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देश की ऐसी नदी, जिसका जल छूना भी महापाप है! आखिर क्या है इसकी वजह?

भारत की अपवित्र नदी, जिसका पानी छूना भी पाप माना जाता है. स्नान करने से कर्मों का नाश हो जाता, आखिर क्या है इसका इतिहास?

Karmanasha River
कर्मनाशा नदी (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : 18 hours ago

Updated : 18 hours ago

बक्सरः सांप का काटा हुआ व्यक्ति बच सकता है लेकिन कर्मनाशा नदी के पानी से कोई नहीं बच सकता, ऐसी मान्यता पुराणों में है. कर्मनाशा यानी कर्मों का नाश. माना जाता है कि इस नदी में जो भी स्नान करेगा, उसके सारे अच्छे कर्मों का नाश हो जाता है. उसके सारे पुण्य इसके अपवित्र जल में धुल जाएंगे, इसलिए इसे श्रापित नदी भी कहा जाता है. इसमें कोई स्नान या पूजा-पाठ नहीं करता.

देश की अपवित्र नदीः कर्मनाशा भारत देश की अपवित्र नदी है. इसकी पुराणों में चर्चा है. भौगौलिक स्थिति की बात करें तो यह नदी बिहार-यूपी की सीमा रेखा है. यूपी में 116 किमी तो बिहार में इसकी लंबाई 76 किमी, कुल 192 किमी है. गंगा की उपनदी है, जिसकी उत्पत्ति अधौरा व भगवानपुर स्थित कैमूर की पहाड़ी से होती है. इसके बाद यूपी गाजीपुर के बाड़ा गांव और बक्सर के चौसा में विलय हो जाती है.

कर्मनाशा नदी का पानी अपवित्र क्यों? देखें रिपोर्ट (ETV Bharat)

भौगौलिक स्थितिः इस नदी के बाईं ओर(पश्चिम) में सोनभद्र, चन्दौली, वाराणसी और गाजीपुर जिला आता है. दाईं ओर(पूर्व) में बिहार का कैमूर और बक्सर जिला आता है. उतर प्रदेश व बिहार के बीच सीमा का विभाजन करती है. पूर्व मध्य रेलवे ट्रैक पर पटना और दीनदयाल उपाध्याय जंक्सन के बीच बक्सर जिले के पश्चिमी किनारे पर नदी का बहाव है.

'पानी का नहीं करते इस्तेमाल' स्थानीय लोग बताते हैं कि इस नदी का वे लोग पानी इस्तेमाल नहीं करते. पूजा-पाठ और नहाना धोना तो दूर इस पानी का इस्तेमाल सिंचाई के लिए भी नहीं किया जाता है. लोग बताते हैं कि 'इस नदी का पानी अशुद्ध है, इसलिए इसका उपयोग वर्जित है.' स्थानीय प्रभावती देवी बतातीं है कि 'किसी भी पूजा पाठ में इस पानी का इस्तेमाल नहीं होता.' वृद्ध व्यक्ति भुवन प्रसाद बताते हैं कि 'छठ के समय भी पास नहीं रहने के बावजूद दूर गंगा में जाकर पूजा पाठ होता है.'

Karmanasha River
कर्मनाशा नदी का इतिहास (ETV Bharat GFX)

पुराणों में अपिवत्रता की चर्चा: दरअसल, कर्मनाशा नदी का इतिहास पुराना. इसकी अपिवत्रता की चर्चा पुराणों में है. इसका इहितास हजारों लाखों वर्षों पुराना है, जिसका अनुमान लगाना मुश्किल है. राजा हरिषचंद्र से एक वंश पूर्व अयोध्या के सूर्यवंशी राजा सत्यव्रत से जुड़ा है. सत्यव्रत भगवान राम के पूर्वज के 31वें वंशज थे. इन्हें त्रिशंकु नाम से भी जाना जाता है. इसी त्रिशंकु नाम का रहस्य इस नदी से जुड़ा है.

गुरु वशिष्ठ ने स्वर्ग भेजने से मना कियाः पौराणिक मान्यता के अनुसार राजा सत्यव्रत अपना राजपाट राजा हरिशचंद्र के नाम कर दिए. धार्मिक होने के कारण स्वर्ग जाना तय था लेकिन उनकी इच्छा थी कि वे जीवित ही स्वर्ग जाएं. इसके लिए वे गुरु देवर्षि वशिष्ठ के पास गए और अपनी इच्छा प्रकट की. कहा कि उन्हें सशरीर स्वर्ग भेज दें, इसके लिए यज्ञ करने की प्रार्थना की, लेकिन ऋषि ने मना कर दिया. कहा कि यह प्रकृति के विरुद्ध है. उन्होंने ऋषि के जेष्ठ पुत्र शक्ति को धन का लोभ देकर यज्ञ कराना चाहा. इससे वे क्रोधित हो गए. उन्होंने सत्यव्रत को त्रिशंकु होने का श्राप दिया.

