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भारतीय नागरिकता की आस में श्रीलंकाई तमिलों की तीसरी पीढ़ी, CAA के प्रावधान से शरणार्थी निराश - Sri Lankan Tamils

Sri Lankan Tamils: भारत सरकार ने सीएए के तहत पड़ोसी देशों में आए धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का प्रावधान किया है. लेकिन इसमें श्रीलंका के तमिल शरणार्थियों को नागरिकता देने का कोई प्रावधान नहीं है. इसी सिलसिले में ईटीवी भारत ने कोयंबटूर, मदुरै समेत तमिलनाडु में श्रीलंकाई तमिल शिविरों का दौरा किया और तमिल शरणार्थियों की समस्याओं की जानने की कोशिश की. पढ़ें विशेष पूरी रिपोर्ट.

Sri Lankan Tamils
श्रीलंकाई तमिल
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Apr 8, 2024, 8:21 PM IST

Updated : Apr 8, 2024, 8:46 PM IST

चेन्नई: मैं भारत में पैदा हुई और यहीं पली-बढ़ी और नर्सिंग की पढ़ाई की, लेकिन मेरे पास नौकरी के अच्छे अवसर नहीं है क्योंकि मैं भारत की नागरिक नहीं हूं. यह कहना है एक श्रीलंकाई तमिल महिला का, तमिलनाडु के कोयंबटूर के पुलुवमपट्टी में पुनर्वास शिविर में रहती है. इस महिला की तरह सैकड़ों शरणार्थी हैं, जो शैक्षणिक योग्यता रखने के बावजूद मजदूरी कर रहे हैं. कई पढ़े-लिखे लोग होटलों में मजदूरी करते हैं.

तमिलनाडु में रहने वाले श्रीलंकाई तमिलों के पुनर्वास के संबंध में राज्य सरकार द्वारा एक समिति का गठन किया गया था. पिछले साल सितंबर में समिति ने मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को एक अंतरिम रिपोर्ट सौंपी थी. सरकार की तरफ से यह रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई है. हालांकि, समिति का हिस्सा रहे लोगों से मिली जानकारी के अनुसार, लगभग 58,200 श्रीलंकाई तमिलों ने तमिलनाडु में 104 शिविरों में पंजीकरण कराया है. इनमें से 33,200 लोग अब शिविरों में नहीं रहते हैं.

तमिलनाडु सरकार द्वारा गठित एक समिति की रिपोर्ट के अनुसार, उनमें से लगभग 45 प्रतिशत का जन्म भारत में पुनर्वास शिविरों में हुआ है. 79 प्रतिशत श्रीलंकाई तमिल 30 साल से अधिक समय से भारत में रह रहे हैं. शरणार्थी शिविरों में रहने वाले श्रीलंकाई तमिलों में 25 प्रतिशत बच्चे हैं. आठ प्रतिशत लोगों ने भारतीय नागरिकों से शादी भी की है. रिपोर्ट के अनुसार, यहां रहने वाले 95 फीसदी श्रीलंकाई तमिलों के पास आधार कार्ड हैं. केवल एक प्रतिशत लोगों के पास श्रीलंकाई पासपोर्ट है। तीन प्रतिशत के पास श्रीलंका की नागरिकता का पहचान पत्र है.

तमिल शरणार्थियों के विवाह के बारे में कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यदि शरणार्थी शिविरों में रहने वाले भारतीय नागरिकों से विवाह करते हैं तो उन्हें भारतीय नागरिक के रूप में मान्यता दी जाती है. इसके बाद उन्हें शरणार्थी शिविरों में मिलने वाला अनुदान या सहायता नहीं मिल सकेगी.

शिविरों में 100 लोगों पर एक शौचालय...
श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों की स्थिति जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने मदुरै, कोयंबटूर और अन्य स्थानों पर शरणार्थी शिविरों का दौरा किया. ईटीवी भारत के संवाददाता कोयंबटूर के पुलुवमपट्टी शिविर गए. यहां शरणार्थियों की स्थिति कुछ ठीक नहीं थी. लोग छोटे-छोटे घरों में रह रहे हैं और सार्वजनिक शौचालयों का उपयोग करते हैं. 100 लोगों पर लगभग एक शौचालय है. जिन लोगों ने कुछ पैसे कमा लिए, उन्होंने अपनी आवंटित जगह पर शौचालय बना लिया है. यहां गंदे शौचालयों के उपयोग के कारण महिलाओं को गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है.

