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भारत-कनाडा संबंधों की टाइमलाइन: मित्रता से संघर्ष तक, खालिस्तान पर जस्टिन ट्रूडो का रुख - CANADA INDIA RELATIONS

भारत और कनाडा के बीच संबंध पिछले आधे दशक से खराब चल रहे हैं. भारत कनाडा में अलगाववादियों को शरण देने के खिलाफ है.

CANADA INDIA RELATIONS
पीएम नरेंद्र मोदी और जस्टिन ट्रूडो की फाइल फोटो. (AP)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 15, 2024, 9:02 AM IST

नई दिल्ली: रविवार को भारत ने कनाडा से अपने उच्चायुक्त संजय वर्मा को वापस बुलाने का फैसला किया. इसके साथ ही भारत ने कनाडा के खिलाफ सख्त एक्शन लेते हुए 6 राजनयिक को निष्कासित कर दिया. उन्हें 19 अक्टूबर तक की मोहलत दी गई है.

भारत ने कनाडा सरकार पर भारतीय राजनयिकों की सुरक्षा में विफल रहने का आरोप लगाया. इससे पहले कनाडा ने संकेत दिया था कि हरदीप निज्जर हत्याकांड में भारतीय राजनयिकों के संबंध की जांच की जा रही है. हालांकि, यह मामला रविवार से काफी पहले साल 2015 में शुरू हुआ था. जब ट्रूडो कनाडा के प्रधानमंत्री बने थे. वे 2015 में प्रधानमंत्री मोदी की सफल यात्रा के बाद सत्ता में आए.

पिछले दशक में, कनाडा के प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर ने भारत के साथ मजबूत संबंधों पर जोर दिया था. 2010 में, हार्पर ने मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत शुरू करने में मदद की. उन्होंने 2015 में भारत के साथ एक परमाणु समझौते पर भी हस्ताक्षर किए, जिसके तहत कनाडा यूरेनियम बेचने पर सहमत हुआ.

हार्पर ने 2011 को कनाडा में 'भारत का वर्ष' के रूप में घोषित किया था. इसलिए यह कहना सुरक्षित है कि ट्रूडो को एक मजबूत द्विपक्षीय संबंध विरासत में मिला. अपने चुनाव अभियान के दौरान, ट्रूडो की लिबरल पार्टी ने भारत के साथ घनिष्ठ व्यापार संबंधों का आह्वान किया.

हालांकि, बाद के समय में ट्रूडो हार्पर की ओर से अपनाये गये नीति का लाभ उठाने में विफल रहे. 2016 में, कनाडाई उच्चायुक्त नादिर पटेल को इस बारे में सवालों का सामना करना पड़ा कि क्या संबंधों को 'ऑटो पायलट' में डाल दिया गया था. ऐसा इसलिए था क्योंकि विशेषज्ञों को लगा कि ट्रूडो ने पीएम के रूप में अपने पहले वर्ष के दौरान भारत की उपेक्षा की थी. हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, एफटीए पर बातचीत भी धीमी हो गई.

ट्रूडो की 2018 की भारत यात्रा केवल 2017 में एक यात्रा के दौरान चीन के साथ व्यापार समझौते पर पहुंचने के उनके प्रयासों के विफल होने के बाद हुई. विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रूडो ने चीन पर ध्यान केंद्रित किया था जबकि भारत उनके लिए अपेक्षाकृत कम प्राथमिकता वाला देश बना रहा.

2018 में, ट्रूडो ने संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए भारत की यात्रा की. यह एक विवादास्पद यात्रा थी.1986 में एक भारतीय कैबिनेट मंत्री की हत्या की कोशिश करने के दोषी जसपाल अटवाल को कनाडाई उच्च न्यायालय से रात्रिभोज का निमंत्रण मिला. अटवाल खालिस्तान समर्थक आंदोलन का हिस्सा रह चुका था.

हालांकि, मीडिया में खबर आने के बाद इस आमंत्रण को तुरंत रद्द कर दिया गया. लेकिन इसने भारत में काफी सार्वजनिक आक्रोश पैदा कर दिया. इससे ठीक पहले भारत और कनाडा ने आतंकवाद के खिलाफ सहयोग के लिए नए निवेश और एक संयुक्त रूपरेखा की घोषणा की थी. कनाडा ने आतंकवाद पर उस संयुक्त रूपरेखा में पहली बार बब्बर खालसा इंटरनेशनल जैसे खालिस्तान समर्थक आतंकवादी समूहों का उल्लेख किया. इससे यह उम्मीद जगी कि कनाडा अपनी 'खालिस्तान आतंकवाद के प्रति नरम' छवि को बदलना चाह रहा है. हालांकि, ऐसा नहीं हुआ.

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार 2018 में, कनाडा ने एक रिपोर्ट जारी की जिसमें खालिस्तानी उग्रवाद को सार्वजनिक सुरक्षा के लिए खतरा बताया गया. बता दें कि खालिस्तानी उग्रवाद के समर्थक कनाडा में राजनीतिक रूप से सक्रिय हैं और लिबरल पार्टी के प्रमुख समर्थक हैं. ट्रूडो की सरकार दबाव में झुक गई. रिपोर्ट के अगले संस्करण में, खालिस्तान/सिख उग्रवाद का उल्लेख हटा दिया गया. भारतीय अधिकारी इस कदम से निराश थे.

