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हरियाणा कांग्रेस में अंदरूनी कलह : पार्टी ने किसी भी सांसद को टिकट नहीं देने का किया फैसला - Haryana assembly polls - HARYANA ASSEMBLY POLLS

Haryana Assembly Polls, हरियाणा में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस ने रणनीति बना ली है. पार्टी ने राज्य में अंदरूनी कलह को रोकने के लिए विधानसभा चुनाव में मौजूदा किसी भी सांसद को नहीं उतारने का निर्णय लिया है. पढ़िए पूरी खबर...

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कांग्रेस पार्टी (प्रतीकात्मक फोटो-IANS)
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By Amit Agnihotri

Published : Aug 28, 2024, 6:51 PM IST

नई दिल्ली : विपक्ष के नेता राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने चुनावी राज्य हरियाणा में अंदरूनी कलह को रोकने के लिए सख्ती बरती है और विधानसभा चुनाव में मौजूदा सांसदों को मैदान में नहीं उतारने का फैसला किया है. हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों के लिए 1 अक्टूबर को चुनाव होंगे. नतीजे 4 अक्टूबर को आएंगे. कांग्रेस को उम्मीद है कि वह भाजपा को हरा देगी. भाजपा ने पिछले 10 वर्षों से राज्य पर शासन किया है और उसे मजबूत सत्ता विरोधी भावना का सामना करना पड़ रहा है, जो हाल के लोकसभा चुनावों में देखने को मिली थी. यही वजह है कि कांग्रेस ने 10 संसदीय सीटों में से 5 पर जीत हासिल की थी.

इस बारे में हरियाणा के एआईसीसी प्रभारी दीपक बाबरिया ने ईटीवी भारत से कहा कि किसी भी सदन के किसी भी मौजूदा सांसद को विधानसभा चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जाएगी. पार्टी सूत्रों के अनुसार, हरियाणा कांग्रेस दो बड़े खेमों में बंट गई है, जिनका नेतृत्व पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा कांग्रेस विधायक दल के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा और राज्य इकाई के प्रमुख उदयभान कर रहे हैं. प्रतिद्वंद्वी खेमे का नेतृत्व पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व राज्य इकाई प्रमुख कुमारी शैलजा कर रही थीं, जो हाल ही में सिरसा सुरक्षित सीट से लोकसभा के लिए चुनी गई थीं. इसके अलावा पूर्व राज्य मंत्री और एआईसीसी पदाधिकारी रणदीप सुरजेवाला भी शामिल हैं, जो अब राजस्थान से राज्यसभा सदस्य हैं.

पूर्व राज्य इकाई प्रमुख और पूर्व राज्य मंत्री किरण चौधरी भी हुड्डा विरोधी खेमे का हिस्सा थीं, लेकिन कुछ महीने पहले वह कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गईं और अब राज्यसभा सदस्य हैं. चौधरी इस बात से नाराज थीं कि उन्हें भूपेंद्र हुड्डा के कहने पर भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट से कांग्रेस की ओर से लोकसभा टिकट नहीं दिया गया था. लोकसभा चुनावों के बाद कुमारी शैलजा ने पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा के इशारे पर टिकट वितरण पर सवाल उठाते हुए उन पर निशाना साधा था. शैलजा ने कहा था कि उम्मीदवारों का निष्पक्ष चयन होता तो कांग्रेस 10 में से कम से कम 8 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल कर लेती. हाल ही में शैलजा ने सार्वजनिक रूप से राज्य की राजनीति में शामिल होने और मौका मिलने पर राज्य का नेतृत्व करने की इच्छा व्यक्त करके राज्य की राजनीति में तूफान खड़ा कर दिया था.

