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कब तक तबाह होते रहेंगे बिहार के लोग, बाढ़ का स्थाई समाधान क्यों नहीं? जानिए क्या है नेपाल कनेक्शन - Bihar flood

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Jul 3, 2024, 8:40 PM IST

Updated : Jul 3, 2024, 9:43 PM IST

Flood In Bihar : बिहार एक बार फिर से बाढ़ के मुहाने पर खड़ा है. नदियां डरा रही हैं. लोगों के मन में सवाल है कि कब तक इस तरह की जिंदगी बिताते रहेंगे? आश्वासन का दौर जारी है. पर हम आपको बता रहे हैं क्या है इसके पीछे की पूरी वजह.

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बिहार में बाढ़ (Etv Bharat)

पटना : बिहार में एक बार फिर से बाढ़ का खतरा मंडराने लगा है. अभी से ही नदियां डराने लगी हैं. गोपालगंज, मोतिहारी, बगहा, बेतिया, सुपौल, सीतामढ़ी, मधुबनी के लोग सहमे-सहमे नजर आ रहे हैं. इसके पीछे की वजह यह है कि पानी धीरे-धीरे रंगत दिखाने लगा है. गंडक और कोसी बराज के फाटकों को खोल दिया गया है. जिससे धीरे-धीरे पानी आगे बढ़ रहा है.

बिहार में बाढ़ की त्रासदी : वैसे भी बरसात के वक्त जब भी पड़ोसी देश नेपाल में तेज बारिश होती है तो बिहार के लोगों की बेचैनी बढ़ने लगती है. यह बेचैनी बाढ़ के त्रासदी को लेकर होती है. यह बेचैनी उन्हें उनके आशियाने को उजड़ जाने को लेकर होती है. यह बेचैनी उन्हें एक बार फिर से नए ठिकाने पर खानाबदोश की तरह अगले कई महीनों तक गुजारने के लिए होती है.

ईटीवी भारत GFX.
ईटीवी भारत GFX. (ETV Bharat)

नहीं हो रहा कोई स्थायी समाधान : सबके जहन में यह सवाल उठता है कि नेपाल की बारिश से बिहार के लिए लोग क्यों परेशान होते है? आखिर उन्हें यह त्रासदी क्यों झेलनी पड़ती है? आम लोगों के लिए सवाल वाजिब है. लेकिन, साल दर साल यह परेशानी रहती ही है. हर साल हजारों लोगों का आशियाना उजड़ता ही है. फिर से इस उम्मीद के साथ वह नया आशियाना बसाते हैं कि अगले साल इसका कुछ निदान होगा, उनके जीवन में स्थायित्व आएगा. बिहार के लोग सालों से इसी तरह से सरकार की तरफ टकटकी लगाकर देख रहे हैं. उनके निर्णय को समझ रहे हैं, उनकी नीतियों से वाकिफ हो रहे हैं लेकिन, उनका समाधान नहीं हो रहा है.

ईटीवी भारत GFX.
ईटीवी भारत GFX. (ETV Bharat)

दो तिहाई क्षेत्र बाढ़ से प्रभावित : अगर गौर से देखा जाए तो बिहार के 38 जिलों में से 28 जिले हर साल बाढ़ से कम या अधिक प्रभावित होते हैं. आंकड़ों की बात करें तो 136 प्रखंडों में लगभग 4,000 गांव हर साल बाढ़ से प्रभावित होते हैं. औसतन 95 लाख लोग बाढ़ की विभिषिका को झेलते हैं. हर साल 300 से ज्यादा लोगों की मौत होती है. 125 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति का नुकसान भी होता है.

देश में सबसे ज्यादा बिहार में बाढ़ : बिहार के लोगों को तो बाढ़ से रूबरू होना आम बात है. वैसे भी बिहार पूरे भारत देश का सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित वाला राज्य घोषित है. उत्तर बिहार सबसे ज्यादा इससे प्रभावित होता है. इसकी 76 प्रतिशत आबादी बाढ़ के खतरे में रहती है. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि देश में बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का 16.5% बिहार में है.