2020 में हालात और खराब हो गए जब ट्रूडो ने चल रहे किसान कानून विरोध पर टिप्पणी की. भारत ने इस हस्तक्षेप के खिलाफ जवाबी कार्रवाई की. 2021 में, ट्रूडो की पार्टी ने संसद में अपना बहुमत खो दिया. इसने न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता जगमीत सिंह के साथ गठबंधन बनाया. सिंह ने खालिस्तान समर्थक रैली में भाषण दिया. उन्होंने 1984 के दंगों को 'नरसंहार' कहा.

साल 2021 ऐसा साल रहा जब कनाडा और भारत के बीच रक्षा और व्यापार पर संबंध बढ़ते रहे, राजनीतिक तनाव अंदर ही अंदर उबलता रहा. 2023 में, चरमपंथी अमृतपाल सिंह की तलाश के लिए अधिकारियों ने इंटरनेट बंद कर दिया. जगमीत सिंह ने 'कठोर' उपायों की निंदा की. कनाडा में भारत के उच्चायोग के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए और कथित तौर पर धुएं के गोले दागे गए.

खालिस्तान समर्थक समूहों ने भी हमले का महिमामंडन करते हुए प्रचार किया. उन्होंने हरदीप निज्जर की मौत के लिए विशिष्ट भारतीय राजनयिकों पर हमला करते हुए विशिष्ट प्रचार भी किया. राजनयिकों पर इन हमलों ने भारत सरकार को नाराज कर दिया. कनाडाई अधिकारियों की कार्रवाई न किए जाने से नाराज भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कनाडा पर 'वोट बैंक की राजनीति' करने का आरोप लगाया.

लेकिन कनाडा की सरकार को लगा कि निज्जर की मौत पर लगाए गए आरोपों में कुछ तो है. सितंबर 2023 में, कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो ने सार्वजनिक रूप से भारतीय सरकारी अधिकारियों पर निज्जर की हत्या की साजिश में शामिल होने का आरोप लगाया. हालांकि, इसने भारत को अपने आरोपों के विशिष्ट सबूत नहीं दिए.

जिसके कारण तनाव पैदा हुआ और कई कनाडाई राजनयिकों को भारत से वापस बुलाना पड़ा. व्यापार से लेकर आव्रजन तक, भारत-कनाडा के पूरे संबंध ठप्प हो गए हैं. भारत ने खालिस्तान समर्थक समूहों को खुश करने के लिए कनाडा की आलोचना की है. कनाडा ने भारत से मांग की है इस मामले पर कार्रवाई करें. भारत कई बार कनाडा से इस मामले में सबूत मांग चुका है.

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नई दिल्ली: रविवार को भारत ने कनाडा से अपने उच्चायुक्त संजय वर्मा को वापस बुलाने का फैसला किया. इसके साथ ही भारत ने कनाडा के खिलाफ सख्त एक्शन लेते हुए 6 राजनयिक को निष्कासित कर दिया. उन्हें 19 अक्टूबर तक की मोहलत दी गई है.

भारत ने कनाडा सरकार पर भारतीय राजनयिकों की सुरक्षा में विफल रहने का आरोप लगाया. इससे पहले कनाडा ने संकेत दिया था कि हरदीप निज्जर हत्याकांड में भारतीय राजनयिकों के संबंध की जांच की जा रही है. हालांकि, यह मामला रविवार से काफी पहले साल 2015 में शुरू हुआ था. जब ट्रूडो कनाडा के प्रधानमंत्री बने थे. वे 2015 में प्रधानमंत्री मोदी की सफल यात्रा के बाद सत्ता में आए.

पिछले दशक में, कनाडा के प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर ने भारत के साथ मजबूत संबंधों पर जोर दिया था. 2010 में, हार्पर ने मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत शुरू करने में मदद की. उन्होंने 2015 में भारत के साथ एक परमाणु समझौते पर भी हस्ताक्षर किए, जिसके तहत कनाडा यूरेनियम बेचने पर सहमत हुआ.

हार्पर ने 2011 को कनाडा में 'भारत का वर्ष' के रूप में घोषित किया था. इसलिए यह कहना सुरक्षित है कि ट्रूडो को एक मजबूत द्विपक्षीय संबंध विरासत में मिला. अपने चुनाव अभियान के दौरान, ट्रूडो की लिबरल पार्टी ने भारत के साथ घनिष्ठ व्यापार संबंधों का आह्वान किया.

हालांकि, बाद के समय में ट्रूडो हार्पर की ओर से अपनाये गये नीति का लाभ उठाने में विफल रहे. 2016 में, कनाडाई उच्चायुक्त नादिर पटेल को इस बारे में सवालों का सामना करना पड़ा कि क्या संबंधों को 'ऑटो पायलट' में डाल दिया गया था. ऐसा इसलिए था क्योंकि विशेषज्ञों को लगा कि ट्रूडो ने पीएम के रूप में अपने पहले वर्ष के दौरान भारत की उपेक्षा की थी. हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, एफटीए पर बातचीत भी धीमी हो गई.

