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द कोल्हान वॉर: नक्सलियों के शिकार पर निकले गांव वाले, बैकफुट पर आए दहशतगर्द - VILLAGERS KILLING NAXALITES

कोल्हान में ग्रामीणों ने भी नक्सलियों के खिलाफ युद्ध शुरू कर दी है. प्रशांत कुमार की रिपोर्ट

Why villagers killing Naxalites in Kolhan Jharkhand
ग्राफिक्स इमेज (ईटीवी भारत)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : 17 hours ago

Updated : 16 hours ago

रांची: एक पुरानी कहावत है कि सीधे व्यक्ति से इतना मत बोलो कि वह पूरी तरह टेढ़ा हो जाए, यह कहावत कोल्हान के भोले-भाले ग्रामीणों पर बिल्कुल सटीक बैठती है. पुलिस को दुश्मन बताकर हथियार के बल पर क्रांति लाने की झूठी भाषा बोलकर नक्सलियों ने दशकों तक ग्रामीणों का शोषण किया, लेकिन अब ग्रामीण नक्सलियों के शोषण से तंग आकर उनका शिकार करने निकल पड़े हैं. नतीजतन नक्सली संगठनों में भय का माहौल है.

ग्रामीणों ने शुरू किया अभियान

झारखंड का कोल्हान एकमात्र ऐसा इलाका है, जहां नक्सली संगठन भाकपा माओवादी और पीएलएफआई आज भी सक्रिय हैं. दोनों संगठनों की मौजूदगी से अगर सबसे ज्यादा कोई परेशान है तो वह हैं भोले-भाले ग्रामीण. कोल्हान के जंगलों और बीहड़ों में रहने वाले ग्रामीण वहां के नक्सलियों से परेशान हैं. इलाके में पुलिस का नक्सली ऑपरेशन जारी है, लेकिन अब ग्रामीण भी नक्सलियों का शिकार करने निकल पड़े हैं. धनुष-बाण और पारंपरिक हथियारों से लैस होकर ग्रामीण नक्सलियों की तलाश कर रहे हैं और पकड़े जाते ही उन्हें भरी पंचायत में मौत की सजा दे रहे हैं.

संवाददाता प्रशांत की रिपोर्ट (ईटीवी भारत)

कानून हाथ में न लेने की पुलिस की अपील

झारखंड के डीजीपी अनुराग गुप्ता ने बताया कि अब तक मिली रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीणों ने तीन नक्सलियों की हत्या की है. डीजीपी अनुराग गुप्ता ने कहा कि कानून हाथ में लेना कोई स्थायी समाधान नहीं है, आगे चलकर यह रास्ता और भी बुरा हो सकता है, पुलिस कोल्हान से नक्सलियों के सफाए के लिए प्रयासरत है.

दो दर्जन से ज्यादा ग्रामीणों की हुई है मौत

कोल्हान क्षेत्र में नक्सलियों के खिलाफ ग्रामीणों का आक्रोश बेवजह नहीं है. आज भी कोल्हान के 50 से अधिक गांवों के ग्रामीण अपनी आजीविका के लिए जंगलों और पहाड़ों पर निर्भर हैं. लेकिन नक्सलियों ने उन जंगलों में इतने बम लगा दिए हैं कि अब न केवल ग्रामीण बल्कि उनके जानवर भी उनके शिकार होने लगे हैं. पिछले दो वर्षों में कोल्हान में दो दर्जन से अधिक ग्रामीण बमों से मारे गए या अपंग हो गए हैं. इसके अलावा नक्सलियों ने मुखबिरी के शक में कई ग्रामीणों की हत्या कर दी.

नतीजतन, ग्रामीणों में नक्सलियों के प्रति नफरत की भावना पैदा हो गई है. पहले से ही भाकपा माओवादियों के अत्याचारों से पीड़ित ग्रामीणों पर अचानक इस महीने पीएलएफआई ने भी कहर बरपाना शुरू कर दिया, जिसके बाद ग्रामीणों ने नक्सलियों का शिकार करने का फैसला किया.