ईटीवी भारत GFX.
ईटीवी भारत GFX. (ETV Bharat)

समाधान पर सरकार कर रही है काम : हालांकि, बिहार सरकार इस बाढ़ के समाधान को लेकर लगातार कोशिश तो कर रही है लेकिन, यह कोशिश ना काफी हो जा रही है. हाल ही के दिनों में जदयू के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष और पूर्व के जल संसाधन मंत्री संजय झा केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मुलाकात करके इस बाढ़ की त्रासदी से उन्हें अवगत कराया लेकिन, इसका फायदा कितना होगा यह तो भारत सरकार और नेपाल सरकार संबंधों के ऊपर निर्भर करता है.

हर साल बिहार में क्यों आती है बाढ़? : वैसे लोगों के मन में सवाल उठता होगा कि बिहार में बाढ़ की तबाही का मुख्य कारण कौन है? दरअसल, नेपाल से आने वाली नदियों के कारण ही बाढ़ आती है. कोसी, नारायणी, कर्णाली, राप्ती, महाकाली जैसी नदियां नेपाल के बाद भारत में बहती हैं. नेपाल में जब भी भारी बारिश होती है तो इन नदियों के जलस्तर में वृद्धि हो जाती है. नेपाल में जब भी पानी का स्तर बढ़ता है वह अपने बांधों के दरवाजे खोल देता है, इसकी वजह से नेपाल से सटे बिहार के जिलों में बाढ़ आ जाती है.

ईटीवी भरत GFX.
ईटीवी भरत GFX. (ETV Bharat)

तटबंध बनाने से भी नहीं हो पा रहा समाधान : ऐसा नहीं है कि सरकार ने इसपर नियंत्रण पाने के लिए कोई काम नहीं किया है. समय-समय पर सरकारें काम तो कर रही है, पर विडंबना यह है कि यह नाकाफी साबित होता है. राज्य में 3800 किलोमीटर से अधिक लंबाई में तटबंध का निर्माण कराया गया, लेकिन इससे बाढ़ की समस्या खत्म नहीं हुई. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कोसी क्षेत्र में लगातार नदियों पर काम कर रहे महेंद्र यादव ने कहा कि एक तरफ सरकार तटबंध बना रही है तो दूसरी तरफ बाढ़ का दायरा बढ़ रहा है, इसे मूल्यांकन करना चाहिए.

ईटीवी भरत GFX.
ईटीवी भरत GFX. (ETV Bharat)

बाढ़ रोकने के लिए कोसी परियोजना कहां पहुंची? : साल 1953-54 में बाढ़ की मुसीबत को रोकने के लिए कोसी परियोजना शुरू की गई थी. उस दौरान हुक्मरानों ने कहा था कि, अगले 15 सालों में बिहार से बाढ़ की समस्या पर काबू पा लिया जाएगा. बिहार में कोसी परियोजना का शिलान्यास करते हुए देश के पहले और तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने बिहार के सुपौल जिले में एक सभा को संबोधित करते हुए कहा, 'मेरी एक आंख हिंदुस्तान पर रहेगी और दूसरी कोसी पर.'

1955 में शिलान्यास, 1965 में उद्घाटन : साल बदला, तारीख बदली और 1965 में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने कोसी बराज का उद्घाटन किया. इसके बाद नेपाल से आने वाली सप्तकोशी के प्रवाह को मिला दिया गया और बिहार में तटबंध बनाकर नदियो को मोड़ दिया गया. सिचाई की व्यवस्था की गई. लेकिन आज 15 साल नहीं बल्कि 59 साल के बाद भी बाढ़ की समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकाला जा सका है.

ईटीवी भरत GFX.
ईटीवी भरत GFX. (ETV Bharat)

127 साल में अब तक नहीं बनी बात : बिहार के मंत्री और नेता अक्सर ही कहते नजर आते हैं कि अगर नेपाल पूरी तरह सहयोग करे और उच्च बांध बनाए तो समसया का निदान हो सकता है. नेपाल के बराह क्षेत्र से 1.6 किमी उत्तर की दिशा में सप्तकोशी नदी पर बांध के निर्माण को लेकर 1897 से यानी 127 साल से बात हो रही है पर इसपर अबतक अमली जामा नहीं पहनाया गया है. अगर गौर से देखा जाए तो 269 मीटर ऊंचे इस प्रस्तावित बांध से नेपाल के सात जिलों के 75 हजार से अधिक लोगों को विस्थापित होना होगा. यही नहीं जब भी ज्यादा बारिश होगी नेपाल को भारी बाढ़ से रूबरू होना पड़ेगा.