सरकारी नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकते...
शिविर में रहने वाली 12वीं कक्षा की एक छात्रा कहती है कि ग्रेजुएशन के बाद वह बैंक की नौकरी करना चाहती है, लेकिन उसकी इच्छा पूरी नहीं होगी क्योंकि उसके पास भारतीय नागरिकता नहीं है. नर्सिंग की पढ़ाई पूरी कर चुकी एक महिला ने कहा, मेरी शैक्षिक योग्यता के अनुसार मुझे सरकारी अस्पतालों में नौकरी मिल सकती है. लेकिन नागरिकता न होने के कारण मैं नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकती है. मैं बहुत कम वेतन पर लंबे समय से एक निजी अस्पताल में काम कर रही हूं.

स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई तक कोई बड़ी समस्या नहीं...
शरणार्थियों का कहना है कि स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई तक उन्हें कोई बड़ी समस्या नहीं होती है. लेकिन जब नौकरी के अवसरों की बात आती है, तो चुनौतियां खड़ी हो जाती हैं. शिविरों की निगरानी करने वाली क्यू शाखा पुलिस ने सख्त नियम लगाए हैं. एक बार जब हम काम पर जाना शुरू कर देते हैं, तो पुलिस के सामने ऑडिट के लिए व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना पड़ता है. लगातार तीन ऑडिट में उपस्थित न होने पर चौथे ऑडिट में शिविर से संबंधित व्यक्ति का पंजीकरण रद्द कर दिया जाता है. यहां तक कि अगर कोई नेता या प्रधानमंत्री यहां आते हैं तो शरणार्थियों को शिविर छोड़ने की अनुमति नहीं दी जाती है. एक महिला का कहना है कि इन नियम के कारण उसके बच्चों ने अपनी नौकरी खो दी.

मदुरै में एक शरणार्थी शिविर के प्रमुख सुंदर (बदला हुआ नाम) ने कहा कि यहां अधिकांश तमिल शरणार्थी भारतीय मूल के हैं. नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) में कहा गया है कि यदि वे भारत में पांच साल से रहे हैं तो वे नागरिकता के लिए आवेदन करने के पात्र हैं. हम सभी यहां 40 वर्षों से रह रहे हैं. वह कहते हैं कि 2019 में जब यह कानून लाया गया तो यह कानून सिर्फ शरणार्थियों पर लागू था. इसमें कहा गया है कि यह अवैध शरणार्थियों पर लागू नहीं होता है. जिससे पता चला कि हम अवैध अप्रवासी हैं, शरणार्थी नहीं.

श्रीलंकाई तमिलों को अवैध अप्रवासी मानना निराशाजनक
उन्होंने कहा कि विल्लुपुरम के सांसद रवि कुमार ने 2019 में संसद में सवाल उठाया था. गृह मंत्रालय ने उन्हें जो जवाब दिया गया था, उससे खुलासा हुआ कि सभी श्रीलंकाई तमिलों को अवैध अप्रवासी कहा जाता है. यह हमारे लिए बहुत बड़ा झटका था. उन्होंने कहा कि हम भी पड़ोसी देश में बहुसंख्यक बौद्ध धर्म से भी प्रभावित हैं. हम जातीय और भाषाई रूप से प्रताड़ित हुए हैं. इन सबके अलावा हम में से अधिकांश लोग भारतीय मूल के हैं. इसीलिए हम यहां शरण लेने आए हैं.

सुंदर ने कहा कि 200 साल पहले अंग्रेजों ने तमिलनाडु से डेढ़ लाख लोगों को चाय बागान में काम करने के लिए श्रीलंका में भेजा था. सिरिमा-शास्त्री समझौते के बाद छह लाख तमिल श्रीलंका से वापस आ गए. उनमें से अधिकांश ऊटी में बसे थे. डीएमके नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री ए. राजा श्रीलंका से वापस आए तमिलों में से हैं. श्रीलंका के पहाड़ी इलाकों में जातीय संघर्ष के कारण वहां से लोग वावुनिया और मन्नार जैसे इलाकों की ओर पलायन कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि वहां जारी दंगों के कारण वे बिना किसी अन्य विकल्प के तमिलनाडु की ओर आ रहे हैं.

सुंदर ने बताया कि श्रीलंकाई तमिलों में दो समूह हैं, एक श्रीलंका के मूल निवासी हैं और दूसरे भारत से गए लोग हैं. इसीलिए हमारे जन्म प्रमाणपत्रों में भी भारतीय तमिल और श्रीलंकाई तमिल दो श्रेणियां लिखी जाती हैं. हम सभी को भारतीय तमिल कहा जाता है. युद्ध के दौरान यहां आए श्रीलंकाई मूल के निवासी अब वापस लौट गए हैं। शिविरों में अधिकांश भारतीय तमिल रह रहे हैं.

