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हिमाचल में उत्पन्न हुए ताजा हालात पर क्या कहते हैं संसदीय मामलों के जानकार ? - anti defection law

Himachal Political Crisis, Ramnarayan Yadav, anti-defection law, Congress MLAs Disqualified: हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के 6 बागी विधायकों को स्पीकर ने अयोग्य करार दिया है. इन विधायकों ने राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग की थी. स्पीकर ने दलबदल कानून यानि एंटी डिफेक्शन लॉ के तहत ये फैसला सुनाया है और सभी को अयोग्य करार दिया. अब जिन सदस्यों को सदस्यता रद्द की गई है उनके पास क्या उपलब्ध हैं? जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर...

Himachal Political Crisis
हरियाणा और पंजाब विधानसभा के पूर्व सलाहकार और संसदीय मामलों के जानकार राम नारायण यादव
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Feb 29, 2024, 8:53 PM IST

संसदीय मामलों के जानकार राम नारायण यादव से ईटीवी भारत की खास बातचीत.

शिमला: हिमाचल प्रदेश में विधानसभा अध्यक्ष ने कांग्रेस पार्टी के अच्छे विधायकों की सदस्यता निरस्त कर दी है. इसके बाद सवाल यह है कि क्या विधानसभा अध्यक्ष ने संसदीय प्रणाली के तहत छह विधायकों की सदस्यता रद्द की और जिन सदस्यों को सदस्यता रद्द की गई है उनके पास अब क्या रास्ता है? इन्हीं तमाम सवालों को लेकर हमने हरियाणा और पंजाब विधानसभा के पूर्व सलाहकार और संसदीय मामलों के जानकार राम नारायण यादव से बातचीत की.

  • सवाल- विधायकों की सदस्यता रद्द करने के पीछे तर्क दिया गया है कि वे लोग व्हिप जारी होने के बाद भी सदन में वोट ऑन अकाउंट यानी बजट पास करने के मौके मौजूद नहीं रहे इसको आप कैसे देखते हैं?

जवाब- एंटी डिफेक्शन लॉ के पैराग्राफ टू के वन डी में से बारे में जानकारी दी गई है. अगर कोई सदस्य अपनी पार्टी के व्हिप की अवहेलना करता है तो उसकी सदस्यता रद्द की जा सकती है, लेकिन उसके लिए पार्टी को भी कुछ बातें फॉलो करनी होती है. इस संदर्भ में जो व्हिप पार्टी ने जारी किया था वह तीन लाइन का होना चाहिए खासतौर पर इसके लिए. व्हिप तीन तरह के होते हैं वन लाइन, टू लाइन और थ्री लाइन. थ्री लाइन व्हिप मैंडेटरी होता है कि उसे मान जाए. इसको सुप्रीम कोर्ट की भी सेक्शन प्राप्त है, लेकिन हमारी लीगल प्रोसीडिंग्स यह भी कहती है कि जो व्हिप जारी किया गया है वह उसको मिलना भी चाहिए, एक मामले में तो यह भी हुआ है कि व्हिप रिसीव हुआ भी है या नहीं. कोर्ट यहां तक भी इस मामले में जानकारी लेती है. यह कानूनी प्रक्रिया है जो मैं आपको बता रहा हूं. जब कोई व्हिप की अवहेलना करता है तो वह डिसक्वालीफिकेशन में आता है. अगर सदस्यता इस आधार पर निरस्त की गई है और साथ ही उक्त व्यक्ति को जिस सदस्य ने व्हिप की अवहेलना की है और उसे प्रिंसिपल ऑफ नेचुरल जस्टिस उसको दे दिया गया है, तो फिर सदस्यता रद्द करने के केस में मजबूती मिल जाती है. नहीं तो सदस्य के हक में भी मामला जा सकता है.

  • सवाल- एक तो आपने कहा कि तीन लाइन का व्हिप होना चाहिए, और दूसरा वह उस शख्स को मिलना भी चाहिए, तो क्या ऐसे में सदस्य के पास कानूनी रास्ता इख्तियार करने का हक है?