''कोसी नदी को यदि देखते हैं तो इस नदी का कैचमेंट एरिया जल ग्रहण क्षेत्र जो है 32631 वर्ग किलोमीटर तिब्बत में आता है. 39678 वर्ग किलोमीटर नेपाल में है. जिसमें ग्लेशियर है, कंचनजंगा है, एवरेस्ट शिखर है, यह सब जल ग्रहण में आता है. बाकी 22000 वर्ग किलोमीटर बिहार में है. इसमें तटबंध बने हुए हैं. सुईस गेट बने हुए हैं जो तटबंध के अंदर है. जब भी हिमालय पर बारिश होगी, नेपाल में बारिश होगी, उस कैचमेंट एरिया में बारिश होगी तो बाढ़ आएगा ही. क्योंकि यह निचला इलाका है तो उधर बारिश होगी तो इधर पानी आएगा ही.''- महेंद्र यादव, नदियों पर काम करने वाले विशेषज्ञ

नेपाल के बराज पर बिहार के इंजिनियर : महेंद्र यादव कहते हैं कि नदी का नेचर है जिधर उन्हें रास्ता मिलता है उधर ही पानी जाता है. बिहार में दो बड़ा बराज है, एक है बगहा में वाल्मिकिनगर बराज और सुपौल में कोसी बराज. यही नहीं कोसी में भीम नगर बैराज है, उस पूरे भीम नगर बराज को उठाने का काम बिहार के इंजीनियर करते हैं. पानी अपने बिहार वाले ही छोड़ते हैं और नेपाल के लोग यह कहते हैं कि हमारे देश में इंडिया वाले लोग आकर नेपाल में काम करते हैं और वहां के जो राष्ट्रवादी लोग हैं वह यह कहते हैं कि भारत के लोग अतिक्रमण कर रहे हैं.

''नेपाल का जो भौगोलिक बनावट है कमला, अधवारा, बागमती, गंडक नही उधर से ही आती है. गंडक पर बाल्मीकि नगर बैराज है. वहां भी बिहार के इंजीनियर काम करते हैं. जैसे ही पानी ऊपर होता है वह नीचे आएगा ही आएगा और हम लोग मान लेते हैं कि नेपाल दोषी है. कोसी नदी पर भीमनगर बैराज है, गंडक नदी पर भैंसा लोटन बैराज है, सोन नदी पर इंद्रपुरी बैराज है, कमला नदी पर बैराज बन रहा है, गंगा नदी पर बंगाल में फरक्का बैराज है.''- महेंद्र यादव, नदियों पर काम करने वाले विशेषज्ञ

कोसी मेची नदी जोड़ योजना : बिहार सरकार कई योजनाओं के जरिए बाढ़ पर काबू पाने की कोशिश में लगी है, इसी में से एक है कोसी मेची नदी जोड़ योजना. इस योजना के जरिए सिमांचल के चार जिलों अररिया, पूर्णिया, किशनगंज और कटिहार की बड़ी आबादी को बाढ़ से राहत दिलाना चाहती है. हालांकि यह योजना अभी अधर में है. अगर केन्द्र की स्वीकृति मिलती है तो बात आगे बढ़ेगी. इसमें केन्द्र का वहन 90 प्रतिशत जबकि राज्य का 10 प्रतिशत रहेगा.

ईटीवी भरत GFX.
ईटीवी भरत GFX. (ETV Bharat)

कोसी मेची योजना में कोसी बेसिन के पानी को महानंदा बेसिन में लाया जाएगा इसके लिए मेची लिंक माध्यम बनेगा. दोनों नदियों को मिलाने के लिए 120 किलोमीटर में कैनाल का भी निर्माण होगा और यह केनाल नेपाल के तराई क्षेत्र से गुजरेगी. साथ ही बकरा रावता और कंकई जैसी छोटी नदियों को भी इस योजना के माध्यम से जोड़ा जाएगा.

