कुरनूल (आंध्र प्रदेश): भारत त्योहारों का देश है. अलग-अलग राज्यों की भिन्न-भिन्न बोली, परिधान, वेशभूषा होने के बाद भी हम एक हैं. देश में कई त्योहार तो ऐसे भी हैं जो सभी लोग मनाते हैं. वहीं कुछ पर्व और त्योहार ऐसे भी होते है जो सिर्फ कुछ राज्यों में ही मनाए जाते हैं. ऐसे कुछ त्योहार हैं जिनकी प्रथाओं के बारे में जानकर लोग अचंभित रह जाते हैं. ऐसी ही एक प्रथा आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिला स्थित कैरुपाला गांव में मनाई जाती है.
उगादी पर्व पर यहां क्या होता है?
हिंदू नववर्ष के मौके पर उगादी त्योहार यहां के लोगों के लिए काफी धार्मिक महत्व रखता है. उगादी के दौरान यहां गोबर के कंडे (उपला या गोइठा-Cowdung Cake) से लड़ाई होती है. इस लड़ाई के पीछे भी एक बड़ी दिलचस्प कहानी है. उससे पहले हम आपको बताते हैं कि उगादी के दिन लोग घर की साफ-सफाई करे हैं. घरों के बाहर रंगोली बनाई जाती है. स्नान कर लोग नए कपड़े पहनते हैं. घर के मुख्य द्वार पर आम के पत्तों की लड़ी लगाते हैं. इसके बाद मंदिर जाकर पूजा करते हैं. फिर इसके दोस्तों के साथ मिलते हैं और गाय के गोबर से बने कंडे एक दूसरे पर फेंकते हैं. ऐसा ही एक संघर्ष परंपरागत रूप से अस्पारी मंडल के कैरुपाला गांव में देखा गया. इस साल हजारों लोगों की मौजूदगी में गोबर की लड़ाई रोमांचकारी थी. इस लड़ाई में 30 लोग मामूली रूप से घायल हो गए. परंपरा के अनुसार, जब करुमांची के पेद्दार रेड्डी के वंशज नंदकिशोर रेड्डी अपने साथियों के साथ घोड़े पर कैरुप्पाला आए. वे पारंपरिक संगीत के बीच मंदिर गए और पूजा करने के बाद वापस लौटे. फिर यहां गोबर से बने उपलों का युद्ध शुरू हुआ.
गोबर फेंकने की दिलचस्प कहानी
गोबर के कंडे फेंकने के पीछे की पुरानी कहानी कुछ इस प्रकार है. दरअसल, ये सैकड़ों साल पुरानी प्रथा है. कहे तो यह त्रेता युग की बात है. ऐसा माना जाता है कि देवी श्री भद्रकाली और देव वीरभद्रस्वामी एक दूसरे से प्रेम करते थे. वीरभद्रस्वामी और भद्रकाली शादी करने वाले थे. वहीं शादी को लेकर कुछ संघर्ष भी होता है. भद्रकाली के भक्तों को लगता है कि वीरभद्रस्वामी शादी के मामले में विलंब कर सकते हैं. जिसके बाद शादी को लेकर भद्रकाली और वीरभद्रस्वामी के लोग एक दूसरे पर गोबर फेंकते हैं. हालांकि बाद में दोनों की शादी हो जाती है. गाय के गोबर फेंकने वाली परंपरा पर कई लोगों का मानना है कि ऐसा करने से लोगों की सेहत सुधरती है और इंद्रदेव प्रसन्न हो जाते हैं, जिसकी वजह से अच्छी बारिश होती है. उसके बाद से गोबर फेंकने की परंपरा शुरू हुई और आज भी लोग इसे बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाते हैं. बता दें कि, कुरनूल जिले के कैरुपाला गांव में श्री भद्रकाली देवी, वीरभद्र स्वामी मंदिर का इतिहास कई सौ साल पुराना है. उगादी के दौरान यहां होने वाली गोबर के कंडे से लड़ाई के पीछे की कहानी आप जान ही चुके हैं. भद्रकाली देवी और वीरभद्रस्वामी के लिए सैकड़ों साल पहले हुए इस कड़वे संघर्ष को ग्रामीण आज भी याद करते हैं.
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