ट्रूडो की 2018 की भारत यात्रा केवल 2017 में एक यात्रा के दौरान चीन के साथ व्यापार समझौते पर पहुंचने के उनके प्रयासों के विफल होने के बाद हुई. विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रूडो ने चीन पर ध्यान केंद्रित किया था जबकि भारत उनके लिए अपेक्षाकृत कम प्राथमिकता वाला देश बना रहा.

2018 में, ट्रूडो ने संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए भारत की यात्रा की. यह एक विवादास्पद यात्रा थी.1986 में एक भारतीय कैबिनेट मंत्री की हत्या की कोशिश करने के दोषी जसपाल अटवाल को कनाडाई उच्च न्यायालय से रात्रिभोज का निमंत्रण मिला. अटवाल खालिस्तान समर्थक आंदोलन का हिस्सा रह चुका था.

हालांकि, मीडिया में खबर आने के बाद इस आमंत्रण को तुरंत रद्द कर दिया गया. लेकिन इसने भारत में काफी सार्वजनिक आक्रोश पैदा कर दिया. इससे ठीक पहले भारत और कनाडा ने आतंकवाद के खिलाफ सहयोग के लिए नए निवेश और एक संयुक्त रूपरेखा की घोषणा की थी. कनाडा ने आतंकवाद पर उस संयुक्त रूपरेखा में पहली बार बब्बर खालसा इंटरनेशनल जैसे खालिस्तान समर्थक आतंकवादी समूहों का उल्लेख किया. इससे यह उम्मीद जगी कि कनाडा अपनी 'खालिस्तान आतंकवाद के प्रति नरम' छवि को बदलना चाह रहा है. हालांकि, ऐसा नहीं हुआ.

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार 2018 में, कनाडा ने एक रिपोर्ट जारी की जिसमें खालिस्तानी उग्रवाद को सार्वजनिक सुरक्षा के लिए खतरा बताया गया. बता दें कि खालिस्तानी उग्रवाद के समर्थक कनाडा में राजनीतिक रूप से सक्रिय हैं और लिबरल पार्टी के प्रमुख समर्थक हैं. ट्रूडो की सरकार दबाव में झुक गई. रिपोर्ट के अगले संस्करण में, खालिस्तान/सिख उग्रवाद का उल्लेख हटा दिया गया. भारतीय अधिकारी इस कदम से निराश थे.

2020 में हालात और खराब हो गए जब ट्रूडो ने चल रहे किसान कानून विरोध पर टिप्पणी की. भारत ने इस हस्तक्षेप के खिलाफ जवाबी कार्रवाई की. 2021 में, ट्रूडो की पार्टी ने संसद में अपना बहुमत खो दिया. इसने न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता जगमीत सिंह के साथ गठबंधन बनाया. सिंह ने खालिस्तान समर्थक रैली में भाषण दिया. उन्होंने 1984 के दंगों को 'नरसंहार' कहा.

साल 2021 ऐसा साल रहा जब कनाडा और भारत के बीच रक्षा और व्यापार पर संबंध बढ़ते रहे, राजनीतिक तनाव अंदर ही अंदर उबलता रहा. 2023 में, चरमपंथी अमृतपाल सिंह की तलाश के लिए अधिकारियों ने इंटरनेट बंद कर दिया. जगमीत सिंह ने 'कठोर' उपायों की निंदा की. कनाडा में भारत के उच्चायोग के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए और कथित तौर पर धुएं के गोले दागे गए.

खालिस्तान समर्थक समूहों ने भी हमले का महिमामंडन करते हुए प्रचार किया. उन्होंने हरदीप निज्जर की मौत के लिए विशिष्ट भारतीय राजनयिकों पर हमला करते हुए विशिष्ट प्रचार भी किया. राजनयिकों पर इन हमलों ने भारत सरकार को नाराज कर दिया. कनाडाई अधिकारियों की कार्रवाई न किए जाने से नाराज भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कनाडा पर 'वोट बैंक की राजनीति' करने का आरोप लगाया.

लेकिन कनाडा की सरकार को लगा कि निज्जर की मौत पर लगाए गए आरोपों में कुछ तो है. सितंबर 2023 में, कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो ने सार्वजनिक रूप से भारतीय सरकारी अधिकारियों पर निज्जर की हत्या की साजिश में शामिल होने का आरोप लगाया. हालांकि, इसने भारत को अपने आरोपों के विशिष्ट सबूत नहीं दिए.

जिसके कारण तनाव पैदा हुआ और कई कनाडाई राजनयिकों को भारत से वापस बुलाना पड़ा. व्यापार से लेकर आव्रजन तक, भारत-कनाडा के पूरे संबंध ठप्प हो गए हैं. भारत ने खालिस्तान समर्थक समूहों को खुश करने के लिए कनाडा की आलोचना की है. कनाडा ने भारत से मांग की है इस मामले पर कार्रवाई करें. भारत कई बार कनाडा से इस मामले में सबूत मांग चुका है.

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