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पटना : बिहार में एक बार फिर से बाढ़ का खतरा मंडराने लगा है. अभी से ही नदियां डराने लगी हैं. गोपालगंज, मोतिहारी, बगहा, बेतिया, सुपौल, सीतामढ़ी, मधुबनी के लोग सहमे-सहमे नजर आ रहे हैं. इसके पीछे की वजह यह है कि पानी धीरे-धीरे रंगत दिखाने लगा है. गंडक और कोसी बराज के फाटकों को खोल दिया गया है. जिससे धीरे-धीरे पानी आगे बढ़ रहा है.

बिहार में बाढ़ की त्रासदी : वैसे भी बरसात के वक्त जब भी पड़ोसी देश नेपाल में तेज बारिश होती है तो बिहार के लोगों की बेचैनी बढ़ने लगती है. यह बेचैनी बाढ़ के त्रासदी को लेकर होती है. यह बेचैनी उन्हें उनके आशियाने को उजड़ जाने को लेकर होती है. यह बेचैनी उन्हें एक बार फिर से नए ठिकाने पर खानाबदोश की तरह अगले कई महीनों तक गुजारने के लिए होती है.

ईटीवी भारत GFX.
ईटीवी भारत GFX. (ETV Bharat)

नहीं हो रहा कोई स्थायी समाधान : सबके जहन में यह सवाल उठता है कि नेपाल की बारिश से बिहार के लिए लोग क्यों परेशान होते है? आखिर उन्हें यह त्रासदी क्यों झेलनी पड़ती है? आम लोगों के लिए सवाल वाजिब है. लेकिन, साल दर साल यह परेशानी रहती ही है. हर साल हजारों लोगों का आशियाना उजड़ता ही है. फिर से इस उम्मीद के साथ वह नया आशियाना बसाते हैं कि अगले साल इसका कुछ निदान होगा, उनके जीवन में स्थायित्व आएगा. बिहार के लोग सालों से इसी तरह से सरकार की तरफ टकटकी लगाकर देख रहे हैं. उनके निर्णय को समझ रहे हैं, उनकी नीतियों से वाकिफ हो रहे हैं लेकिन, उनका समाधान नहीं हो रहा है.

ईटीवी भारत GFX.
ईटीवी भारत GFX. (ETV Bharat)

दो तिहाई क्षेत्र बाढ़ से प्रभावित : अगर गौर से देखा जाए तो बिहार के 38 जिलों में से 28 जिले हर साल बाढ़ से कम या अधिक प्रभावित होते हैं. आंकड़ों की बात करें तो 136 प्रखंडों में लगभग 4,000 गांव हर साल बाढ़ से प्रभावित होते हैं. औसतन 95 लाख लोग बाढ़ की विभिषिका को झेलते हैं. हर साल 300 से ज्यादा लोगों की मौत होती है. 125 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति का नुकसान भी होता है.

देश में सबसे ज्यादा बिहार में बाढ़ : बिहार के लोगों को तो बाढ़ से रूबरू होना आम बात है. वैसे भी बिहार पूरे भारत देश का सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित वाला राज्य घोषित है. उत्तर बिहार सबसे ज्यादा इससे प्रभावित होता है. इसकी 76 प्रतिशत आबादी बाढ़ के खतरे में रहती है. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि देश में बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का 16.5% बिहार में है.

ईटीवी भारत GFX.
ईटीवी भारत GFX. (ETV Bharat)

समाधान पर सरकार कर रही है काम : हालांकि, बिहार सरकार इस बाढ़ के समाधान को लेकर लगातार कोशिश तो कर रही है लेकिन, यह कोशिश ना काफी हो जा रही है. हाल ही के दिनों में जदयू के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष और पूर्व के जल संसाधन मंत्री संजय झा केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मुलाकात करके इस बाढ़ की त्रासदी से उन्हें अवगत कराया लेकिन, इसका फायदा कितना होगा यह तो भारत सरकार और नेपाल सरकार संबंधों के ऊपर निर्भर करता है.

