नई दिल्ली : प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी ने कहा है कि लेटरल एंट्री से आरक्षण पर असर पड़ेगा. सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट डालते हुए राहुल ने लिखा कि लेटरल एंट्री से आदिवासी, ओबीसी और दलितों के रिजर्वेशन का हक मारा जाएगा. अन्य विपक्षी दलों ने भी इस भर्ती अभियान को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साधा है. उनका आरोप है कि बहाली के जरिए मोदी सरकार अपने चहेतों को सीनियर पदों पर बिठाएगी और उनके जरिए खास बिजनेसमैन को फायदा पहुंचा जाएगा.
Lateral entry is an attack on Dalits, OBCs and Adivasis.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) August 19, 2024
BJP’s distorted version of Ram Rajya seeks to destroy the Constitution and snatch reservations from Bahujans.
सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि बिना आरक्षण के प्रावधान किए ही बहाली निकलाना असंवैधानिक है.
Lateral entry without reservation is unconstitutional pic.twitter.com/LCrS5f1G6j
— CPI (M) (@cpimspeak) August 19, 2024
किन पदों के लिए निकली बहाली
आपको बता दें कि यूपीएससी ने 24 मंत्रालयों में कुल 45 पदों पर लेटरल एंट्री को लेकर एक विज्ञापन प्रकाशित किया है. निजी क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को एंट्री दी जाएगी. इनकी बहाली अनुबंध के आधार पर होगी. जिन पदों पर नियुक्ति की जाएगी, उनमें संयुक्त सचिव, उप सचिव और निदेशक के पद शामिल हैं. इनकी बहाली अलग-अलग मंत्रालयों में की जाएगी.
UPSC invites applications for lateral entries at Joint Secretary and Directors Level. See link below for eligibility criteria and application process (deadline 17th Sept). See image for indicative roles that may be availble. #UPSC https://t.co/qcWL890HC1 pic.twitter.com/Mf86X42azs
— Sanjeev Sanyal (@sanjeevsanyal) August 17, 2024
कौन कर सकते हैं आवेदन
वैसे लोग जो लगातार 15 सालों से निजी क्षेत्र में कार्यरत हैं, वे आवेदन कर सकते हैं. उनकी आयु कम से कम 45 साल होना जरूरी है. न्यूनतम स्नातक की डिग्री आवश्यक है. किसी यूनिवर्सिटी या पीएसयू या फिर रिसर्च संस्थान में काम करने वाले व्यक्ति आवेदन कर सकते हैं.
अगर लेटरल एंट्री से बहाली नहीं होती है, तो इन पदों पर किसी आईएएस, आईपीएस या आईएफएस कैडर के अधिकारियों या फिर ग्रुप ए के अधिकारियों की नियुक्ति की जाती है.
इंदिरा सरकार के दौरान भी लेटरल एंट्री पर हुई थी चर्चा
ऐसा नहीं है कि सिर्फ मोदी सरकार ने ही ऐसी नियुक्तियां की हैं. इसकी चर्चा तो काफी पहले से होती रही है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 1966 में जब इंदिरा गांधी की सरकार थी, तब मोरारजी देसाई की अध्यक्षता में प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन किया गया था. इस आयोग ने अपनी अनुशंसा में लेटरल एंट्री को चर्चा के केंद्र में लाया था. उन्होंने सुझाव दिया था कि जिनके पास भी स्पेशल स्किल है, उन्हें सिविल सेवा में जगह मिलनी चाहिए. लेकिन उनकी राय पर कोई भी एक्शन नहीं लिया गया. उसके बाद बीच-बीच में कई ऐसे मौके आए, जब इस विषय पर वाद-विवाद चलता रहा.
यूपीए सरकार ने लेटरल एंट्री के जरिए की थी बहाली
2005 में मनमोहन सिंह की सरकार ने जब दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन किया था, तब इस आयोग ने लेटरल एंट्री को सही ठहराया. आयोग के अध्यक्ष वरिष्ठ कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली थे. इनकी अनुशंसा के आधार पर ही मुख्य आर्थिक सलाहकार की नियुक्ति भी की गई थी.
नीति आयोग ने दिया था सुझाव
2017 में नीति आयोग ने मोदी सरकार को एक सुझाव दिया था. इसमें आयोग ने लेटरल एंट्री की वकालत की. उनका मुख्य जोर मैनेजमेंट के स्तर पर स्पेशल स्किल वाले लोगों को एंट्री दिलाने पर था. उन्हें केंद्रीय सचिवालय का हिस्सा भी माना जाएगा, ऐसा भी सुझाव दिया गया. नीति आयोग ने कहा था कि इनकी बहाली तीन से पांच सालों तक के लिए की जा सकती है.
केंद्र सरकार के सीनियर अधिकारियों की कैसी होती है रैंकिंग
आपको बता दें कि किसी भी विभाग में सचिव शीर्ष अधिकारी होते हैं. उसके बाद एडिशनल सेक्रेट्री का स्थान आता है. तीसरे नंबर पर ज्वाइंट सेक्रेट्री होते हैं. ये किसी भी विभाग के एक विंग के मुखिया के तौर पर काम करते हैं. डायरेक्टर ज्वाइंट सेक्रेट्री उनके अधीन काम करते हैं.
विपक्षी पार्टियों ने क्यों क्या विरोध
अभी जिस आधार पर विरोध किया जा रहा है, इनमें दो प्रमुख कारण हैं. पहला है रिजर्वेशन और दूसरा है वरिष्ठ अधिकारियों की अनदेखी. एक अन्य भी कारण है, वह है कि सरकार अपने चहेतों को यह पद दे सकती है. उसके बाद वे किसी बिजनेस ग्रुप को फायदा भी पहुंचा सकते हैं.
कहा ये भी जा रहा है कि जो भी व्यक्ति सेवा से जुड़ेंगे, उन्हें पहले से काम कर रहे अधिकारियों के साथ तालमेल बिठाने में कठिनाई होगी. साथ ही व्यवस्था को समझने में भी उन्हें ज्यादा समय लगेगा.
क्या कहता है सर्कुलर
सरकार के समर्थकों का तर्क है कि जहां कहीं भी 45 दिनों से अधिक समय के लिए कॉन्ट्रैक्ट पर बहाली की जाती है, वहां पर रिजर्वेशन के नियमों को फॉलो किया जाता है. यानी सरकार आरक्षण को लेकर नियमों का पालन करेगी. इसके लिए 15 मई 2018 के सर्कुलर का जिक्र किया जाता है. इस सर्कुलर में लिखा है कि आरक्षण को लेकर जो भी गाइडलाइंस हैं, उनका अनुपालन किया जाएगा.
हालांकि, विवाद की वजह है 2018 का एक लेटर. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार तत्कालीन पर्सनल एवं ट्रेनिंग विभाग की एडिशनल सेक्रेटरी सुजाता चतुर्वेदी ने कहा था कि अगर किसी की बहाली डेप्यूटेशन पर होती है, तो उसमें रिजर्वेशन के नियमों का पालन अनिवार्य नहीं है. उनके अनुसार लेटरल एंट्री से होने वाली बहाली में इसी नियमों को लागू किया जाना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा था कि बहाली के लिए योग्यता ही आधार होगा, फिर चाहे वे किसी भी जाति या धर्म के हों.
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