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उत्तरकाशी सहस्त्रताल हादसे की अनसुनी कहानी, सांसें जमती देखी, 9 साथियों को एक-एक कर गिरते देखा, शवों के साथ बिताई रात - Uttarkashi Sahastratal Trek Accident

Eyewitness account of Sahastratal trek accident Uttarkashi उत्तराखंड के उत्तरकाशी स्थित सहस्त्रताल ट्रेक पर जो 9 ट्रेकर्स की जान गई उसकी कहानी बड़ी दर्दनाक है. ट्रेकर दल के 13 लोग किसी तरह मौत के मुंह से निकल कर बाहर आए. अब वो लोग वहां की अनदेखी और अनसुनी कहानियां सुना रहे हैं. उन्होंने बताया कि शवों के साथ रात बिताने का अनुभव कितना डरावना था. साथ ही उन्होंने बताया कि उनकी जान कैसे बची.

Survivors of Sahastratal Trek
सहस्त्रताल हादसे में 13 ट्रेकर्स की बची जान. (ETV Bharat GFX)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jun 7, 2024, 10:46 AM IST

Updated : Jun 7, 2024, 12:15 PM IST

सहस्त्रताल ट्रेक हादसे की कहानी, सर्वाइवल की जुबानी (Video- SDRF)

देहरादून: अगर मौसम ठीक रहता, तो अगले 24 घंटे में हम सब सुरक्षित नीचे उतर जाते. सब कुछ ठीक-ठाक था. अचानक से मौसम बदला और सब कुछ खत्म हो गया. आंखों के सामने अपने साथियों को हमेशा के लिए बिछड़ते देखा. हमने लाशों के साथ रात बिताई है. यह कहानी है उन लोगों की जिन लोगों ने अपने 9 साथियों को सहस्त्रताल ट्रेक पर हमेशा हमेशा के लिए खो दिया.

Sahastratal trek accident
सहस्त्रताल ट्रेक हादसे की सर्वाइवल (ETV Bharat GFX)

सहस्त्रताल ट्रेक की अनसुनी कहानी: यह कहानी है उन 13 लोगों की, जो मौत के मुंह से निकलकर वापस आए हैं. उत्तरकाशी के ट्रेक कई बार जानलेवा साबित हुए हैं. इस बार द्रौपदी का डांडा के बाद उत्तरकाशी जिले में ही ट्रेकिंग ने नौ लोगों की जान ले ली. सुरक्षित बाहर निकले लोगों ने जो आंखों देखी बताई, उससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि हालात कितने विकट थे. इस हादसे में 13 लोग सुरक्षित निकाल लिए गए हैं. 9 लोग अपनी जान गंवा बैठे. सभी के शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है.

Sahastratal trek accident
भुक्तभोगी की जुबानी पूरी कहानी (ETV Bharat GFX)

वापस आ रहे थे कि अचानक सब खत्म हो गया: यह बात 3 जून की है. सहस्त्रताल ट्रेकिंग प्वाइंट पर जाने वाले दल का हिस्सा रहे जसपाल उन खुशकिस्मत लोगों में से एक हैं, जो लोग अपनी जान बचाने में कामयाब रहे. जसपाल उत्तराखंड के उत्तरकाशी के ही रहने वाले हैं. इससे पहले भी वह इस पर्वत पर कई बार अन्य दलों के साथ होकर आए हैं. जसपाल ने जो बातें बताईं, वो बेहद भयावह थीं. जसपाल कहते हैं कि यह बात 3 जून की है जब हम अपने बेस कैंप में वापस लौट रहे थे.

Sahastratal trek accident
ये था सहस्त्रताल ट्रेक हादसा (ETV Bharat GFX)

बड़े-बड़े ओले लाए विनाश: उसी दिन हमें अपना यह ट्रेक खत्म करके वापस आना था. दल के सभी लोग वापस आ रहे थे कि अचानक से देखते ही देखते मौसम खराब हो गया. मौसम इतना खराब हुआ कि बहुत मोटे-मोटे ओले हमारे ऊपर गिरने लगे. चंद मिनट में ही पूरी वैली का मौसम इतना ठंडा हो गया कि हम चल तक नहीं पा रहे थे. हालांकि मुझे पर्वतों में चलने और इस तरह के माहौल में रहने का थोड़ा बहुत अनुभव है. लेकिन जो लोग ट्रेकिंग करने आए थे, शायद उनसे वह ठंड बर्दाश्त नहीं हो रही थी. कई लोग भयानक ठंड में धीरे-धीरे नीचे बैठने लगे.