हर साल बिहार में क्यों आती है बाढ़? : वैसे लोगों के मन में सवाल उठता होगा कि बिहार में बाढ़ की तबाही का मुख्य कारण कौन है? दरअसल, नेपाल से आने वाली नदियों के कारण ही बाढ़ आती है. कोसी, नारायणी, कर्णाली, राप्ती, महाकाली जैसी नदियां नेपाल के बाद भारत में बहती हैं. नेपाल में जब भी भारी बारिश होती है तो इन नदियों के जलस्तर में वृद्धि हो जाती है. नेपाल में जब भी पानी का स्तर बढ़ता है वह अपने बांधों के दरवाजे खोल देता है, इसकी वजह से नेपाल से सटे बिहार के जिलों में बाढ़ आ जाती है.

ईटीवी भरत GFX.
ईटीवी भरत GFX. (ETV Bharat)

तटबंध बनाने से भी नहीं हो पा रहा समाधान : ऐसा नहीं है कि सरकार ने इसपर नियंत्रण पाने के लिए कोई काम नहीं किया है. समय-समय पर सरकारें काम तो कर रही है, पर विडंबना यह है कि यह नाकाफी साबित होता है. राज्य में 3800 किलोमीटर से अधिक लंबाई में तटबंध का निर्माण कराया गया, लेकिन इससे बाढ़ की समस्या खत्म नहीं हुई. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कोसी क्षेत्र में लगातार नदियों पर काम कर रहे महेंद्र यादव ने कहा कि एक तरफ सरकार तटबंध बना रही है तो दूसरी तरफ बाढ़ का दायरा बढ़ रहा है, इसे मूल्यांकन करना चाहिए.

ईटीवी भरत GFX.
ईटीवी भरत GFX. (ETV Bharat)

बाढ़ रोकने के लिए कोसी परियोजना कहां पहुंची? : साल 1953-54 में बाढ़ की मुसीबत को रोकने के लिए कोसी परियोजना शुरू की गई थी. उस दौरान हुक्मरानों ने कहा था कि, अगले 15 सालों में बिहार से बाढ़ की समस्या पर काबू पा लिया जाएगा. बिहार में कोसी परियोजना का शिलान्यास करते हुए देश के पहले और तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने बिहार के सुपौल जिले में एक सभा को संबोधित करते हुए कहा, 'मेरी एक आंख हिंदुस्तान पर रहेगी और दूसरी कोसी पर.'

1955 में शिलान्यास, 1965 में उद्घाटन : साल बदला, तारीख बदली और 1965 में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने कोसी बराज का उद्घाटन किया. इसके बाद नेपाल से आने वाली सप्तकोशी के प्रवाह को मिला दिया गया और बिहार में तटबंध बनाकर नदियो को मोड़ दिया गया. सिचाई की व्यवस्था की गई. लेकिन आज 15 साल नहीं बल्कि 59 साल के बाद भी बाढ़ की समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकाला जा सका है.

ईटीवी भरत GFX.
ईटीवी भरत GFX. (ETV Bharat)

127 साल में अब तक नहीं बनी बात : बिहार के मंत्री और नेता अक्सर ही कहते नजर आते हैं कि अगर नेपाल पूरी तरह सहयोग करे और उच्च बांध बनाए तो समसया का निदान हो सकता है. नेपाल के बराह क्षेत्र से 1.6 किमी उत्तर की दिशा में सप्तकोशी नदी पर बांध के निर्माण को लेकर 1897 से यानी 127 साल से बात हो रही है पर इसपर अबतक अमली जामा नहीं पहनाया गया है. अगर गौर से देखा जाए तो 269 मीटर ऊंचे इस प्रस्तावित बांध से नेपाल के सात जिलों के 75 हजार से अधिक लोगों को विस्थापित होना होगा. यही नहीं जब भी ज्यादा बारिश होगी नेपाल को भारी बाढ़ से रूबरू होना पड़ेगा.

