नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कांग्रेस शासित तेलंगाना सरकार से कहा कि 'न्याय होना चाहिए' और साथ ही पूर्व तेलंगाना मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की याचिका पर सेवानिवृत्त न्यायाधीश एल नरसिम्हा रेड्डी को बदलने के लिए कहा, जिसमें उनके कार्यकाल के दौरान बिजली क्षेत्र में अनियमितताओं के आरोपों की न्यायिक जांच में पक्षपात का दावा किया गया था.
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता ए एम सिंघवी से कहा कि 'यह बिल्कुल ऐसा मामला है, जिसकी उन्हें जांच करनी है... इस समय वे प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं कर सकते... लेकिन उन्होंने अपनी राय व्यक्त करके अब उस सीमा को पार कर लिया है...' इस बेंच में न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे.
सीजेआई ने कहा कि 'हम डॉ. सिंघवी को मौका दे रहे हैं कि वे जांच आयोग के जज को बदल दें. कोई दूसरा जज नियुक्त करें, क्योंकि यह धारणा बननी चाहिए कि न्याय हुआ है. वे जांच आयुक्त हैं... उन्होंने गुण-दोष के आधार पर विचार व्यक्त किए हैं.' सीजेआई ने सिंघवी से कहा कि समस्या यह है कि गुण-दोष के आधार पर टिप्पणियां की जाती हैं और जांच रिपोर्ट से व्यक्ति की प्रतिष्ठा प्रभावित होती है.
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मामले में अपना रुख स्पष्ट किए जाने के बाद तेलंगाना सरकार ने दलील दी कि वह सेवानिवृत्त न्यायाधीश एल नरसिम्हा रेड्डी की जगह किसी और को नियुक्त करेगी. सर्वोच्च न्यायालय की फटकार के बाद न्यायमूर्ति रेड्डी ने खुद ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया. पीठ ने जांच आयोग पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनकी टिप्पणियों के बारे में ये टिप्पणियां कीं, जिसे अभी भी अपनी जांच पूरी करनी है.
केसीआर की याचिका का निपटारा करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार का यह बयान दर्ज किया कि जांच आयोग का नेतृत्व करने के लिए एक नए व्यक्ति को नियुक्त किया जाएगा. केसीआर का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने जोरदार ढंग से तर्क दिया कि पूरा मामला 'राजनीतिक प्रतिशोध' पर आधारित है और उन्होंने जोर देकर कहा कि जब भी सरकार बदलती है, तो पूर्व मुख्यमंत्री को निशाना बनाया जाता है.
प्रेस कॉन्फ्रेंस के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने सिंघवी से कहा कि यह एक ऐसे व्यक्ति के लिए थोड़ा अप्रिय है, जो एक न्यायाधीश है और अगर उन्होंने मामले की मेरिट पर कुछ टिप्पणियां नहीं की होतीं, तो कोर्ट इसमें हस्तक्षेप नहीं करता. जस्टिस रेड्डी का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने किया, जिन्होंने कहा कि उनके मुवक्किल के खिलाफ पक्षपात का आरोप गलत तरीके से लगाया जा रहा है.
राव ने उच्च न्यायालय के उस आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी, जिसमें राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान बिजली क्षेत्र में कथित अनियमितताओं की जांच के लिए आयोग के गठन को 'अवैध' घोषित करने की उनकी याचिका को खारिज कर दिया गया था. राव की याचिका में कहा गया है कि प्रतिवादी संख्या 3 के खिलाफ पक्षपात का आरोप पूरी तरह से एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कथित तौर पर दिए गए बयान पर आधारित है और ऐसा कोई अन्य साक्ष्य पेश नहीं किया गया है, जिससे पता चले कि प्रतिवादी संख्या 3 के समक्ष कार्यवाही व्यक्तिगत पक्षपात के कारण प्रभावित हुई है.