नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के हक में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. शीर्ष अदालत ने कहा है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने पति से गुजारा भत्ता मांग सकती है. जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने बुधवार को एक मुस्लिम व्यक्ति की याचिका को खारिज करते हुए यह आदेश पारित किया. व्यक्ति ने अपनी याचिका में तलाक के बाद अपनी पत्नी को भरण-पोषण देने के निर्देश को चुनौती दी थी.
अपने फैसले में सर्वोच्च अदालत ने कहा कि देश में धर्मनिरपेक्ष प्रावधान ही लागू होंगे. अदालत ने स्पष्ट किया कि भरण-पोषण मांगने का कानून सभी शादीशुदा महिलाओं पर लागू होता है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो. जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि हम इस निष्कर्ष के साथ आपराधिक अपील को खारिज कर रहे हैं कि सीआरपीसी की धारा 125 सिर्फ शादीशुदा महिलाओं पर ही नहीं बल्कि सभी महिलाओं पर लागू होगी.
NCW Chairperson, Ms. Rekha Sharma, wholeheartedly welcomes the Supreme Court's landmark ruling affirming the right of Muslim women to seek maintenance under Section 125 of the CrPC. This decision is a significant step towards gender equality and justice for all women.… pic.twitter.com/2X7gT0LJvm
— NCW (@NCWIndia) July 10, 2024
सीआरपीसी की धारा 125 मोटे तौर पर कहती है कि पर्याप्त आय वाला व्यक्ति अपनी पत्नी, बच्चों या माता-पिता को भरण-पोषण देने से इनकार नहीं कर सकता है. शीर्ष अदालत ने कहा कि भरण-पोषण कोई दान नहीं है, बल्कि यह विवाहित महिलाओं का मौलिक अधिकार है. यह अधिकार धार्मिक सीमाओं से परे है, जो सभी शादीशुदा महिलाओं के लिए लैंगिक समानता और वित्तीय सुरक्षा के सिद्धांत को मजबूत करता है.
अदालत ने आगे कहा कि कुछ पति इस सच्चाई से अवगत नहीं हैं कि एक गृहिणी के तौर पर पत्नी भावनात्मक रूप से और अन्य तरीकों से उन पर निर्भर है. भारतीय पुरुषों के लिए समय आ गया है कि वे परिवार के लिए गृहिणियों द्वारा की जाने वाली अहम भूमिका और त्याग को पहचानें.
राष्ट्रीय महिला आयोग ने फैसले का किया स्वागत
राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने सर्वोच्च अदालत के इस फैसले का स्वागत किया है. एनसीडब्ल्यू ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा सीआरपीसी की धारा 125 के तहत मुस्लिम महिलाओं के भरण-पोषण की मांग करने के अधिकार पर मुहर लगाने वाले सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले का स्वागत करती हैं. यह फैसला लैंगिक समानता और सभी महिलाओं के लिए न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है.
क्या था मामला
मोहम्मद अब्दुल समद नाम के व्यक्ति ने पूर्व पत्नी को गुजारा भत्ता देने के निचली अदालत के निर्देश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती थी. तेलंगाना के फैमिली कोर्ट ने समद को अपनी पूर्व पत्नी को 20,000 रुपये मासिक भत्ता देने का निर्देश दिया था. इसके बाद समद ने तेलंगाना हाईकोर्ट में इस निर्देश को चुनौती दी. हाईकोर्ट ने गुजारा भत्ता देने के निर्देश को बरकरार रखा, लेकिन राशि को घटाकर 10,000 रुपये प्रतिमाह कर दिया. इसके बाद समद ने सर्वोच्च अदालत का रुख किया.
याचिकाकर्ता की क्या थी दलील
समद के वकील ने तर्क दिया कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 1986 का सहारा ले सकती हैं और इस बात पर जोर दिया कि यह अधिनियम सीआरपीसी की धारा 125 तुलना में बहुत अधिक प्रदान करता है. उन्होंने अधिनियम का हवाला देते हुए यह भी तर्क दिया कि एक विशेष कानून सामान्य कानून पर हावी रहेगा. लेकिन एमिकस क्यूरी गौरव अग्रवाल ने कहा कि पर्सनल लॉ, लिंग का भेद नहीं करने वाली सीआरपीसी के तहत राहत पाने के लिए महिलाओं के अधिकार को नहीं छीनता है.
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