चंडीगढ़: पानी के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती. विश्व में कई जगहों पर पानी की कमी देखने को मिल रही है. हरियाणा में भी पानी की मांग की तुलना में आपूर्ति कम है. भूमिगत जल का दोहन इतना ज्यादा हो गया है कि राज्य के 14 जिलों में भूजल स्तर 30 मीटर से भी नीचे जा चुका है. हर साल 14 लाख करोड़ लीटर पानी की कमी हरियाणा झेल रहा है.
जल संकट की आहट: जल संसाधन प्राधिकरण के सर्वे के अनुसार हरियाणा में जल संकट की स्थिति बनी हुई है. राज्य में पानी की मांग प्रति वर्ष 34,96,276 करोड़ लीटर है जबकि 20,93,598 करोड़ लीटर की ही आपूर्ति होती है. हर साल हरियाणा के लोग 14 लाख करोड़ लीटर पानी की कमी का सामना कर रहे हैं. सर्वे के अनुसार आने वाले दो सालों में 9,63,700 लीटर पानी की मांग और बढ़ेगी. ऐसे में स्थिति की भयावहता का अनुमान लगाया जा सकता है. राज्य के 14 जिलों में भूजल का स्तर बहुत नीचे चला गया है. इन जिलों में भूजल स्तर 30 मीटर से भी नीचे जा चुका है. हरियाणा में 7287 गांव हैं. इनमें से 6150 गांवों में बीते दो सालों में भूजल स्तर नीचे गया है.
जल संकट की वजह: हरियाणा कृषि प्रधान राज्य है. यहां बड़े पैमाने पर धान और गेहूं जैसी फसलों की खेती होती है. धान की खेती में बड़े पैमाने में पानी की खपत होती है. उसमें भी रोपाई के जरिए धान की खेती में तो और ज्यादा पानी की खपत होती है. धान की सीधी बिजाई में पानी की कम खपत होती है. लेकिन हरियाणा में बड़े पैमाने पर रोपाई के जरिए धान की खेती होती है. कम पानी के इस्तेमाल वाली जौ, बाजरा, मक्का, दलहनी फसलों की खेती हरियाणा में कम होती है. मोटे अनाज की बिजाई कम होने से जलस्तर गिर रहा है. ट्यूबवेल के ज्यादा इस्तेमाल से भी भूजल स्तर नीचे जा रहा है. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के अनुसार हरियाणा के 40391.5 वर्ग किलोमीटर में से 24772.68 वर्ग किलोमीटर यानी 61.33% क्षेत्र अत्यधिक भूजल दोहन वाला क्षेत्र है. भूजल स्तर नीचे जाने का प्रमुख कारण केमिकल युक्त उर्वरकों का अत्यधिक इस्तेमाल भी है. इस कारण मिट्टी की परत मोटी होने के साथ क्ले का रूप ले चुकी है और पानी भूमि में नहीं जा पाता. इससे भूजल स्तर में सुधार नहीं हो पा रहा है.
सरकार की पहल: ऐसा नहीं है कि सरकार को स्थिति की भयावहता का एहसास नहीं है. सरकार लगातार जल संरक्षण को लेकर योजना चला रही है. धान के अलावा अन्य फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहन राशि भी दे रही है. हरियाणा सरकार ने भूजल संकट को ध्यान में रखते हुए फसल विविधीकरण एवं जल संरक्षण योजना चला रही है. इसके तहत धान की खेती को छोड़कर वैकल्पिक खेती करने वाले किसानों को ₹7000 प्रति एकड़ की राशि प्रोत्साहन के रूप में प्रदान की जाती है. साथ ही वाटर हार्वेस्टिंग पर भी सरकार जोर दे रही है. भूजल के इस्तेमाल के लिए शर्तों के साथ अनुमति दी गयी है. प्रदेश सरकार सुक्ष्म सिंचाई, फसल चक्र में बदलाव, धान की सीधी बिजाई, पानी चैनलाइज, नहरी रिसाव रोककर, तालाबों के जीणोंद्धार, रूफ टॉप रेन वॉटर रिसॉर्स, भूजल रिचार्ज को बढ़ावा देकर और चेक डैम बनाकर जल संकट से निपटने के लिए प्रयासरत है.