरी, चेक जारी करने वाले व्यक्ति का खाता बंद होना, नकली चेक का संदेह, चेक पर कंपनी की मुहर न होना आदि शामिल हैं.

क्या गलती सुधारी जा सकती है?
हां, अगर आपका चेक बाउंस होता है, तो आपको गलती सुधारने का पूरा मौका दिया जाता है. ऐसा नहीं होता कि आपका चेक बाउंस हो जाए और आप पर मुकदमा हो जाए. अगर आपका चेक बाउंस होता है, तो बैंक सबसे पहले आपको इसकी सूचना देता है. इसके बाद, आपके पास लेनदार को दूसरा चेक देने के लिए 3 महीने का समय होता है. अगर आपका दूसरा चेक भी बाउंस होता है, तो लेनदार आपके खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकता है.

चेक बाउंस होने पर बैंक जुर्माना लगाते हैं
चेक बाउंस होने पर बैंक जुर्माना लगाते हैं. जुर्माना चेक जारी करने वाले व्यक्ति को भरना होता है. यह जुर्माना कारणों के अनुसार अलग-अलग हो सकता है. हर बैंक ने इसके लिए अलग-अलग राशि तय की है.

मुकदमा कब होता है
ऐसा नहीं है, चेक बाउंस होते ही भुगतानकर्ता के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो जाता है. जब चेक बाउंस होता है तो बैंक सबसे पहले लेनदार को एक रसीद देता है, जिसमें चेक बाउंस होने का कारण बताया जाता है. इसके बाद लेनदार 30 दिनों के भीतर देनदार को नोटिस भेज सकता है. अगर नोटिस के 15 दिनों के भीतर देनदार की तरफ से कोई जवाब नहीं आता है तो लेनदार कोर्ट जा सकता है. लेनदार एक महीने के भीतर मजिस्ट्रेट की कोर्ट में शिकायत दर्ज करा सकता है. इसके बाद भी अगर उसे देनदार से पैसे नहीं मिलते हैं तो वह उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करा सकता है. दोषी पाए जाने पर 2 साल तक की जेल या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.

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नई दिल्ली: आज के समय में बेशक ज्यादातर लोग डिजिटल पेमेंट का सहारा लेते हैं. लेकिन फिर भी कई ऐसे काम हैं जिनके लिए आज भी चेक की जरूरत पड़ती है. लेकिन चेक से पेमेंट करते समय उसे बहुत सावधानी से भरना चाहिए क्योंकि आपकी छोटी सी गलती चेक बाउंस होने का कारण बन सकती है. बैंकों की भाषा में चेक बाउंस को डिसऑनर्ड चेक कहते हैं.

चेक बाउंस होना आपको बहुत मामूली बात लग सकती है, लेकिन नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 की धारा 138 के अनुसार चेक बाउंस होना एक दंडनीय अपराध माना जाता है. इसके लिए सजा और जुर्माना या दोनों का प्रावधान है.

किन कारणों से चेक बाउंस हो सकता है
चेक बाउंस होने के कई कारण हो सकते हैं. इनमें खाते में बैलेंस न होना या कम होना, साइन का मेल न खाना, शब्द लिखने में गलती, खाता संख्या में गलती, ओवरराइटिंग, चेक की एक्सपायरी, चेक जारी करने वाले व्यक्ति का खाता बंद होना, नकली चेक का संदेह, चेक पर कंपनी की मुहर न होना आदि शामिल हैं.

क्या गलती सुधारी जा सकती है?
हां, अगर आपका चेक बाउंस होता है, तो आपको गलती सुधारने का पूरा मौका दिया जाता है. ऐसा नहीं होता कि आपका चेक बाउंस हो जाए और आप पर मुकदमा हो जाए. अगर आपका चेक बाउंस होता है, तो बैंक सबसे पहले आपको इसकी सूचना देता है. इसके बाद, आपके पास लेनदार को दूसरा चेक देने के लिए 3 महीने का समय होता है. अगर आपका दूसरा चेक भी बाउंस होता है, तो लेनदार आपके खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकता है.

चेक बाउंस होने पर बैंक जुर्माना लगाते हैं
चेक बाउंस होने पर बैंक जुर्माना लगाते हैं. जुर्माना चेक जारी करने वाले व्यक्ति को भरना होता है. यह जुर्माना कारणों के अनुसार अलग-अलग हो सकता है. हर बैंक ने इसके लिए अलग-अलग राशि तय की है.

मुकदमा कब होता है
ऐसा नहीं है, चेक बाउंस होते ही भुगतानकर्ता के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो जाता है. जब चेक बाउंस होता है तो बैंक सबसे पहले लेनदार को एक रसीद देता है, जिसमें चेक बाउंस होने का कारण बताया जाता है. इसके बाद लेनदार 30 दिनों के भीतर देनदार को नोटिस भेज सकता है. अगर नोटिस के 15 दिनों के भीतर देनदार की तरफ से कोई जवाब नहीं आता है तो लेनदार कोर्ट जा सकता है. लेनदार एक महीने के भीतर मजिस्ट्रेट की कोर्ट में शिकायत दर्ज करा सकता है. इसके बाद भी अगर उसे देनदार से पैसे नहीं मिलते हैं तो वह उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करा सकता है. दोषी पाए जाने पर 2 साल तक की जेल या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.

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