जवाब- देखिए इस तरह की बातें कानूनी प्रक्रिया के दौरान आई है. लेकिन व्हिप को कोई सैंक्शन नही मिली है ,हालांकि व्हिप को लेकर लेकर कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने अपनी बात रखी है इनको आइडेंटिफाई करने की कोशिश की है. क्योंकि कुछ मामलों में याचिकाकर्ता ने इस तरह के तर्क दिया कि उसे व्हिप मिला ही नहीं या उसे डिलीवरी नहीं हुआ. या मुझे पता ही नहीं था कि व्हिप जारी हुआ है. मैं इस वजह से नही आया. यह सारी बातें देखने की गंभीरता से जरूर होती है लेकिन आजकल का जमाना तो इंटरनेट के जरिए चलता है. क्या व्हिप ईमेल से भेजा गया है. या बाय पोस्ट भेजा है. सिर्फ डिलीवर करने का ही मामला नहीं है उसे रिसीव करने की भी बात है. यहां पार्टी छोड़ने वाला मामला तो है नहीं है यहां तो जो बात आ रही है वह कट मोशन में शामिल न होने की है. क्योंकि हमारे संसदीय कार्य प्रणाली में कई मोशन ऐसे हैं जिसमें अगर वोटिंग होती है तो सरकार अगर मजोरटी में नहीं है तो उसे जाना भी पड़ सकता है. इसलिए व्हिप जारी होते हैं. यह पीठासीन अधिकारी यानी ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष (विधानसभा अध्यक्ष) को यह सब बातें देखनी होती हैं.

  • सवाल- हमारी जानकारी के मुताबिक याचिका कर्ताओं के वकील ने 7 दिन का जवाब देने के लिए वक्त मांगा था लेकिन उससे पहले ही उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई है क्या इससे भी कोई असर पड़ता है?

जवाब- देखिए इस तरह के मामलों में जो इंटरप्रिटेशन है वह कोर्ट की रह जाती है. हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट इस तरह की बातों पर इंटरप्रिटेशन दे सकती है. जैसे हरियाणा विधानसभा में 7 दोनों का वक्त दिया जाता है नोटिस को लेकर. इसको लेकर 1996 में ही कानून बन गया था. इसमें यह प्रोविजन है कि जब किसी की डिसक्वालिफिकेशन का मैटर विधानसभा अध्यक्ष के पास आता है तो वह कुछ दिनों का वक्त देते हैं. लेकिन कुछ मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने इन रूल को बाइंडिंग नहीं माना है. यह डायरेक्टिव है, इसको पीठासीन अधिकारी जैसे दिखते हैं उस तरह से माना जा सकता है. इसको कई मामलों में डायरेक्टिव माना गया है बाइंडिग नही.

  • सवाल- क्या जिन सदस्यों की सदस्यता रद्द हो गई है उनके पास अब सिर्फ कोर्ट का रास्ता ही रह जाता है

जवाब- अगर उन्होंने किसी भी तरह से नियमों की अवहेलना की है तो फिर वह दोषी हैं. उनको व्हिप मिल गया था फिर भी वे दोषी हैं. अगर उनको प्रिंसिपल ऑफ नेचुरल जस्टिस भी मिल गया है तो भी विधानसभा के अध्यक्ष का फैसला सही है. अगर इन चीजों में कोई कमी रह जाती है तो अलग बात है. बाकी तो सारी बातें कानूनी प्रक्रिया की है इसमें कोर्ट कभी जल्दी भी फैसला दे सकती और वह लंबा भी खींच सकता है. क्योंकि 15 दिन से लेकर साढ़े तीन साल तक ऑर्डर पास करने की प्रथाएं तो है. इस मामले में आगे तो हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट को ही कोई आखिरी फैसला लेना है. क्योंकि यह फैसला ट्रिब्यूनल का है इसलिए हाईकोर्ट इस पर अपनी राय दे सकता है.

  • सवाल- जो 6 सदस्यों को निष्कासित करने के बाद स्थिति बनी है, क्याा इन हालातों में सरकार घिर सकती है?