शवों के साथ गुजारी रात, सुबह तक 9 ने तोड़ दिया था दम: हमने आसपास देखा कि माहौल बहुत अधिक खराब हो गया है. हमने ट्रेकिंग दल में से ही तीन लोगों को गाइड के साथ नीचे जाने के लिए कहा. लेकिन उनकी हालत इतनी खराब थी कि वह एक कदम भी चल नहीं पा रहे थे. समय ज्यादा हो गया था. ठंड बहुत ज्यादा या यों कहें कि बर्दाश्त से बाहर थी. दल के ही कुछ लोगों को हमने उस जगह तक भेजने का मन बनाया, जहां पर फोन के सिग्नल आते हों. ताकि समय रहते संदेश प्रशासन तक पहुंचाया जा सके. धीरे-धीरे अंधेरा हो रहा था.

Sahastratal trek accident
उत्तरकाशी में है सहस्त्रताल ट्रेक (ETV Bharat GFX)

ऐसे पहुंचे कैंप साइट: असहनीय ठंड में कुछ लोग दम तोड़ चुके थे. हमने यह फैसला किया कि कुछ लोगों को जिस जगह पर बॉडी पड़ी हुई थी, वहीं पर रात बितानी पड़ेगी. उनमें से कई लोग वहीं पर रुके. ट्रेकिंग दल के कुछ लोग नीचे उतरने लगे. हम सुबह अपनी कैंप साइट पर पहुंच गए थे. कैंप में पहुंचने वालों की संख्या 9 की थी. जो दो लोग संदेश देने के लिए नीचे उतरे थे, उन्होंने सही तरीके से मैसेज दिया. कुछ ही देर बाद रेस्क्यू के लिए ऑपरेशन शुरू हो गया. लेकिन तब तक भी बहुत देर हो गई थी. एक-एक करके नौ लोगों ने बर्फ में ही दम तोड़ दिया. जसपाल बताते हैं कि हालत बहुत ही विकट हो गए थे. आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इतने ऊंचे पर्वत पर इतनी अधिक ठंड और बर्फबारी के बीच रात बिताने और वह भी ऐसी रात जहां पर हमें यह पता हो कि हमारे आसपास जो लोग थे, वह अब इस दुनिया में नहीं हैं. यह अनुभव बेहद भयावह था.

हम सब जिंदा नहीं रहते, अगर ये इंसान ना होते तो: ट्रेकिंग दल की एक महिला जो सुरक्षित बाहर निकल कर उत्तरकाशी पहुंची, उन्होंने बताया कि वह सुरक्षित अपने घर की तरफ जा रही हैं. उन्हें इस बात की बेहद खुशी है. लेकिन दुख इस बात का भी है कि यह ट्रेकिंग प्वाइंट बहुत सारे जख्म देकर गया. इस पूरे घटनाक्रम पर जब उनसे बात की गई, तो उन्होंने बताया कि जितनी भी डेथ हुई हैं, यह किसी तूफान या दुर्घटना से नहीं और ना ही पत्थर गिरने से हुई. सभी लोग हाइपोथर्मिया का शिकार हो गए थे. जो लोग सुरक्षित बचे हैं, वह भी धीरे-धीरे इस कंडीशन में पहुंचने वाले थे. लेकिन सभी ने एक दूसरे को हिम्मत दी. इस तरह से रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद 13 लोग बच पाए हैं. महिला कहती हैं कि हम में से कोई न बच पाता, अगर हमारे साथ पोर्टर के रूप में स्थानीय लोग न होते. उन्होंने हमारी बहुत सहायता की. महिला राजेश जसपाल और एक अन्य व्यक्ति स्थानीय पोर्टर का एहसान कभी ना भूलने की बात कहती हैं.