इस लड़ाई में पीस रहे बेबस ग्रामीण

दरअसल, नक्सलियों ने खुद को बचाने के लिए कोल्हान इलाके में आईईडी बमों का ऐसा चक्रव्यूह रचा है कि झारखंड पुलिस अब तक उसे भेद नहीं पाई है. नतीजतन, कोल्हान में लगातार हो रहे आईईडी बमों से ग्रामीणों की जान जाने लगी है, उनके जानवर भी विस्फोटों में मारे जाने लगे हैं. ग्रामीणों की मौत का आंकड़ा रुकने की बजाय, हर दिन बढ़ता ही गया. जहां ग्रामीणों का जंगलों में जाना मजबूरी है, वहीं सुरक्षा बलों का भी नक्सलियों के खात्मे के लिए जंगलों में उतरना बेहद जरूरी.

ऐसे में ग्रामीण और सुरक्षा बल दोनों ही आईईडी बमों का सामना कर रहे हैं. आंकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं. पिछले डेढ़ साल में नक्सलियों द्वारा लगाए गए आईईडी बमों के विस्फोट से हमारे 20 जवान घायल हो चुके हैं. लेकिन ग्रामीणों की स्थिति इससे भी बदतर है. नक्सलियों द्वारा लगाए गए आईईडी बमों के विस्फोट के कारण अब तक एक दर्जन से अधिक ग्रामीणों की जान जा चुकी है, जबकि कई अपंग हो गए हैं.

लगातार जारी है संघर्ष

झारखंड के कोल्हान के बीहड़ों में पिछले दो सालों में नक्सलियों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है, दर्जनों नक्सली कैंप नष्ट हो चुके हैं, उनके हथियारों और गोला-बारूद पर पुलिस ने हमला भी किया है, लेकिन इन सबके बावजूद कोल्हान में नक्सलियों का एक बड़ा समूह पिछले दो सालों से पुलिस के साथ गुरिल्ला युद्ध लड़ रहा है. इस लड़ाई में न केवल झारखंड पुलिस के जवानों को बल्कि ग्रामीणों को भी अपनी जान की कुर्बानी देनी पड़ी है.

60 से ज्यादा है नक्सलियों की संख्या, अधिकांश हैं इनामी

दरअसल, नक्सलियों के शीर्ष नेताओं ने कोल्हान में शरण ले रखी है. बूढ़ा पहाड़ के बाद कोल्हान ही एकमात्र ऐसी जगह है, जहां नक्सलियों ने अपना मुख्यालय बनाया हुआ था. मुख्यालय होने के कारण यहां एक करोड़ रुपये के इनामी नक्सली नेता भी रहते हैं. जानकारी के अनुसार, सारंडा में मिसिर बेसरा, अनमोल दा, टेक विश्वनाथ उर्फ ​​संतोष, मोचू, चमन, कंडे, अजय महतो, सागेन अंगारिया और अश्विन जैसे खतरनाक नक्सली कमांडर मौजूद हैं, जिन पर एक करोड़ रुपये का इनाम है. इनके 60 से ज्यादा लड़ाके हैं जो गुरिल्ला युद्ध में माहिर हैं.

टुम्बाहाता में हर कदम पर मौत का खतरा

कोल्हान के रेंगरा, टोंटो और टुम्बाहाता तीन ऐसे जंगली इलाके हैं, जहां स्थितियां बेहद प्रतिकूल हैं. घने जंगलों और ऊंचे पहाड़ों पर नक्सली छोटे-छोटे समूहों में बंटकर पुलिस पर हमला करने की योजना में लगे हुए हैं. सुरक्षा बलों को अपने जाल में फंसाने के लिए नक्सली भारी गोलीबारी करते हैं, ताकि आवाज सुनकर सुरक्षा बल वहां आ जाएं और फिर उन्हें खदेड़ा जा सके.