जवाब- अभी के आंकड़ों के मुताबिक सरकार गिरने की संभावनाएं कम है. 6 सदस्यों की सदस्यता रद्द की गई है तो ऐसे में हाउस की स्ट्रेंथ भी काम हो गई है. अब हाउस में सदस्यों की संख्या भी 62 हो गई है तो ऐसे में 32 सदस्यों की जरूरत सरकार को है. मेजोरिटी के लिए आंकड़ा भी काम हो गया है इसलिए सरकार चलती रहेगी. क्योंकि अब मेजोरिटी के साथ विधानसभा का सत्र भी स्थगित हो गया है तो ऐसे में विपक्ष राज्यपाल के पास जाकर अपना आंकड़ा बता सकते हैं और यह कह सकते हैं कि हम मेजोरिटी में है और जो सरकार है वह माइनॉरिटी में आ गई है तो आप उन्हें कहिए कि वह अपनी मेजोरिटी को प्रूव करें. अगर राज्यपाल इस बात से संतुष्ट होते हैं तो वह कह सकते हैं कि सरकार विधानसभा में अपनी मेजोरिटी को साबित करे. वह इतना कर सकते हैं कि इसके लिए वे दो दिन या सप्ताह का वक्त दे सकते हैं. बाजी काम हाउस का रह जाता है.

  • सवाल- क्या विपक्ष को राजभवन जाकर राज्यपाल के सामने मेजोरिटी का आंकड़ा लिखित में बताना होगा या फिर वैसे भी वह सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला सकते हैं.

जवाब- हमारी संसदीय कार्य प्रणाली में यह दोनों तरह से हो सकता है यह राज्य में राज्यपाल या देश में राष्ट्रपति पर निर्भर करता है. अगर कोई विवाद नहीं होता है तो वह फिर लिस्ट पर भी मान लेते हैं. लेकिन लिस्ट पर हुए तब मानते हैं जब नई सरकार बन रही होती है. लेकिन ऐसे हालात पैदा हो जाते हैं तो वह विपक्ष के सिर्फ उनके सामने जाने से भी अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी दे सकते हैं. अगर वे हर तरह से सेटिस्फाई है तो फिर वह मुख्यमंत्री को कह सकते हैं कि आप सदन में विश्वास मत हासिल कीजिए.

ये भी पढ़ें- सुलझ गया हिमाचल कांग्रेस का संकट, पर्यवेक्षक बोले सब All Is Well, 6 सदस्यों की समन्वय समिति बनेगी

संसदीय मामलों के जानकार राम नारायण यादव से ईटीवी भारत की खास बातचीत.

शिमला: हिमाचल प्रदेश में विधानसभा अध्यक्ष ने कांग्रेस पार्टी के अच्छे विधायकों की सदस्यता निरस्त कर दी है. इसके बाद सवाल यह है कि क्या विधानसभा अध्यक्ष ने संसदीय प्रणाली के तहत छह विधायकों की सदस्यता रद्द की और जिन सदस्यों को सदस्यता रद्द की गई है उनके पास अब क्या रास्ता है? इन्हीं तमाम सवालों को लेकर हमने हरियाणा और पंजाब विधानसभा के पूर्व सलाहकार और संसदीय मामलों के जानकार राम नारायण यादव से बातचीत की.

  • सवाल- विधायकों की सदस्यता रद्द करने के पीछे तर्क दिया गया है कि वे लोग व्हिप जारी होने के बाद भी सदन में वोट ऑन अकाउंट यानी बजट पास करने के मौके मौजूद नहीं रहे इसको आप कैसे देखते हैं?

