हैदराबाद: तेलंगाना की कांग्रेस सरकार कथित तौर पर दो से ज्यादा बच्चों वाले लोगों को स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने से रोकने वाले प्रतिबंध को हटाने का प्रस्ताव लाने पर विचार कर रही है. यह डेवलपमेंट आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व में स्थानीय निकाय चुनावों के लिए दो बच्चों की नीति को खत्म करने के कुछ हफ़्ते बाद हुआ है.
आंध्र प्रदेश की तरह तेलंगाना को भी इस नीति को खत्म करने के लिए अपने पंचायत राज अधिनियम, 2018 में संशोधन करना होगा. आंध्र प्रदेश में, सरकार ने तीन दशक पुराने कानून, आंध्र प्रदेश पंचायत राज और आंध्र प्रदेश नगरपालिका अधिनियमों को खत्म कर दिया था.
न्यूज एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार तेलंगाना में मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी की सरकार पुरानी नीति पर लौटने पर विचार कर रही है, जिसे 1990 के दशक में अविभाजित आंध्र प्रदेश की सरकार ने बदल दिया था. इससे पहले तेलंगाना में शहरी स्थानीय निकायों के लिए दो बच्चों के नियम को निरस्त कर दिया गया था.
दक्षिणी राज्यों में चिंता
दक्षिणी राज्य परिवार नियोजन योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन के लिए जाने जाते हैं. फिर भी ये राज्य खास तौर पर जहां विपक्षी दलों की सरकार है, वे अक्सर केंद्र सरकार पर टैक्स के बंटवारे में अपने प्रति पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगाते रहे हैं.
हाल के दिनों में विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने चिंता जताई है कि आगामी परिसीमन प्रक्रिया में दक्षिणी राज्यों में लोकसभा की कई कम हो सकती हैं. बता दें कि कि 2026 में जनसंख्या आधारित सर्वे किए जाने की संभावना है.
अक्टूबर में एक कार्यक्रम में बोलते हुए रेवंत रेड्डी ने कहा था कि दक्षिणी राज्यों ने परिवार नियोजन नीति को कुशलतापूर्वक लागू किया है, लेकिन केंद्र दक्षिण की सराहना करने के लिए तैयार नहीं है.
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने भी लोगों से भविष्य के लिए जन्म दर बढ़ाने के लिए कम से कम दो या उससे अधिक बच्चे पैदा करने का आग्रह किया है. वहीं, तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने भी हाल ही में अधिक बच्चे पैदा करने के पक्ष में बात की थी.
नायडू ने जहां बूढ़ी होती आबादी पर चिंता जताई, वहीं स्टालिन ने एक तमिल कहावत का जिक्र किया, 'पेत्रु पेरु वझ्वु वझ्गा', जिसका अर्थ है 16 विभिन्न प्रकार की संपत्ति अर्जित करना और समृद्ध जीवन जीना. इस दौरान उन्होंने कहा कि लोकसभा परिसीमन की कवायद लोगों को 16 बच्चों के पालन-पोषण के बारे में सोचने पर मजबूर कर सकती है.
आंध्र प्रदेश ने नीति को रद्द करते हुए कम प्रजनन दर और बढ़ती उम्र की आबादी के बारे में भी चिंता जताई. राज्य के सूचना और जनसंपर्क मंत्री के पार्थसारथी ने कहा कि आंध्र की कुल प्रजनन दर (TFR) बेहद कम है. जहां राष्ट्रीय टीएफआर 2.11 है, वहीं राज्य में यह केवल 1.5 है. इससे लंबे समय में राज्य की प्रोडक्टिविटी प्रभावित हो सकती है.
कम से कम तीन बच्चे: मोहन भागवत
हालांकि, बढ़ती उम्र की आबादी को लेकर चिंताएं सिर्फ दक्षिणी राज्यों तक सीमित नहीं हैं. बल्कि 1 दिसंबर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने भी जनसंख्या वृद्धि में गिरावट पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि भारत की कुल प्रजनन दर कम से कम 3 होनी चाहिए, जो कि 2.1 प्रतिशत की प्रतिस्थापन दर से काफी ज्यादा है.
नागपुर में 'कथले कुल (वंश) सम्मेलन' में बोलते हुए भागवत ने बड़े परिवारों के महत्व पर जोर दिया और चेतावनी दी कि जनसंख्या विज्ञान के अनुसार, अगर किसी समाज की प्रजनन दर 2.1 से कम हो जाती है, तो उसे विलुप्त होने का खतरा हो सकता है.
दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश भारत
अधिक बच्चे पैदा करने पर जोर ऐसे समय में दिया जा रहा है, जब केंद्र सरकार जनसंख्या नियंत्रण उपायों की योजना बना रही है. चीन की 1.425 बिलियन की तुलना में 1.428 बिलियन की आबादी के साथ भारत अप्रैल 2023 में दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया था.
2019 में दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बनने पर नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि 'जनसंख्या विस्फोट' को संबोधित करना उनकी एक प्रमुख प्राथमिकता होगी. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मल सीतारमण ने इस साल फरवरी में अपने अंतरिम बजट भाषण में देश की तेज जनसंख्या वृद्धि को संबोधित करने के लिए एक उच्च-शक्ति समिति का प्रस्ताव भी रखा था.
दो बच्चों की नीति
दो बच्चों की नीति पूरे देश में लागू नहीं है, लेकिन भारत के कुछ राज्यों ने इसे लागू किया है. 1990 के दशक में, राष्ट्रीय विकास परिषद (NDC) ने तत्कालीन केरल के मुख्यमंत्री के करुणाकरण की अध्यक्षता में एक समिति गठित की. पैनल ने सिफारिश की कि दो से अधिक बच्चों वाले लोगों को पंचायत स्तर से लेकर संसद तक सरकारी पदों पर रहने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. इस समिति की सिफारिशों को कुछ राज्यों ने अपनाया.
राजस्थान 1992 में पंचायत चुनावों के लिए नियम अपनाने वाला पहला राज्य था, उसके बाद 1994 में आंध्र प्रदेश, हरियाणा और ओडिशा ने इसे अपनाया. मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, बिहार और असम ने भी अगले दो दशकों में इसी तरह के नियम अपनाए. हालांकि, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश ने 2005 में नीति को वापस ले लिया.