दो सालों में 25 जवान पहुंचे अस्पताल

नवंबर 2022 से अब तक कोल्हान में आईईडी बम विस्फोट और गोलीबारी में 25 सुरक्षा बल घायल हो चुके हैं. 209 कोबरा बटालियन के इंस्पेक्टर प्रभाकर साहनी, हवलदार अलख दास, मुकेश कुमार सिंह, अजय लिंडा, भरत सिंह राय, फारुकी शाहरुख खान, वीरपाल सिंह, प्रिंस सिंह, अमरेश सिंह, सौरभ कुमार, संतोष और चिरंजीव पात्रे विस्फोट में घायल हुए हैं. सभी को आनन-फानन में एयरलिफ्ट कर रांची लाया गया. अधिकांश जवान अपनी चोटों से उबर चुके हैं लेकिन कई अभी भी अस्पताल में इलाज करा रहे हैं. कोल्हान में सीआरपीएफ के कई जवान भी घायल हुए हैं, जिनमें इंशार अली, राकेश कुमार पाठक, पंकज कुमार यादव और संजीव कुमार शामिल हैं.

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ग्रामीणों ने शुरू किया अभियान

झारखंड का कोल्हान एकमात्र ऐसा इलाका है, जहां नक्सली संगठन भाकपा माओवादी और पीएलएफआई आज भी सक्रिय हैं. दोनों संगठनों की मौजूदगी से अगर सबसे ज्यादा कोई परेशान है तो वह हैं भोले-भाले ग्रामीण. कोल्हान के जंगलों और बीहड़ों में रहने वाले ग्रामीण वहां के नक्सलियों से परेशान हैं. इलाके में पुलिस का नक्सली ऑपरेशन जारी है, लेकिन अब ग्रामीण भी नक्सलियों का शिकार करने निकल पड़े हैं. धनुष-बाण और पारंपरिक हथियारों से लैस होकर ग्रामीण नक्सलियों की तलाश कर रहे हैं और पकड़े जाते ही उन्हें भरी पंचायत में मौत की सजा दे रहे हैं.

संवाददाता प्रशांत की रिपोर्ट (ईटीवी भारत)

कानून हाथ में न लेने की पुलिस की अपील

झारखंड के डीजीपी अनुराग गुप्ता ने बताया कि अब तक मिली रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीणों ने तीन नक्सलियों की हत्या की है. डीजीपी अनुराग गुप्ता ने कहा कि कानून हाथ में लेना कोई स्थायी समाधान नहीं है, आगे चलकर यह रास्ता और भी बुरा हो सकता है, पुलिस कोल्हान से नक्सलियों के सफाए के लिए प्रयासरत है.

दो दर्जन से ज्यादा ग्रामीणों की हुई है मौत

कोल्हान क्षेत्र में नक्सलियों के खिलाफ ग्रामीणों का आक्रोश बेवजह नहीं है. आज भी कोल्हान के 50 से अधिक गांवों के ग्रामीण अपनी आजीविका के लिए जंगलों और पहाड़ों पर निर्भर हैं. लेकिन नक्सलियों ने उन जंगलों में इतने बम लगा दिए हैं कि अब न केवल ग्रामीण बल्कि उनके जानवर भी उनके शिकार होने लगे हैं. पिछले दो वर्षों में कोल्हान में दो दर्जन से अधिक ग्रामीण बमों से मारे गए या अपंग हो गए हैं. इसके अलावा नक्सलियों ने मुखबिरी के शक में कई ग्रामीणों की हत्या कर दी.

नतीजतन, ग्रामीणों में नक्सलियों के प्रति नफरत की भावना पैदा हो गई है. पहले से ही भाकपा माओवादियों के अत्याचारों से पीड़ित ग्रामीणों पर अचानक इस महीने पीएलएफआई ने भी कहर बरपाना शुरू कर दिया, जिसके बाद ग्रामीणों ने नक्सलियों का शिकार करने का फैसला किया.

इस लड़ाई में पीस रहे बेबस ग्रामीण

दरअसल, नक्सलियों ने खुद को बचाने के लिए कोल्हान इलाके में आईईडी बमों का ऐसा चक्रव्यूह रचा है कि झारखंड पुलिस अब तक उसे भेद नहीं पाई है. नतीजतन, कोल्हान में लगातार हो रहे आईईडी बमों से ग्रामीणों की जान जाने लगी है, उनके जानवर भी विस्फोटों में मारे जाने लगे हैं. ग्रामीणों की मौत का आंकड़ा रुकने की बजाय, हर दिन बढ़ता ही गया. जहां ग्रामीणों का जंगलों में जाना मजबूरी है, वहीं सुरक्षा बलों का भी नक्सलियों के खात्मे के लिए जंगलों में उतरना बेहद जरूरी.