क्या होता है हाइपोथर्मिया? जानकार बताते हैं कि हाइपोथर्मिया (अल्प तापावस्था) एक ऐसी स्थिति बना देता है, जब आपके शरीर का तापमान 95 डिग्री फॉरेनहाइट यानी 35 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है. इससे हमारे शरीर में पैदा होने वाली गर्मी बिल्कुल खत्म सी हो जाती है. तब हमारे हृदय की गति, हमारे एक-एक अंग का हिस्सा काम करना बंद कर देता है. सबसे अधिक प्रभाव सांस लेने में पड़ता है. व्यक्ति सांस लेने की हालत में भी नहीं रहता. आखिर में एक समय ऐसा आता है, जब इंसान की मृत्यु हो जाती है. लिहाजा ऊंचे पर्वतों पर कैंपिंग और ट्रेकिंग करने वाले लोग हमेशा अपने कपड़ों का चयन बड़े अनुभवी तरीके से करते हैं. हर परिस्थितियों में निपटने के लिए कैसे कपड़े और खाने-पीने का सामान रखना है, यह देखना अनिवार्य हो जाता है.
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सहस्त्रताल ट्रेक हादसे की कहानी, सर्वाइवल की जुबानी (Video- SDRF)

देहरादून: अगर मौसम ठीक रहता, तो अगले 24 घंटे में हम सब सुरक्षित नीचे उतर जाते. सब कुछ ठीक-ठाक था. अचानक से मौसम बदला और सब कुछ खत्म हो गया. आंखों के सामने अपने साथियों को हमेशा के लिए बिछड़ते देखा. हमने लाशों के साथ रात बिताई है. यह कहानी है उन लोगों की जिन लोगों ने अपने 9 साथियों को सहस्त्रताल ट्रेक पर हमेशा हमेशा के लिए खो दिया.

Sahastratal trek accident
सहस्त्रताल ट्रेक हादसे की सर्वाइवल (ETV Bharat GFX)

सहस्त्रताल ट्रेक की अनसुनी कहानी: यह कहानी है उन 13 लोगों की, जो मौत के मुंह से निकलकर वापस आए हैं. उत्तरकाशी के ट्रेक कई बार जानलेवा साबित हुए हैं. इस बार द्रौपदी का डांडा के बाद उत्तरकाशी जिले में ही ट्रेकिंग ने नौ लोगों की जान ले ली. सुरक्षित बाहर निकले लोगों ने जो आंखों देखी बताई, उससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि हालात कितने विकट थे. इस हादसे में 13 लोग सुरक्षित निकाल लिए गए हैं. 9 लोग अपनी जान गंवा बैठे. सभी के शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है.

Sahastratal trek accident
भुक्तभोगी की जुबानी पूरी कहानी (ETV Bharat GFX)

वापस आ रहे थे कि अचानक सब खत्म हो गया: यह बात 3 जून की है. सहस्त्रताल ट्रेकिंग प्वाइंट पर जाने वाले दल का हिस्सा रहे जसपाल उन खुशकिस्मत लोगों में से एक हैं, जो लोग अपनी जान बचाने में कामयाब रहे. जसपाल उत्तराखंड के उत्तरकाशी के ही रहने वाले हैं. इससे पहले भी वह इस पर्वत पर कई बार अन्य दलों के साथ होकर आए हैं. जसपाल ने जो बातें बताईं, वो बेहद भयावह थीं. जसपाल कहते हैं कि यह बात 3 जून की है जब हम अपने बेस कैंप में वापस लौट रहे थे.

Sahastratal trek accident
ये था सहस्त्रताल ट्रेक हादसा (ETV Bharat GFX)

बड़े-बड़े ओले लाए विनाश: उसी दिन हमें अपना यह ट्रेक खत्म करके वापस आना था. दल के सभी लोग वापस आ रहे थे कि अचानक से देखते ही देखते मौसम खराब हो गया. मौसम इतना खराब हुआ कि बहुत मोटे-मोटे ओले हमारे ऊपर गिरने लगे. चंद मिनट में ही पूरी वैली का मौसम इतना ठंडा हो गया कि हम चल तक नहीं पा रहे थे. हालांकि मुझे पर्वतों में चलने और इस तरह के माहौल में रहने का थोड़ा बहुत अनुभव है. लेकिन जो लोग ट्रेकिंग करने आए थे, शायद उनसे वह ठंड बर्दाश्त नहीं हो रही थी. कई लोग भयानक ठंड में धीरे-धीरे नीचे बैठने लगे.

शवों के साथ गुजारी रात, सुबह तक 9 ने तोड़ दिया था दम: हमने आसपास देखा कि माहौल बहुत अधिक खराब हो गया है. हमने ट्रेकिंग दल में से ही तीन लोगों को गाइड के साथ नीचे जाने के लिए कहा. लेकिन उनकी हालत इतनी खराब थी कि वह एक कदम भी चल नहीं पा रहे थे. समय ज्यादा हो गया था. ठंड बहुत ज्यादा या यों कहें कि बर्दाश्त से बाहर थी. दल के ही कुछ लोगों को हमने उस जगह तक भेजने का मन बनाया, जहां पर फोन के सिग्नल आते हों. ताकि समय रहते संदेश प्रशासन तक पहुंचाया जा सके. धीरे-धीरे अंधेरा हो रहा था.