Karmanasha River
कर्मनाशा नदी का भौगौलिक स्थिति (ETV Bharat GFX)

विश्वामित्र ने भेजा स्वर्गः इस श्राप के बाद राजा सत्यव्रत राज्य छोड़कर वन में भटकने लगे. इसी दौरान ऋषि विश्वामित्र से उनकी भेंट हुई. उन्होंने अपनी परेशानी बतायी. विश्वामित्र वशिष्ठ के प्रतिद्वंदी थे, इसलिए स्तव्रत को सशरीर स्वर्ग भेजने की प्रार्थना स्वीकार कर ली. इसके लिए उन्होंने यज्ञ करना शुरू किया. यज्ञ के शुरू होते ही सत्यव्रत स्वर्ग की ओर उठने लगे.

इसलिए त्रिशंकु कहा जाता: इस घटना से स्वर्ग में हड़कंप मच गया. स्वर्ग के राजा इंद्रदेव इससे क्रोधित हो गए और सत्यव्रत को बीच रास्ते में ही रोक दिए और वापस पृथ्वी पर भेजने लगे. इसकी जानकारी विश्वामित्र को हुआ तो क्रोधित हो गए और उन्होंने दोबारा वापस भेजना चाहा. इंद्रदेव और विश्वामित्र में द्वंद होने लगा. इससे राजा सत्यव्रत पृथ्वी और स्वर्ग के बीच त्रिशंकु(उल्टा) लटक गए. इसलिए इन्हें त्रिशंकु भी कहा जाता है.

Karmanasha River
बक्सर में कर्मनाशा नदी (ETV Bharat GFX)

त्रिशंकु की लार से नदी बनीः बीच में लटके सत्यव्रत ने विश्वामित्र से सहायता के लिए प्राथर्ना किए. इसके बाद विश्वामित्र ने अपनी शक्ति से स्वर्ग और पृथ्वी के बीच एक नया स्वर्ग का निर्माण कर दिया. सत्यव्रत इसी स्वर्ग में रहने लगे. माना जाता है कि सत्यव्रत त्रिशंकु की तरह लटके रहे जिस कारण उनके मुंह से लार पृथ्वी पर गिरने लगा. इसी लार से कर्मनाशा नदी का निर्माण हुआ. मुख से निकले लार के कारण ही इस नदी को अपवित्र माना जाता है.

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बक्सरः सांप का काटा हुआ व्यक्ति बच सकता है लेकिन कर्मनाशा नदी के पानी से कोई नहीं बच सकता, ऐसी मान्यता पुराणों में है. कर्मनाशा यानी कर्मों का नाश. माना जाता है कि इस नदी में जो भी स्नान करेगा, उसके सारे अच्छे कर्मों का नाश हो जाता है. उसके सारे पुण्य इसके अपवित्र जल में धुल जाएंगे, इसलिए इसे श्रापित नदी भी कहा जाता है. इसमें कोई स्नान या पूजा-पाठ नहीं करता.

देश की अपवित्र नदीः कर्मनाशा भारत देश की अपवित्र नदी है. इसकी पुराणों में चर्चा है. भौगौलिक स्थिति की बात करें तो यह नदी बिहार-यूपी की सीमा रेखा है. यूपी में 116 किमी तो बिहार में इसकी लंबाई 76 किमी, कुल 192 किमी है. गंगा की उपनदी है, जिसकी उत्पत्ति अधौरा व भगवानपुर स्थित कैमूर की पहाड़ी से होती है. इसके बाद यूपी गाजीपुर के बाड़ा गांव और बक्सर के चौसा में विलय हो जाती है.

कर्मनाशा नदी का पानी अपवित्र क्यों? देखें रिपोर्ट (ETV Bharat)

भौगौलिक स्थितिः इस नदी के बाईं ओर(पश्चिम) में सोनभद्र, चन्दौली, वाराणसी और गाजीपुर जिला आता है. दाईं ओर(पूर्व) में बिहार का कैमूर और बक्सर जिला आता है. उतर प्रदेश व बिहार के बीच सीमा का विभाजन करती है. पूर्व मध्य रेलवे ट्रैक पर पटना और दीनदयाल उपाध्याय जंक्सन के बीच बक्सर जिले के पश्चिमी किनारे पर नदी का बहाव है.

