पटनाः कहा जाता है कि देश की सत्ता का रास्ता बिहार और यूपी से होकर ही गुजरता है. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में ये देखने को भी मिला, जब बीजेपी ने दोनों राज्यों में अभूतपूर्व सफलता हासिल कर केंद्र में मजबूत सरकार बनाई. लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद परिदृश्य पूरी तरह बदल गया है.अगले 5 साल तक केंद्र एनडीए की सरकार तो जरूर रहेगी लेकिन, मजबूत नहीं मजबूर रहेगी.
यूपी ने दिया सबसे बड़ा झटकाः मुख्यमंत्री योगी का सुशासन, अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद बीजेपी के साथ-साथ बड़े-बड़े सियासी पंडित ये मान कर चल रहे थे कि यूपी में इस बार भी बीजेपी की आंधी चलेगी जो उसे बड़ी जीत दिलाकर केंद्र में एक मजबूत सरकार बनाने में सहयोग करेगी, लेकिन यूपी ने मोदी और बीजेपी को इतना जोरदार झटका दिया जिससे उबरने में उसे काफी समय लगेगा.
बिहार में भी कमतर हुआ प्रदर्शनः बात बिहार की करें तो यहां भी NDA की उम्मीदों के मुताबिक सफलता नहीं मिली, हां इतना जरूर है कि यूपी वाला हश्र बिहार में नहीं हुआ. फिर भी 2019 में जहां NDA ने बिहार की 40 सीटों में से 39 पर जीत हासिल की थी, वहीं 2024 में 9 सीटें कम होकर आंकड़ा 30 पर जा पहुंचा.
अब सहयोगी दल होंगे मजबूतः 2019 में प्रचंड जीत के बाद बीजेपी को अपने सहयोगियों की जरूरत नहीं थी, फिर भी उसने सहयोगियों को जोड़े रखा. हां, इतना जरूर था कि तब सहयोगी मजबूत नहीं बल्कि मजबूर थे. मजबूरी का सबसे बड़ा उदाहरण रहा जेडीयू जो चाह कर भी अपने दल से एक मंत्री पद के लिए केंद्र में तरसता रहा.
आरसीपी सिंह का हुआ बुरा हश्रः बीच में जेडीयू के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह केंद्र में मंत्री तो बने लेकिन इसके लेकर उनके दल में ही भारी फजीहत हुई. पहले उनके हाथ से जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद गया और फिर बाद में मंत्री पद भी गंवाना पड़ा. इतना ही नहीं राज्यसभा की सदस्यता से भी हाथ धोना पड़ा.
2019 में जेडीयू था मजबूरः 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के साथ जेडीयू और एलजेपी ने NDA के बैनर तले चुनाव लड़ा और 40 सीटों में से 39 पर कब्जा कर लिया. बीजेपी को केंद्र में पूर्ण बहुमत मिला. एनडीए 351 पर था तो बीजेपी 303 पर अकेली थी. ऐसे में सांकेतिक तौर पर जेडीयू को कैबिनेट में एक मंत्री पद देने का फैसला किया गया. जबकि नीतीश कुमार ने संख्या के आधार पर कैबिनेट में हिस्सेदारी मांगी.
कैबिनेट में नहीं शामिल हुआ जेडीयूः जब नीतीश कुमार की बात नहीं मानी गई तो नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल में शामिल होने से साफ इनकार कर दिया. हालांकि वे एनडीए में बने रहे, लेकिन सरकार में उनकी कोई नुमाइंदगी नहीं थी. इस बीच आरसीपी सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. उन्होंने बीजेपी के साथ तालमेल बैठाया और खुद केंद्र में मंत्री बन गए. जिससे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नाराज हुए जिसका खामियाजा आरसीपी सिंह को भुगतना पड़ा.
अपने सहयोगियों का रखना होगा ख्यालः 2024 के नतीजे आने के बाद ये बात साफ हो गयी है कि अब 2019 वाली बात नहीं होनेवाली है. अब बीजेपी को अपने सहयोगियों को सहेज कर रखना होगा. अब नीतिगत फैसलों से पहले भी सहयोगियों को विश्वास में लेना होगा ताकि सहयोगी दल कोई खेला न कर दें और सरकार को मुश्किलों का सामना करना पड़ जाए.
"2024 के परिणाम के बाद नीतीश कुमार मजबूर नहीं रहेंगे. भले उनके पास सीटें कम हो, उनकी स्थिति देश की राजनीति में मजबूत रहेगी. बीजेपी इस बार पूर्ण बहुमत में नहीं है और ऐसे में बीजेपी के लिए नीतीश कुमार मजबूरी बन जाएंगे. अब नीतीश कुमार को संख्या के आधार से भी ज्यादा मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है. उन विभागों का वजन भी भारी हो सकता है."राघवेंद्र कुमार, वरिष्ठ पत्रकार
बिहार में अब कोई बड़ा भाई नहींः बता दें कि बिहार की सभी 40 लोकसभा सीटों के जो नतीजे आए हैं, उनके अनुसार बीजेपी को 12 और जेडीयू को भी 12 सीट मिली है. यानी अब बिहार की सियासत में बीजेपी-जेडीयू के बीच बड़े भाई वाली बात का फिलहाल समापन हो गया, लेकिन इस परिणाम ने निश्चित तौर पर नीतीश कुमार और जेडीयू का महत्व एनडीए में अचानक ही बढ़ा दिया है.