नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि वह हाथरस भगदड़ की घटना की जांच के लिए शीर्ष अदालत के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की निगरानी में पांच सदस्यीय विशेषज्ञ समिति की नियुक्ति की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करेगा. इस घटना में 121 लोगों की मौत हो गई थी.
अधिवक्ता विशाल तिवारी ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष अपनी याचिका का उल्लेख किया. पीठ में न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा शामिल थे. तिवारी ने कहा कि सौ से अधिक लोगों की जान चली गई है और उन्होंने अदालत से आग्रह किया कि उनकी याचिका को तत्काल सूचीबद्ध किया जाए. सीजेआई ने कहा कि उन्होंने याचिका को सूचीबद्ध करने के संबंध में आदेश दे दिए हैं और इसे सूचीबद्ध किया जाएगा.
हाथरस जिले की सिकंदरा राव तहसील के रतिभानपुर गांव में एक अस्थायी तंबू में धार्मिक उपदेशक और उनकी पत्नी के संबोधन के दौरान भगदड़ मच गई. याचिका में कहा गया है कि इस तरह की घटना प्रथम दृष्टया सरकारी अधिकारियों द्वारा जिम्मेदारी की गंभीर चूक, लापरवाही और जनता के प्रति देखभाल के कर्तव्य की कमी को दर्शाती है.
याचिका में कहा गया है कि सरकारी अधिकारियों की ओर से यांत्रिक विफलता, चूक और लापरवाही बरती गई है, क्योंकि उन्होंने सभा के संबंध में सुरक्षा और बचाव उपायों की निगरानी नहीं की. याचिका में उत्तर प्रदेश सरकार को 2 जुलाई की घटना पर स्थिति रिपोर्ट पेश करने और अधिकारियों और अन्य के खिलाफ उनके लापरवाह आचरण के लिए कानूनी कार्रवाई शुरू करने का निर्देश देने की भी मांग की गई है.
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि वह सभी राज्य सरकारों को निर्देश दे कि वे ब्लॉक/तहसील से लेकर जिला स्तर तक भगदड़ की घटनाओं से निपटने के लिए उपलब्ध चिकित्सा सुविधाओं की स्थिति प्रस्तुत करें. याचिकाकर्ता ने जोर देकर कहा कि ऐसी घटनाएं पहले भी हो चुकी हैं, लेकिन उनसे कोई सीख नहीं ली गई है. इसलिए जांच करने और रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए न्यायिक आयोग की नियुक्ति का आदेश देना महत्वपूर्ण है.
याचिका में कहा गया, 'भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े धार्मिक आयोजनों की परंपरा है. अक्सर, हजारों भक्त एक तंग जगह पर इकट्ठा होते हैं, जहां कोई बुनियादी सुविधाएं नहीं होतीं. यहां तक कि आपातकालीन स्थिति में प्रवेश या निकास द्वार भी नहीं होते. कभी-कभी, इन आयोजनों के आयोजकों के पास स्थानीय अधिकारियों के साथ उचित संचार की कमी होती है. इसके परिणामस्वरूप अक्सर जानलेवा भगदड़ मच जाती है.'
याचिका में कहा गया है कि भगदड़ की इस भयावह घटना से कई सवाल उभर कर सामने आए हैं. इससे राज्य सरकार और नगर निगम की ड्यूटी और चूक पर सवाल उठते हैं. पिछले एक दशक से हमारे देश में कई ऐसी घटनाएं हुई हैं जिनमें कुप्रबंधन, ड्यूटी में चूक, लापरवाह रखरखाव गतिविधियों के कारण बड़ी संख्या में लोगों की जान गई है, जिन्हें टाला जा सकता था.'