जवाब- एंटी डिफेक्शन लॉ के पैराग्राफ टू के वन डी में से बारे में जानकारी दी गई है. अगर कोई सदस्य अपनी पार्टी के व्हिप की अवहेलना करता है तो उसकी सदस्यता रद्द की जा सकती है, लेकिन उसके लिए पार्टी को भी कुछ बातें फॉलो करनी होती है. इस संदर्भ में जो व्हिप पार्टी ने जारी किया था वह तीन लाइन का होना चाहिए खासतौर पर इसके लिए. व्हिप तीन तरह के होते हैं वन लाइन, टू लाइन और थ्री लाइन. थ्री लाइन व्हिप मैंडेटरी होता है कि उसे मान जाए. इसको सुप्रीम कोर्ट की भी सेक्शन प्राप्त है, लेकिन हमारी लीगल प्रोसीडिंग्स यह भी कहती है कि जो व्हिप जारी किया गया है वह उसको मिलना भी चाहिए, एक मामले में तो यह भी हुआ है कि व्हिप रिसीव हुआ भी है या नहीं. कोर्ट यहां तक भी इस मामले में जानकारी लेती है. यह कानूनी प्रक्रिया है जो मैं आपको बता रहा हूं. जब कोई व्हिप की अवहेलना करता है तो वह डिसक्वालीफिकेशन में आता है. अगर सदस्यता इस आधार पर निरस्त की गई है और साथ ही उक्त व्यक्ति को जिस सदस्य ने व्हिप की अवहेलना की है और उसे प्रिंसिपल ऑफ नेचुरल जस्टिस उसको दे दिया गया है, तो फिर सदस्यता रद्द करने के केस में मजबूती मिल जाती है. नहीं तो सदस्य के हक में भी मामला जा सकता है.

  • सवाल- एक तो आपने कहा कि तीन लाइन का व्हिप होना चाहिए, और दूसरा वह उस शख्स को मिलना भी चाहिए, तो क्या ऐसे में सदस्य के पास कानूनी रास्ता इख्तियार करने का हक है?

जवाब- देखिए इस तरह की बातें कानूनी प्रक्रिया के दौरान आई है. लेकिन व्हिप को कोई सैंक्शन नही मिली है ,हालांकि व्हिप को लेकर लेकर कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने अपनी बात रखी है इनको आइडेंटिफाई करने की कोशिश की है. क्योंकि कुछ मामलों में याचिकाकर्ता ने इस तरह के तर्क दिया कि उसे व्हिप मिला ही नहीं या उसे डिलीवरी नहीं हुआ. या मुझे पता ही नहीं था कि व्हिप जारी हुआ है. मैं इस वजह से नही आया. यह सारी बातें देखने की गंभीरता से जरूर होती है लेकिन आजकल का जमाना तो इंटरनेट के जरिए चलता है. क्या व्हिप ईमेल से भेजा गया है. या बाय पोस्ट भेजा है. सिर्फ डिलीवर करने का ही मामला नहीं है उसे रिसीव करने की भी बात है. यहां पार्टी छोड़ने वाला मामला तो है नहीं है यहां तो जो बात आ रही है वह कट मोशन में शामिल न होने की है. क्योंकि हमारे संसदीय कार्य प्रणाली में कई मोशन ऐसे हैं जिसमें अगर वोटिंग होती है तो सरकार अगर मजोरटी में नहीं है तो उसे जाना भी पड़ सकता है. इसलिए व्हिप जारी होते हैं. यह पीठासीन अधिकारी यानी ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष (विधानसभा अध्यक्ष) को यह सब बातें देखनी होती हैं.

  • सवाल- हमारी जानकारी के मुताबिक याचिका कर्ताओं के वकील ने 7 दिन का जवाब देने के लिए वक्त मांगा था लेकिन उससे पहले ही उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई है क्या इससे भी कोई असर पड़ता है?

जवाब- देखिए इस तरह के मामलों में जो इंटरप्रिटेशन है वह कोर्ट की रह जाती है. हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट इस तरह की बातों पर इंटरप्रिटेशन दे सकती है. जैसे हरियाणा विधानसभा में 7 दोनों का वक्त दिया जाता है नोटिस को लेकर. इसको लेकर 1996 में ही कानून बन गया था. इसमें यह प्रोविजन है कि जब किसी की डिसक्वालिफिकेशन का मैटर विधानसभा अध्यक्ष के पास आता है तो वह कुछ दिनों का वक्त देते हैं. लेकिन कुछ मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने इन रूल को बाइंडिंग नहीं माना है. यह डायरेक्टिव है, इसको पीठासीन अधिकारी जैसे दिखते हैं उस तरह से माना जा सकता है. इसको कई मामलों में डायरेक्टिव माना गया है बाइंडिग नही.

