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उत्तराखंड के ओल्ड लिपुलेख से कैलाश दर्शन का बढ़ा इंतजार, मानसून ने तैयारियों में डाला खलल, बढ़ाई गई तारीख - Kailash Darshan from Lipulekh Pass

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Sep 5, 2024, 7:23 PM IST

Kailash Darshan from Lipulekh Pass, Kailash Mansarovar Darshan from Old Lipulekh,ओल्ड लिपुलेख से कैलाश मानसरोवर दर्शन के लिए भक्तों को अभी इंतजार करना होगा. पहले 15 सितंबर से दर्शन की बात कही जा रही थी, मगर अब इसे रोका गया है. ओल्ड लिपुलेख तक सड़क मार्ग को दुरुस्त किया जाना है. यहां व्यवस्थाएं बनाई जा रही हैं, मगर मानसून, बारिश के कारण तैयारियों पर असर पड़ रहा है.

Kailash Darshan from Lipulekh Pass
उत्तराखंड के ओल्ड लिपुलेख से कैलाश दर्शन का बढ़ा इंतजार (ETV BHARAT)

देहरादून(उत्तराखंड): क्या इस बार भक्तगण उत्तराखंड के ओल्ड लिपुलेख से कैलाश मानसरोवर के दर्शन कर पाएंगे? यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि बीते साल उत्तराखंड सरकार के साथ ही अधिकारियों ने इस बात पर जोर दिया था कि साल 2024 में यहीं से कैलाश मानसरोवर के दर्शन हो पाएंगे. जिसके बाद ही कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाने वाले यात्रियों और भक्तों को इस मार्ग के खुलने का इंतजार है, मगर इस बार भी भक्तों का ये इंतजार लंबा होने वाला है. क्या है इसकी वजह आइये आपको बताते हैं...

ओल्ड लिपुलेख से कैलाश मानसरोवर के दर्शन: साल 2023 में जब यह खबर आई थी कि उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले से जाने वाले मार्ग के रास्ते पर ही एक ऐसी जगह है जहां से कैलाश मानसरोवर के दर्शन संभव हैं, इन्हीं खबरों के बाद राज्य सरकार ने इस पर तेजी से काम शुरू किया. लगभग 18000 फीट की ऊंचाई पर स्थित कैलाश पर्वत के दर्शन उत्तराखंड से होंगे, इसकी कोशिशें की गई. इस खबर के बाद तमाम शिव भक्त भी उत्साहित थे, सभी उस दिन का इंतजार कर रहे थे जब ओल्ड लिपुलेख से बाबा के दर्शन शुरू हो सकेंगे. सभी को इंतजार था कि 15 सितंबर से कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाने वाले मार्ग को भक्तों के लिए खोला जाएगा, लेकिन अभी ऐसा लग नहीं रहा है.

क्या इस बार भक्त जा पाएंगे कैलाश मानसरोवर: बीते साल जून महीने में जब यह खबर आई थी कि पवित्र कैलाश पर्वत के दर्शन के लिए अब चीन के रास्ते की जरूरत नहीं होगी, तब उत्तराखंड सरकार ने इस मार्ग को विकसित करने की बात कही. बीते 4 सालों से किसी न किसी वजह से स्थगित हो रही कैलाश मानसरोवर यात्रा साल 2024 में उत्तराखंड के रास्ते हो पाएगी, इस पर भी मुहर लग गई थी, लेकिन अब अधिकारियों का कहना है कि हम कोशिश कर रहे हैं कि समय पर यात्रा को शुरू किया जाये.

क्या कहते हैं अधिकारी: पिथौरागढ़ जिला पर्यटन अधिकारी कीर्ति चंद्र आर्य कहते हैं मौसम और सड़क के साथ-साथ सभी पहलुओं को हम बारीकी से देख रहे हैं. अभी पूरे क्षेत्र में लगातार बारिश हो रही है. बारिश की वजह से कई काम रोके गये हैं. उन्होंने कहा हम भी चाहते थे कि 2024 में इसी मार्ग के माध्यम से भक्तों को कैलाश मानसरोवर के दर्शन करवाए जाएं, लेकिन यह अभी 15 सितंबर तक नहीं हो सकता है. उन्होंने कहा इतना जरूर है कि इस यात्रा पर अधिक संख्या में फिलहाल भक्त नहीं जा पाएंगे. हमने सीमित संख्या में यात्रियों को कैलाश दर्शन के लिए भेजे का प्लान किया है. साल 2023 में हमनें इस काम का बीड़ा उठाया था. अब हम इसको पूरा करने जा रहे हैं. उन्होंने कहा यात्रा को खोलना ही सिर्फ हमारा मकसद नहीं है.