हालांकि राज्य के नेताओं को विधानसभा चुनावों से पहले सार्वजनिक विवादों और विवादास्पद बयानों से बचने के लिए हाईकमान द्वारा आगाह किया गया था, लेकिन पिछले हफ्तों में शैलजा और सुरजेवाला दोनों अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में मतदाताओं को संगठित करने के लिए अलग-अलग जनसंपर्क कार्यक्रम आयोजित कर रहे थे. उन्होंने कहा, 'देखिए, अगर विभिन्न पार्टी नेता अपने क्षेत्रों में यात्राएं निकालते हैं तो वे एक तरह से कांग्रेस को ही मजबूत कर रहे हैं.' बाबरिया ने कहा, 'इसलिए यह कोई समस्या नहीं होनी चाहिए. हमें हरियाणा में जीत का भरोसा है, लेकिन हम जोखिम भी लेना चाहते हैं.'

नया निर्देश शैलजा और सुरजेवाला दोनों पर लागू होगा और यह भूपेंद्र हुड्डा के पक्ष में जाने की संभावना है. लेकिन इससे उनके बेटे और रोहतक से लोकसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा की संभावनाएं भी सीमित हो जाएंगी, जो पिछले हफ्तों से पूरे राज्य में प्रचार कर रहे हैं और उन्हें संभावित मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश किया जा रहा है. पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, हुड्डा ने स्पष्ट रूप से कहा था कि यह उनका आखिरी चुनाव है और हो सकता है कि वह अपने बेटे दीपेंद्र को कमान सौंपने की महत्वाकांक्षा रखते हों.

पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, हाल ही में राहुल गांधी और खड़गे की अध्यक्षता में महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड तथा केंद्र शासित प्रदेश जम्मू एवं कश्मीर विधानसभा चुनावों की तैयारी के लिए आयोजित एक महत्वपूर्ण रणनीति बैठक के दौरान शैलजा और राज्य इकाई के प्रमुख उदयभान के बीच मौखिक बहस हुई थी. इसके अलावा पिछले दो दिनों में स्क्रीनिंग कमेटी की बैठकों में हरियाणा के वरिष्ठ नेताओं के बीच मतभेद भी सामने आए. पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाएगा कि वरिष्ठ नेताओं द्वारा सुझाए गए जीतने योग्य उम्मीदवारों को मैदान में उतारा जाए ताकि संतुलन बनाया जा सके. पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व भाजपा नेता बीरेंद्र सिंह और उनके बेटे बृजेंद्र सिंह, जो हुड्डा विरोधी खेमे से हैं, लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में शामिल हो गए थे.

ये भी पढ़ें- 'शिवाजी की मूर्ति क्यों गिरी', शिवसेना उद्धव और कांग्रेस ने इसे चुनावी मुद्दा बनाने का किया ऐलान

नई दिल्ली : विपक्ष के नेता राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने चुनावी राज्य हरियाणा में अंदरूनी कलह को रोकने के लिए सख्ती बरती है और विधानसभा चुनाव में मौजूदा सांसदों को मैदान में नहीं उतारने का फैसला किया है. हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों के लिए 1 अक्टूबर को चुनाव होंगे. नतीजे 4 अक्टूबर को आएंगे. कांग्रेस को उम्मीद है कि वह भाजपा को हरा देगी. भाजपा ने पिछले 10 वर्षों से राज्य पर शासन किया है और उसे मजबूत सत्ता विरोधी भावना का सामना करना पड़ रहा है, जो हाल के लोकसभा चुनावों में देखने को मिली थी. यही वजह है कि कांग्रेस ने 10 संसदीय सीटों में से 5 पर जीत हासिल की थी.

इस बारे में हरियाणा के एआईसीसी प्रभारी दीपक बाबरिया ने ईटीवी भारत से कहा कि किसी भी सदन के किसी भी मौजूदा सांसद को विधानसभा चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जाएगी. पार्टी सूत्रों के अनुसार, हरियाणा कांग्रेस दो बड़े खेमों में बंट गई है, जिनका नेतृत्व पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा कांग्रेस विधायक दल के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा और राज्य इकाई के प्रमुख उदयभान कर रहे हैं. प्रतिद्वंद्वी खेमे का नेतृत्व पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व राज्य इकाई प्रमुख कुमारी शैलजा कर रही थीं, जो हाल ही में सिरसा सुरक्षित सीट से लोकसभा के लिए चुनी गई थीं. इसके अलावा पूर्व राज्य मंत्री और एआईसीसी पदाधिकारी रणदीप सुरजेवाला भी शामिल हैं, जो अब राजस्थान से राज्यसभा सदस्य हैं.