सीएए के तहत तमिलों को नागरिकता ने देना विरोधाभासी
तमिल राजनीतिज्ञ के. रामकृष्णन ने कहते हैं, सीएए पाकिस्तान, बांग्लादेश और बांग्लादेश से आए हिंदुओं और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यों को नागरिकता प्रदान करता है, जबकि यह श्रीलंका के तमिलों को नागरिकता देने से इनकार करता है. श्रीलंका में तमिल उन्हीं भगवान मुरुगा की पूजा करते हैं, जिनकी पूजा भारत में हिंदू धर्म माने जाने वाले लोग करते हैं. दोनों की संस्कृति एक जैसी है. लेकिन उन्हें हिंदू न मानकर नागरिकता देने से इनकार करना विरोधाभासी है.

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चेन्नई: मैं भारत में पैदा हुई और यहीं पली-बढ़ी और नर्सिंग की पढ़ाई की, लेकिन मेरे पास नौकरी के अच्छे अवसर नहीं है क्योंकि मैं भारत की नागरिक नहीं हूं. यह कहना है एक श्रीलंकाई तमिल महिला का, तमिलनाडु के कोयंबटूर के पुलुवमपट्टी में पुनर्वास शिविर में रहती है. इस महिला की तरह सैकड़ों शरणार्थी हैं, जो शैक्षणिक योग्यता रखने के बावजूद मजदूरी कर रहे हैं. कई पढ़े-लिखे लोग होटलों में मजदूरी करते हैं.

तमिलनाडु में रहने वाले श्रीलंकाई तमिलों के पुनर्वास के संबंध में राज्य सरकार द्वारा एक समिति का गठन किया गया था. पिछले साल सितंबर में समिति ने मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को एक अंतरिम रिपोर्ट सौंपी थी. सरकार की तरफ से यह रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई है. हालांकि, समिति का हिस्सा रहे लोगों से मिली जानकारी के अनुसार, लगभग 58,200 श्रीलंकाई तमिलों ने तमिलनाडु में 104 शिविरों में पंजीकरण कराया है. इनमें से 33,200 लोग अब शिविरों में नहीं रहते हैं.

तमिलनाडु सरकार द्वारा गठित एक समिति की रिपोर्ट के अनुसार, उनमें से लगभग 45 प्रतिशत का जन्म भारत में पुनर्वास शिविरों में हुआ है. 79 प्रतिशत श्रीलंकाई तमिल 30 साल से अधिक समय से भारत में रह रहे हैं. शरणार्थी शिविरों में रहने वाले श्रीलंकाई तमिलों में 25 प्रतिशत बच्चे हैं. आठ प्रतिशत लोगों ने भारतीय नागरिकों से शादी भी की है. रिपोर्ट के अनुसार, यहां रहने वाले 95 फीसदी श्रीलंकाई तमिलों के पास आधार कार्ड हैं. केवल एक प्रतिशत लोगों के पास श्रीलंकाई पासपोर्ट है। तीन प्रतिशत के पास श्रीलंका की नागरिकता का पहचान पत्र है.

तमिल शरणार्थियों के विवाह के बारे में कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यदि शरणार्थी शिविरों में रहने वाले भारतीय नागरिकों से विवाह करते हैं तो उन्हें भारतीय नागरिक के रूप में मान्यता दी जाती है. इसके बाद उन्हें शरणार्थी शिविरों में मिलने वाला अनुदान या सहायता नहीं मिल सकेगी.

शिविरों में 100 लोगों पर एक शौचालय...
श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों की स्थिति जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने मदुरै, कोयंबटूर और अन्य स्थानों पर शरणार्थी शिविरों का दौरा किया. ईटीवी भारत के संवाददाता कोयंबटूर के पुलुवमपट्टी शिविर गए. यहां शरणार्थियों की स्थिति कुछ ठीक नहीं थी. लोग छोटे-छोटे घरों में रह रहे हैं और सार्वजनिक शौचालयों का उपयोग करते हैं. 100 लोगों पर लगभग एक शौचालय है. जिन लोगों ने कुछ पैसे कमा लिए, उन्होंने अपनी आवंटित जगह पर शौचालय बना लिया है. यहां गंदे शौचालयों के उपयोग के कारण महिलाओं को गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है.

सरकारी नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकते...
शिविर में रहने वाली 12वीं कक्षा की एक छात्रा कहती है कि ग्रेजुएशन के बाद वह बैंक की नौकरी करना चाहती है, लेकिन उसकी इच्छा पूरी नहीं होगी क्योंकि उसके पास भारतीय नागरिकता नहीं है. नर्सिंग की पढ़ाई पूरी कर चुकी एक महिला ने कहा, मेरी शैक्षिक योग्यता के अनुसार मुझे सरकारी अस्पतालों में नौकरी मिल सकती है. लेकिन नागरिकता न होने के कारण मैं नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकती है. मैं बहुत कम वेतन पर लंबे समय से एक निजी अस्पताल में काम कर रही हूं.