''कोसी नदी को यदि देखते हैं तो इस नदी का कैचमेंट एरिया जल ग्रहण क्षेत्र जो है 32631 वर्ग किलोमीटर तिब्बत में आता है. 39678 वर्ग किलोमीटर नेपाल में है. जिसमें ग्लेशियर है, कंचनजंगा है, एवरेस्ट शिखर है, यह सब जल ग्रहण में आता है. बाकी 22000 वर्ग किलोमीटर बिहार में है. इसमें तटबंध बने हुए हैं. सुईस गेट बने हुए हैं जो तटबंध के अंदर है. जब भी हिमालय पर बारिश होगी, नेपाल में बारिश होगी, उस कैचमेंट एरिया में बारिश होगी तो बाढ़ आएगा ही. क्योंकि यह निचला इलाका है तो उधर बारिश होगी तो इधर पानी आएगा ही.''- महेंद्र यादव, नदियों पर काम करने वाले विशेषज्ञ

नेपाल के बराज पर बिहार के इंजिनियर : महेंद्र यादव कहते हैं कि नदी का नेचर है जिधर उन्हें रास्ता मिलता है उधर ही पानी जाता है. बिहार में दो बड़ा बराज है, एक है बगहा में वाल्मिकिनगर बराज और सुपौल में कोसी बराज. यही नहीं कोसी में भीम नगर बैराज है, उस पूरे भीम नगर बराज को उठाने का काम बिहार के इंजीनियर करते हैं. पानी अपने बिहार वाले ही छोड़ते हैं और नेपाल के लोग यह कहते हैं कि हमारे देश में इंडिया वाले लोग आकर नेपाल में काम करते हैं और वहां के जो राष्ट्रवादी लोग हैं वह यह कहते हैं कि भारत के लोग अतिक्रमण कर रहे हैं.

''नेपाल का जो भौगोलिक बनावट है कमला, अधवारा, बागमती, गंडक नही उधर से ही आती है. गंडक पर बाल्मीकि नगर बैराज है. वहां भी बिहार के इंजीनियर काम करते हैं. जैसे ही पानी ऊपर होता है वह नीचे आएगा ही आएगा और हम लोग मान लेते हैं कि नेपाल दोषी है. कोसी नदी पर भीमनगर बैराज है, गंडक नदी पर भैंसा लोटन बैराज है, सोन नदी पर इंद्रपुरी बैराज है, कमला नदी पर बैराज बन रहा है, गंगा नदी पर बंगाल में फरक्का बैराज है.''- महेंद्र यादव, नदियों पर काम करने वाले विशेषज्ञ

कोसी मेची नदी जोड़ योजना : बिहार सरकार कई योजनाओं के जरिए बाढ़ पर काबू पाने की कोशिश में लगी है, इसी में से एक है कोसी मेची नदी जोड़ योजना. इस योजना के जरिए सिमांचल के चार जिलों अररिया, पूर्णिया, किशनगंज और कटिहार की बड़ी आबादी को बाढ़ से राहत दिलाना चाहती है. हालांकि यह योजना अभी अधर में है. अगर केन्द्र की स्वीकृति मिलती है तो बात आगे बढ़ेगी. इसमें केन्द्र का वहन 90 प्रतिशत जबकि राज्य का 10 प्रतिशत रहेगा.

ईटीवी भरत GFX.
ईटीवी भरत GFX. (ETV Bharat)

कोसी मेची योजना में कोसी बेसिन के पानी को महानंदा बेसिन में लाया जाएगा इसके लिए मेची लिंक माध्यम बनेगा. दोनों नदियों को मिलाने के लिए 120 किलोमीटर में कैनाल का भी निर्माण होगा और यह केनाल नेपाल के तराई क्षेत्र से गुजरेगी. साथ ही बकरा रावता और कंकई जैसी छोटी नदियों को भी इस योजना के माध्यम से जोड़ा जाएगा.

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बगहा में बारिश के कारण पुलिया और पीसीसी सड़क ध्वस्त, एसपी कार्यालय परिसर झील में हुआ तब्दील - Rain In Bagaha

Last Updated : Jul 3, 2024, 9:43 PM IST
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