चेन्नई: तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने विधानसभा में एक अलग प्रस्ताव पेश किया, जिसमें केंद्र सरकार से जनसंख्या जनगणना के साथ-साथ जाति-वार जनगणना करने का आग्रह किया गया. इस प्रस्ताव में कहा गया कि यह परिषद मानती है कि भारत के सभी लोगों के लिए शिक्षा, अर्थव्यवस्था और रोजगार में समानता और अवसर सुनिश्चित करने के लिए योजनाएं बनाने और कानून बनाने के लिए जाति-वार जनगणना आवश्यक है.
एक अलग प्रस्ताव में बोलते हुए मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा कि 'हम सही मायने में आर्थिक रूप से विकसित समाज तभी बन सकते हैं, जब सभी वर्गों के लोगों को शिक्षा और रोजगार पाने के समान अवसर और समान अधिकार मिलें. इसी उद्देश्य से आरक्षण नीति लागू की जा रही है, ताकि सभी वर्गों के लोगों के बीच शैक्षणिक, सामाजिक और आर्थिक स्तर पर संतुलन बनाया जा सके.'
उन्होंने कहा कि 'हम अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और दिव्यांग जैसे सभी वर्गों के लोगों के विकास पर नज़र रखते रहे हैं. हाल ही में जाति-वार जनगणना की व्यापक मांग उठी है. DMK का विचार जाति-वार जनगणना कराने का है. मैं इस महत्वपूर्ण मामले पर विस्तार से बात करना चाहूंगा.'
स्टालिन ने कहा कि 'राष्ट्रीय जनगणना, जनगणना अधिनियम, 1948 के तहत केंद्र सरकार द्वारा किया जाने वाला सबसे बड़ा कार्य है. ब्रिटिश शासन के बाद से 100 से अधिक वर्षों तक केंद्र सरकार द्वारा यह कार्य हर 10 वर्ष में किया जाता रहा है. इस जनगणना के माध्यम से जनसंख्या से संबंधित सभी आंकड़े एकत्र किए जाते हैं और केंद्र सरकार द्वारा संकलित और प्रकाशित किए जाते हैं.'
उन्होंने कहा कि 'जनगणना अधिनियम की धारा 3 के अनुसार, केंद्र सरकार जनगणना कराएगी. हालांकि, यह व्यापक रूप से कहा जाता है कि राज्य सरकार सांख्यिकी अधिनियम, 2008 के आधार पर जातिवार जनगणना करा सकती है. संविधान के अनुच्छेद 246 के अनुसार जनगणना को केंद्र सरकार की सूची में रखा गया है.'
उन्होंने आगे कहा कि 'केंद्र सरकार वर्तमान में जनगणना में देरी कर रही है, जो 10 साल में एक बार किया जाने वाला एक बुनियादी कार्य है, इसे 2021 में नहीं किया गया. पहले साल उन्होंने कहा था कि यह COVID-19 महामारी के कारण था. COVID-19 महामारी के 3 साल बाद भी काम न करना केंद्र सरकार द्वारा कर्तव्य की उपेक्षा का कार्य है.'
स्टालिन ने कहा कि 'मैंने पिछले साल प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखकर कहा था कि जनगणना के साथ-साथ जातिवार जनगणना भी तुरंत कराई जानी चाहिए. जब केंद्र सरकार यह काम करेगी तो उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर राज्य सरकार द्वारा लिए गए फैसले और बनाए गए कानूनों को कानूनी संरक्षण मिलेगा.'
उन्होंने आगे कहा कि 'इसके विपरीत, यदि संबंधित राज्य सरकारें सर्वेक्षण के नाम पर आंकड़े एकत्र करके उसे कानून बना देती हैं तो अदालतों में उसके रद्द होने की संभावना रहती है. इन कारणों के आधार पर उन्होंने राष्ट्रीय जनसंख्या जनगणना के साथ-साथ जातिवार जनगणना कराने का प्रस्ताव रखा.'
इसके बाद डीएमके और डीएमके गठबंधन पार्टी के सदस्यों ने प्रस्ताव पर चर्चा में भाग लिया और अपना समर्थन व्यक्त किया. इसके बाद विधानसभा में मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन द्वारा लाए गए अलग प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया, जिसमें केंद्र सरकार से जनसंख्या जनगणना के साथ-साथ जातिवार जनगणना कराने का आग्रह किया गया था.