स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई तक कोई बड़ी समस्या नहीं...
शरणार्थियों का कहना है कि स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई तक उन्हें कोई बड़ी समस्या नहीं होती है. लेकिन जब नौकरी के अवसरों की बात आती है, तो चुनौतियां खड़ी हो जाती हैं. शिविरों की निगरानी करने वाली क्यू शाखा पुलिस ने सख्त नियम लगाए हैं. एक बार जब हम काम पर जाना शुरू कर देते हैं, तो पुलिस के सामने ऑडिट के लिए व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना पड़ता है. लगातार तीन ऑडिट में उपस्थित न होने पर चौथे ऑडिट में शिविर से संबंधित व्यक्ति का पंजीकरण रद्द कर दिया जाता है. यहां तक कि अगर कोई नेता या प्रधानमंत्री यहां आते हैं तो शरणार्थियों को शिविर छोड़ने की अनुमति नहीं दी जाती है. एक महिला का कहना है कि इन नियम के कारण उसके बच्चों ने अपनी नौकरी खो दी.

मदुरै में एक शरणार्थी शिविर के प्रमुख सुंदर (बदला हुआ नाम) ने कहा कि यहां अधिकांश तमिल शरणार्थी भारतीय मूल के हैं. नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) में कहा गया है कि यदि वे भारत में पांच साल से रहे हैं तो वे नागरिकता के लिए आवेदन करने के पात्र हैं. हम सभी यहां 40 वर्षों से रह रहे हैं. वह कहते हैं कि 2019 में जब यह कानून लाया गया तो यह कानून सिर्फ शरणार्थियों पर लागू था. इसमें कहा गया है कि यह अवैध शरणार्थियों पर लागू नहीं होता है. जिससे पता चला कि हम अवैध अप्रवासी हैं, शरणार्थी नहीं.

श्रीलंकाई तमिलों को अवैध अप्रवासी मानना निराशाजनक
उन्होंने कहा कि विल्लुपुरम के सांसद रवि कुमार ने 2019 में संसद में सवाल उठाया था. गृह मंत्रालय ने उन्हें जो जवाब दिया गया था, उससे खुलासा हुआ कि सभी श्रीलंकाई तमिलों को अवैध अप्रवासी कहा जाता है. यह हमारे लिए बहुत बड़ा झटका था. उन्होंने कहा कि हम भी पड़ोसी देश में बहुसंख्यक बौद्ध धर्म से भी प्रभावित हैं. हम जातीय और भाषाई रूप से प्रताड़ित हुए हैं. इन सबके अलावा हम में से अधिकांश लोग भारतीय मूल के हैं. इसीलिए हम यहां शरण लेने आए हैं.

सुंदर ने कहा कि 200 साल पहले अंग्रेजों ने तमिलनाडु से डेढ़ लाख लोगों को चाय बागान में काम करने के लिए श्रीलंका में भेजा था. सिरिमा-शास्त्री समझौते के बाद छह लाख तमिल श्रीलंका से वापस आ गए. उनमें से अधिकांश ऊटी में बसे थे. डीएमके नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री ए. राजा श्रीलंका से वापस आए तमिलों में से हैं. श्रीलंका के पहाड़ी इलाकों में जातीय संघर्ष के कारण वहां से लोग वावुनिया और मन्नार जैसे इलाकों की ओर पलायन कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि वहां जारी दंगों के कारण वे बिना किसी अन्य विकल्प के तमिलनाडु की ओर आ रहे हैं.

सुंदर ने बताया कि श्रीलंकाई तमिलों में दो समूह हैं, एक श्रीलंका के मूल निवासी हैं और दूसरे भारत से गए लोग हैं. इसीलिए हमारे जन्म प्रमाणपत्रों में भी भारतीय तमिल और श्रीलंकाई तमिल दो श्रेणियां लिखी जाती हैं. हम सभी को भारतीय तमिल कहा जाता है. युद्ध के दौरान यहां आए श्रीलंकाई मूल के निवासी अब वापस लौट गए हैं। शिविरों में अधिकांश भारतीय तमिल रह रहे हैं.

सीएए के तहत तमिलों को नागरिकता ने देना विरोधाभासी
तमिल राजनीतिज्ञ के. रामकृष्णन ने कहते हैं, सीएए पाकिस्तान, बांग्लादेश और बांग्लादेश से आए हिंदुओं और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यों को नागरिकता प्रदान करता है, जबकि यह श्रीलंका के तमिलों को नागरिकता देने से इनकार करता है. श्रीलंका में तमिल उन्हीं भगवान मुरुगा की पूजा करते हैं, जिनकी पूजा भारत में हिंदू धर्म माने जाने वाले लोग करते हैं. दोनों की संस्कृति एक जैसी है. लेकिन उन्हें हिंदू न मानकर नागरिकता देने से इनकार करना विरोधाभासी है.

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Last Updated : Apr 8, 2024, 8:46 PM IST
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