कठिन है रास्ता लेकिन नामुमकिन नहीं: पिथौरागढ़ जिला पर्यटन अधिकारी कीर्ति चंद्र आर्य के मुताबिक यह रास्ता फिलहाल छोटा तो है लेकिन बेहद कठिन भी है. हम कोशिश कर रहे हैं कि जो 2 किलोमीटर की लंबी चढ़ाई है वहां तक भी सड़क को पहुंचाया जाये. इसमें अभी समय लगेगा, लेकिन हम इसे जल्द ही पूरा कर लेंगे. उन्होंने कहा सड़क के साथ ही भक्तों के खाने-पीने की व्यवस्थाएं भी वहां पर की जाएंगी. मानसून और बारिश के कारण काम बहुत धीमी गति से चल रहा है.

क्या कहते हैं पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज: उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने कहा हम इस मार्ग को तैयार करने में लगे हैं. भारत सरकार भी इस पर नजर बनाये हुए है. हर महीने इस मार्ग के काम की प्रगति रिपोर्ट को देखा जा रहा है. बारिश की वजह से काम उतनी तेजी से नहीं हो पा रहा है. सतपाल महाराज ने कहा जोलिकोंग से मात्र 25 किलोमीटर ऊपर लिंपियाधुरा छोटी से भी कैलाश चोटी के दर्शन हो रहे हैं. हम आने वाले समय में इसी रास्ते के माध्यम से ओम पर्वत आदि कैलाश और पार्वती सरोवर को जोड़ने की प्लानिंग कर रहे हैं. इसके बाद इस क्षेत्र की तस्वीर बदल जाएगी.

क्या है कैलाश मानसरोवर: कैलाश मानसरोवर पर्वत को भगवान शिव का घर माना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी पर्वत पर भगवान शिव और माता पार्वती निवास करते हैं. अभी यह पूरा पर्वत तिब्बत और चीन के अधीन है. बताया जाता है कि अब तक भगवान कैलाश के पर्वत पर कोई भी चढ़ाई नहीं कर पाया है. तमाम धार्मिक ग्रंथो में कैलाश पर्वत का जिक्र मिलता है. बताया जाता है कि यह पर्वत 3500 साल से भी अधिक पुराना है. अभी तक जिस रास्ते से यहां तक पहुंच जाता था वहां तक पहुंचाने के लिए 40 किलोमीटर पैदल भक्तों को सफर तय करना पड़ता है. स्वस्थ शरीर और इच्छा शक्ति रखने वाले भक्त ही यहां तक सकुशल पहुंच पाते हैं.

पढे़ं-कैलाश मानसरोवर के प्राचीन मार्ग को विकसित करने की कवायद, वैज्ञानिक बोले- डेवलपमेंट और नेचर को बैलेंस करने की जरूरत

पढे़ं- उत्तराखंड की इस चोटी से होंगे सीधे कैलाश पर्वत के दर्शन, चीन जाने का झंझट खत्म - Kailash Darshan from Lipulekh Pass

देहरादून(उत्तराखंड): क्या इस बार भक्तगण उत्तराखंड के ओल्ड लिपुलेख से कैलाश मानसरोवर के दर्शन कर पाएंगे? यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि बीते साल उत्तराखंड सरकार के साथ ही अधिकारियों ने इस बात पर जोर दिया था कि साल 2024 में यहीं से कैलाश मानसरोवर के दर्शन हो पाएंगे. जिसके बाद ही कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाने वाले यात्रियों और भक्तों को इस मार्ग के खुलने का इंतजार है, मगर इस बार भी भक्तों का ये इंतजार लंबा होने वाला है. क्या है इसकी वजह आइये आपको बताते हैं...

ओल्ड लिपुलेख से कैलाश मानसरोवर के दर्शन: साल 2023 में जब यह खबर आई थी कि उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले से जाने वाले मार्ग के रास्ते पर ही एक ऐसी जगह है जहां से कैलाश मानसरोवर के दर्शन संभव हैं, इन्हीं खबरों के बाद राज्य सरकार ने इस पर तेजी से काम शुरू किया. लगभग 18000 फीट की ऊंचाई पर स्थित कैलाश पर्वत के दर्शन उत्तराखंड से होंगे, इसकी कोशिशें की गई. इस खबर के बाद तमाम शिव भक्त भी उत्साहित थे, सभी उस दिन का इंतजार कर रहे थे जब ओल्ड लिपुलेख से बाबा के दर्शन शुरू हो सकेंगे. सभी को इंतजार था कि 15 सितंबर से कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाने वाले मार्ग को भक्तों के लिए खोला जाएगा, लेकिन अभी ऐसा लग नहीं रहा है.