  • सवाल- क्या जिन सदस्यों की सदस्यता रद्द हो गई है उनके पास अब सिर्फ कोर्ट का रास्ता ही रह जाता है

जवाब- अगर उन्होंने किसी भी तरह से नियमों की अवहेलना की है तो फिर वह दोषी हैं. उनको व्हिप मिल गया था फिर भी वे दोषी हैं. अगर उनको प्रिंसिपल ऑफ नेचुरल जस्टिस भी मिल गया है तो भी विधानसभा के अध्यक्ष का फैसला सही है. अगर इन चीजों में कोई कमी रह जाती है तो अलग बात है. बाकी तो सारी बातें कानूनी प्रक्रिया की है इसमें कोर्ट कभी जल्दी भी फैसला दे सकती और वह लंबा भी खींच सकता है. क्योंकि 15 दिन से लेकर साढ़े तीन साल तक ऑर्डर पास करने की प्रथाएं तो है. इस मामले में आगे तो हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट को ही कोई आखिरी फैसला लेना है. क्योंकि यह फैसला ट्रिब्यूनल का है इसलिए हाईकोर्ट इस पर अपनी राय दे सकता है.

  • सवाल- जो 6 सदस्यों को निष्कासित करने के बाद स्थिति बनी है, क्याा इन हालातों में सरकार घिर सकती है?

जवाब- अभी के आंकड़ों के मुताबिक सरकार गिरने की संभावनाएं कम है. 6 सदस्यों की सदस्यता रद्द की गई है तो ऐसे में हाउस की स्ट्रेंथ भी काम हो गई है. अब हाउस में सदस्यों की संख्या भी 62 हो गई है तो ऐसे में 32 सदस्यों की जरूरत सरकार को है. मेजोरिटी के लिए आंकड़ा भी काम हो गया है इसलिए सरकार चलती रहेगी. क्योंकि अब मेजोरिटी के साथ विधानसभा का सत्र भी स्थगित हो गया है तो ऐसे में विपक्ष राज्यपाल के पास जाकर अपना आंकड़ा बता सकते हैं और यह कह सकते हैं कि हम मेजोरिटी में है और जो सरकार है वह माइनॉरिटी में आ गई है तो आप उन्हें कहिए कि वह अपनी मेजोरिटी को प्रूव करें. अगर राज्यपाल इस बात से संतुष्ट होते हैं तो वह कह सकते हैं कि सरकार विधानसभा में अपनी मेजोरिटी को साबित करे. वह इतना कर सकते हैं कि इसके लिए वे दो दिन या सप्ताह का वक्त दे सकते हैं. बाजी काम हाउस का रह जाता है.

  • सवाल- क्या विपक्ष को राजभवन जाकर राज्यपाल के सामने मेजोरिटी का आंकड़ा लिखित में बताना होगा या फिर वैसे भी वह सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला सकते हैं.

जवाब- हमारी संसदीय कार्य प्रणाली में यह दोनों तरह से हो सकता है यह राज्य में राज्यपाल या देश में राष्ट्रपति पर निर्भर करता है. अगर कोई विवाद नहीं होता है तो वह फिर लिस्ट पर भी मान लेते हैं. लेकिन लिस्ट पर हुए तब मानते हैं जब नई सरकार बन रही होती है. लेकिन ऐसे हालात पैदा हो जाते हैं तो वह विपक्ष के सिर्फ उनके सामने जाने से भी अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी दे सकते हैं. अगर वे हर तरह से सेटिस्फाई है तो फिर वह मुख्यमंत्री को कह सकते हैं कि आप सदन में विश्वास मत हासिल कीजिए.

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