'पानी का नहीं करते इस्तेमाल' स्थानीय लोग बताते हैं कि इस नदी का वे लोग पानी इस्तेमाल नहीं करते. पूजा-पाठ और नहाना धोना तो दूर इस पानी का इस्तेमाल सिंचाई के लिए भी नहीं किया जाता है. लोग बताते हैं कि 'इस नदी का पानी अशुद्ध है, इसलिए इसका उपयोग वर्जित है.' स्थानीय प्रभावती देवी बतातीं है कि 'किसी भी पूजा पाठ में इस पानी का इस्तेमाल नहीं होता.' वृद्ध व्यक्ति भुवन प्रसाद बताते हैं कि 'छठ के समय भी पास नहीं रहने के बावजूद दूर गंगा में जाकर पूजा पाठ होता है.'

Karmanasha River
कर्मनाशा नदी का इतिहास (ETV Bharat GFX)

पुराणों में अपिवत्रता की चर्चा: दरअसल, कर्मनाशा नदी का इतिहास पुराना. इसकी अपिवत्रता की चर्चा पुराणों में है. इसका इहितास हजारों लाखों वर्षों पुराना है, जिसका अनुमान लगाना मुश्किल है. राजा हरिषचंद्र से एक वंश पूर्व अयोध्या के सूर्यवंशी राजा सत्यव्रत से जुड़ा है. सत्यव्रत भगवान राम के पूर्वज के 31वें वंशज थे. इन्हें त्रिशंकु नाम से भी जाना जाता है. इसी त्रिशंकु नाम का रहस्य इस नदी से जुड़ा है.

गुरु वशिष्ठ ने स्वर्ग भेजने से मना कियाः पौराणिक मान्यता के अनुसार राजा सत्यव्रत अपना राजपाट राजा हरिशचंद्र के नाम कर दिए. धार्मिक होने के कारण स्वर्ग जाना तय था लेकिन उनकी इच्छा थी कि वे जीवित ही स्वर्ग जाएं. इसके लिए वे गुरु देवर्षि वशिष्ठ के पास गए और अपनी इच्छा प्रकट की. कहा कि उन्हें सशरीर स्वर्ग भेज दें, इसके लिए यज्ञ करने की प्रार्थना की, लेकिन ऋषि ने मना कर दिया. कहा कि यह प्रकृति के विरुद्ध है. उन्होंने ऋषि के जेष्ठ पुत्र शक्ति को धन का लोभ देकर यज्ञ कराना चाहा. इससे वे क्रोधित हो गए. उन्होंने सत्यव्रत को त्रिशंकु होने का श्राप दिया.

Karmanasha River
कर्मनाशा नदी का भौगौलिक स्थिति (ETV Bharat GFX)

विश्वामित्र ने भेजा स्वर्गः इस श्राप के बाद राजा सत्यव्रत राज्य छोड़कर वन में भटकने लगे. इसी दौरान ऋषि विश्वामित्र से उनकी भेंट हुई. उन्होंने अपनी परेशानी बतायी. विश्वामित्र वशिष्ठ के प्रतिद्वंदी थे, इसलिए स्तव्रत को सशरीर स्वर्ग भेजने की प्रार्थना स्वीकार कर ली. इसके लिए उन्होंने यज्ञ करना शुरू किया. यज्ञ के शुरू होते ही सत्यव्रत स्वर्ग की ओर उठने लगे.

इसलिए त्रिशंकु कहा जाता: इस घटना से स्वर्ग में हड़कंप मच गया. स्वर्ग के राजा इंद्रदेव इससे क्रोधित हो गए और सत्यव्रत को बीच रास्ते में ही रोक दिए और वापस पृथ्वी पर भेजने लगे. इसकी जानकारी विश्वामित्र को हुआ तो क्रोधित हो गए और उन्होंने दोबारा वापस भेजना चाहा. इंद्रदेव और विश्वामित्र में द्वंद होने लगा. इससे राजा सत्यव्रत पृथ्वी और स्वर्ग के बीच त्रिशंकु(उल्टा) लटक गए. इसलिए इन्हें त्रिशंकु भी कहा जाता है.

Karmanasha River
बक्सर में कर्मनाशा नदी (ETV Bharat GFX)

त्रिशंकु की लार से नदी बनीः बीच में लटके सत्यव्रत ने विश्वामित्र से सहायता के लिए प्राथर्ना किए. इसके बाद विश्वामित्र ने अपनी शक्ति से स्वर्ग और पृथ्वी के बीच एक नया स्वर्ग का निर्माण कर दिया. सत्यव्रत इसी स्वर्ग में रहने लगे. माना जाता है कि सत्यव्रत त्रिशंकु की तरह लटके रहे जिस कारण उनके मुंह से लार पृथ्वी पर गिरने लगा. इसी लार से कर्मनाशा नदी का निर्माण हुआ. मुख से निकले लार के कारण ही इस नदी को अपवित्र माना जाता है.

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