क्या इस बार भक्त जा पाएंगे कैलाश मानसरोवर: बीते साल जून महीने में जब यह खबर आई थी कि पवित्र कैलाश पर्वत के दर्शन के लिए अब चीन के रास्ते की जरूरत नहीं होगी, तब उत्तराखंड सरकार ने इस मार्ग को विकसित करने की बात कही. बीते 4 सालों से किसी न किसी वजह से स्थगित हो रही कैलाश मानसरोवर यात्रा साल 2024 में उत्तराखंड के रास्ते हो पाएगी, इस पर भी मुहर लग गई थी, लेकिन अब अधिकारियों का कहना है कि हम कोशिश कर रहे हैं कि समय पर यात्रा को शुरू किया जाये.

क्या कहते हैं अधिकारी: पिथौरागढ़ जिला पर्यटन अधिकारी कीर्ति चंद्र आर्य कहते हैं मौसम और सड़क के साथ-साथ सभी पहलुओं को हम बारीकी से देख रहे हैं. अभी पूरे क्षेत्र में लगातार बारिश हो रही है. बारिश की वजह से कई काम रोके गये हैं. उन्होंने कहा हम भी चाहते थे कि 2024 में इसी मार्ग के माध्यम से भक्तों को कैलाश मानसरोवर के दर्शन करवाए जाएं, लेकिन यह अभी 15 सितंबर तक नहीं हो सकता है. उन्होंने कहा इतना जरूर है कि इस यात्रा पर अधिक संख्या में फिलहाल भक्त नहीं जा पाएंगे. हमने सीमित संख्या में यात्रियों को कैलाश दर्शन के लिए भेजे का प्लान किया है. साल 2023 में हमनें इस काम का बीड़ा उठाया था. अब हम इसको पूरा करने जा रहे हैं. उन्होंने कहा यात्रा को खोलना ही सिर्फ हमारा मकसद नहीं है.

कठिन है रास्ता लेकिन नामुमकिन नहीं: पिथौरागढ़ जिला पर्यटन अधिकारी कीर्ति चंद्र आर्य के मुताबिक यह रास्ता फिलहाल छोटा तो है लेकिन बेहद कठिन भी है. हम कोशिश कर रहे हैं कि जो 2 किलोमीटर की लंबी चढ़ाई है वहां तक भी सड़क को पहुंचाया जाये. इसमें अभी समय लगेगा, लेकिन हम इसे जल्द ही पूरा कर लेंगे. उन्होंने कहा सड़क के साथ ही भक्तों के खाने-पीने की व्यवस्थाएं भी वहां पर की जाएंगी. मानसून और बारिश के कारण काम बहुत धीमी गति से चल रहा है.

क्या कहते हैं पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज: उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने कहा हम इस मार्ग को तैयार करने में लगे हैं. भारत सरकार भी इस पर नजर बनाये हुए है. हर महीने इस मार्ग के काम की प्रगति रिपोर्ट को देखा जा रहा है. बारिश की वजह से काम उतनी तेजी से नहीं हो पा रहा है. सतपाल महाराज ने कहा जोलिकोंग से मात्र 25 किलोमीटर ऊपर लिंपियाधुरा छोटी से भी कैलाश चोटी के दर्शन हो रहे हैं. हम आने वाले समय में इसी रास्ते के माध्यम से ओम पर्वत आदि कैलाश और पार्वती सरोवर को जोड़ने की प्लानिंग कर रहे हैं. इसके बाद इस क्षेत्र की तस्वीर बदल जाएगी.

क्या है कैलाश मानसरोवर: कैलाश मानसरोवर पर्वत को भगवान शिव का घर माना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी पर्वत पर भगवान शिव और माता पार्वती निवास करते हैं. अभी यह पूरा पर्वत तिब्बत और चीन के अधीन है. बताया जाता है कि अब तक भगवान कैलाश के पर्वत पर कोई भी चढ़ाई नहीं कर पाया है. तमाम धार्मिक ग्रंथो में कैलाश पर्वत का जिक्र मिलता है. बताया जाता है कि यह पर्वत 3500 साल से भी अधिक पुराना है. अभी तक जिस रास्ते से यहां तक पहुंच जाता था वहां तक पहुंचाने के लिए 40 किलोमीटर पैदल भक्तों को सफर तय करना पड़ता है. स्वस्थ शरीर और इच्छा शक्ति रखने वाले भक्त ही यहां तक सकुशल पहुंच पाते हैं.

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