पूर्व राज्य इकाई प्रमुख और पूर्व राज्य मंत्री किरण चौधरी भी हुड्डा विरोधी खेमे का हिस्सा थीं, लेकिन कुछ महीने पहले वह कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गईं और अब राज्यसभा सदस्य हैं. चौधरी इस बात से नाराज थीं कि उन्हें भूपेंद्र हुड्डा के कहने पर भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट से कांग्रेस की ओर से लोकसभा टिकट नहीं दिया गया था. लोकसभा चुनावों के बाद कुमारी शैलजा ने पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा के इशारे पर टिकट वितरण पर सवाल उठाते हुए उन पर निशाना साधा था. शैलजा ने कहा था कि उम्मीदवारों का निष्पक्ष चयन होता तो कांग्रेस 10 में से कम से कम 8 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल कर लेती. हाल ही में शैलजा ने सार्वजनिक रूप से राज्य की राजनीति में शामिल होने और मौका मिलने पर राज्य का नेतृत्व करने की इच्छा व्यक्त करके राज्य की राजनीति में तूफान खड़ा कर दिया था.

हालांकि राज्य के नेताओं को विधानसभा चुनावों से पहले सार्वजनिक विवादों और विवादास्पद बयानों से बचने के लिए हाईकमान द्वारा आगाह किया गया था, लेकिन पिछले हफ्तों में शैलजा और सुरजेवाला दोनों अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में मतदाताओं को संगठित करने के लिए अलग-अलग जनसंपर्क कार्यक्रम आयोजित कर रहे थे. उन्होंने कहा, 'देखिए, अगर विभिन्न पार्टी नेता अपने क्षेत्रों में यात्राएं निकालते हैं तो वे एक तरह से कांग्रेस को ही मजबूत कर रहे हैं.' बाबरिया ने कहा, 'इसलिए यह कोई समस्या नहीं होनी चाहिए. हमें हरियाणा में जीत का भरोसा है, लेकिन हम जोखिम भी लेना चाहते हैं.'

नया निर्देश शैलजा और सुरजेवाला दोनों पर लागू होगा और यह भूपेंद्र हुड्डा के पक्ष में जाने की संभावना है. लेकिन इससे उनके बेटे और रोहतक से लोकसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा की संभावनाएं भी सीमित हो जाएंगी, जो पिछले हफ्तों से पूरे राज्य में प्रचार कर रहे हैं और उन्हें संभावित मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश किया जा रहा है. पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, हुड्डा ने स्पष्ट रूप से कहा था कि यह उनका आखिरी चुनाव है और हो सकता है कि वह अपने बेटे दीपेंद्र को कमान सौंपने की महत्वाकांक्षा रखते हों.

पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, हाल ही में राहुल गांधी और खड़गे की अध्यक्षता में महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड तथा केंद्र शासित प्रदेश जम्मू एवं कश्मीर विधानसभा चुनावों की तैयारी के लिए आयोजित एक महत्वपूर्ण रणनीति बैठक के दौरान शैलजा और राज्य इकाई के प्रमुख उदयभान के बीच मौखिक बहस हुई थी. इसके अलावा पिछले दो दिनों में स्क्रीनिंग कमेटी की बैठकों में हरियाणा के वरिष्ठ नेताओं के बीच मतभेद भी सामने आए. पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाएगा कि वरिष्ठ नेताओं द्वारा सुझाए गए जीतने योग्य उम्मीदवारों को मैदान में उतारा जाए ताकि संतुलन बनाया जा सके. पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व भाजपा नेता बीरेंद्र सिंह और उनके बेटे बृजेंद्र सिंह, जो हुड्डा विरोधी खेमे से हैं, लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में शामिल हो गए थे.

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