ऐसे में ग्रामीण और सुरक्षा बल दोनों ही आईईडी बमों का सामना कर रहे हैं. आंकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं. पिछले डेढ़ साल में नक्सलियों द्वारा लगाए गए आईईडी बमों के विस्फोट से हमारे 20 जवान घायल हो चुके हैं. लेकिन ग्रामीणों की स्थिति इससे भी बदतर है. नक्सलियों द्वारा लगाए गए आईईडी बमों के विस्फोट के कारण अब तक एक दर्जन से अधिक ग्रामीणों की जान जा चुकी है, जबकि कई अपंग हो गए हैं.

लगातार जारी है संघर्ष

झारखंड के कोल्हान के बीहड़ों में पिछले दो सालों में नक्सलियों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है, दर्जनों नक्सली कैंप नष्ट हो चुके हैं, उनके हथियारों और गोला-बारूद पर पुलिस ने हमला भी किया है, लेकिन इन सबके बावजूद कोल्हान में नक्सलियों का एक बड़ा समूह पिछले दो सालों से पुलिस के साथ गुरिल्ला युद्ध लड़ रहा है. इस लड़ाई में न केवल झारखंड पुलिस के जवानों को बल्कि ग्रामीणों को भी अपनी जान की कुर्बानी देनी पड़ी है.

60 से ज्यादा है नक्सलियों की संख्या, अधिकांश हैं इनामी

दरअसल, नक्सलियों के शीर्ष नेताओं ने कोल्हान में शरण ले रखी है. बूढ़ा पहाड़ के बाद कोल्हान ही एकमात्र ऐसी जगह है, जहां नक्सलियों ने अपना मुख्यालय बनाया हुआ था. मुख्यालय होने के कारण यहां एक करोड़ रुपये के इनामी नक्सली नेता भी रहते हैं. जानकारी के अनुसार, सारंडा में मिसिर बेसरा, अनमोल दा, टेक विश्वनाथ उर्फ ​​संतोष, मोचू, चमन, कंडे, अजय महतो, सागेन अंगारिया और अश्विन जैसे खतरनाक नक्सली कमांडर मौजूद हैं, जिन पर एक करोड़ रुपये का इनाम है. इनके 60 से ज्यादा लड़ाके हैं जो गुरिल्ला युद्ध में माहिर हैं.

टुम्बाहाता में हर कदम पर मौत का खतरा

कोल्हान के रेंगरा, टोंटो और टुम्बाहाता तीन ऐसे जंगली इलाके हैं, जहां स्थितियां बेहद प्रतिकूल हैं. घने जंगलों और ऊंचे पहाड़ों पर नक्सली छोटे-छोटे समूहों में बंटकर पुलिस पर हमला करने की योजना में लगे हुए हैं. सुरक्षा बलों को अपने जाल में फंसाने के लिए नक्सली भारी गोलीबारी करते हैं, ताकि आवाज सुनकर सुरक्षा बल वहां आ जाएं और फिर उन्हें खदेड़ा जा सके.

दो सालों में 25 जवान पहुंचे अस्पताल

नवंबर 2022 से अब तक कोल्हान में आईईडी बम विस्फोट और गोलीबारी में 25 सुरक्षा बल घायल हो चुके हैं. 209 कोबरा बटालियन के इंस्पेक्टर प्रभाकर साहनी, हवलदार अलख दास, मुकेश कुमार सिंह, अजय लिंडा, भरत सिंह राय, फारुकी शाहरुख खान, वीरपाल सिंह, प्रिंस सिंह, अमरेश सिंह, सौरभ कुमार, संतोष और चिरंजीव पात्रे विस्फोट में घायल हुए हैं. सभी को आनन-फानन में एयरलिफ्ट कर रांची लाया गया. अधिकांश जवान अपनी चोटों से उबर चुके हैं लेकिन कई अभी भी अस्पताल में इलाज करा रहे हैं. कोल्हान में सीआरपीएफ के कई जवान भी घायल हुए हैं, जिनमें इंशार अली, राकेश कुमार पाठक, पंकज कुमार यादव और संजीव कुमार शामिल हैं.

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