Sahastratal trek accident
उत्तरकाशी में है सहस्त्रताल ट्रेक (ETV Bharat GFX)

ऐसे पहुंचे कैंप साइट: असहनीय ठंड में कुछ लोग दम तोड़ चुके थे. हमने यह फैसला किया कि कुछ लोगों को जिस जगह पर बॉडी पड़ी हुई थी, वहीं पर रात बितानी पड़ेगी. उनमें से कई लोग वहीं पर रुके. ट्रेकिंग दल के कुछ लोग नीचे उतरने लगे. हम सुबह अपनी कैंप साइट पर पहुंच गए थे. कैंप में पहुंचने वालों की संख्या 9 की थी. जो दो लोग संदेश देने के लिए नीचे उतरे थे, उन्होंने सही तरीके से मैसेज दिया. कुछ ही देर बाद रेस्क्यू के लिए ऑपरेशन शुरू हो गया. लेकिन तब तक भी बहुत देर हो गई थी. एक-एक करके नौ लोगों ने बर्फ में ही दम तोड़ दिया. जसपाल बताते हैं कि हालत बहुत ही विकट हो गए थे. आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इतने ऊंचे पर्वत पर इतनी अधिक ठंड और बर्फबारी के बीच रात बिताने और वह भी ऐसी रात जहां पर हमें यह पता हो कि हमारे आसपास जो लोग थे, वह अब इस दुनिया में नहीं हैं. यह अनुभव बेहद भयावह था.

हम सब जिंदा नहीं रहते, अगर ये इंसान ना होते तो: ट्रेकिंग दल की एक महिला जो सुरक्षित बाहर निकल कर उत्तरकाशी पहुंची, उन्होंने बताया कि वह सुरक्षित अपने घर की तरफ जा रही हैं. उन्हें इस बात की बेहद खुशी है. लेकिन दुख इस बात का भी है कि यह ट्रेकिंग प्वाइंट बहुत सारे जख्म देकर गया. इस पूरे घटनाक्रम पर जब उनसे बात की गई, तो उन्होंने बताया कि जितनी भी डेथ हुई हैं, यह किसी तूफान या दुर्घटना से नहीं और ना ही पत्थर गिरने से हुई. सभी लोग हाइपोथर्मिया का शिकार हो गए थे. जो लोग सुरक्षित बचे हैं, वह भी धीरे-धीरे इस कंडीशन में पहुंचने वाले थे. लेकिन सभी ने एक दूसरे को हिम्मत दी. इस तरह से रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद 13 लोग बच पाए हैं. महिला कहती हैं कि हम में से कोई न बच पाता, अगर हमारे साथ पोर्टर के रूप में स्थानीय लोग न होते. उन्होंने हमारी बहुत सहायता की. महिला राजेश जसपाल और एक अन्य व्यक्ति स्थानीय पोर्टर का एहसान कभी ना भूलने की बात कहती हैं.

क्या होता है हाइपोथर्मिया? जानकार बताते हैं कि हाइपोथर्मिया (अल्प तापावस्था) एक ऐसी स्थिति बना देता है, जब आपके शरीर का तापमान 95 डिग्री फॉरेनहाइट यानी 35 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है. इससे हमारे शरीर में पैदा होने वाली गर्मी बिल्कुल खत्म सी हो जाती है. तब हमारे हृदय की गति, हमारे एक-एक अंग का हिस्सा काम करना बंद कर देता है. सबसे अधिक प्रभाव सांस लेने में पड़ता है. व्यक्ति सांस लेने की हालत में भी नहीं रहता. आखिर में एक समय ऐसा आता है, जब इंसान की मृत्यु हो जाती है. लिहाजा ऊंचे पर्वतों पर कैंपिंग और ट्रेकिंग करने वाले लोग हमेशा अपने कपड़ों का चयन बड़े अनुभवी तरीके से करते हैं. हर परिस्थितियों में निपटने के लिए कैसे कपड़े और खाने-पीने का सामान रखना है, यह देखना अनिवार्य हो जाता है.
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Last Updated : Jun 7, 2024, 12:15 PM IST
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